
जय श्री राधे राधे
(१०)
भागवत चर्चा में पूर्व चर्चा से आगे की चर्चा करते हैं। जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने सुददर्शन नामक विद्याधर व शंख चूड नामक यक्ष का वध किया है। तो आइए आगे की भागवत चर्चा करते हैं।।
सुदर्शन नामक विद्याधर का उद्धार -:
शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं! कि हे राजा परीक्षित! मैं तुम्हें भगवान की एक और दिव्य लीला का वर्णन सुनाता हूं ।एक दिन नंदराय जी ने सब गोपग्वालों को बुलाया और कहा कि भाइयों जब कृष्ण का जन्म हुआ था। तब मैंने कुल देवी अंबिका से मनौती मांगी थी! कि जब कान्हा 11 बरस का होगा तो मैं गाजे-बाजे से आकर तेरी पूजा करूंगा। इसलिए आज वह दिन आ गया है। अतः हम सब अंबिका देवी की पूजा करने के लिए चलेंगे। ऐसा सुनकर के सभी गोपग्वाल तैयार हो जाते हैं। और अपने अपने घरों से पूजा की सामग्री लेकर, नंदबाबा भी कुटुंब समेत श्री अंबिका देवी के स्थान जहां पर सरस्वती नदी बहती है। वहांचले जाते हैं। वहां जाकर सरस्वती नदी में स्नान कर अपने पुरोहित द्वारा वैदिक रीति से मंदिर में जाकर के देवी की पूजा करते हैं। और फिर सभी
वृंदावन वासियों सहित ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। इस प्रकार हे राजन! उस दिन सभी ब्रज वासियों समेत नंदराय जी अंबिका वन में ही रात्रि विश्राम करते हैं। तो रात्रि को एक अजगरा बाबा नंद का पांव पकड़ लेता है। और उनको निकलने लगा। तब बाबा घबरा कर कृष्ण कृष्ण पुकारने लगे। उसी समय उनके शब्द सुनकर के सभी बृजवासी स्त्री पुरुष नींद से जग जाते हैं। कृष्ण ने देखा कि बाबा नंद के पेर
को अजगर पकड़ा है। उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपना चरण अजगर की देह के लगाया तो देखते देखते वह दिव्य पुरुष बन गया और भगवान श्रीकृष्ण की परिक्रमा करने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पूछा कि तुम कौन हो? और किस कारण से मेरे बाबा नंद को निगल रहे थे? तब वह बोला की भगवन मैं पूर्व काल में सुदर्शन नाम का विद्याधर था। और स्वर्ग में अपने रूप के आगे किसी को कुछ नहीं गिनता था। जब मैं एक दिन विमान में बैठकर के निकला तो अंगिरा ऋषि तप कर रहे थे। तो बार-बार उनके ऊपर से आता-जाता रहा। तब अंगिरा ऋषि ने मेरे विमान की परछाई देखकर के ऊपर देखा तो उनको क्रोध आ गया और मुझे श्राप दिया कि जा तू अजगर योनि को प्राप्त हो जा।इतना कहते ही
मैं अजगर हो नीचे गिरा, तब ऋषि ने कहा कि तेरी मुक्ति का उपाय बताता हूं। श्री कृष्ण जी तेरी मुक्ति करेंगे। इसलिए मैंने बाबा का चरण पकड़ लिया। और आपने मुझ पर कृपा कर मुक्ति प्रदान की। ऐसा कहकर विद्याधर भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से दंडवत प्रणाम करके विदा हो जाता है। और सभी ब्रज वासी इस प्रकार सुबह होते हि देवी के दर्शन कर घर आ जाते हैं।।
शंखचूड़ नामक यक्ष का वध -:
शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से बोले। हे राजन! एक दिन भगवान बलराम और श्रीकृष्ण गोपियों के साथ चांदनी रात को आनंद से बन में गाये चरा रहे थे। कि बीच में कुबेर का सेवक शंखचूड़ यक्ष जिसके सीर पर मनी थी और अति बलवान था। वह वहां आ जाता है। और उसे देखकर सब गोपियों डर जाती है। और वह गोपियों को देखकर के भद्दे भद्दे इशारे करने लगा। तब गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण और बलराम को जोर-जोर से पुकारा, तब बलराम और श्री कृष्ण गोपियों को घैरकर बैठ जाते हैं।तब भी वह दुष्ट राम और श्याम के होते हुए भी गोपियों की तरफ इशारे करने लगा तब भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम से कहा देखो राम तुम गोपियों की रक्षा करो। मैं इस दुष्ट का संहार करता हूं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ
से वृक्ष उखाड़ा और उस दुष्ट कुबेर सेवक शंख चूड़ को ललकारा तब वह भगवान श्री कृष्ण से दो दो हाथ करने के लिए आया। तो भगवान श्री कृष्ण ने उसके ऊपर वृक्ष से दे मारा और हाथ पकड़ कर के उसे जोर से घूम आया। जब उसके प्राण निकलने लगे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मस्तिक से मणि निकाली। और देखते-देखते उसका प्राणांत हो गया।इस प्रकार वह मणि ला करके सभी गोपियों के सामने भगवान श्री कृष्ण ने बलदेव को जी को दे दी।।
इस प्रकार है राजन जब भगवान श्री कृष्ण ने दुष्ट शंखचूड़ का उद्धार किया।। तो गोपियां बड़ी ही आनंदित हुई।। इस प्रकार समस्त व्रजयुवतियां व बृजवासी जब भगवान श्री कृष्ण और बलराम अपने सखाओ के साथ गाय चराने के लिए दिन में वन में जाते हैं। और संध्या के समय गाये चरा कर लौटते हैं। तो गोपिया दिनभर श्री कृष्ण की लीलाओं का मधुर गान करती रहती है। और संध्या के समय राम श्याम का मुख मंडल देख कर प्रेमानंदित होती है।।
गोपी गीत::
सुनौ सखी बाजातिहै बैन, पशु पक्षी पावत है चैन।
पति संग देवी थकि विमान, मगन भई है धुनि सुनिकान,।।
करते परहि चुरी सुंदरी, विह्मलमनतन की सुधि हरि।
तब ही एक कहै ब्रज नारी, गरजनि मेघतजीअतिहारी।।
गावतहरि आनंद अढोल, मोहन चातक पानि कपोल।
पियसंगमृगीथकी सुनिबेनु, यसुना फिरिघिरी तंहधेनु।।
मोहे बादल छैया करे, मानो क्षत्र कृष्ण पर धरे।
अबहरि सघन कुंज को धाये,पुनिसब बंसीवट तर आते।।
गायन पाछे डोलत भये, घेरलई जल प्यावन गये।
सांझ भई अब उल्टे हरी, रांभतिगाय बेणुधुनिकरी।।
।। इति ।।
आचार्य श्री कृष्ण कुमार शास्त्री
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