धनेश अर्थात दुसरे भाव के स्वामी का द्वादश भावो में फल -: १,यदि जातक की जन्म कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी लग्न भाव में विद्यमान हो तो जातक व्यवसाय क्षेत्र में अति सफलता प्राप्त करने वाला, धनवान व धन के माध्यम से कीर्ति को अर्जित करने वाला होता है। साथ ही स्…
Read moreसूर्य के साथ ग्रहों की अस्त अवस्था -: जन्म कुंडली अध्ययन में ग्रहों का बलाबल देखना सबसे महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि ग्रह बलवान होने की स्थिति में अपने स्वभाव के अनुरूप फल प्रदान में वृद्धी करते हैं और ग्रह यदि बल हीन होता है तो वह अपना प्रभाव नहीं दे पाता है…
Read moreलग्नेश का द्वादश भावो में फल-: १,यदि किसी भी जातक की जन्म कुंडली में लग्न भाव का स्वामी लग्नेश लग्न भाव में ही विद्यमान हो तो जातक का जीवन अति सुखद होता है। जातक बलवान साहसी व धन संपदा से युक्त होता है। २, लग्नेश जातक की जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में स्थित…
Read moreयोग कारक ग्रहों का विचार -: १, जो ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि अपनी स्वराशि वअपनी उच्च राशि में विद्यमान हो कर कुंडली के केंद्र भाव में अर्थात 1,4,7, 10 भाव में स्थित हो या इन से संबंध बनाते हो तो ग्रह अति योग कारक होता है और इनमें से भी विशेष करके यदि कोई ग्र…
Read moreचंद्र कुंडली अध्ययन -: ज्योतिष शास्त्र में लग्न को देह व षड वर्ग को तारागण और चंद्रमा को प्राण कहा गया है। शेष आठ ग्रहों को धातु की संज्ञा दी गई है। किंतु जब प्राण ही नष्ट हो जाए तो शरीर धातु और इत्यादि का कोई महत्व नहीं रह जाता है क्योंकि वह भी स्वत ही प्र…
Read moreग्रहों की अपनी मूल त्रिकोण राशि का निर्णय -: सूर्य की अपनी मूल त्रिकोण राशि सिंह, चंद्रमा की वृष, मंगल की मेष, बुद्ध की कन्या, गुरु की धनु, शुक्र की तुला, शनी की कुंभ मूल त्रिकोण राशि होती है। और प्रत्येक ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में बलवान होता है। किंतु य…
Read more१,सूर्य का अपनी उच्च राशि में फल -: जिस जातक की जन्मकुंडली में सूर्य अपनी उच्च राशि अर्थात मेष राशि में विद्यमान होता है वह जातक बहुत ही धीर वीर धनवान व पराक्रमी होता है। उच्च राशि का सूर्य जातक को गौरांग व तेजस्वी बनाने के साथ-साथ जातक के यश को बढ़ाने वाला …
Read more१, सूर्य का नीच राशि में फल-: जब किसी भी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य अपनी नीच राशि अर्थात तुला राशि में विद्यमान हो तो जातक कुरुप व स्त्रियों में आसक्ति रखने वाला होता है साथ ही साथ बिना सोचे विचारे कार्य करने वाला होता है। २, चंद्र का नीच राशि में फल -: च…
Read moreगोचर कुंडली में शुक्र का द्वादश भावो में फल -: १, भौतिक सुख सुविधाओं का सुख प्रदान करना। २, धन प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करना। ३, भौतिकवाद की सुविधाओं में वृद्धि करना। ४, चतुर्थ भाव में शुक्र का गोचर जातक को मित्र सुख परिवार के सदस्यों में प्रेम स्नेह में वृ…
Read moreबुध का द्वादश भाव में गोचर फल -: १, बुध गोचर कुंडली में प्रथम भाव में स्थित होने पर जातक को धन हानि कराता है। २, द्वितीय भाव में स्थित गोचर कुंडली में बुध जातक को धन प्राप्ति कराता है। ३,तृतीय भाव में स्थित बुध जातक के पराक्रम में कमी को दर्शाता है और साथ ही…
Read moreबारह भावो में चन्द्र गोचर फल -: १,चंद्रभूषण कुंडली में चंद्रमा प्रथम भाव में विद्यमान होता है तो जातक को शुभ फल प्रदान करने के साथ-साथ जातक का भाग्य उदय करने वाला होता है। २, गोचर कुंडली की द्वितीय भाव में चंद्रमा सदैव जातक को धनहानि कराता है। ३,तृतीय भाव मे…
Read moreसूर्य गोचर फल -: ज्योतिष शास्त्र में चंद्र लग्न को विशेष महत्व दिया गया है। अर्थात जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा जिस राशि में है उस राशि को लग्न मान करके विचार करना चंद्र कुंडली कहलाती है। गोचर विचार में चंद्र लग्न को प्रधान माना गया है। क्योंकि चंद्रमा क…
Read moreमीन लग्न विचार -: १, यदि मीन लग्न की जन्म कुंडली में शुक्र द्वादश भाव में विद्यमान हो तो वह योगकारक नहीं माना जाता है यद्यपि अन्य लग्नो में शुक्र द्वादशभाव में अति शुभ योग कारक होता है। २, 12 वे भाव में शनि योग कारक होता है जबकि चंद्रमा द्वादश भाव में हो त…
Read moreमकर व कुंभ लग्न फल विचार -: मकर लग्न विचार -: १,मकर लग्न की जन्म कुंडली में बुध सर्वाधिक योग कारक ग्रह होता है। क्योंकि यहां बुध नवम भाव का अधिपति बनता है। अतः अपनी दशा में जातक को सर्वाधिक लाभ प्राप्ति होती है। २,मकर लग्न की जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति लग…
Read moreवृश्चिक व धनु लग्न कुंडली फल विचार -: वृश्चिक लग्न विचार -: १,वृश्चिक लग्न की जन्म कुंडली में गुरु बुध का योग अति शुभ लाभ प्रदान करने वाला होता है क्योंकि यहां गुरु धन भाव का स्वामी और बुध लाभ भाव का स्वामी होता है और धनेश व लाभेश का योग सदैव शुभ लाभ प्रदान …
Read moreतुला लग्न जन्म कडली सामान्य फल विचार -: १, तुला लग्न की जन्म कुंडली में शनी योगकारक हो जाता है। क्योंकि शनि तुला लग्न की जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी होकर सुखेश बनता है और साथ ही पंचम भाव का अधिपति होने के कारण योगकारक होता है क्योंकि दोनों ही भाव जन…
Read moreकन्या लग्न कुंडली सामान्य फल विचार -: १, कन्या लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य का शुक्र व चंद्रमा से संबंध हो तो सूर्य की दशा में में धन प्राप्ति योग बनता है। २, कन्या लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य का शुक्र से संबंध बनता है तब शुक्र की महादशा में जातक को आर्थ…
Read moreसिंह लग्न कुंडली सामान्य विचार -: १, सिंह लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य मंगल व बुध एक साथ विद्यमान हो तो जातक बहुत अधिक धनी होता है। क्योंकि यहां लग्नेश सूर्य धनेश,व लाभेश बुध तथा मंगल चतुर्थेश व भाग्येश बनता है। जिस कारण इनका योग अति विशिष्ट धन प्राप्ति का …
Read moreकर्क लग्न जन्म कुंडली फलादेश विचार -: १, कर्क लग्न की जन्म कुंडली में गुरु विशेष योग प्रदान करने वाला नहीं होता है। क्योंकि गुरु यहां षष्तेटमेश होते हैं और साथ ही भाग्येश भी बनते है किंतु गुरु यहां विशेष कर अपनी प्रथम राशि धनु का फल देते हैं। २,कर्क लग्न की …
Read moreमिथुन लग्न कुंडली का सामान्य फलादेश -: १, मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में तृतीय भाव जो कि सूर्य का भाव है उसमें बुध सूर्य की युति शुभ फल देने वाली होती है क्योंकि तृतीय भाव में लग्नेश व पराक्रमेश की युती शुभफल देती है। अतः मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में बनने व…
Read moreवृष लग्न सामान्य फलादेश -: १,वृष लग्न की जन्म कुंडली में शनि नवम व दशम भाव का स्वामी होने के बावजूद भी वह योगकारक नहीं माना गया है। अर्थात वृष लग्न की जन्म कुंडली में शनि सूर्य बुध की युति के बिना राजयोगकारक नहीं होता है। २, वृष लग्न की जन्म कुंडली में चतुर्…
Read moreमेष लग्न का सामान्य फलादेश -: १,मेष लग्न की जन्म कुंडली में यदि लग्नेश का चतुर्थेश व पंचमेशसे संबंध बनता है तो वह बहुत ही शुभ राजयोग कारक होता है क्योंकि मेष लग्न की जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्रमा और पंचम भाव का स्वामी सूर्य बनता है अतः यदि चंद…
Read moreविवाह में देरी के कारण -: आज की परिचर्चा में हम जानेंगे कि जातक या जातिका के विवाह में देरी कि वे कौन से कारण हैं? जिनके कारण जातक या जातिका का विवाह समय पर नहीं हो पाता है? और जातक जातिका के माता पिता इसे लेकर बहुत ही कुंठित व दुखी होते हैं। तो आइए जानते …
Read moreगर्भधारण योग -: १, जब स्त्री का मासिक धर्म प्रारंभ हो (जब पति पत्नी गर्भधारण के इच्छुक हो) उस समय यदि चंद्रमा स्त्री की जन्म कुंडली में गोचर वस 1,2,4,5,7,8,9,12 भाव में हो और चंद्रमा को मंगल देखता हो उस समय स्त्री गर्भधारण के योग्य होती है। इसके विपरीत यदि ऐ…
Read moreस्त्री कुंडली विवेचन दांपत्य जीवन में सुख व खुशहाल जीवन के लिए वर्तमान परिवेश में वर कुंडली के साथ-साथ वधू कुंडली का भी संपूर्ण विश्लेषण करना अति आवश्यक है ताकि आने वाले कष्टों से सचेत रहा जा सके। क्योंकि ऐसा कोई दुर्योग नहीं है जिसका शास्त्र में उपाय नहीं …
Read moreनपुंसक योग -: जब दो या दो से अधिक ग्रहों का परस्पर संबंध बनता है उसे योग कहा जाता है और जैसा कि हम जानते हैं कि ज्योतिष में अनेकों योग बनते हैं। इसी श्रृंखला में आज हम जन्म कुंडली में बनने वाली एक विशेष योग की चर्चा करने जा रहे हैं जिसका नाम है" नपुंस…
Read moreजन्म कुंडली में भाव को नष्ट करने वाले ग्रह -: जन्म कुंडली में हम जिस किसी भाव का अध्ययन करते हैं उस भाव को बिगाड़ने वाले कारक का अध्ययन निम्न सिद्धांतों के अंतर्गत किया जाता है जो इस प्रकार है। १, विचारणीय भाव से 6,7,8 भाव के स्वामी यदि जन्म कुंडली में निर्ब…
Read moreमंगल की महादशा में ग्रहो की अंतर्दशा का शुभाशुभ फल -: मंगल की महादशा में मंगल की अंतर्दशा फल -: मंगल की महादशा में मंगल यदि जन्म कुंडली में योगकारक व शुभ भाव में विद्यमान होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक को भवन वाहन व प्रॉपर्टी के कार्यों में लाभ प्राप्त …
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