मिथुन लग्न विचार

 मिथुन लग्न कुंडली का सामान्य फलादेश -:

१, मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में तृतीय भाव जो कि सूर्य का भाव है उसमें बुध सूर्य की युति शुभ फल देने वाली होती है क्योंकि तृतीय भाव में  लग्नेश व पराक्रमेश की युती शुभफल देती है। अतः मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में बनने वाले बुधादित्य योग तीसरे भाव में शुभ फलदायक होगा। और अपनी महादशा में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं।

२, मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में चंद्रमा द्वितीय भाव का अधिपति होने के कारण मारक होना चाहिए किंतु यहां चंद्रमा को मारक नहीं माना गया है।

३, मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में दूसरे भाव में चंद्र मंगल और शुक्र विद्यमान हो तो जातक को शुक्र की महादशा में विशेष धन की प्राप्ति होती है।

४,मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में शनि व मंगल दूसरे भाव में विद्यमान हो और चंद्रमा अष्टम भाव में स्थित हो तो उस स्थिति में जातक के जीवन में मंगल शनि की दशा अंतर्दशा में जातक का धन नष्ट होता है अर्थात विशेष रूप से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।

५, मिथुन लग्न की जन्म कुंडली में चंद्रमा जो कि धनेश है और मंगल जो कि लाभेश है दोनों युति बनाकर के लाभ भाव अर्थात एकादश भाव में विद्यमान होऔर नवम भाव का स्वामी शनि नवम भाव में विद्यमान हो तो उस स्थिति में विशेष धन आगमन का योग बनता है।

६, मेष लग्न में यदि गुरु और शनि नवम भाव में स्थित हो तो तीर्थ यात्रा का योग निर्माण करते हैं। क्योंकि गुरु स्वभाविक रूप से धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः स्वभाविक रूप से धार्मिक कार्य के प्रति प्रेरित करेंगे किंतु यहां शनी भी नवम भाव में स्थित होकर धार्मिक कार्यों के प्रति प्रेरित करते हैं क्योंकि सामान्यत ऐसा माना जाता है कि पाप ग्रह किसी भी भाव में बैठ कर  जातक को पाप कर्म में पर्वत करते हैं किंतु यदि पाप ग्रह भी स्वराशि में होकर शुभ भाव में विद्यमान हो तो शुभ फल दाता बन जाते हैं। जैसा कि यहां शनी पाप ग्रह होकर भी नवम भाव में अपनी स्वराशि कुंभ में विद्यमान है और नवम भाव धर्म का भाव है इसलिए शुभ फल प्रदान बनेंगे।

७, वृष लग्न की कुंडली में बुध ग्यारवें भाव में विद्यमान होकर जातक के बड़े भाई से विरोध करवाते हैं।


आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245



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