राहु और केतु की दृष्टि का प्रभाव

 राहु और केतु की दृष्टि का प्रभाव -:

१,ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह की मान्यता दी गई है फिर भी इनको दृष्टि प्रदान की गई है। और इनकी की दृष्टि का जन्म कुंडली में बहुत अधिक प्रभाव व महत्व होता है।अतः जन्म कुंडली का विश्लेषण करते समय राहु और केतु की दृष्टि का भी सूक्ष्म विवेचन करना चाहिए अन्यथा इन दोनों की दृष्टि की उपेक्षा करना ज्योतिषी के लिए पल कहने में बहुत अधिक विषमताऐ उत्पन्न हो जाएगी।

२, राहु और केतु को भी ज्योतिष शास्त्र में गुरु की भांति पंचम सप्तम और नवम पूर्ण दृष्टियां प्राप्त है।अर्थात राहु और केतु जिस भाव में विद्यमान होते हैं वहां से वे पंचम सप्तम और नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।

३, राहु का स्वभाव प्रथक्वादी, विषैला, अभावात्मक, विलंबात्मक होता है और केतु का स्वभाव क्रूर व उग्र होता है।

४, इस प्रकार राहु और केतु जब किसी ग्रह के प्रभाव में नहीं होते हैं तो यह जिस स्थान पर विद्यमान होते हैं वहां से 5,7 और 9वे भाव को अपनी दृष्टि द्वारा अपने स्वभाव के अनुरूप परिणाम देते हैं।

५, राहु शनि के स्वभाव का होता है और केतु मंगल के स्वभाव का होता है।

६, राहु और केतु जिस ग्रह की राशि में विद्यमान होते हैं उस राशि के स्वामी के प्रभाव को भी अपने स्वभाव वत बना देते हैं।।
अतः इस क्रम में भले ही गुरु ही क्यों न हो यदि राहु और केतु ने गुरु की राशि को अधिषठित बना लिया अर्थात गुरु की राशि मीन राशि व धनु में राहु और केतु विद्यमान हो उस स्थिति में गुरु भी राहु व केतु वत फल दायक हो जाते हैं।गुरु आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि ओं का विचार करते समय हमें इस बात का भी विचार कर लेना चाहिए कि कहीं गुरु आदि शुभ ग्रहों की राशियां राहु और केतु से अधिक अधिषिठीत तो नहीं है।

६, ज्योतिषी विद्वानों का मानना है कि प्रत्येक राशियों के स्वामी में एक विशिष्ट गुण और दोष होते है,। जैसे धनु राशि के स्वामी गुरु बनते हैं और गुरु सदैव शुभ फलदायक होते हैं परंतु यदि इनकी राशि मीन और धनु किसी दूसरे ग्रह से अधिषित हो जाती है। तो यहां गुरु  अपने स्वभाव के अनुरूप फल नहीं देकर उस ग्रह के स्वरूप के अनुसार फल देगा जिस ग्रह ने उसकी राशि को अधिकृत किया है। जैसे मान लीजिए गुरु की राशि धनु में मंगल देव विद्यमान हैं अतः यहां गुरु की राशि को मंगल देव ने अधिकृत कर लिया। इसलिए गुरु यहां जिस घर में भी विद्यमान हैं वहां से अपने पंचम सप्तम और नवम दृष्टि से अपने स्वभाव के अनुरूप फल नहीं देकर मंगल के स्वभाव के अनुरूप फल देंगे ।

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245



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