जय श्री राधे राधे
(२०)
भागवत चर्चा को गति प्रदान करते हुए आज हम भगवान कामदेव के रूप में रुकमणी जी के गर्भ से प्रद्युम्न जी का जन्म व उनके द्वारा देवी रति के सहयोग से शम्बासुर दैत्य का वध प्रसंग की चर्चा करते हैं।।
प्रद्युमनजी का जन्म -:
शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन! जैसे हमने जाना कि भगवान श्रीकृष्ण ने रुकमणी जी के साथ वेदोंक्त की रीति से विवाह संपन्न किया। और फिर धर्म परायण नीति से उग्रसेन जी का शासन कार्यों में सहयोग करते हुए प्रजा पालन का कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार समय पाकर हे राजन! पूर्व में भगवान शिव द्वारा भस्म कामदेव ने इस बार भगवान श्री कृष्ण के रज का सहारा लेकर देवी रुक्मणी के गर्भ से शुभ लग्न शुभ मुहूर्त व शुभ नक्षत्र में जन्म लिया है।
इस प्रकार जैसे ही रुक्मिणी के गर्भ से कामदेव के रूप में प्रद्युमन जी का जन्म हुआ। भगवान श्री कृष्ण सहित सभी द्वारिका वासी बड़े प्रसन्न और आनंदित होते हैं। सारी नगरी में बधाइयां व बधावा बटने लगे हैं।
उसी समय हे राजन! शम्बासुर नामका एक दैत्य था। उसको श्री देव ऋषि नारद ने बताया कि हे दैत्यराज! तुम्हारा काल का जन्म हो चुका है। तब उसने कहा कौनमेरा काल है? तब देव ऋषि नारद ने कहा द्वारिका में श्री कृष्ण के जो पुत्र जन्मा है वही तेरा काल होगा। ऐसा कहने पर दुष्ट दैत्य शम्बासुर नेअपनी माया से रात्रि में रुक्मणी जी के सूतिका गृह में प्रवेश करके भगवान प्रद्युम्न जी को उठा लाता है। और अपनी खड़ग से उसका वध करना चाहता है। तभी देव ऋषि नारद प्रकट हो जाते हैं। और कहते हैं कि यह तुम क्या कर रहे हो। तुम्हें नवजात शिशु का वध कर महापाप नहीं करना चाहिए। तब उसने कहा कि तो मुझे क्या करना चाहिए। तब उसने नारद जी के कहने पर उसे समुद्र में फेंक दिया।।
जब सूतिका ग्रह से प्रद्युम्न जी का हरण हो गया तो भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी सहित सभी द्वारिका वासी बड़े दुखी होते हैं रुकमणी बहुत प्रकार से विलाप करती है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया।।
राजन! उधर जब शम्बासुर प्रद्युम्न को समुद्र में फेंक उसे देता है। उसे एक मछली मछली निगल जाती है। और एक दिन वह मछली मछुआरों के जाल में फंस गई।मछुआरों ने उस मछली को शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जैसे ही वह मछली रसोई में बनने के लिए पहुंची तो रसोइये ने मछली का पेट चीरा तो उसमें से एक बालक निकला।। सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। तत्पश्चात शम्बासुर के कहने पर उस बालक को उसकी एक दासी जो रसोई में कार्य करती थी। जिसका नाम था माया, जो साक्षात रतिदेवी है। उसे दे दिया जाता है।
देवी रति शम्बासुर के यहां रहकर प्रद्युम्न जी की प्रतीक्षा कर रही थी। क्योंकि भगवान शिव ने उसे बताया था। कि द्वापर युग में तुम्हारे पति प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होंगे। और तुम्हारी भेंट उनसे शम्बासुर के यहां होगी। इसलिए आज प्रद्धुमन जी को पाकर रति बड़ी प्रसन्न और आनंदित होती है। क्योंकि लम्बे विरह के बाद अपने कंत कामदेव से मिलन जो हुआ है। इस प्रकार रति प्रद्युमन जी का पालन पोषण करने लगी।
लेकिन नारद जी के कहने पर, इस दुष्ट दैत्य शम्बासुर सुतिका ग्रह से चुराकर समुद्र में फेंक दिया था। जिन्हे समुद्र में मछली निकल गई। और उस मछली को अन्य मछलियों के साथ पकड़कर मछुआरों ने भोजन के लिए महाराज शम्बासुर को दे दी। और जब रसोइए ने मछली को चीरा तो उसके पेट में से आप निकले। फिर आपका पालन पोषण करने के लिए शम्बासुर ने मुझे दे दिया।।इस प्रकार देवी रति ने प्रद्युम्न जी को आदि से अंत का सारा वृत्तांत कह सुनाया।और कहा कि स्वामी आपको इस दुष्ट दैत्य का नाश करना है। फिर हम द्वारिकापुरी में चलेंगे। और इसका नाश करने के लिए आपको मायावी शिक्षा की आवश्यकता होगी क्योंकि यह शम्बासुर बहुत बड़ा मायावी है। और मैं इसकी बहुत सारी मायावी विद्याओ को जानती हूं। अतः अब मैं तुम्हें वह मायावी शिक्षा देती हूं। जो इस का वध करते समय तुम्हारे काम आवेगी।। इस प्रकार देवी रति ने प्रद्युम्न जी को मायावी विद्या की शिक्षा दी।।
देखते देखते ही भगवान का प्रद्धुमन जी रति सहित द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण और रुकमणी जी के समक्ष उतर आते हैं। और अपने माता-पिता भगवान श्री कृष्ण व रुक्मिणी जी के चरणों में शीश नवाते हैं। भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी ने अपने हृदय से लगा लिया। उनका मुख मंडल चूमने लगे। क्योंकि देवर्षि नारद ने आकर सारा वृत्तांत देवी रुक्मणी और भगवान श्री कृष्ण को बता दिया था।
इस प्रकार से द्वारिका में आज प्रदुमन जी के आगमन से सुख आनंद की वर्षा होने लगी है।।
।। जय बोलो श्री प्रद्युमन जी महाराज की जय।।
आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245
इस प्रकार जैसे ही रुक्मिणी के गर्भ से कामदेव के रूप में प्रद्युमन जी का जन्म हुआ। भगवान श्री कृष्ण सहित सभी द्वारिका वासी बड़े प्रसन्न और आनंदित होते हैं। सारी नगरी में बधाइयां व बधावा बटने लगे हैं।
उसी समय हे राजन! शम्बासुर नामका एक दैत्य था। उसको श्री देव ऋषि नारद ने बताया कि हे दैत्यराज! तुम्हारा काल का जन्म हो चुका है। तब उसने कहा कौनमेरा काल है? तब देव ऋषि नारद ने कहा द्वारिका में श्री कृष्ण के जो पुत्र जन्मा है वही तेरा काल होगा। ऐसा कहने पर दुष्ट दैत्य शम्बासुर नेअपनी माया से रात्रि में रुक्मणी जी के सूतिका गृह में प्रवेश करके भगवान प्रद्युम्न जी को उठा लाता है। और अपनी खड़ग से उसका वध करना चाहता है। तभी देव ऋषि नारद प्रकट हो जाते हैं। और कहते हैं कि यह तुम क्या कर रहे हो। तुम्हें नवजात शिशु का वध कर महापाप नहीं करना चाहिए। तब उसने कहा कि तो मुझे क्या करना चाहिए। तब उसने नारद जी के कहने पर उसे समुद्र में फेंक दिया।।
जब सूतिका ग्रह से प्रद्युम्न जी का हरण हो गया तो भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी सहित सभी द्वारिका वासी बड़े दुखी होते हैं रुकमणी बहुत प्रकार से विलाप करती है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया।।
राजन! उधर जब शम्बासुर प्रद्युम्न को समुद्र में फेंक उसे देता है। उसे एक मछली मछली निगल जाती है। और एक दिन वह मछली मछुआरों के जाल में फंस गई।मछुआरों ने उस मछली को शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जैसे ही वह मछली रसोई में बनने के लिए पहुंची तो रसोइये ने मछली का पेट चीरा तो उसमें से एक बालक निकला।। सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। तत्पश्चात शम्बासुर के कहने पर उस बालक को उसकी एक दासी जो रसोई में कार्य करती थी। जिसका नाम था माया, जो साक्षात रतिदेवी है। उसे दे दिया जाता है।
दो०
काम बली जब शिवदह्यो, तब रति धरतनधीर।
पतिबिन अतितलफतखरी,विह्ल विकलशरीर।।
काम नारिअति लौटत फिरै, कंत कंत कहि क्षितिभुजभरै।
पिय विनतियमहदुखियाजान, है तबयों गोरी कियो बखान।।
शिवरानीयो रति समझाई, तब तनु धर शंबरघर आई। सुंदरि बीच रसोई रहै, निशिदिन मार्ग प्रिय कोचहै।।
देवी रति शम्बासुर के यहां रहकर प्रद्युम्न जी की प्रतीक्षा कर रही थी। क्योंकि भगवान शिव ने उसे बताया था। कि द्वापर युग में तुम्हारे पति प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होंगे। और तुम्हारी भेंट उनसे शम्बासुर के यहां होगी। इसलिए आज प्रद्धुमन जी को पाकर रति बड़ी प्रसन्न और आनंदित होती है। क्योंकि लम्बे विरह के बाद अपने कंत कामदेव से मिलन जो हुआ है। इस प्रकार रति प्रद्युमन जी का पालन पोषण करने लगी।
ऐसो प्रभु संयोग बनायो,मछरीमाहिंकंतमैपायो।।
दो०
प्रेम सहित पयल्यायकै, हितसों प्यावति ताहि।
हल रावति गुण गायकै, कहति कंत चित ताहि।।
और उनमें अपने प्रियतम कामदेव का दर्शन करने लगी। जैसे जैसे बालक प्रद्युम्न पांच वर्ष के हो गए।। तब प्रद्युम्न रति रूपमाया को मां मां कहकर पुकारते हैं ।तब रति कहती है स्वामी! आप यह क्या कर रहे हो। आप अपने स्वरुप को पहचानिए। आप मेरे प्रियतम कामदेव हो, जिनको भगवान शिव ने भस्म कर दिया था, और अब आपका जन्म भगवान श्री कृष्ण के घर रुक्मणी जी के गर्भ से हुआ है। कृष्ण और रुक्मणी तुम्हारे माता-पिता है।।लेकिन नारद जी के कहने पर, इस दुष्ट दैत्य शम्बासुर सुतिका ग्रह से चुराकर समुद्र में फेंक दिया था। जिन्हे समुद्र में मछली निकल गई। और उस मछली को अन्य मछलियों के साथ पकड़कर मछुआरों ने भोजन के लिए महाराज शम्बासुर को दे दी। और जब रसोइए ने मछली को चीरा तो उसके पेट में से आप निकले। फिर आपका पालन पोषण करने के लिए शम्बासुर ने मुझे दे दिया।।इस प्रकार देवी रति ने प्रद्युम्न जी को आदि से अंत का सारा वृत्तांत कह सुनाया।और कहा कि स्वामी आपको इस दुष्ट दैत्य का नाश करना है। फिर हम द्वारिकापुरी में चलेंगे। और इसका नाश करने के लिए आपको मायावी शिक्षा की आवश्यकता होगी क्योंकि यह शम्बासुर बहुत बड़ा मायावी है। और मैं इसकी बहुत सारी मायावी विद्याओ को जानती हूं। अतः अब मैं तुम्हें वह मायावी शिक्षा देती हूं। जो इस का वध करते समय तुम्हारे काम आवेगी।। इस प्रकार देवी रति ने प्रद्युम्न जी को मायावी विद्या की शिक्षा दी।।
प्रद्युम्न द्वारा शम्बासुर का वध -:
इस प्रकार प्रद्युम्न जी जब कुछ बड़े हुए तो एक दिन देवी रति के साथ जाकर के शम्बासुर को ललकारा और कहने लगे। हे दैत्य राज! अब तुम्हें मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकता है। तुमने मुझे मेरी मां के सुतिका ग्रह से चुराकर समुद्र में फेंक दिया था। लेकिन फिर भी मैं तुम्हारा काल बनकर यहां आ ही गया हूं। इस प्रकार भगवान प्रद्युम्न ने दुष्ट संभा सुर को ललकारा।दोहा:-
सुनशंबर आयुध गहे, बड़्यो क्रोध मनभाव।
मनहु सर्प की पूंछ पर, पड्यो अंधेरे पांव।।
शम्बासुर तलवार लेकर युद्ध करने के लिए दौड़ा। भगवान प्रद्युम्न व शम्बासुर के बीच भयंकर युद्ध होने लगा। शम्बासुर अनेक प्रकार से मायावी युद्ध करने लगा। लेकिन देवी रति के मार्गदर्शन से प्रद्युम्न जी ने दुष्ट दैत्य की सभी मायावी विद्याऔ का अंत कर दिया। और अंत में प्रद्युम्न जी ने दुष्ट दैत्य शम्बासुर का वध कर दिया।। और उसी के साथ उसके अनुयायियों सहित संपूर्ण सेना का संहार किया।।प्रद्युमन जी का रत्ती के साथ द्वारिका लौटना -:
इस प्रकार शम्बासुर का वध करके भगवान प्रद्युमन जी महाराज आकाश मार्ग से देवी रति के साथ द्वारिका जाने लगे। जब आकाश मंडल से रति और प्रद्युमन जी द्वारिकाआ रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण के साथ रुकमणी जी बैठे हुए थे। आकाश मंडल में उनको देखकर। अनायास ही रुकमणी जी के हृदय में स्नेहमयी ममता का ज्वार उठने लगा। रुकमणी जी भगवान श्रीकृष्ण से कहती है। कि आज आकाश मंडल से आते हुए इस युगल को देख कर न जाने मेरे मन में स्नेह ममता का जवारा उमड़ रहा है। आज हमारा पुत्र जीवित होता तो वह भी इनकी तरह ही दिखाई देता। क्योंकि वह भी इतना बड़ा हो गया होता। ऐसा विचार कर ही रहे थे।।देखते देखते ही भगवान का प्रद्धुमन जी रति सहित द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण और रुकमणी जी के समक्ष उतर आते हैं। और अपने माता-पिता भगवान श्री कृष्ण व रुक्मिणी जी के चरणों में शीश नवाते हैं। भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी ने अपने हृदय से लगा लिया। उनका मुख मंडल चूमने लगे। क्योंकि देवर्षि नारद ने आकर सारा वृत्तांत देवी रुक्मणी और भगवान श्री कृष्ण को बता दिया था।
इस प्रकार से द्वारिका में आज प्रदुमन जी के आगमन से सुख आनंद की वर्षा होने लगी है।।
।। जय बोलो श्री प्रद्युमन जी महाराज की जय।।
आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245
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