Shani Dev ka vrishabh lagn mein fal(वृषभ लग्न में शनि देव का फल)

 वृषभ लग्न पत्रिका के द्वादश भावों में शनि देव का शुभाशुभ फल -:

वृषभ लग्न कुंडली लग्नेश शुक्र देव  शनिदेव को नवम भाव व दशम भाव का स्वामित्व दान करते हैं। अतः दोनों ही एक त्रिकोण का सबसे उत्तम व दूसरा केन्द्र का सबसे उत्तम  भाव प्राप्त होने कारण तथा लग्नेश के मित्र शनिदेव वृषभ लग्न में अति योग कारक होते हैं। इस दृष्टि से ज्यादातर भाव में जातक को शुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं। तो आइए जानते हैं वृषभ लग्न पत्रिका के द्वादश भावों में शनि देव जातक को किस प्रकार का फल प्रदान करने वाले होते हैं।

१, वृषभ लग्न पत्रिका के प्रथम भाव में शनि देव जातक को दृढ़ इच्छाशक्ति वाले सुदृढ़ शरीर वाला व न्याय प्रिय बनाते है। तीसरी दृष्टि से प्रक्रम भाव को देखने कारण जातक को पराक्रमी साहसी मेहनती और छोटे भाई बहनों का सुख पहुंचाने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हैं जिससे जातक के दांपत्य जीवन खुशहाली व दैनिक आमदनी को बढ़ाने वाले होते हैं। दशम दृष्टि से अपने ही भाव दशम भाव को देखने कारण जातक को राज्य कार्य में सफलता व प्रोफेशनल जॉब में शुभता प्रदान करने वाले होते हैं।



२, वृषभ लग्न पत्रिका के दूसरे भाव में शनि देव जातक के कुटुंब परिवार में वृद्धि करने वाले धन संग्रह में अति सहायक होते हैं। तीसरी दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद का सुख पहुंचाते हैं। सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखकर ने कारण जातक को दीर्घायु व पुरातत्व के क्षेत्र में अच्छा फल देते हैं। दशम दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण जातक की आय के स्रोतों में वृद्धि करने वाले होते हैं।


३, वृषभ लग्न पत्रिका के तीसरे भाव में शनि देव चंद्रमा की राशि में होने कारण जातक के जीवन भागदौड़ बढ़ाने वाले
 व स्ट्रगल अधिक करवाते हैं  छोटे भाई बहनों के सुख में कुछ कमी भी करते हैं। तीसरी दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं तो जातक को संतान विद्या प्रेम लॉटरी में सफलता दिलाते हैं किंतु परिश्रम अधिक करवाते हैं। सप्तम दृष्टि से नवम भाव को देखते हैं जो कि अपना स्वयं का भाव होता है। अतः जातक को भाग्यवान बनाते हैं। परंतु कई बार भाग्य की विडंबना भी उत्पन्न कर देते हैं। अपनी दशम नीचे दृष्टि से द्वादश भाव को देखने कारण जातक को अधिक फिजूलखर्ची करने वाला बनाते है।


४, वृषभ लग्न पत्रिका के चतुर्थ भाव में शनि देव जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद व माता का सुख पहुंचाने वाले होते हैं। अपनी तीसरी उच्च दृष्टि से षष्टम भाव को देखने कारण जातक को रोग ऋण शत्रुता के क्षेत्र में विजय बनवाते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं तो जातक को राज कार्य में सफलता प्रोफेशनल जॉब में उन्नति व राजकीय सम्मान दिलाने वाले होते हैं। दशम दृष्टि से लग्न को देखते हैं तो जातक को सुदृढ़ शरीर वाला व धीर गंभीर बनाते हैं।

५, पंचम भाव में शनि देव जातक को विद्या संतान प्रेम लॉटरी के क्षेत्र में बहुत अच्छी सफलता दिलाने वाले होते हैं। तीसरी दृष्टि से सप्तम भाव को देखते तो जातक के दांपत्य जीवन में खुशहाली व पार्टनरशिप क्षेत्र में सफलता दैनिक आमदनी में वृद्धि कराने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण आमदनी के स्रोतों में वृद्धि करते हैं। तथा दशम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण जातक को धन संग्रह में अपना फुल सपोर्ट प्रदान करते हैं।

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६, वृषभ लग्न के छठे भाव में शनि देव अपनी उच्च राशि में होते हैं। इसलिए जातक को ऋण रोग शत्रुता के क्षेत्र में अच्छी सफलता दिलाते हैं किंतु साथ ही मारक हो जाते हैं। इसलिए अन्य क्षेत्रों में जातक को नकारात्मक परिणाम देते हैं जैसे तीसरी दृष्टि से अष्टम भाव को देखते हैं तो जातक को पुरातत्व के क्षेत्र में लाभ प्रदान करते हैं किंतु मानसिक परेशानियां भी क्रैडिट करते हैं। सप्तम दृष्टि से जो कि नीच दृष्टि  द्वादश भाव को देखने कारण जातक को बहुत अधिक व्यर्थ के खर्चे करने पड़ते हैं ।जातक को कर्जवान बना देते हैं। दशम दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण जातक को अपने छोटे भाई बहनों के सुख से वंचित करते हैं।

७, वृषभ लग्न पत्रिका के सप्तम भाव में शनि देव जातक को दैनिक व्यवसाय में वृद्धि करने वाले दांपत्य जीवन में सौम्यता प्रदान करने वाले तथा पार्टनरशिप के व्यवसाय में सफलता प्रदान करते हैं। अपनी तीसरी दृष्टि से नवम भाव को देखते हैं तो जातक को भाग्यवान धर्म-कर्म में रुचि रखने वाला, मान सम्मान व यस की प्राप्ति करने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि से लग्न भाव को देखते हैं जिससे जातक न्याय प्रिय व शारीरिक सौष्ठव से परिपूर्ण होता है। दशम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखते हैं जो जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी की प्राप्ति कराती हैं।


८, अष्टम भाव में वृषभ लग्न पत्रिका के अंतर्गत शनिदेव जातक को दीर्घायु प्रदान करते हैं किंतु शारीरिक बीमारियों से भी पीड़ित करते हैं। जातक मानसिक अवसाद मे रहता है। अपनी तीसरी दृष्टि से दशम भाव को देखने कारण राज्य कार्य में व्यवधान शनिदेव डालते हैं। सप्तम दृष्टि से दूसरी भाव को देखते हैं जिस कारण बहुत अधिक संघर्ष करने के बाद धन संग्रह जातक कर पाता है। कुटुम परिवार में भी कलह की स्थिति बनाते हैं। दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखने के ई विद्या संतान  के क्षेत्र में जातक को परेशानियां व विलंबता प्रदान करते हैं क्योंकि शनि देव यहां अष्टम भाव में चले जाने कारण मारक हो जाते हैं।



९, नवम भाव में शनि देव स्वग्रही  होते हैं। तथा जातक को भाग्यवान यसवान गुणवान धार्मिक प्रवृत्ति का  बनाते हैं। पिता से अच्छे संबंध भी बनाते हैं। तीसरी दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण जातक को आय के स्रोतों में वृद्धि करते हैं किंतु जातक गलत तरीकों से धन अर्जन करता है। सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को देखते हैं जो जातक के भाई बहनों में प्रेम व अधिक स्ट्रगल की स्थिति उत्पन्न करते है। दशम दृष्टि से षष्टम भाव के कारण जातक के रोग ऋण शत्रुता
 का नाश करने वाले होती है।


१०, दशम भाव में शनि देव जातक को राजक को राज कार्य में सफलता प्रोफेशनल जॉब में अच्छी स्थिति प्रदान करने वाले होते हैं। जातक को सभी प्रकार से  राजनीति के क्षेत्र में सफलता दिलाते हैं। तीसरी दृष्टि से द्वादश भाव को देखने कारण जातक को अपव्यय भी बनाते हैं। जातक विदेशी मामलों से अच्छा धन वर्जन करता है। सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी की प्राप्ति कराते हैं। दशम भाव से सप्तम भाव को देखते हैं जिससे जातक के दांपत्य जीवन में भी अच्छी स्थिति उत्पन्न करते हैं। साथ ही पार्टनरशिप के क्षेत्र में भी प्रदान करते हैं।


११, एकादश भाव में वृषभ लग्न पत्रिका के अंतर्गत शनिदेव जातक को स्ट्रगल करने के बाद आय के स्रोतों में वृद्धि करते हैं। किंतु जातक को कई बार अपने बिजनेस में बदलाव भी करवाते  रहते हैं। अपनी तीसरी दृष्टि से लग्न को देखते हैं तो जातक को आलसी प्रकृति का बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण जातक को विद्या संतान के क्षेत्र में कुछ विलंबता त प्राप्त होती है।
 दशम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने कारण जातक को दीर्घायु प्रदान करते हैं परंतु मानसिक अवसाद व बीमारियां भी प्रदान करते हैं।



१२, सनी देव वृषभ लग्न पत्रिका के द्वादश भाव में अपनी नीच राशि में होते हैं। अतः द्वादश भाव में नीच राशिगत  होने कारण शनिदेव बहुत अधिक मारक होते हैं। अतः जातक को कर्जवान व अधिक खर्चा करने वाला आलसी  झूठ बोलने वाला बनाते हैं तीसरी दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण धन संग्रह में बहुत अधिक कठिनाइयां कुटुम परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण जातक के जीवन में रोग दुर्घटना शत्रुता मुकदमा इत्यादि की स्थिति को अधिक उत्पन्न करते हैं।  दशम दृष्टि से नव भाव को देखने कारण यद्यपि थोड़ा भाग्य का सहारा प्रदान करते हैं किंतु पिता से संबंध खराब करते हैं।



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