लग्न से ग्रहों का शुभाशुभ फल

 मेषादि लग्नो में ग्रहों का शुभ अशुभ विचार -:

मेष -: मेष लग्न में शुक्र, शनि, बुध पाप फल देने वाले तथा सूर्य गुरु शुभ फलदायक होते हैं। शनि, गुरु योग मात्र से सुखदायक नहीं होते अपितु सहायक होते हैं। मेष लग्न में गुरु व्ययेश होने के कारण पाप फलदायक भी बनते हैं और शुक्र द्वितीय और सप्तम भाव का स्वामी होने कारण मारकेश  बनता है।

Note -मेष लग्न की कुंडली में लग्न का स्वामी मंगल अष्टम भाव का स्वामी भी बनता है। अतः लग्न से संबंधित भाव में शुभ फलदायक  होगा किंतु अष्टम भाव में अशुभ फल भी देगा, इसी प्रकार गुरु बृहस्पति नवम भाव व 12 वे भाव का स्वामी बनते हैं अतःभाग्य के संबंध में गुरु सुखदायक होंगे किंतु व्यय भाव के अधिपति होने के कारण  पाप संबंध बनता है इसलिए अशुभ फलदायक भी सिद्ध होंगे। इसी तरह मेष लग्न की कुंडली में शनि दशम भाव का अधिपति होने के कारण केंद्राधिपति हुआ अतः शुभ फलदायक होगा किंतु लाभ भाव अर्थात एकादश भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फलदायक भी होगा। बुध तीसरे भाव व छठे भाव का अधिपति होने के कारण अशुभ फलदायक होगा।शुक्र द्वितीय भाव व सप्तम भाव का अधिपति होने के कारण मारकेश बनता है अतः अशुभ ही कहा जाएगा। सूर्य पंचमेश होने कारण शुभ फलदायक होगा। चंद्रदेव चतुर्थ भाव का अधिपति होने कारण शुभ फलदायक ही होंगे।


२,वृष लग्न -: 

वृष लग्न की कुंडली में वृष राशि का स्वामी शुक्र शुभ व अशुभ फलदायक होता है लग्न संबंधित क्षेत्र में शुक्र शुभ फल देगा लेकिन साथ ही शुक्र षष्टम भाव का स्वामी होने के कारण पाप फलदायक भी होगा। गुरु अष्टम, एकादश भाव का स्वामी बनने के कारण अशुभ फलदायक ही होगा। चंद्रमा तृतीय भाव का स्वामी होने के कारण शुभ नहीं कहा जाएगा। बुध दितीय व पंचम भाव का अधिपति बनता है इसलिए मिश्रित फल देने वाला होगा अर्थात द्वितीय भाव से संबंधित फलों में कमी को देगा और पंचम भाव में शुभ फल देगा। सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होने के कारण योगकारक बनेगा शुभफल देगा इसी तरह शनि भाग्य भाव का व कर्म भाव का स्वामी होने कारण शुभ फलदायक व योगकारक होगा। मंगल सात व बारहवें भाव का स्वामी होने के कारण अशुभ फलदायक होगा।

मिथुन लग्न -:

मिथुन लग्न की कुंडली में बुध लग्न व चतुर्थ भाव का स्वामी बनता है अतः मिश्रित फल देने वाला होता है। चंद्रमा द्वितीय भाव का स्वामी होने के कारण पाप फलदायक होगा, सूर्य तृत्तीयेश बनता है इसलिए अशुभ फलदायक ही सिद्ध होगा, शुक्र पंचम व एकादश भाव का स्वामी होने के कारण शुभ फल देने वाला होगा। मंगल अष्टम व द्वादश भाव का अधिपति होने कारण पाप फल देने वाला होगा,। इसी प्रकार गुरु सप्तम भाव व दशम भाव का अधिपति बनता है अतः सप्तम भाव में मारक बनेगा और दशम भाव में सहचर्य फल देगा। शनि देव अष्टमेश व नवमेश बनते हैं इस कारण नवम भाव में शुभ फलदायक व अष्टम भाव में पाप फलदायक होगे।


कर्क लग्न -:

कर्क लग्न की कुंडली में चंद्रमा लग्न का स्वामी होकर शुभ फलदायक होता है सूर्य दूसरे भाव का अधिपति होने के कारण मारकेश होगा तथा बुध तृतीय भाव व द्वादश भाव का अधिपति बनेगा इस कारण बुध भी अशुभ फलदायक होगा। शुक्र चतुर्थ भाव में शुभ फल देने वाला व एकादश भाव में अशुभ फल देने वाला होगा क्योंकि शुक्र चतुर्थ व एकादश भाव का स्वामी बनता है। मंगल पंचम भाव व दशम भाव का अधिपति होने कारण योगकारक होगा और सदैव शुभ फल दाता होगा। गुरु षष्टम भाव में अशुभ फल देने वाला व भाग्य भाव में शुभ फल देने वाला होगा या यूं कहें कि गुरु सहचर्य का फल देगा। शनि सप्तम भाव व अष्टम भाव का अधिपति होने के कारण मारकेश बनेगा।

सिंह लग्न -:

सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य शुभ ग्रह होता है तथा चंद्रमा द्वादश का भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल दाता होगा। तथा मंगल चतुर्थ भाव व भाग्य भाव का अधिपति होने के कारण योगकारक बनेगा। बुध द्वितीय भाव व एकादश भाव का अधिपति होने के कारण अशुभ फलदायक व मार्केश भी बनेगा। गुरु पंचम भाव व अष्टम भाव का स्वामी बनेगा। अतः पंचम भाव में शुभ फलदायक व अष्टम भाव में पाप फलदायक होगा। शुक्र तृतीय भाव व दशम भाव का अधिपति होगा। अतः शुक्र तृतीय भाव में अशुभ फलदायक व दशम भाव में शुभ फलदायक होगा। शनि सप्तम भाव व षष्टम भाव का अधिपति होने के कारण पाप कारक होगा व मार्केश ही होगा।

कन्या लग्न -:

कन्या लग्न की कुंडली में बुध लग्न व दशम भाव का अधिपति होने के कारण योगकारक  बनता है शुक्र द्वितीय व नवम भाव का अधिपति बनता है अतः शुक्र भी शुभ फलदायक ही होगा। मंगल तीसरे भाव व अष्टम भाव का अधिपति होने कारण पापफल प्रदाता होगा। गुरु चतुर्थ भाव व सप्तम भाव का अधिपति होने के कारण चतुर्थ भाव में शुभ फलदायक व सप्तम भाव में अशुभ फलदायक रहेगा। शनि पंचम व षष्टम भाव का अधिपति होने के कारण पंचम में शुभ फल दाता व षष्टम में पाप फल प्रदान करने वाला बनेगा।चंद्रमा एकादश भाव पति व सूर्य द्वादश भाव पति होने के कारण शुभ फल देने वाले नहीं होंगे।


तुला लग्न -:

तुला लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य एकादश भाव का अधिपति होने के कारण अशुभ फल देने वाला होता है तथा चंद्रमा दशम भाव का अधिपति होने कारण शुभ फल दाता होता है मंगल द्वितीय भाव और सप्तम भाव का अधिपति होने के कारण मार केश होगा,। बुध भाग्य भाव और द्वादश भाव का अधिपति होने के कारण शुभ फल दाता बनेगा। गुरु तृतीय भाव और सप्तम भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फलदाता होता है। शुक्र लग्नेश और अष्टम भाव का अधिपति है अतः शुक्र शुभ फल दाता होगा किंतु जीवन में अष्टम भाव से संबंधित अशुभ फल भी देता है। शनी पंचम और चतुर्थ भाव का अधिपति होने के कारण कारक ग्रह होगा।

वृश्चिक लग्न -:

वृश्चिक लग्न में सूर्य दशम भाव का अधिपति होने से योगकारक होता है। चंद्रमा नवम भाव का अधिपति होने कारण शुभ फल दाता रहता है। मंगल लग्न का अधिपति होने कारण सुखदाता किंतु अष्टम भाव का अधिपति होने के कारण अशुभ फल फल दाता भी बनता है। बुध अष्टम और एकादश भाव का अधिपति होने कारण पाप फल दाता होता है। गुरु द्वितीय भाव का अधिपति होने कारण मार्केश भी होगा तो पंचम भाव का अधिपति होने कारण विद्या प्रदाता भी होगा। शुक्र सप्तम भाव का अधिपति और द्वादश भाव का अधिपति होने के कारण अशुभ फल दाता ही कहा जाता है। शनी तृतीय भाव में अशुभ फल और चतुर्थ भाव में शुभ फल दाता सिद्ध होगा।

धनु लग्न -:

धनु लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य नवम भाव का अधिपति होने कारण योगकारक होगा,। चंद्रमा अष्टमेश बनता है इसलिए पाप फल दाता रहेगा।इसी प्रकार मंगल पंचम भाव और द्वादश भाव का अधिपति होता है जो पंचम भाव में शुभ फल दाता और द्वादश भाव में पाप फल देने वाला बनता है। बुध सप्तम भाव और दशम भाव का अधिपति होने कारण राज कारक बनेगा ।बृहस्पति लग्न और चतुर्थ भाव का अधिपति होने के कारण शुभ फल दाता होगा। शुक्र अष्टम  और एकादश भाव का अधिपति बनता है इस कारण से अशुभ फल दाता होगा। शनी मार्केश होता है क्योंकि शनि दित्तीय भाव और पराक्रम भाव तृतीय भाव का अधिपति बनता है।

मकर लग्न -:

मकर लग्न की कुंडली में सूर्य अष्टम भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल देने वाला, चंद्रमा सप्तम भाव का अधिपति होकर के मारक बनता है। मंगल चतुर्थ भाव और एकादश भाव का अधिपति बनता है चतुर्थ भाव में शुभ फल देने वाला और एकादश भाव में अशुभ फल देता है। बुध अष्टम भाव का अधिपति और भाग्य भाव का अधिपति बनता है अतः भाग्य भाव में शुभ फल देने वाला और अष्टम भाव में अशुभ फल देने वाला होगा। गुरु पराक्रम भाव और द्वादश भाव का अधिपति होने कारण पापफल देने वाला होगा। शुक्र पंचम भाव और दशम भाव का अधिपति होने कारण योगकारक और शुभफल दाता होता है। शनि लग्न भाव का अधिपति होने कारण शुभ फल दाता किंतु द्वितीय भाव का अधिपति होने कारण मार्केश भी होगा।

कुंभ लग्न -:

कुंभ लग्न की कुंडली में सूर्य सप्तम भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल देने वाला होता है। चंद्रमा सप्तम भाव का अधिपति होने कारण पाप फल देने वाला होता है। मंगल तीसरे भाव  और दशम भाव का अधिपति होने कारण तीसरे भाव में अशुभ फल देने वाला और दशम भाव में शुभ फल दाता  हैं। बुध पंचम भाव में शुभ फल देने वाला और अष्टम भाव में अशुभ फल देने वाला होता है क्योंकि बुध पंचम और अष्टम भाव का स्वामी होता है। गुरु द्वितीय भाव और एकादश भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल देने वाला होगा। शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का अधिपति होने कारण योग कारक बनता है। शनी द्वादश भाव और लग्न का अधिपति होने कारण द्वादश भाव में अशुभ फल और लग्न में सुखदाता बनता है।

मीन लग्न -:

मीन लग्न की कुंडली में सूर्य अष्टम भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल दाता होता है। चंद्रमा पंचम भाव का अधिपति होने कारण शुभ फल दाता होता है। मंगल दितीय भाव का अधिपति होने कारण मार्केश और नवम भाव का अधिपति होने के कारण भाग्येश होता है। बुध चतुर्थ भाव और सप्तम भाव का अधिपति बनता है बुध चतुर्थ भाव में शुभ फल दाता और सप्तम भाव में मार्केश होगा। गुरु लग्न भाव में शुभ फल दाता और एकादश भाव में अशुभ फल दाता रहेंगे। शुक्र तृतीय और  अष्टम भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल दाता हैं। शनी एकादश और द्वादश भाव का अधिपति होने कारण अशुभ फल देने वाला होता है।


आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

9414657245




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