भाग्यवान योग -:
१,यदि जन्म कुंडली में नवम भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में और ग्यारहवें भाव का स्वामी नवे भाव में विद्यमान हो अथवा नवे और ग्यारहवें भाव के स्वामीयो के बीच आपसी संबंध हो तो भाग्यवान योग का निर्माण होता है और ऐसा जातक जीवन में भाग्य का धनी होता है।
२, यदि जन्म कुंडली में एक एक राशि में दो-दो ग्रह विद्यमान हो और कुल मिलाकर के चार राशियों में पूरे ग्रह आ जाए तो जन्म कुंडली में भाग्यवान योग का निर्माण होता है।
३,जन्म कुंडली में चंद्रमा द्वादश भाव में विद्यमान हो तो जातक का भाग्य उदय का कारण उसकी माता होती है अर्थात माता के कारण ही जातक का भाग्य उदय होता है।
४,यदि मंगल जन्म कुंडली के द्वादश भाव में विद्यमान हो तो जातक का भाग्य उदय उसके भाई के कारण होता है।
५,नवे घर का स्वामी यदि द्वादश भाव में विद्यमान हो तो जातक का भाग्य उदय उसके पिता के निमित्त होता है अर्थात पिता के कारण जातक का भाग्य उदय होता है।
६,यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में द्वितीय भाव का स्वामी और बुध षष्टम भाव में विद्यमान हो तो ऐसे जातक को उसके परिवार या सगे संबंधियों का धन प्राप्त होता है।
७,जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी और बृहस्पति यदि उच्च राशि में हो तो ऐसे जातक के पुत्र बहुत ही भाग्यशाली होते हैं।
८,जन्म कुंडली में यदि शुक्र द्वादश भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक का भाग्य उदय उसकी पत्नी के कारण होता है।
९,यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में पांचवें और नौवें भाव में कोई ग्रह उच्च राशि का होकर विद्यमान हो तो जातक परम भाग्यशाली होता है।
१०,यदि सूर्य बुध और शुक्र पंचम भाव में विद्यमान हो और गुरु लाभ भाव अर्थात एकादश भाव विद्यमान हो तो जातक को बुध की दशा में विशेष धन की प्राप्ति होती है।
११,यदि कोई ग्रह लग्न से द्वादश भाव में विद्यमान हो तो वह ग्रह उस भाव का भाग्य उदय करवाता है जिस भाव का वह कारक होता है।
१२,जन्म कुंडली में यदि सूर्य मेष राशि में विद्यमान हो तो जातक का पिता भाग्यशाली होता है।
१३, तुला राशि में स्थित सूर्य जातक के पिता को भाग्यहीन बनाता है।
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245
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