वृषभ लग्न पत्रिका में सूर्य देव का फल -:
भृगु संहिता एवं शास्त्रीय ज्योतिष सिद्धांतों के अनुसार वृषभ लग्न की जन्मकुण्डली में सूर्यदेव के 12 भावों में स्थान अनुसार फल इस प्रकार माने जाते हैं—
प्रथम भाव (लग्न)
- वृषभ लग्न में सूर्य लग्नेश शुक्र का शत्रु ग्रह है।
- यहाँ सूर्य व्यक्ति को गर्वीला, अहंकारी, आत्मसम्मानी बनाता है।
- स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव, नेत्र सम्बन्धी पीड़ा, पितृ से मतभेद।
- सरकारी/प्रशासनिक कार्यों में सहयोग तो मिलेगा, परंतु स्थिरता नहीं रहती।
द्वितीय भाव
- वाणी में कटुता, परिवार में मतभेद।
- धन संचय में बाधाएँ, किन्तु उच्च शिक्षा में सफलता।
- वंशपरंपरागत धन मिलने की संभावना।
तृतीय भाव
- साहस, पराक्रम, छोटे भाइयों की उन्नति।
- लेखन, कला, संगीत व वक्तृत्व में सफलता।
- व्यक्ति कर्मशील एवं निर्भीक होता है।
चतुर्थ भाव
- माता से मतभेद या माता के स्वास्थ्य में बाधा।
- भूमि, भवन, वाहन सुख में कमी।
- परंतु सरकारी कार्यों व राजनीति में लाभ दे सकता है।
पंचम भाव
- संतान सुख में बाधा, संतान से मतभेद।
- उच्च शिक्षा में व्यवधान।
- जुआ, सट्टा, शेयर आदि में हानि की संभावना।
- लेकिन यदि सूर्य शुभ दृष्ट हो तो राजकीय लाभ व प्रतिष्ठा देता है।
षष्ठ भाव
- शत्रुओं पर विजय, रोग-नाशक।
- सरकारी नौकरी में लाभ।
- करियर में परिश्रम से उन्नति।
- परंतु पाचनतंत्र व नेत्र सम्बन्धी रोग हो सकते हैं।
सप्तम भाव
- दाम्पत्य जीवन में मतभेद।
- पत्नी के स्वास्थ्य पर असर।
- व्यापार में भागीदारी से हानि।
- यदि शुभ दृष्ट हो तो प्रतिष्ठित दाम्पत्य संबंध देता है।
अष्टम भाव
- आयु में कमी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ।
- पितृ दोष की संभावना।
- परंतु अध्यात्म, रहस्यविद्या, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र में रुचि देता है।
नवम भाव
- भाग्य बाधित, पितृ से मतभेद।
- परंतु पराक्रम से व्यक्ति अपना भाग्य स्वयं बनाता है।
- धार्मिक यात्राएँ, परंतु पिता के स्वास्थ्य में कष्ट।
दशम भाव
- राजकीय कार्यों में सफलता।
- प्रशासन, उच्च पद, सरकारी नौकरी में लाभ।
- व्यक्ति कर्मठ व परिश्रमी।
- यदि सूर्य बलवान हो तो मंत्रीपद तक उन्नति संभव।
एकादश भाव
- लाभ, आय व इच्छाओं की पूर्ति।
- मित्रों से सहयोग।
- पुत्र की उन्नति।
- राजनीतिक व सामाजिक प्रतिष्ठा।
द्वादश भाव
- व्यय अधिक, नेत्र दोष, विदेश यात्रा।
- धन हानि, मुकदमेबाजी।
- परंतु आध्यात्मिक उन्नति, मोक्षमार्ग में रुचि।
- परोपकारी कार्यों में खर्च।
निष्कर्ष:
वृषभ लग्न में सूर्य चतुर्थेश (सिंह राशि का स्वामी) होकर केंद्र भावेश है। शास्त्रों के अनुसार वह वृषभ लग्न के लिए शुभ नहीं होता, विशेषकर 4, 5, 7, 8, 9 व 12 भाव में पीड़ादायक फल देता है। परंतु 3, 6, 10 और 11 भाव में शुभ फल प्रदान करता है
वृषभ लग्न में सूर्य के 12 भावों में फल को निम्न तालिका से समझते हैं।
भाव | सूर्य का फल |
---|---|
1. लग्न | आत्मसम्मान, अहंकार, स्वास्थ्य उतार-चढ़ाव, पितृ से मतभेद, सरकारी सहयोग अस्थिर |
2. धन भाव | वाणी कटु, पारिवारिक मतभेद, धन संचय में बाधा, शिक्षा में सफलता, पैतृक धन की संभाव |
3. पराक्रम भाव | साहस, छोटे भाई की उन्नति, लेखन-संगीत-कला में सफलता, कर्मशील व निर्भीक |
4. सुख भाव | माता से मतभेद, भूमि-भवन-वाहन सुख में कमी, परंतु राजनीति व प्रशासनिक लाभ |
5. पुत्र भाव | संतान सुख में बाधा, शिक्षा व्यवधान, सट्टा-शेयर में हानि, शुभ दृष्ट होने पर राजकीय लाभ |
6. ऋण/शत्रु भाव | शत्रु पर विजय, रोगनाश, सरकारी नौकरी व करियर में उन्नति, पाचन व नेत्र दोष |
7. दाम्पत्य भाव | दाम्पत्य जीवन में मतभेद, पत्नी का स्वास्थ्य प्रभावित, साझेदारी में हानि, शुभ होने पर प्रतिष्ठित दाम्पत्य संबंध |
8. आयु भाव | स्वास्थ्य समस्या, आयु ह्रास, पितृ दोष, परंतु अध्यात्म, तंत्र-मंत्र व ज्योतिष में रुचि |
9. भाग्य भाव | भाग्य बाधित, पिता से मतभेद, परिश्रम से भाग्यनिर्माण, धार्मिक यात्राएँ |
10. कर्म भाव | राजकीय सफलता, उच्च पद, प्रशासनिक लाभ, बलवान हो तो मंत्रीपद तक उन्नति |
11. लाभ भाव | आय-लाभ, इच्छापूर्ति, मित्र सहयोग, पुत्र की उन्नति, सामाजिक-राजनीतिक प्रतिष्ठा |
12. व्यय भाव | अधिक व्यय, नेत्र दोष, विदेश यात्रा, धन हानि, मुकदमेबाजी, परंतु आध्यात्मिक उन्नति व परोपकारी कार्यों में रुचि |
इसमें भृगु नाड़ी दृष्टिकोण को जोड़ें तो फल और भी सूक्ष्म और जीवन-घटनाओं से जुड़ा हुआ प्रतीत होगा।
वृषभ लग्न में सूर्य – नाड़ी शैली संकेत
भाव | भृगु नाड़ी दृष्टिकोण से सूक्ष्म संकेत |
---|---|
1. लग्न | सूर्य यहाँ जातक को सरकारी अथवा अधिकारिक व्यक्तियों से जोड़ता है। जीवन में स्वाभिमान के कारण संघर्ष होता है। पिता या पितृकुल से दूरी बनती है। |
2. धन भाव | पैतृक धन अथवा सूर्य से सम्बद्ध भूमि-संपत्ति से धन लाभ। वाणी से विवाद, परंतु धन का मूल स्रोत परिवार अथवा पिता की ओर से आता है। |
3. पराक्रम भाव | छोटे भाई-बहनों का उत्थान। जातक की लेखन, वाणी, वक्तृत्व से यश मिलता है। सरकारी विभाग से छोटे स्तर का सहयोग। |
4. सुख भाव | माता अथवा मातृकुल से दूरी। घर बदलना, बार-बार मकान अथवा स्थान परिवर्तन। भूमि पर विवाद, परंतु राजनीति से लाभ। |
5. पुत्र भाव | संतान पिता से मतभेद करेगी अथवा पिता-संबंधित करियर अपनाएगी। जातक की शिक्षा अधूरी रह सकती है, परन्तु राजनीतिक या प्रशासनिक प्रभाव से उन्नति। |
6. शत्रु भाव | जातक सरकारी पद या प्रशासनिक कार्य में अपने शत्रुओं को परास्त करता है। सूर्य यहाँ रोग नाशक है, पर नेत्र रोग अथवा पित्त दोष दे सकता है। |
7. दाम्पत्य भाव | पत्नी या जीवनसाथी का स्वभाव अहंकारी। विवाह में विलम्ब या जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित। यदि सूर्य शुभ दृष्ट हो तो प्रतिष्ठित घराने में विवाह। |
8. आयु भाव | अचानक उतार-चढ़ाव, पितृ कर्म का प्रभाव। व्यक्ति गूढ़ विद्याओं, ज्योतिष-तंत्र-मंत्र की ओर आकर्षित होता है। पिता या पितृकुल से गुप्त विवाद। |
9. भाग्य भाव | पिता से दूरी, भाग्य बाधा। व्यक्ति को परिश्रम द्वारा भाग्य निर्माण करना पड़ता है। धार्मिक यात्रा या पितृकर्म हेतु यात्राएँ होती हैं। |
10. कर्म भाव | सूर्य यहाँ राजकीय पद, प्रशासन, प्रबंधकीय स्थिति देता है। पिता की प्रेरणा से कर्म क्षेत्र में प्रगति। यदि बलवान हो तो उच्च सरकारी पद। |
11. लाभ भाव | राजकीय सहयोग, मित्रों से लाभ, राजनीतिक प्रतिष्ठा। जातक को समाज में यश, मित्रों का साथ और पुत्र/संतान की प्रगति मिलती है। |
12. व्यय भाव | पितृदोष के कारण व्यय, विदेश यात्रा, परोपकार में धन खर्च। मोक्षमार्ग व आध्यात्मिक यात्रा की प्रवृत्ति। नेत्र दोष सम्भावित। |
9414657245
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