चीर हरण लीला

गोपी, कृष्णा, यमुना, वृंदावन, नंद बाबा, यशोदा, चीरहरण, शुकदेव मुनि, परीक्षित
गोपी चीर हरण लीला

(५)


जयश्री राधे राधे
आज की भागवत चर्चा में हम चर्चा कर रहे हैं भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत चीर हरण लीला प्रसन्न की, जैसा कि हमने पूर्व की भागवत चर्चा  में जाना कि भगवान श्रीकृष्ण  अनेक प्रकार की बाल लीलाएं ब्रजमंडल में कर रहे हैं।  कालिया नाग का मान मर्दन करना व सभी वृंदावन वासियों को दावानल से बचाना। आदि श्री कृष्ण की चमत्कारी लीला को वृंदावन वासी देखकर भगवान श्री कृष्ण बलराम के प्रति उनका प्रेम विश्वास  व ईश्वरीय भाव जागृत होने लगा है। तो आइएभागवत चर्चा के क्रम को आगे बढ़ाते हैं।।

श्री कृष्ण का वेणु वादन -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को गंगा के तट पर श्रीमद् भागवत महापुराण की अमृत मयी कथा का पान कराते हुए कहते हैं। कि हे राजन! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने छ वर्ष की अवस्था में  कालिया नाग का मान मर्दन किया। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण बलराम जी के साथ मिलकर वृंदावन में दिव्य लीलाएं कर रहे हैं और उनकी लीलाओं को देख देखकर सभी वृंदावन वासी व सुर मुनि गन प्रेमानंद में गोते लगा रहे हैं। सारे वृंदावन वासी श्री कृष्ण की लीलाओं की चर्चा करते रहते हैं। जब कन्हैया दिन में अपने बाल सखाओं के साथ धेनु चराने चले जाते हैं। तब गोपियां मिलकर के उनकी लीलाओं की चर्चा करती रहती है। और प्रेम आनंद प्राप्त करती है। एक दिन श्री कृष्ण ने वन में वेणु बजाई तो बंसी की धुन सुनकर सारी ब्रजयुवतियां हड़बड़ाई ओर उठकर दौड़ने लगी और एक स्थान पर बैठकर आपस में बातें करने लगी, कि हमारे लोचन सफल तब होंगे जब श्री कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे। अभी तो कान्हा गायो के साथ वन में नाचते गाते फिर रहे हैं। साज के समय इधर ही आएंगे तब हमें दर्शन मिलेंगे। यह सुनकर एक गोपी बोली।

सुनो सखीवहबेणुबजाई,बांसबंशदेखौ अधिकारी।

इस बंशी में इतना क्या गुण है जो दिन भर श्री कृष्ण के मुंह लगी रहती है और अमृत अमृत पीती रहती है। क्या हमसे भी यह प्यारी है जो निशदिन लिए रहते बिहारी है।

मेरे आगे की यह गढ़ी,अब भई सौत बदन पर चढ़ीं।

जब श्री कृष्ण इसे पीतांबर से पुंछकर बजाते हैं। तब सुर किन्नर मुनि और गंधर्व अपनी अपनी स्त्रियों को साथ ले विमानों पर बैठ बैठ कर सुनने को आते हैं और सुनकर मोहित हो जाते हैं जहां के तहां चित्र से रह जाते हैं। इसने ऐसा क्या तब किया है जो सब इसके अधीन होते हैं। इतनी बात सुन एक गोपी ने उत्तर दिया कि पहले तो इसने बॉस के वंश में जन्म लिया।।

इसने तप कीन्हो है कैसा,सिद्धहुईपायाफल ऐसा।।

इस प्रकार दूसरी गोपी बोली कि मुझको ईश्वर ने वेणु क्यों नहीं बनाई। अगर मुझे भी वेणु बनाई होती तो मैं भी दिन और रात कान्हा के साथ रहती। इस प्रकार बृज गोपिया जब तक भगवान श्री कृष्ण धेनू चलाकर वन से नहीं आते तब तक नित्य गोपियां उनका गुणगान करती रहती है।।
 राजन! इस प्रकार   ग्रीष्म व वर्षा ऋतु समाप्त होकर  शरद ऋतु का सुंदर आगमन  हुआ है।।

गोपी चीर हरण लीला -:

शुकदेव मुनी राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ब्रजमंडल में नित्य नवीन लीलाएं कर रहे हैं। जैसा कि मैंने अभी  बताया की सभी बृज गोपियां भगवान श्री कृष्ण से अनन्य प्रेम करती है। और चारों पहर उनकी छवि को अपने हदय में बसा कर उनका चिंतन करती रहती हैं। जब वर्षा ऋतु समाप्त हो हेमंत ऋतु का आगमन हुआ। उस समय सभी गोपीया आपस में बात करने लगी कि देखो अभी पवित्र आगन मास चल रहा है और हमें आगन मास का स्नान करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से मन का मनोरथ पूर्ण होता है। ऐसा विचार करके ब्रिज गोपिया आगन मास का स्नान करने का व्रत लेती हैं। और गोपियां यूथ बनाकर  यमुना में स्नान करती है। और स्नान करके यमुना तट पर महामाया कात्यायनी देवी की पूजा करती है। आराधना करती है और वर मांगती है। कि हे देवी! भगवान श्री कृष्ण  हमें पति रूप में प्राप्त हो, ऐसा गोपियों का नित्य कर्म था । एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने विचार किया कि गोपिया मुझ से अनन्य प्रेम करती है। और मुझे प्राप्त करना चाहती है। लेकिन यह गोपिया यमुना मैया में नग्न स्नान करके यमुना का अपमान कर रही है। इनको शिक्षा देनी चाहिए। ऐसा विचार करके वंशीवट पर आकर बैठ जाते हैं। और जब गोपीयां यमुना में स्नान करने के लिए आई, सभी गोपीयां अपने अपने वस्त्रों को यमुना तट पर खोलकर निर्वस्त्र होकर  यमुना में स्नान करने के लिए चली जाती है। पीछे से भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोपियों के वस्त्र को  चुराकर वट वृक्ष के ऊपर ले जा कर रख देते हैं। जब गोपियों स्नान करके बाहर देखने लगी,जब  वस्त्र तट पर नहीं दिखाई दिए। विचार करने लगी  कि हमारे वस्त्त कौन ले गया।  फिर देखा कि नंदलाल कन्हैया हम सब गोपियों के वस्त्र  चुराकर  वट वृक्ष के ऊपर बैठा है। तब गोपियों ने हाथ जोड कर कहा कि कान्हा! हमारे वस्त्र दे दो, भगवान श्री कृष्ण कहने लगे नहीं गोपियों मैं तुम्हें तुम्हारे वस्त्र नहीं दूंगा। तब गोपिया कहने लगी अगर तुम हमारे वस्त्र नहीं दोगे तो हम बाबा नंद यशोदा मैया से तुम्हारी शिकायत करेंगे। 

दीनदयाल हरण दुख प्यारे, दीजै मोहन चीर हमारे।

 ऐसे सुनके कहै कन्हाई, यों नहीं दूंगा नंद दोहाई ।।

एक एक चल बाहर आओ, तो तुम अपने वस्त्र पाओ।।।


तब कान्हा कहने लगे देखो गोपियों पहले तुम जाकर मेरी शिकायत नंद बाबा  से मां यशोदा से करा आओ।इसके बाद में तुम्हें तुम्हारे वस्त्र दूंगा। अब गोपिया व्याकुल होकर  कान्हा कान्हा कह कर पुकारने लगी। और कहती है कि हे कान्हा!

काहे कपट करत  नंदलाला, हम सुधी भोरी बृजबाला। परी ठगारी सुधि बुधि गई, ऐसी तुमहरी लीला ठई ।। 


हम तुम्हारे हाथ जोड़ती हैं हम सर्दी के मारे कांप रही है। हम कृपया हमारे वस्त्र हमें दे दो, तब भगवान श्रीकृष्ण बोले हे गोपियों! अगर तुम तुम्हारे वस्त्र चाहती हो तो एक एक  बाहर निकल कर अपने अपने वस्त्र ले लो, तब गोपियां करे
कहने लगी, का न्हा देखो हम निर्वस्त्र हैं इस प्रकार से बाहर नहीं आ सकती तब कन्हैया बोले अगर तुम बाहर नहीं आ सकती हो तो तुम्हें वस्त्र नहीं दूंगा।और बताओ कि तुम्हें इस प्रकार मैया यमुना में निर्वस्त्र होकर स्नान करने की शिक्षा किसने दी है क्या तुम नहीं जानती हो कि यह पाप कर्म है तुमने मां यमुना का अपमान किया है। इसलिए तुम्हें पश्चाताप करना चाहिए। और मैं यह भी जानता हूं कि तुम मुझे पति रूप में प्राप्त करने के लिए यह स्नान का व्रत कर रही हो। इसलिए अगर तुम तन और मन से मुझसे प्रेम करती हो,इसलिए मुझे प्राप्त करने में सबसे पहले द्वेत भाव को छोड़ना होगा। क्योंकि मुझे प्राप्त करने के लिए द्वेत का कोई स्थान नहीं होता है। जब भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा कहा तो गोपियों ने मन में विचार किया कि श्रीकृष्ण ही हमारे सर्वस्व है। और वह हमारे तन व मन के सभी भावों को जानते हैं। अतः सभी गोपियां एक एक कर के बाहर निकल आती है। और कहने लगी कन्हैया! अब हमारे वस्त्र दे दो, इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण गोपियों को शिक्षा दे कर उनके वस्त्र दे देते हैं।और फिर भगवान श्रीकृष्ण सभी गोपीयो से कहने लगे कि हे गोपियों! जैसा कि मैं जान रहा हूं कि तुमने मुझे प्राप्त करने के लिए व्रत किया है। इसलिए जाओ मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि आने वाली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मैं महारास रचूंगा और उसमें तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। इसलिए अब तुम अपने अपने घर को जाओ। इस प्रकार सभी गोपियां वहां से अपने-अपने घर आ जाती है।।

संशय निवारण -:

भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपी चीर हरण प्रसंग पर कुछ लोग प्रश्न उठाते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार से गोपियों का चीर हरण लीला को ठीक नहीं मानते हैं क्योंकि उसे कामलीला की दृष्टि से देखते हैं। तो इस पर विद्वानों ने अनेक प्रकार से यह सिद्ध किया है कि प्रभु कि जो चीर हरण लीला है वह किसी भी प्रकार से गलत नहीं है क्योंकि इस लीला में पहले यह देखने वाली बात है कि इस समय भगवान श्री कृष्ण की जो उम्र है वह 6 वर्ष की है और लौकिक दृष्टि से भी 6 वर्ष के बालक में कभी भी काम की भावना नहीं होती है। दूसरा गोपियां भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करना चाहती है और ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है द्वेत अर्थात जहां पर द्वेत की भावना रहती है वहां ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है क्योंकि ईश्वर की प्राप्ति तभी होती है जब उस ईश्वर का एकाकार हमें प्राप्त होता है। अर्थात जहां अद्वैत का भाव हो, और गोपियों भगवान श्री कृष्ण से प्रेम तो करती है लेकिन फिर भी उनके मन में द्वैतभाव है और इसके रहते उन्हें श्री कृष्ण की प्राप्ति होना संभव नहीं थी। इस प्रकार चीर हरण लीला भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने की दृष्टि सेभगवान श्रीकृष्ण से एकाकार प्राप्त करने की लीला है। इस लीला के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने हमारे मन में जो द्वेत भाव है उसको तोड़ने की शिक्षा दी गई है।
 जिस प्रकार शुकदेव मुनि 16 वर्ष की अवस्था के होकर भी उनकी दृष्टि में सब एक है स्त्री पुरुष का कोई भेद नहीं है नगर की स्त्रियां उनको देख कर के किसी भी प्रकार का संशय नहीं लाती है और जब भगवान वेदव्यास को देख कर के सरोवर में स्नान करती हुई   स्त्रियां अपने वस्त्र से अपना बदन ढक लेती है तब वेदव्यास जी कहते हैं कि मुझे देख करके तुमने अपने बदन को ढक लिया लेकिन मेरे जवान पुत्र को देख करके तुमने ऐसा नहीं किया। क्यों तब उन स्त्रियों ने कहा था की शुकदेव ब्रह्म स्वरूप है उनकी दृष्टि में स्त्री पुरुष का कोई भेद नहीं है।। इसी प्रकार से यहां पर भी भगवान श्रीकृष्ण ने ईश्वर व जीव के बीच में जो द्वेत नामक तत्व बना हुआ है उसको दूर करके ईश्वर का एक आकार करने की शिक्षा दी गई।।




।। जय नटवर नागर नंदकिशोर की जय।।



आचार्य श्री कृष्ण कुमार शास्त्री


Post a Comment

0 Comments