गुलीक स्पष्ट निर्माण विधि

 

गुलिक स्पष्ट निर्माण विधि -:

ज्योतिष शास्त्र में गुलिक व मांदी का बहुत अधिक महत्व होता है। अतः आज हम गुलिक निर्माण वह गुलिक के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। तो आइए जानते हैं गुलिक क्या है? व इसका निर्माण किस प्रकार से होता है? और फलित में इसका क्या महत्व होता है?


गुलीक एक किस स्पष्ट ग्रह नहीं होकर एक छाया ग्रह के रूप में इसकी कल्पना की गई है। गुलीक को हम इस प्रकार से जान सकते हैं की जिस दिन का गुलिक हमें जानना है उस दिन के दिनमान को आठ भागों में बांट कर प्रत्येक भाग में एक एक  अधिपति की कल्पना करते हैं। और जिस भाग में शनि की कल्पना की जाती है अर्थात शनी के खंड को गुलिक कहा जाता है। अब यहां प्रश्न उठता है कि दिनमान के आठ खंडों में प्रत्येक खंड के अधिपति की गणना किस प्रकार की जाएं।तो आईए इसे इस प्रकार समझते हैं।

हमें जिस दिन का गुलिक ज्ञात करना है। और यदि जातक का जन्म दिन का है। तो उस दिन के वार के अधिपति से गणना कि जाती है। जैसे किसी बालक का जन्म रविवार के दिन का है तो रविवार का अधिपति सूर्य है तो हम सूर्य से गणना प्रारम्भ करेंगे।
रविवार का सूर्य, सोमवार का चंद्रमा, मंगलवार का मंगल, बुधवार का बुध, गुरुवार का गुरु, शुक्रवार का शुक्र, शनिवार का शनि इस प्रकार से सात वार के अधिपति हो गए। ध्यान रहे आठवें खंड  का कोई स्वामी नहीं होता है। अतः सप्तम खंड  का स्वामी अर्थात शनी ही गुलीक  होगा। इसी प्रकार किसी बालक का जन्म बुधवार को है तो बुधवार से प्रारंभ करेंगे बुधवार का अधिपति बुध, गुरु का गुरु, शुक्र का शुक्र, शनि का शनि, रवि का सूर्य, सोम का चंद्रमा, मंगल का मंगल, इस प्रकार या सात खंडों के अधिपति हो गए किंतु आठवे खंड अधिपति होता नहीं है। अब जैसा कि पहले बता चुके हैं कि सनी जिस खंड का स्वामी होता है वह गुलीक होता है अतः यहां बुधवार के दिन से प्रारंभ होने के कारण शनी दिनमान के चतुर्थ खंड का स्वामी है। इस कारण से चतुर्थ खंड ही गुलीक कहा जायेगा। इस प्रकार सभी वारो के दिनमान का गुलिक ज्ञात किया जाता है। यदि जातक का जन्मदिन का हो।

किंतु यदि जातक का जन्म रात्रि का हो तो गुलीक जानने की विधि बदल जाती है जो इस प्रकार है। इसके लिए रात्रिमान के आठ खंड करके उस बार अधिपति से पंचम खण्ड के अधिपति को प्रथम खंड का स्वामी माना कर शेष खण्डों के अधिपति की कल्पना करते हैं। जैसे -  किसी बालक का जन्म रविवार की रात्रि को हुआ हो तो सबसे पहले रात्री को आठ भागों में बांटेंगे। और प्रत्येक खंड में एक एक अधिपति की कल्पना करते हैं। यहां  वार का अधिपति सूर्य है। किंतु रात्रि का जन्म होने से वार अधिपति से पंचम खण्ड के अधिपति को प्रथम खंड का स्वामी मानकर गणना की जाती है। अतः यहां वार अधिपति सूर्य से पंचम खण्ड का अधिपति गुरु को प्रथम खंड का स्वामी मानकर शेष खण्डों के अधिपतियो की गणना की जाती है। जैसे-:
प्रथम का गुरु, दूसरे का शुक्र, तीसरे का शनि, चौथे का सूर्य, पंचम का चन्द्र, छठे का मंगल, सातवें का बुध, आठवें खंड का स्वामी कोई होता नहीं है। और यहां पर शनी तीसरे खंड का स्वामी बना है। अतः तीसरा खंड गुलिक माना जाएगा।
इसी प्रकार अन्य बार की रात्रि का भी गुलिक जाना जाता है। किसी बालक का जन्म मंगलवार की रात्रि को हुआ है। तो यहां पर मंगलवार का अधिपति मंगल हुआ और मंगल से पंचम गणना करने पर शनि पंचम खंड का अधिपति होता है किंतु रात्रि का जन्म होने के कारण पंचम खण्ड के अधि पति को प्रथम खंड का अधिपति मानेंगे। अतः सनी यहां प्रथम खंड का अधिपति हुआ। इस कारण से मंगलवार की रात्रि का गुलिक प्रथम खंड को ही माना जाएगा क्योंकि शनि उस दिन प्रथम खंड का स्वामी बनेगा।

दिन व रात्रि मान के खंडों के स्वामी को नीम्न सारणी में समझ सकते हैं।




इस प्रकार गुलिक को स्पष्ट किया जाता है।


आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245


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