अस्त, नीच और पीड़ित ग्रहों के प्रभाव को समझना

अस्त,नीच और पीड़ित ग्रहों के प्रभाव को जानना -:

नमस्कार मित्रों !
आज की ज्योतिषीय  चर्चा के अंतर्गत अस्त, नीच पीड़ित ग्रहों के बारे में विस्तार से हैं चर्चा करेंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि जब हमारा कोई ग्रह सूर्य से अस्त हो जाता है या अपनी नीच राशि में होता है या पाप प्रभाव में आकर पीड़ित हो जाता है तो उनके कारकत्व से संबंधित फलों में कमी हो जाती है। अतःआज इन तीनों विषय को लेकर के विस्तार से जानेंगे।

अस्त ग्रह -:

जैसा कि हम जानते हैं कि अस्त का अभिप्राय यह होता है कि जब कोई भी ग्रह  सूर्य के अति निकट आ जाता है तो सूर्य उस ग्रह को अस्त कर देते हैं अर्थात सूर्य के निकट आने से सूर्य की किरणों से उस ग्रह की रस्मियां प्रभावहीन हो जाती है।
 जिससे जो ग्रह अस्त होता है वह अपना प्रभाव खो देता है। इसी प्रक्रिया को अस्त ग्रह कहा जाता है। अतः जब भी कोई योगकारक ग्रह  जो हमारी कुण्डली में शुभ भाव का स्वामी होकर अच्छे फल देने के लिए होता है किंतु सूर्य देव के कारण अस्त हो जाने से वह अपना प्रभाव खो देता है। तो इस कंडीशन में क्या होगा कि जो अस्त ग्रह जिस भाव से संबंधित फल देने के लिए था। और जो कारकत्व  उसके पास होता है उनके फल जातक को नहीं मिल पाते हैं अर्थात इसको आप इस प्रकार से समझ सकते हैं कि जैसे मान लीजिए शुक्र देव सूर्य से अस्त हो गए तो शुक्र के जो प्रभाव होते हैं वो हमारे जीवन में कमजोर हो जाएंगे अर्थात शुक्र से सम्बन्धित  कार्य में हम गुमनाम हो जाते हैं। इस प्रकार जो ग्रह अस्त होता है उससे संबंधित कार्यों में हमें क्षमता होते हुए भी हम अपनी उन क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पाते हैं। हम उस ग्रह के संबंधित कार्य क्षेत्र में जल्दी से निराश हो करक अपने आप को सिलेंडर कर देते हैं। इसलिए यदि जन्मकुंडली में कोई भी योगकारक ग्रह सूर्य से अस्त हो जाता है तो उसे  हमें पॉजिटिव करने के उचित उपाय करने चाहिए किंतु यदि कोई मारक ग्रह सूर्य से अस्त होता है तो उसकी जो मारक फल है उनमे  कमी रहेगी। अतः मारक ग्रह का अस्त होना अच्छा होता है।


नीच ग्रह -:


अब हम नीच ग्रह के बारे में जानते हैं जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है उससे सातवीं राशि में वह नीच का हो जाता है। और इसमें ग्रह अपनी मित्र राशि में भी नीच का हो जाता है तो शत्रु राशि में भी उसका हो जाता है जैसे शुक्र देव अपने शत्रु बृहस्पति की मीन राशि में उच्च होते हैं तो अपने मित्र बुद्ध की कन्या राशि में नीच हो जाते हैं । मंगल अपने मित्र चंद्रमा की राशि में नीच के होते हैं और अपने शत्रु शनि की मकर राशि में उच्च होते हैं। जबकि सदेव मित्र की राशि में बैठना तो शुभ होता है। अतः किसी भी ग्रह का नीच हो जाने का यह कतई मतलब नहीं होता है कि वह अपने प्रभाव को खो देता है या उस ग्रह की ताकत कम हो जाती है। अपितु जब कोई ग्रह  नीच राशि में विद्यमान हो जाता है तो उस कि जो क्षमता होती है उसकी जो कार्यशैली होती है उसका वह सही जगह जहां उसे उपयोग करना चाहिए था वहां उपयोग ना करके गलत जगह अपनी शक्ति का उपयोग करता है। जैसे मंगल नीच का हो गया इसका मतलब है कि उसका कारकत्व पराक्रम होता है ताकत होती है किंतु मंगल जहां अपना गुस्सा दिखाना चाहिए वहां नहीं दिखा करके गलत जगह पर अपना गुस्सा दिखाता है अपना पराक्रम दिखाता है। इसी प्रकार जैसे मान लीजिए गुरु आपका नीच का हो गया तो हम हमारे का सही जगह पर उपयोग नहीं करके गलत जगह पर हमारे ज्ञान का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार शनि नीच का हो गया तो इसका मतलब यह है कि जिस कार्य को हमें करना चाहिए उसको नहीं करके हम ऐसे काम में चले जाते हैं जहां से हमें पॉजिटिव फल नहीं मिलने वाला होता है। इस प्रकार किसी ग्रह का नीच होने का मतलब यह होता है की उस ग्रह की जो ताकत होती है उसका हम सही जगह पर यूटिलाइजर नहीं कर पाते हैं। अतः नीच ग्रह के पास जो कारकत्व होता है। और जिस भाव का वह स्वामी बनता है उस भाव के अकॉर्डिंग उसके फल को हम प्राप्त नहीं कर पाते।


पीड़ित ग्रह -:

अब हम पीड़ित ग्रह को समझते हैं  पीड़ित  ग्रह कहीं प्रकार से होते हैं जैसे किसी ग्रह का शत्रु राशि में चला जाना अपने शत्रु राशि के साथ यूति बना कर बैठना अथवा आगे पीछे पाप ग्रहों का आ जाना ये सब पीड़ित ग्रह की कंडीशन होती है। अतः जब भी कोई ग्रह पाप प्रभाव में आता है तो वह पीड़ित हो जाता है। और उसके पीड़ित होने से वह अपने आपको कंफर्टेबल महसूस नहीं करता है जैसे मान लीजिए कोई ग्रह अपने शत्रु राशि में बैठता है तो उसका मतलब है कि उसके आसपास का जो वातावरण  होता है। वहां उसे गुड फील नहीं होता है। अतः इस प्रकार जब कोई भी ग्रह  अपने शत्रु राशि में अथवा शत्रु ग्रह के साथ विद्यमान हो तो वहां वह अपने आप को अच्छा महसूस नहीं करता जिस कारण से उसके जो कारकत्व के फल होते हैं। उनको नहीं दे पाता है किंतु यदि उसी के साथ कोई शुभ ग्रह बैठे हो तो वह खुल करके अपना फल देने के लिए सक्षम होता है।



एस्ट्रोलॉजर आचार्य कौशल कुमार शास्त्री 

वैदिक ज्योतिष  शौध संस्थान 
चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर
राजस्थान
 9414657245



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