कितना धन होगा आपके पास ?

 
धन प्राप्ति योग

कितना धन कमाएगे आप ?

आज की परिचर्चा में हम जन्म कुंडली में जातक के धन योग संबंधी चर्चा करने जा रहे हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अनेकों धन संबंधी योग जन्म कुंडली में बनते हैं। अतः ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से धन संबंधी योगो मे  प्रमुख योग इस प्रकार है। जैसे चंद्र मंगल लक्ष्मी योग ,लक्ष्मी नारायण योग । इसी क्रम में आज हम जन्म कुंडली विश्लेषण के अंतर्गत धन प्राप्ति के स्रोत का पता किस प्रकार हम पता कर सकते हैं। अथवा जातक अपने जीवन में कितना धन संचय कर पाएगा ?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्म जन्म कुंडली में द्वितीयेश की स्थिति का विश्लेषण करते हैं और द्वितीयेश की स्थिति के अनुसार ही जातक के जीवन में धन संबंधी प्रश्नों का उत्तर हमें प्राप्त होता है। तो आइए जानते हैं जन्म कुंडली में जातक के धन संबंधी प्रश्नो का विश्लेषण किस प्रकार  करते हैं?

१, यदि जन्म कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी लग्न में विद्यमान हो तो जातक अपने जीवन में स्वयं मेहनत के द्वारा धन अर्जित करता है।

२, दूसरी भाव का स्वामी यदि जातक की जन्म कुंडली में दूसरे भाव में विद्यमान हो तो जातक अपने जीवन में वाणी द्वारा अर्थात अपने बोलने की कला के द्वारा अपने वाक् चातुर्य से धन अर्जित करता है। इसी के साथ दूसरा भाव कुटुम का भाव होने के कारण धन अर्जन में जातक को अपने कुटुंब परिवार का सहयोग भी प्राप्त होता है।

३, यदि दूसरे भाव का स्वामी तीसरे भाव में विद्यमान होता है तो जातक अपने मेहनत परिश्रम पराक्रम वह लेखन के कार्य के द्वारा तथा अपने छोटे भाई बहनों के सहयोग से भी धन अर्जन  करता है।

४, इसी प्रकार यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में दूसरे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में विद्यमान हो तो जातक अपनी माता के सहयोग से भवन वाहन प्रॉपर्टी इत्यादि से जुड़े हुए कार्यों  से धन प्राप्त करता है।

५, दूसरे भाव का स्वामी जन्म कुंडली के पंचम भाव में विद्यमान होता है तो जातक अपने बुद्धिमता अथवा दूसरों को सलाह देकर दूसरों को परामर्श द्वारा अथवा बालको संबंधी वस्तुओं का विक्रय द्वारा भी जातक धन प्राप्त करता है।

६, यदि किसी जातक की जन्म कडली में दूसरे भाव का स्वामी षष्टम भाव में विद्यमान हो तो जातक सेवा द्वारा अर्थात ऐसा कार्य जिसके द्वारा सेवा का भाव मुख्य रूप से जुड़ा हुआ होता है। कर्ज के लेनदेन अथवा दलाली के कार्य से जातक धन अर्जित करता है।

७, दूसरा भाव का स्वामी कुंडली के सप्तम भाव में विद्यमान हो तो जातक दैनिक लेन-देन का कार्य अथवा पत्नी के सपोर्ट द्वारा धन अर्जन करता है।

८, इसी प्रकार दूसरे भाव का स्वामी यदि जन्म कुंडली के अष्टम भाव में स्थित होता है। यद्यपि इस भाव को जन्म कुंडली में अच्छा भाव नहीं कहा गया है। फिर भी यह भाव विशेष गुण रखता है। जैसे गहरी खोज, ज्योतिषी रिचर्स, आध्यात्मिक साधना जैसे कार्य से जुड़ा हुआ होने कारण इन सभी कार्यों के माध्यम से जातक धन अर्जन करता है।

९, दूसरे भाव का स्वामी जन्म कुंडली के नवम भाव में स्थित हो तो जातक धर्म संबंधी कार्यो से पिता के सहयोग से अध्यापन संबंधी कार्य द्वारा धन अर्जन करता है।

१०, द्वितीय जन्म कुंडली के दशम भाव में स्थित हो तो जातक राजकीय कार्यों से , अथवा अर्द्ध राजकीय कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से जातक को धन की प्राप्ति होती है।

११, जन्म कुंडली में एकादश भाव को लक्ष्मी का भाव भी कहा जाता है अतः जन्म कुंडली में धन प्राप्ति की स्थिति एकादश भाव से देखी जाती है। यदि दूसरे भाव का स्वामी एकादश भाव में स्थित हो तो जातक जिस किसी भी क्षेत्र में कार्य करता है उसी क्षेत्र से जातक को धन प्राप्ति होती है।

१२, जन्म कुंडली में द्वादश भाव का भाव होता है। अतः यदि किसी जातक की जन्म कडली में दूसरे भाव का स्वामी बारवे भाव में विद्यमान हो तो जातक के जीवन में आमदन कम खर्चे अधिक होते हैं। तथा ऐसा जातक विदेश में रहकर अथवा विदेशी क्रियाकलापों या विदेशी कॉन्ट्रैक्ट के सामानों के विक्रय द्वारा धन अर्जन करता है।

विशेष -:
इस प्रकार सामान्य रूप से दूसरे भाव की स्थिति के अनुसार जातक अपने जीवन में धन अर्जन करता है। अतः दूसरे भाव का विश्लेषण करते समय हमें दूसरे भाव के स्वामी की डिग्री, ऊंच-नीच, सूर्य से अस्त, पाप कर्तरी, मारक योगकारक आदि तत्वों का विश्लेषण करके जातक के जीवन में धन प्राप्ति का विश्लेषण करना चाहिए।


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आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
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