प्रेम योग(love yog)

 

प्रेम योग -:

प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि  उसे जीवन में सच्चा प्यार मिले और किसी व्यक्ति को तो जीवन में बहुत अधिक प्यार मिलता है और किसी के नसीब में सच्चा प्यार नहीं होता है। इस प्रकार किसी के नसीब में बहुत ही शगुन का प्यार प्राप्त होता है और किसी किसी व्यक्ति को लाख कोशिश करने पर भी शगुन का प्यार प्राप्त नहीं हो पाता है। जिस कारण वह जीवन में अकेलापन उदासी तनहाई और निराशा से घिरा रहता हैं उसे लगता है कि संसार में उसका कोई नहीं है जिस कारण उसका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है।

इस प्रकार प्यार एक ऐसा कोमल एहसास होता है जिसे पाकर व्यक्ति अलौकिक आनंद की अनुभूति करने लगता है। इस प्रकार ज्योतिष की दृष्टि से जन्म कुंडली में ग्रहों का ऐसा विशेष योग बनता है जो जातक के जीवन में प्रेम को स्पष्ट करता है। अतः आज हम जातक के जीवन में प्रेम योग को समझने का प्रयास करेंगे।


जन्म कुंडली में बनने वाला प्रेम योग -:

ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से शुक्र ग्रह को जीवन में प्रेम प्यार का कारक माना गया है। अतः जिस जातक की जन्मकुंडली में शुक्र योगकारक होकर शुभ भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर विद्यमान हो तो जातक को जीवन में उतना ही अधिक मजबूत प्रेम प्राप्त होता है। साथ ही जिस जातक की जन्म कुंडली में  शुक्र मारक होकर अशुभ भाव में  विद्यमान हो तो जातक के जीवन में प्रेम के क्षेत्र में नीरसता अकेलापन तनहाई बनी रहती है। इस प्रकार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में जातक के प्रेम पक्ष को जानना हो तो उसके लिए हमें  जन्म कुंडली में शुक्र देव की स्थिति का सुक्ष्म विष्लेषण करना होता है।

इसी प्रकार जन्म कुंडली में चंद्र देव का बलवान होकर शुभ भाव में विद्यमान होने के साथ साथ शुभग्रहों से दृष्ट होना भी अति आवश्यक होता है क्योंकि चन्द्रमा मन का कारक होता है।और किसी दुसरे को समझने में स्वस्थ मन का होना अति आवश्यक है। अतः जातक के प्रेम पक्ष को जानने के लिए शुक्र के साथ साथ मन के कारक चन्द्र की स्थिति का भी सुक्ष्म विष्लेषण करना चाहिए।

इस प्रकार प्रेम पक्ष का सूक्ष्म विश्लेषण करते समय हमें मुख्य रूप से शुक्र देव, चंद्र,देव के साथ-साथ मंगल देव का भी अध्ययन करना होता है क्योंकि मंगल जन्म कुंडली में ऊर्जा के कारक होते हैं और  प्रेम को प्राप्त करने के लिए जातक में ऊर्जा का होना अति आवश्यक होता है। क्योंकि प्रेम का इजहार करने में भी जातक में ऊर्जा का होना आवश्यक है। और वह ऊर्जा जातक को मंगल से प्राप्त होती है।

इस प्रकार जन्म कुंडली में पंचम भाव से मुख्य रूप से जातक के जीवन में प्रेम पक्ष का अध्ययन किया जाता है अतः जिस जातक की जन्म कुंडली में पंचम भाव में यदि शुभ ग्रह विद्यमान हो और पंचमेश भी योगकारक होकर के किसी शुभभाव में स्थित हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक के जीवन में सच्चे प्रेम की गंगा सदा प्रभावित होती रहती है और यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव और पंचमेश मारक हो अथवा बल हीन हो या पाप ग्रहो से दृष्ट हो उस स्थिति में जातक को जीवन में प्रेम के क्षेत्र में धोखा अविश्वास तनहाई की प्राप्त होती है। 


अतः जन्म कुंडली में शुक्र देव चंद्र देव मंगल देव व पंचमेश की दशा अंतर्दशा में जातक को प्रेम से संबंधित फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि किसी भी जातक के जीवन में प्रेम प्रसंग को जानने के लिए मुख्य रूप से जातक की जन्म कुंडली में शुक्र देव चंद्र देव मंगल देव व पंचम भाव व पंचमेश की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए और उसी के अनुरूप जातक के प्रेम का शुभाशुभ फल कहना चाहिए।


आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245

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