अक्रूर जी का श्री कृष्ण बलराम को लेने बृज गमन

Gopi birha
Krishna balram ka mathura gaman

जय श्री राधे राधे

(१२)

आज हम भागवत चर्चा में भगवान श्री कृष्ण की आगे की लीलाओं की चर्चा करते हैं। जिसमें भगवान श्री कृष्ण और बलराम वृंदावन में दिव्य लीलाएं कर रहे हैं। उसी समय देव ऋषि नारद कंस के पास आकर संपूर्ण घटनाक्रम बताते हैं। तब कंस भयभीत होकर अपने मंत्रियों की सलाह पर
 कार्तिक बुद्धि को शिव धनुष यज्ञ का आयोजन रखता है। जिसमें नंद बाबा सहित बलराम व श्री कृष्ण को भी आमंत्रित किया जाता है। और उनको लेने के लिए अक्रूर जी को भेजा जाता है। तो आइए आज की भागवत चर्चा में इसी प्रसंग पर भागवत चर्चा करते  हैं।।

अक्रूर जी का कृष्ण बलराम को लेने बृज गमन -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन! जैसा कि मैंने अभी तुम्हें बताया कि नारदजी  कंस को भगवान श्री कृष्ण का सारा रहस्य बताते हैं। और कंस भगवान श्री कृष्ण के जीवन का रहस्य जानकर देवकी वासुदेव व उग्रसेन को कठोर कारावास में बैड़िया लगा करके डाल देता है। और अपने मंत्रियों की सलाह पर कार्तिक बुद्धि चतुर्दशी को शिव यज्ञ का आयोजन रखता है। और उसमें किसी भी प्रकार से श्री कृष्ण और बलराम को बुलाकर के उनकी हत्या करना चाहता है। इसके लिए कंस ने सबसे  बुद्धिमान अक्रूर जी महाराज को बुलाया, जब संध्या के समय  कंसने अक्रूर जी को अपने पास बुलाया, तो अक्रूर जी के मन में भी अनेक प्रकार के दुविधात्मक प्रश्न  उठने लगे। की कंस ने मुझे संध्या के समय क्यों बुलाया है। तब अक्रूर जी कंस के पास पहुंचे तो कंस खड़ा होकर अक्रुर जी का स्वागत सत्कार करता है। फिर अपने बराबर आसन पर बिठाकर अक्रूर जी का हाथ अपने हाथ में लेकर प्रेम से कहने लगा। देखो अक्रूर जी! कि आप मुझे बहुत प्रिय हैं। क्योंकि आप बुद्धि , ज्ञान में साक्षात बृहस्पति के समान है। अक्रूर जी इस समय आपसे ज्यादा कोई भी बुद्धिमान हमारे राज्य में नहीं है। और आप मेरे विश्वासपात्रो में से एक हो। इसलिए मैं तुम्हें एक रहस्य बताने जा रहा हूं। तब अक्रूर जी ने कहा महाराज! कहो आप मुझसे क्या चाहते हो। तब कंस बोला अक्रूर जी! जैसा कि आप जानते हैं कि देवकी के विवाह के समय आकाशवाणी ने कहा था। कि देवकी का आठवां पुत्र मेरा काल होगा। और देव ऋषि नारद ने मुझे बताया है। कि वह अभी नंद बाबा के घर कृष्ण के रूप में  जन्म लेकर  अनेक प्रकार की लीलाएं कर रहा है। हमने सुना है कि उस बालक ने कालिया नाग को नथलिया और उसने विशालकाय बड़े-बड़े दैत्यों का नाश किया है। यहां तक की विशालकाय सात कोस के गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था। इसलिए  हमने  धनुष यज्ञ का आयोजन रखा है। उसमें हमने आसपास के सभी जनपदों में श्रेष्ठ नागरिकों को निमंत्रण भेजा है। अतः हम चाहते हैं कि आप हमारा निमंत्रण लेकर  नंदराय जी को निमंत्रण देने वृंदावन जाएं, और नंद बाबा सहित कृष्ण और बलराम को भी किसी भी प्रकार से मथुरा लेकर आए। और जब उन दोनों बालकों आप मथुरा लेकर आएंगे, तो हम हमारी रणनीति के तहत उन दोनों को मौत के घाट उतार देंगे। जिससे हम अभय हो सकेंगे। जैसे ही कंस ने श्री कृष्ण बलराम को लेने जाने की बात कही। तो अक्रुर जी बड़े चिंतित हुए। मन में बहुत दुखी हुए,लेकिन दुष्ट कंस को मना करना भी परिस्थिति के अनुसार उचित नहीं था। इसलिए अक्रूर जी ने ज्ञान का सहारा लेकर बृज गमन स्वीकार किया। तब कंस बोला की अक्रुरजी! तुम्हे इस कार्य  के लिए शीघ्रातिशीघ्र प्रात:काल होते ही अपनी यात्रा प्रारंभ करनी है।  अक्रूर जी  कंस को प्रातकाल जाने की बात कहकर वहां से विदा होकर अपने घर आ जाते है। अक्रूर जी उस रात को पूरी रात सो नहीं सके।मन में विचार करते रहे कि हे प्रभु! भाग्यहिन  हूं।  जो मेरे द्वारा आज कृष्ण बलराम को मौत के मुंह में धकेलने का कार्य मेरे द्वारा किया जा रहा है। इस प्रकार सारी रात  तर्क वितरक चलते रहे। और प्रातकाल होते ही श्रेष्ठ रथ में आरूढ़ होकर श्री अक्रूर जी बृज की यात्रा करना प्रारंभ करते हैं।। संपूर्ण यात्रा में अक्रूर जी बार-बार ग्लानी में डूबते रहे, विधाता को कोसते रहे। कि हे विधाता! आज किन कर्मों की सजा मुझे मिल रही है। जो अपने हाथों से कृष्ण बलराम को लाकर दुष्ट कंस को उनकी हत्या करने के लिए मुझे देना पड़ रहा है।और दूसरी तरफ से सोचते हैं कि यह एक तरह से मेरा सौभाग्य भी है कि कंस ने मुझे भगवान नारायण  श्री कृष्ण चंद्र के मुख्य कमल को देखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।और मन में विचार करते हैं कि वे  तो सर्व अंतर्यामी हैं निश्चित रूप से मेरे मन के भावों को समझ लेंगे। और मुझे अपनी भक्ति का वरदान देंगे।।क्योंकि मैं जाते ही उनके श्री चरणों में प्रणाम करके उनके चरण धूलि सिर पर धारण कर लूंगा।।


हाथ जौरि कै पायन परिहौ, पुनि पग रेणुशीशपरधरीहौ।

  पाप हरण जेहिपग आही, सेवत श्री ब्रह्मादिक ताही।। जे पग काली के सिर परे,  जे पग कुचकुकुमसो भरे।

 नाचे रास मंडली आछै, जै पग डोलै गायन  पाछे। 

जा पग रेणु अहिल्या तरी, जा पग ते गंगा निसरी।।

बलिछलिकियोइन्द्र को काज,ते पगहौ देखौ आज। 

मोको शगुन होता है भले, मृग  के झुंड दाहिने चले।।

 ऐसे विचार करते-करते गोधूलि बेला में संध्या के समय अक्रूर जी का रथ वृंदावन में प्रवेश करता है। उस समय भगवान बलराम व श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ धेनु चलाकर वन से आ रहे थे। जैसे ही अक्रूर जी ने भगवान राम और श्याम की सुंदर छवि का दर्शन किया। अक्रूर जी की आंखों में प्रेमाश्रु  की धारा बहने लगी, और कुछ समय के लिए अक्रूर जी ब्रह्मानंद में लीन हो गए। ऐसी प्रभु की मोहनी मूर्ति को देख कर अक्रूर जी की समाधि लग गई।समाधि टूटने पर अपने को संभाल कर अक्रूर जी नंद बाबा के भवन पहुंचते हैं।।

अक्रूर जी द्वारा नंद बाबा को श्री कृष्ण बलराम को मथुरा ले जाने के बारे में बताना -:

जब अक्रूर जी नंद बाबा के भवन पहुंचे तो नंद बाबा ने बड़े ही आनंद के साथ उनका स्वागत सत्कार किया। और श्रेष्ठ आसन देकर उनको बिठाया। और फिर प्रेम से आपस में एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने लगे। नंद बाबा देवकी और वासुदेव जी के समाचार जानने लगे, अक्रूर जी ने  कंस के अत्याचारों के बारे में बाबा नंद को बताया।

जब ते कंस मधुपुरी भयो, तबते सबहीको दुखदयो। पूंछो कहा नगर कुशलात,  प्रजा दुखी होती है गात।। जौलो है मथुरा में कंस, तौ लो कहां बचै यदुवंश।।

दो०

 पशु मेंढे छेरीनको,ज्यो खटीक रिंपु होय।

 त्यो प्रजा को कंस  है,दुख पावे सब कोय।।


 उसी समय  गौशाला से श्री कृष्ण और बलराम आए। तो उन्होंने अक्रूर जी के चरणों में प्रणाम किया, अक्रूर जी ने उनको शुभ आशीष प्रदान किया। और  राम और श्याम की सुंदर मोहन छवि को निहारते हुए अपने जीवन को धन्य मानने लगे, मन में विचार करने लगे। प्रभु! आज मेरा अहोभाग्य जो मैं साक्षात् नारायण का दर्शन लाभ  प्राप्त कर रहा हूं। इस प्रकार अक्रूर जी श्री कृष्ण और बलराम जी के दर्शन करके दिव्य प्रेमानंद में गोते लगाने लगे। इस प्रकार हे राजन! जब संध्या वंदन से निवृत्त होकर  अक्रूर जी ने भोजन किया। फिर एकांत में अवसर प्राप्त करके श्री कृष्ण से मिले, श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से पूछा हे तात! मैं सब जानता हूं। की मेरे माता पिता देवकी और वसुदेव को मामा कंस ने बहुत सताया है। लेकिन मैं विश्वास दिलाता हूं। कि अब कंस के पापों का घड़ा भर चुका है। अब उसकी मृत्यु मेरे हाथों से निश्चित हो चुकी है।

आदर कर पूंछी कुशलात, कहौ कका मथुरा की बात। है वसुदेव देवकी नीके ,राजा वैरपरौ तिन्हीके।।

 अति पापी है मामा कंस, जिनखोयोसिगरो  यदुवंश।।।


इसलिए अक्रूर जी आप जब मेरे बाबा नंद और मैया को यह सारी बात बताएं, तब बहुत ही ज्ञान का सहारा  लेकर बताना क्योंकि मेरी माता यशोदा मेरे जाने को सुनकर  व्याकुल हो जाएगी, वह मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकती है। हे अक्रूर जी! किसी भी प्रकार से बाबा को समझा कर मथुरा प्रस्थान की बात बताना। इस प्रकार हे राजन! जब कुछ रात्रि का समय व्यतीत हुआ।  तब एकांत कक्ष में अक्रूर जी बाबा नंद को बिठाकर कहने लगे कि‌ हे नंद राय जी! मैं  तुम्हें जो बताने जा रहा हूं। वह सचमुच बड़ा ही हद विदारक है। लेकिन उसे तुम्हें स्वीकार करना ही होगा क्योंकि वही सत्य है।तब बाबा नंद कहने लगे हे अक्रुरजी  आप ऐसी कौन सी बात मुझे बताना चाह रहे हो, जिसे मैं सुन नहीं सकता, बताइए  वह कौन सी बात है। क्योंकि मेरे हृदय की उत्सुकता बढ़ती जा रही है। तब अक्रूर जी ने बाबा नंद के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर कहने लगे, हे बाबा! कृष्ण वस्तुत तुम्हारा पुत्र नहीं है। यह देवकी का आठवां पुत्र है। यह सुनकर  नंदबाबा कहने लगे। अंकुर जी! यह क्या कह रहे हो ।नहीं-नहीं अक्रूर जी यह सत्य नहीं है यह सत्य नहीं है। अक्रूर जी बोले  बाबा! यही सत्य है। कृष्ण देवकी और वासुदेव का आठवां पुत्र है। जिसे ईश्वर की प्रेरणा से तुम्हारे यहां यशोदा की बगल में सुला गए और यशोदा ने जो कन्या को जन्म दिया था। उसे वसुदेव जी लेकर चले गए थे। इसलिए बाबा नंद! मैं कृष्ण और बलराम को मथुरा ले जाने के लिए आया हूं। यह सुनते ही बाबा नंद के आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। नंद बाबा सुबक सुबक करके रोने लगे। कहने लगे अक्रूर  जी! एक बार कह दो कि यह सत्य नहीं  है।मेरा हदय फटा जा रहा है। जब इस प्रकार अक्रूर जी और नंद बाबा  बातचीत कर रहे थे। उसी समय माता यशोदा वहां आ जाती है। और बाबा नंद के आंखों में से आंसू धारा देखकर के कहने लगी। कि आपकी आंखों से  अश्रु धारा क्यों बह रही है। नंदबाबा कहने लगे,देखो यशोदा! अक्रूर जी हम से कह रहे हैं। कि कन्हैया हमारा पुत्र नहीं है। देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र है। यह सुनते ही मां जसोदा का सिर चकराने लगा, कहने लगी नहीं नहीं ऐसा कभी भी नहीं हो सकता। कन्हैया मेरा ही पुत्र है। तब अकूर जी कहने लगे देखो यशोदा!  मैं कह रहा हूं वह पूर्ण सत्य है। कन्हैया तुम्हारा पुत्र नहीं है। तुम्हारा पुत्र नहीं है। यह सारी बातें श्री कृष्ण भी सुन रहे थे। उसी समय श्रीकृष्ण आकर कहने लगे अक्रुरजी!  तुम  यह क्या कह रहे हो? किसने कह दिया कि मैं मेरी मैया का पुत्र नहीं हूं। मेरे बाबा का पुत्र नहीं हूं। मैं मेरी मैया बाबा का पुत्र हूं। मैया मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं अगर अक्रूर जी हम दोनों भाई बलराम और मुझे लेने आए हैं। तो आप इसकी चिंता मत कीजिए हम शीघ्र ही मथुरा देख कर   बाबा के साथ निश्चित लौट आयेंगे। और कभी भी मन में यह ग्लानी मत लाना मैया! कि मैं तुम्हारा पुत्र नहीं हूं। इस प्रकार है राजन अनेकों तर्क वितरकों के द्वारा जब अक्रूर जी ने नंद बाबा को समझाया। और कंस द्वारा भेजा हुआ निमंत्रण बताया। कि कंस  कार्तिक बुद्धि चतुर्दशी को शिव धनुष यज्ञ का आयोजन कर रहा हैं। उसमें सभी श्रेष्ठ आसपास के नगरों के नागरिकों को निमंत्रण किया गया है। जिसमें श्री कृष्ण और बलराम के साथ आपको भी निमंत्रण दिया गया है।और मैं श्री कृष्ण बलराम के साथ आपको कंस द्वारा आयोजित शिव धनुष यज्ञ में लेने आया हूं।  इस प्रकार वह रात्रि समाप्त होती है। और प जैसे ही प्रातकाल हुआ, वृंदावन में यह समाचार अग्नि की तरह फैल गया कि अक्रूर जी बलराम और कृष्ण को मथुरा ले जाने के लिए आए हैं।।

श्री कृष्ण बलराम का मथुरा गमन -:

इस प्रकार से जब भगवान श्री कृष्ण और बलराम सुबह मथुरा जाने के लिए तैयार होकर जाते हैं उसी समय ब्रिज गोपियों ने सुना कि हमारे कृष्ण और बलराम मथुरा जा रहे हैं तो सारे ब्रज की खुफिया नंद बाबा के बहार आ खड़ी हो जाती है और अक्रूर जी को रात को चारों तरफ से घेर लेती है और कहती है कि हे माधव हे बृजनंदन तुम हमें इस प्रकार से छोड़कर नहीं जा सकते हो तभी सभी गोपियां अश्रु धारा बहाने लगे और भगवान श्री कृष्ण को प्रेम से निहारने लगी एक गोपी अक्रूर जी को देखकर कहीं लगी है सखी देखो यह क्रूर कितना दूर है जिसका नाम है लेकिन यह मन से बड़ा क्रूर है क्योंकि यह हमारे कन्हैया को लेकर हमें दुख पहुंचाने आया है

यह अक्रूर क्रूर है भारी, जानी कछु न पीर हमारी।

 जाबिनछिंनसबहोति अनाथ, ताहिचल्योलै अपने साथ।।

 कपटी क्रूर कठिन मन भयो, नाम अक्रुर वृथाकिनदयो।

 हे अक्रूर कुटिल मतिहीन,क्यों दाहत अबला आघीन।। 



इस प्रकार गोपी पहले अक्रूर जी को भला बुरा सुनाती है। फिर सभी ब्रज गोपियां लांजसंकौच  छोड़कर भगवान श्री कृष्ण का रथ पकड़ कर कहने लगी। मथुरा की रानीयां अति चंचल और सुंदरता से युक्त है उनसे प्रीति कर कन्हैया वही रहेंगे, फिर कन्हैया आने क्यों याद करेंगे, मथुरा की सुंदर रानियों का अहो भाग्य हैं जो प्रीतम के संग रहेगी। हमारे जप तप करने में ऐसी क्या चौक पड़ी थी। जिसे  कृष्ण हमें छोड़कर जा रहे हैं।इस प्रकार गोपिया आपस में बातें करती हुई पर श्री कृष्ण से कहने लगी।। हे बृजनंदन! आप हमें अपने साथ क्यों नहीं रहे चल रहे हो।

तुम बिन छिन छिन कैसे कटै, पलक औट भेछाती फटै।हित लगायक्यों करतबिछौह,निठूर निर्दयीधरतनमोह।। 

ऐसी  तहां आय सुंदरी, सोचै दुख समुद्र में परी।

चाहिरही इकटक हरि ओर,ठगी मृर्गी सी चंद्र चकोर।। 

परहि नयनते आंसू टूट, रही विथुरि  लटमुख पर छूट।।।


इस प्रकारशकदेवमुनि राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन!जब सभी गोपियां श्री कृष्ण को जाते हुए देख कर  बुरी तरह से व्याकुल हो जाती है। उनकी दशा उस मछली की तरह हो गई जो बिन पानी के तड़पती है। उसी प्रकार से गोपियां व्याकुल होकर के तड़पने लगी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने सभी गोपियों को कहा देखो गोपियों! मैं तुम्हें बचन दिता हूं। मैं मथुरा से अवश्य आऊंगा। तुम धीरज रखो मैं तुम से कभी दूर नहीं होहुंगा। इस प्रकार जब भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को समझाया। तब मां यशोदा पुत्र कन्हैया का लाड लडाती हुई कलेवा देती है। और कहती है कि देखो लाला मथुरा में जाकर  किसी से प्रीत मत करना और  समय से यह कलेवा खा लेना। और बेटा उत्सव देख कर तेरे बाबा नंद के साथ वापस चले जाना है। ऐसा कह कर  अपने पुत्र राम और श्याम के लाड लड़ाती है। फिर कन्हैया कहते हैं। माता! मैं तुमसे को वचन देता हूं कि मैं निश्चित आऊंगा। तुम किसी प्रकार की चिंता मत करना और समय से तुम भी भोजन कर लेना। ऐसे समझा करके जब अक्रूर जी के कहने पर भगवान श्री कृष्ण और बलराम रथ में बैठाते  हैं। इस प्रकार नंद बाबा व कुछ श्रेष्ठ गोपों के साथ कुछ भगवान श्री कृष्ण के बाल सखा भी मथुरा उत्सव देखने के लिए जाते हैं। जब श्री कृष्ण बलराम का रथ आगे बढ़ने लगा।  गोपियां बुरी तरह से व्याकुल होने लगी। लेकिन भगवान श्री कृष्ण के वचनों को याद करके उन्होंने अपने मन में धीरज धारण किया। और जब तक भगवान श्री कृष्ण बलराम के रथ की पताका देखती रही तबतक गोपियां श्रीकृष्ण को एकटक देखती रही। और जैसे ही पताका दिखना बंद हो गई। तो गोपियां मूर्छित होकर के भूमि पर गिर जाती है। और जब उनको होश आया तो  सब गोपिया एकत्रित होकर अपने मन को समझा कर  भगवान श्री कृष्ण के वचनों को हृदय में धारण करके,। अपने अपने घर को जाती है।।

आगे जैसे ही रथ नगर के बाहर गया तो देखा, कि वृषभानु दुलारी श्री राधिका भगवान श्री कृष्ण के रथ को मार्ग में निहार रही थी। जब भगवान श्री कृष्ण ने वृषभानु दुलारी राधिका को आंखों में अश्रु धारा बहाती  हुई  विरह में व्याकुल देखा। तब उन्होंने अक्रूर जी से कहकर के रथ रुकवाया और फिर श्री राधिका जी के पास गए। और कहने लगे। है राधे !तुमइ प्रकार से क्यों व्याकुल हो रही हो? क्या तुम नहीं जानती हो! कि कृष्ण और राधा दो शरीर जरूर है लेकिन प्राण दोनों में एक है।  मैं  कर्तव्य पथ पर जा रहा हूं। इसलिए तुम्हें मेरा सहयोग करना चाहिए, ऐसे अधीर होकर मुझे कमजोर नहीं बनाना चाहिए। इसके बाद श्रीकृष्ण  ने अपने दोनों हाथों से राधिका के अश्रु पौछते है।फिर प्रेम से बोले देखो राधे! तुझे इस प्रकार से व्याकुल नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं।कि तुम मेरे हृदय में रहोगी, और मैं आठों पहर तुम्हारे हृदय में निवास करूंगा। तुम जब आंखें बंद करके ध्यान करोगी। मैं तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा। लेकिन ध्यान रखो राधिका तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा। तब राधिका कहने लगी हे कन्हैया! कौन सा वचन लेनख चाहते हो। मैं तुम्हें अपने प्राण भी दे दूंगी। तब श्रीकृष्ण बोले हे राधे! तुम मुझे मुझे वचन दो कि मेरे पीछे से व्याकुल होकर आंखों में कभी आंसू नहीं बहाएगी।उसी समय राधिका अपनी आंखों से अश्रु पौंछ लिए। और कहती है कि मैं तुम्हें वचन देती हूं कि मैं कभी भी इन आंखों में से आंसू नहीं बहेंगे।किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण राधिका को समझा कर विश्वास दिलाया कि मैं जरूर आऊंगा। फिर  रथ में बैैठ  करअक्रुरजी के साथ मथुरा गमन करते हैं।और राधिका एकटक देखती रहती है। 

अक्रूर जी का यमुना में स्नान व भागवत दर्शन -:

इस प्रकार हे राजन! जब अक्रूर जी का रथ यमुना के किनारे आया।अक्रूर जी नंद बाबा  से कहने लगे कि आप सब आगे चलिए और आगे चलकर के मेरी प्रतीक्षा करना। मैं अभी स्नान करके आता हूं। इस प्रकार नंदबाबा आगे चले जाते हैं।अक्रूर जी ने रथ खड़ा किया,  श्री कृष्ण बलराम को रथ में ही छोड़क यमुना में स्नान करने  लिए चले जाते हैं। और जैसे ही डुबकी लगाई तो उन्होंने देखा चतुर्भुज रूप में भगवान श्री कृष्ण ने विराट स्वरूप बनाए हुए हैं। जिसमें समस्त देवी देवता श्री कृष्णकी स्तुति वंदन कर रहे हैं। और शेष नाग उनकी छत्र बना हुआ हैं। अक्रूर जी को बड़ा आश्चर्य हुआ अक्रूर जी झट से जल के बाहर निकल कर देखते हैं। तो श्री कृष्ण और बलराम तो रथ में बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे हैंदू।डुबकी लगाई तो फिर देखा कि भगवान श्रीकृष्ण वैकुंठ में क्षीरशय्या पर विद्यमान हैं। और माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही है। ऐसे दिव्य पूर्ण परमात्मा के दर्शन करके अकुरर्जी समझ गए। फिर भगवान श्री कृष्ण  के विराट स्वरूप की स्तुति करने लगे।।

पुनि उन देख्योशीशउठाय,तिहीठां  बैठे हैं यदुराय। 

 करै  जंचंभौ हिये बिचारि,वे रथ ऊपर दूर मुरारी।।

 बैठे दो बड की छांव,तिनहींकौ  देखौ जल मांह।

 बाहर भीतर भेदन लहौ, सांचौरुप  कौनसों कहौ।।

 इसके बाद अक्रूर जी जैसे ही स्नान करके बाहर निकले। भगवान श्रीकृष्ण हंसते हुए कहने लगे, काका! क्या तुमने यमुना जल में कुछ विशेष देखा, इतना समय कैसे लग गया। तब अक्रूर जी कहते हैं।

सुनी अक्रूर कह जोरे हाथ, तुम सब जानत हो ब्रजनाथ।

 भलोदरशदीनोजल माही, कृष्ण चरित्र को अचरजनाही।।

 मोहे भरोसो भयो तिहारो, बेगी नाथ मथुरा पगधारो। अब तो यहां विलंब न करिये, शीघ्र चलो कारज चित धरिये।। 


 कि कन्हैया तुम तो अंतर्यामी हो, तुम सब जानते, प्रभु! आपकी माया अपरंपार है।ऐसा कह कर  अक्रूर जी रथ में बैठते हैं। और रथ आगे बढ़ाते हैं। और आगे मथुरा नगर के बाहर पहुंचते हैं। जहां नंद बाबा और अन्य गोप प्रतीक्षा कर रहे थे। इस प्रकार संध्या होते होते अक्रूर जी भगवान श्री कृष्ण और बलराम को लेकर के मथुरा पहुंचते हैं।। अक्रूर जी श्री कृष्ण से कहने लगे कि अब मेरे घर पधारिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे, हे काका! पहले में कंस को मृत्यु के घाट उतार कर, मात पिता के बंधन खोल करउ,दर्शन करके फिर तुम्हारे घर अवश्य ही चलूंगा। इसलिए आप अभी मामा कंस को जा कर के हमारे आने का समाचार सुनाओ।।

पहले शोध कंस को देहु, तब अपनो देखरावोगेहु। ्सबकी बिनती कहौ जुजाय, सुनी अक्रूर चल्योशिरनाय।। 




जय श्री राधे राधे


आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

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