अग्नि पुराण के अनुसार सभी 15 तिथियों की व्रत विधि और महत्व -:
अग्नि पुराण में सभी पंद्रह तिथियों (प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा या अमावस्या तक) के व्रतों का वर्णन पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से किया गया है। प्रत्येक तिथि का एक विशेष महत्व है, और उन तिथियों पर विशेष व्रत, उपवास या पूजन करने से पापों का क्षय, पुण्य की प्राप्ति तथा मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। नीचे प्रत्येक तिथि का महत्व और व्रत विधि का सारांश प्रस्तुत है।
1. प्रतिपदा
महत्व: नवीन कार्यों की शुरुआत के लिए उत्तम। पितरों के श्राद्ध हेतु विशेष (कृष्ण पक्ष की)।
व्रत विधि: उपवास करके भगवान गणेश या कुलदेवता की पूजा करें। घर की स्वच्छता और दीपदान करें।
2. द्वितीया
महत्व: भाई-बहन के संबंधों के लिए शुभ (भ्रातृ द्वितीया/भाई दूज)।
व्रत विधि: बहनें व्रत करें, भाई को तिलक कर भोजन कराएं। विशेषतः यम द्वितीया को यमराज की पूजा करें।
3. तृतीया
महत्व: सौंदर्य, ऐश्वर्य और सुहाग के लिए (अक्षय तृतीया)।
व्रत विधि: उपवास करके लक्ष्मी-नारायण या पार्वती-शिव की पूजा करें। अक्षय पुण्य की प्राप्ति के लिए दान करें।
4. चतुर्थी
महत्व: विघ्न विनाश के लिए (संकष्टी/विनायक चतुर्थी)।
व्रत विधि: दिनभर उपवास, चंद्रमा दर्शन के बाद व्रत समाप्त। गणेशजी की पूजा करें।
5. पंचमी
महत्व: नाग पूजा के लिए (नाग पंचमी), विद्या प्राप्ति हेतु भी शुभ।
व्रत विधि: नागदेवता का पूजन करें, दूध चढ़ाएं। स्त्रियाँ विशेष रूप से व्रत करती हैं।
6. षष्ठी
महत्व: संतान सुख और संरक्षण हेतु (षष्ठी माता)।
व्रत विधि: मातृशक्ति की पूजा करें। संतान की दीर्घायु के लिए महिलाएँ व्रत करें।
7. सप्तमी
महत्व: सूर्य उपासना के लिए विशेष (रथ सप्तमी)।
व्रत विधि: सूर्य देव को अर्घ्य दें, व्रत रखें, सूर्य मंत्रों का जप करें।
8. अष्टमी
महत्व: देवी उपासना हेतु (कालाष्टमी, दुर्गाष्टमी)।
व्रत विधि: उपवास, दुर्गा सप्तशती का पाठ। रात्रि जागरण का भी विधान।
9. नवमी
महत्व: शक्ति पूजा का चरम दिन (राम नवमी, महासप्तमी)।
व्रत विधि: नवदुर्गा पूजन, कन्या पूजन। राम नवमी को राम जन्मोत्सव मनाया जाता है।
10. दशमी
महत्व: विजय, धर्म विजय का प्रतीक (विजय दशमी)।
व्रत विधि: रावण दहन, शस्त्र पूजन। उपवास कर के विजय प्राप्ति की कामना करें।
11. एकादशी
महत्व: विष्णु भक्ति का श्रेष्ठ दिन। मोक्षदायिनी।
व्रत विधि: निर्जल/सात्विक व्रत रखें, श्रीहरि विष्णु का पूजन करें, रातभर जागरण करें।
12. द्वादशी
महत्व: एकादशी व्रत का पारण, तुलसी पूजन का दिन।
व्रत विधि: स्नान के बाद व्रत पारण, तुलसी जल अर्पण करें, भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
13. त्रयोदशी
महत्व: धन, आरोग्य और कल्याण हेतु (धन त्रयोदशी/धनतेरस)।
व्रत विधि: धन्वंतरि पूजन करें, प्रदोष व्रत हो तो शिव उपासना करें।
14. चतुर्दशी
महत्व: उग्र देवताओं की उपासना (नरक चतुर्दशी, शिवरात्रि)।
व्रत विधि: रात्रि में जागरण, शिव पूजन। नरक से रक्षा के लिए दीपदान करें।
15. पूर्णिमा / अमावस्या
पूर्णिमा
महत्व: चंद्र पूजा, सत्य, संतोष व्रत (गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा)।
व्रत विधि: चंद्रमा को अर्घ्य, दान, व्रत, कथा श्रवण।
अमावस्या
महत्व: पितृ तर्पण, श्राद्ध, काली पूजन हेतु विशेष।
व्रत विधि: स्नान-दान करें, पितरों को तर्पण दें। काली/शनि पूजा करें।
निष्कर्ष:
अग्नि पुराण में वर्णित तिथियों के अनुसार व्रत करने से आत्मशुद्धि, पापमोचन और लोक-परलोक में कल्याण होता है। तिथि विशेष पर किए गए व्रत-पूजन का फल अनंतगुणा होकर प्राप्त होता है।
एस्ट्रो आचार्य केके शास्त्री
9414657245
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