ज्योतिष शिक्षण अध्याय =( 1)
नक्षत्र व राशियो का विवेचन -;
ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों के समूह को राशियों में विभक्त किया गया है। अश्वनी आदि २७ नक्षत्र प्रसिद्ध है। और इन अश्विनी आदि नक्षत्रों का विभाग करके 12 राशियां बनाई गई है।
नक्षत्रो के नाम -:
अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती ,विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, और रेवती ये 27 नक्षत्र के नाम होते हैं।
जन्म नक्षत्र से नामकरण -
बालक का जन्म जिस नक्षत्र के चरण में जन्म होता है। उस नक्षत्र के चरण के नाम अक्षर से ही बालक का नामकरण संस्कार किया जाता है। जैसे किसी बालक का जन्म अश्विनी नक्षत्र के तृतीय चरण में हुआ हो तो ऐसे जातक का नाम (चो) अक्षर से प्रारंभ होने वाला होगा।
नक्षत्र चरण -:
प्रत्येक नक्षत्र के चार चार चरण होते हैं। जिनके क्रम से नामाक्षर इस प्रकार होते हैं।
चू चे चो ला= अश्वनी,
ली लू ले लो = भरणी,
आ ई उ ऐ = कृतिका,
ओ वा वी वू = रोहिणी,
वे वो का की = मृगशिरा,
कु घ ड़ छ = आद्रा,
के को हा ही = पुनर्वसु,
हु हे हो डा = पुष्य,
डी डू डे डो = आश्लेषा,
मा,मी मू मे = मघा,
मो टा टी टू = पूर्वाफाल्गुनी,
टे टो पा पी = उत्तराफाल्गुनी,
पू ष ण ठ = हस्त,
पे पो रा री = चित्रा,
रू रे रो ता = स्वाति,
ती तू ते तो = विशाखा,
ना नी नू ने =अनुराधा,
नो या यी यू = ज्यैष्टा,
ये यो भा भी = मूल,
भू धा फा ढा = पूर्वाषाढा,
भे भो जा जी = उत्तराषाढा,
जू जे जो का = अभिजीत,
खी,खू खे खो = श्रवण,
गो सा सी सू .= शतभिषा,
से सो था दी = पूर्वाभाद्रपद,
दू थ झ ञ = उत्तराभाद्र,
दे दो चार ची = रेवती,
बारह राशियों के नाम -
१,मेष
२, वृष
३,मिथुन,
४, कर्क
५, सिंह
६, कन्या
७ तुला
८ वृश्चिक
९ धनु
१० मकर
११ कुंभ
१२ मीन
राशि चरण -:
जिस प्रकार प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। उसी प्रकार एक राशि में नौ-नौ चरण होते हैं, जैसे अश्वनी के चार चरण, भरणी के चार चरण और कृतिका के एक चरण से मेष राशि होती है। इसी क्रम से राशियों का निर्माण होता है।
राशियों के नाम अक्षर -:
मेष -चू चे चो ला ली लू ले लो आ
वृष -ई ऊ ए ओ वा वी वू वे वो
मिथुन - का की कू के को घ ड़ छ ह
कर्क - ही हू हे हो डा डी डू डे डो
सिंह - मा मी मू मे मो टा टी टू टे
कन्या - टो पा पी पू पे पो ष ठ ण
तुला - रा री रु रे रो ता ती तू ते
वृश्चिक - तो ना नी नू ने नो या यी यू
धनु - ये यो भा भी भू भे धा फा ठा
मकर - भो जा जी खी खे खू खो गा गी
कुंभ - गू गे गो सा सी सू से सो दा
मीन - दी दू थ झ ञ दे दो चा ची
राशियों के स्वामी -:
सिंहस्यधिपति: सूर्य:, कर्कस्याधिपति: शशी:।
मेषवृश्चिकयोर्भोमो,बुधो मिथुन कन्ययो:।।
जीवो मीनधनु:स्वामी, शुक्रो वृषतुलाधिप:।
प्राज्ञैरधिपति: प्रोक्त:, शनिर्मकर कुंभयो:।।
नवग्रहों में सूर्य और चंद्रमा सबसे प्रमुख ग्रह होते हैं। फिर भी एक-एक राशि के स्वामी है। और अन्य ग्रह अप्रधान होने पर भी दो दो राशियों के स्वामी होते हैं । क्योंकि सूर्य और चंद्रमा राजा है। इसलिए राशि चक्र में 6 राशियों का स्वामी सूर्य और 6
राशि का स्वामी चंद्रमा है। और बृहस्पति मंगल शुक्र शनि बुध इत्यादि शेष गृह मंत्रीतत्व आदि अधिकार से उन दोनों के घरो में रहते हैं। सिंहादि क्रम में से 6 राशियां सूर्य के अधिकार में है। और कर्क से विलोम क्रम से 6 राशियां चंद्रमा के अधिकार में है। पराक्रम शील समझकर सिंह में सूर्य ने अपना स्थान बनाया और मित्रता कारण उसी के पास कर्क राशि में चंद्रमा ने स्थान बना लिया और अन्य ग्रहों को दोनों ने अपने अपने अधिकार की राशियां में से एक एक राशि अन्य ग्रहों को दे दी। इसलिए मंगल गुरु आदि ग्रह दो दो राशियों के स्वामी हुए।बुध युवराज है इसलिए सूर्य ने अपने समीप में कन्या राशि और चंद्रमा ने अपने पास में मिथुन राशि का स्वामी बना दिया अर्थात सूर्य ने कन्या और चंद्रमा ने अपनी मिथुन राशि दे दी। इसके बाद शुक्र को सूर्य ने तुला और चंद्रमा ने वर्ष राशि का स्वामी बना दिया। तत्पश्चात मंत्री बृहस्पति को सूर्य ने धनु और चंद्रमा ने मीन राशि प्रदान कर करें के उसका स्वामी बना दिया। मंगल को सूर्य ने वृश्चिक और चंद्रमा ने मेष राशि का स्वामी बना दिया। और अंत में सनी को सूर्य ने मकर और चंद्रमा ने कुंभ राशि प्रदान करके उनका स्वामी बना दिया अतः सूर्य और चंद्रमा एक राशि के स्वर में हुई और अन्य ग्रह दो दो राशियों के स्वामी हुए।
चित्र से समझे -
राशि=स्वामी
सूर्य =सिंह
चन्द्र =क्लर्क
मंगल=मेष, वृश्चिक
बुध= मिथुन, कन्या
गुरु=धनु,मीन
शुक्र=वृष,तुला
शनि= मकर, कुंभ
शेष अगले अंक में
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
941657245
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