शिशुपाल वध

महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ
जय श्री राधे राधे

(३३)

महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ-:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! इस प्रकार  भगवान श्री कृष्ण के निर्देशन में पांडवों ने चारों दिशाओं पर विजय प्राप्त कर राजसूय यज्ञ का श्रीगणेश किया। इसमें चारों दिशाओं के राजा और महाराजा पधारे हैं। तथा  युधिष्ठिर ने अपने बंधु बांधव को अलग-अलग कार्य की जिम्मेदारी नियुक्त की है। दुर्योधन को कोषाध्यक्ष बनाया गया। भीम को भंडार का कार्य सौंपा गया, तो भगवान श्री कृष्ण आए हुए अतिथियों का चरण पखारने की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। द्रोपदी अतिथियों को भोजन परोसने का कार्य संभालती है। इस प्रकार यज्ञ का श्री गणेश होने लगा।। इसके लिए महाराज युधिष्ठिर ने एक विशाल सभा का आयोजन किया। उस सभा में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य, शिशुपाल इत्यादि बड़े नाम विद्यमान थे। तब महाराज युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर सभी सभासदों से निवेदन किया। कि मुझे सबसे पहले अग्र पूजा किसकी करनी चाहिए।

पहिले पूजा काकी कीजै, अक्षत तिलक कौन को दीजै।

  कौन बड़ो देवन को ईश,ताहि पूजि  हम नावै शीश।।


 तब जरासंध पुत्र सहदेव खड़ा होकर बोला कि महाराज मेरे विचार से इस समय इस सभा में ही नहीं अपितु पृथ्वी लोक पर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण से उत्तम कोई अग्र पूजा का अधिकारी नहीं है।

बंधु कहत घर बैठे  आवै,  अपनी माया मोहि भुलावै।

 महामोह हम प्रेम भुलाने, ईश्वर को भ्राता कर जाने।।

 इनसे बड़ो न दीसे कोई, पूजा प्रथम इन्हीं की होई।।

 सहदेव के इस कथन का भीष्म द्रोण कृपाचार्य इत्यादि महान विभूतियों ने भी समर्थन किया।।

शिशुपाल द्वारा कृष्ण का अपमान व उसका वध -:

इस प्रकार हे राजन। जब सभी सभासदों ने श्री कृष्ण को अग्र पूजा का अधिकारी स्वीकार किया।

हरि पूजत सबको सुख भयों, शिशुपाल को शीश भूनयो।।

 उसी समय चेदि नरेश दम घोष का पुत्र व श्री कृष्ण की बुआ का पुत्र शिशुपाल सभा में उपस्थित था। सभा में खड़ा होकर कहने लगा, अरे देखो देखो यह उचित नहीं है। क्योंकि भीष्म पितामह द्रोणाचार्य कृपाचार्य जैसे महान लोगों के विद्यमान होते हुए इस ग्वाले की अग्र पूजा होने जा रही है। अरे यह किसी भी भांति अग्र पूजा का अधिकारी नहीं है। क्योंकि इसे ना तो कोई मान का पता है ना मर्यादा का, जन्म से इसने चोरी की है। ग्वालों के साथ रहा है। ना कोई राजा है ना कोई सम्मान इसे प्राप्त है। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण का अपमान शिशुपाल करने लगा। तभी  राजाओं ने उठकर शिशुपाल का तिरस्कार करना चाहा। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उन सब को रोक दिया। और कहा कि हे शिशुपाल!  मैंने तुम्हारी मां और मेरी बुआ को तुम्हारे जन्म पर वचन दिया था। कि जब तक तुम मेरे सो अपराध कर दोगे। तब तक मैं तुम्हें क्षमा करुगा। लेकिन सो अपराध के आगे अगर एक भी अपराध तूने मेरा किया। तो मैं तुझे क्षमा कदापि नहीं करूंगा इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण के कहने पर भी शिशुपाल श्री कृष्ण को गालियां देने लगा। इस प्रकार शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को भरी सभा में सौ गालियां दी। तब तक
 भगवान श्री कृष्ण ने उसे कुछ भी नहीं कहा और जैसे ही
सो के ऊपर गाली निकालने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण बोले, बस करो शिशुपाल अब रुक जाओ। क्योंकि तुम्हारे सो अपराध हो चुके हैं। अगर अब एक भी गाली तूने मुंह से निकाली तो अभी तेरा सिर धड़ से अलग कर दूंगा। लेकिन शिशुपाल कहां मानने वाला था। शिशुपाल ने जैसे ही 101 वीं गाली निकाली, तभी भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी। उसी समय सुदर्शन तीव्र वेग से शिशुपाल की ओर दौड़ने लगा। शिशुपाल घबराने लगा विलाप करने लगा बचाओ बचाओ कहकर पुकारने लगा। इस प्रकार देखते-देखते ही शिशुपाल का सिर धड़ से अलग हो गया। और उसके शरीर से एक दिव्य ज्योति निकली जो श्री कृष्ण के शरीर में समा गई।।
शिशुपाल वध


इस प्रकार हे राजन! शिशुपाल का वध हुआ। देवता बड़े प्रसन्न हुए और श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे। तत्पश्चात महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण की अग्र पूजा की। चंदन अक्षत श्रीफल देकर चरणोंदक प्राप्त किया। फिर ब्राह्मणों के स्वस्तिवाचन होने लगे व वेदोक्त रीति से महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ संपन्न हुआ।महाराज युधिष्ठिर ने यज्ञ में पधारे सभी राजाओं को वस्त्र पहनाई ब्राह्मणों को अनगिनत दान देकर विदा किया।तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण भी अपने कुटुंब उसे हितेश से विदा होकर द्वारिका पधारे द्वारिका के पहुंचते ही द्वारिका के घर घर में मंगलाचार होने लगे और सारे नगर में आनंद होने लगा।

  ।। जय बोलो।द्वारिकाधीश भगवान की जय।।

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

 9414657245


Post a Comment

0 Comments