श्री यंत्र का रहस्य

 श्री यंत्र का रहस्य -:



श्री यंत्र में बिंदु भगवती दुर्गा मां का भाव है। पूरा श्रीयंत्र दसमहाविद्याऐ और जीवन की चार अवस्थाएं जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय -ये  चौदह भाव बताता है। ये चारों अवस्थाएं विश्व में दिखाई पड़ती है। जागृत में अहंकार द्वारा क्रिया होती है स्वप्न में मन की क्रिया होती है सुषुप्ति बुद्धि की क्रिया है और तुरीय अवस्था में चित की क्रिया समाई हुई है। इन सब कारणों से श्री यंत्र की महिमा सबसे अधिक है।

भगवती श्री के ध्यान में भगवती श्री को भगवान शिव के हृदय में बैठी हुई बताया है। भगवान पुरुष ने जब भगवान शिव और भगवान कृष्ण को पुरुष पद प्रदान किया, तब अपनी सभी श्री उन दोनों महापुरुषों को बांट दी क्योंकि विश्व श्री का स्वामी वही बनता है जो पुरुष पद पर आता है। दक्ष यज्ञ के समय पूज्य शिव ने अपनी श्री देवताओं को दे दी, देवताओं ने मिली हुई श्री का व्यय किया।तब वह पुनः शिवजी के हृदय में आकर ठहरी। भगवान कृष्ण ने श्री को अंतर से त्याग कर बाहर अपने पास रखा तथा भगवान शिव ने श्री को बाहर से त्याग कर अंतर में अपने पास रखा। अतैव श्री चक्र भगवान शिव का हृदय माना जाता है।

विश्व प्रवाह में दशमयी मां शक्ति के मूल अन्तर्तमाग्नि में से क्रिया भाव किस प्रकार स्पुरता है। उसका दिग्दर्शन श्री यंत्र है।

 मध्य योनि (त्रिकोण) में मूल तम का भाव है उसे इच्छाशक्ति करते हैं। मूल योनि का कृष्ण वर्ण भाव है। इस मूल तमको महाविष्णु तम कहते हैं। मध्य योनि त्रिकोण के दोनों और दो योनिज चतुष्कोण है।

तमस मूल क्रिया भाव उक्त चतुष्कोणो में आस्फुरण पाता है ।उससे में मूल रज तथा मूल सत्व की उत्पत्ति होती है। मूल सत्व की प्रशांत गति का भाव महापुरुष सिद्ध योगी  देवेश  भी नहीं जान सकते। अतः अनुभवी उसे स्थितिमय  गुण नाम से पहचानते हैं। मूल रज में स्फुरन्द का भाव स्फुरता है। विश्वास्वितत्व की ये तीन भाव शक्तियां त्रिपुटी चक्र के नाम से कही जाती है।

उक्त त्रिपुटी चक्र के मिश्रित गति संघर्षण भाव ब्रहम योनि में स्फुरित होते हैं। ज्ञान, क्रिया, कामिनी, कामदायिनी, मनोभवा, रति प्रिया, नंदा, मनोन्मणि आदि नामों वाली सफुरण शक्ति में से प्रवाह जगाने वाली महा शक्तियां उस मूल शक्ति गति गुण के सममिश्रित भाव है। उनमें से प्रत्येक में एक गुण की प्रधानता तथा अन्य गुणों का गौणत्व है।

उपर्युक्त त्रिगुणा प्रकृति गति मूल तत्वीकरण के भाव को जन्म देती है। तथा अष्ट पत्र दल रूप से भिन्न भिन्न तत्व गुणों से प्रकट होती है। उसका भाव अष्टदल रूप में बताया है।

 उक्त मूल चक्र में श्री बिंदु अर्थात मूल बीज रूप महत तत्व स्पन्द की उत्पत्ति होती है। जो श्री महामाया परा विद्या के नौ आवरणात्मक विश्व महा यंत्र जाल (श्री यंत्र) का प्रवर्तक है।


इस प्रकार श्री यंत्र साक्षात श्री लक्ष्मी देवी का स्वरूप माना जाता है। जिस घर परिवार में अथवा प्रतिष्ठान में श्री यंत्र की विधिवत स्थापना होकर नित्य पूजा की जाती है। उस घर में मां भगवती लक्ष्मी देवी साक्षात विद्यमान होती है तथा उस घर में कभी भी धनधान्य ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है। अतः यदि हमारे व्यापार में निरंतर हानि होती जा रही है घर में बरकत नहीं होती है धन नहीं रुकता है तो निश्चित रूप से मां भगवती की कृपा प्राप्त करने के लिए सिद्ध श्री यंत्र की स्थापना करना चाहिए। निश्चित रूप से मां भगवती की कृपा होगी और धन ऐश्वर्य संबंधी सकल मनोकामना सिद्ध होती है।

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Aacharya Kaushal Kumar Shastri 

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