राजा नृग कथा


राजा नृग उद्धार


जय श्री राधे राधे

(२८)

इक्ष्वाकु वंशीय राजा नृग की दान शीलता -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत महापुराण की अमृत कथा का पान कराते हुए, एक दिव्य कथा का पान कराते हैं । शुकदेव मुनि कहते हैं। कि हे राजन! भगवान एक समय इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा थे। जिनका नाम था नृगजीत उन की दान शीलता विश्वविख्यात थी। राजा ने अपने जीवन में इतनी गायो का दान किया। शायद समुद्र की जल की बूंदों की की गीनती संभव हो, लेकिन राजा नृग दर्शाया दान की गई गायो की गिनती संभव नहीं हो सकतीहै। राजा का क्रम था कि राजा प्रतिदिन प्रात काल संध्याकार्य से निवृत्त होकर अति सुंदर व दुधारू गायों का दान ब्राह्मणों को किया करते थे। इसी क्रम में एक दिन जब राजा गायो का दान कर रहे थे। उसी समय एक ब्राह्मण को सुंदर दिव्य गाय का दान दिया। दूसरे दिन वही गाय ब्राह्मण के वहां से खुलकर के राजा की गायों में आ मिलती है। और दूसरे दिन उसी गाय का दान राजा किसी दूसरे ब्राह्मण को कर देते हैं। जब ब्राह्मण अपनी गाय को लेकर अपने घर को जा रहा था। उसी समय मार्ग में  पहले दिन वाला ब्राह्मण उसे मार्ग में
 मिल जाता है। और कहता है कि भैया! देखो यह गाय तो मेरी है क्योंकि राजा ने कल  मुझे दान दी थी। जो मेरे घर से खुल करके चली गई थी। तब दूसरे दिन वाला ब्राह्मण बोला कि  ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मैं अभी-अभी राजा से यह गो दान में स्वस्तिवाचन बोलकर प्राप्त करके लेकर आ रहा हूं। इस प्रकार दोनों ब्राह्मण आपस में झगड़ते हुए राजा के पास पहुंच गए। राजा ने ब्राह्मणों से बार-बार हाथ जोड़कर के प्रार्थना की हे विप्र देवताओं! मेरे से भूल हो गई मैं समझ नहीं पाया और गलती से यह गाय मेरी  गोवो में आकर मिल गई। और मैंने इसे  दोबारा से  दान कर दिया। इसलिए आप को मै  इसके बदले में मुंह मांगा धन दूं गा। 

कोऊ लाख रुपैया लेऊ, गैया यह काहु को देंऊ।।


 लेकिन ब्राह्मण आपस में झगड़ते रहे और राजा को कहा कि हम धन नहीं लेंगे, हमें तो हमारी गाय ही चाहिए।तब कोई निर्णय नहीं हो सका। तब दोनों ब्रह्मोस गाय को ही छोड़ कर के चले गए।

इस प्रकार  राजा एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो गए। राजा सीधे स्वर्ग लोक को ग्रे, उनके जाते ही धरमराज अपने सिंहासन से खड़े हो गए और हाथ जोड़कर कहने लगे, हे महाराज! आपका धर्म बहुत अधिक है। आप पाप बहुत कम हैं। आप कृपा करके बताएं पहले पाप भोगना चाहते हो, या धर्म का सुख भोगना चाहते हो? तब राजा ने कहा कि भगवान! में पहले अपने पाप कर्मों का भोग भोगना चाहता हूं।

धर्मराज बोले राजन! आपने जो ब्राह्मण को गाय का दो बार से दान कर दिया था। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हें गिरगिट रूप में जाना पड़ेगा, और द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के आने पर ही तुम्हारा उद्धार होगा। ऐसा कह कर  राजा ने सिर झुका कर गिरगिट बनना स्वीकार किया। तभी राजानृग को धर्मराज ने गिरगिट बनाकर द्वारिका के क्षेत्र में एक कुएं में डाल दिया।।

भगवान श्री कृष्ण द्वारा राजा नृग का उद्धार -:

शुकदेव मुनि कहते हैं। कि हे राजन! इसी क्रम में जब द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र-पौत्र  खेलते हुए द्वारिका के बाहर विचरण कर रहे थे। तभी उन्हें प्यास लगी, तो उन्होंने देखा कि एक हुआ है। इस प्रकार वे कुएं पर पानी पीने के लिए गये।तो उन्होंने वहां देखा कि कुऐ में एक बहुत बड़ा गिरगिट पड़ा हुआ है। तब बालक  चकित होकर  उस गिरगिट को निकालने लगे लेकिन वह गिरगिट उनसे निकलने में नहीं आया। तब उन्होंने जाकर  भगवान श्री कृष्ण से कहा।

तब भगवान श्रीकृष्ण  आते हैं। और फिर कुएं में उतर करअपना चरण  गिरगिट के लगाते। चरण का स्पर्श होते ही वह गिरगिट एक पुरुष के रूप में प्रकट हो गया, और भगवान श्री कृष्ण का  अभिनंदन करने लगा। और भगवान श्रीकृष्ण को अपने इस पतन का कारण बताता है। तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण की प्रदक्षिणा करके विमान में बैठकर  राजा वैकुंठ लोक को चला जाता  है।
इसे देखकर भगवान के पुत्र पौत्रों को बहुत आश्चर्य होता है। तो भगवान श्री कृष्ण उनसे कहने लगे। देखो जो ब्राह्मणों का तिरस्कार करता है। वह मुझे कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता है। और जो प्राणी ब्राह्मणों का प्रिय हो और मेरा तिरस्कार करता हो तब भी मैं सभी भांति उनका  कल्याण करता हूं। तत्पश्चात सभी अपने राजभवन को आ जाते हैं।।


।। जय श्री कृष्ण चंद्र भगवान की जय।।

  • आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

9414657245




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