मेष लग्न की जन्म कुंडली में बुध देव का द्वादश भावों में शुभ अशुभ फल -:
बुद्धदेव का मेष लग्न की जन्म कुंडली में अलग-अलग भावों में अलग-अलग प्रकार का फल वर्णित है तो आज हम जानेंगे कि मेष लग्न की जन्म कुंडली के अंतर्गत बुद्धदेव किस भाव में किस प्रकार का शुभ अशुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं।
मेष लग्न में बुध देव -:
मेष लग्न की जन्म कुंडली में बुध देव को तीसरा व छठे भाव का स्वामीत्व मिलता है और लग्नेश मंगल देव के शत्रु हैं। अतः मंगल देव ने इनको तीसरे व छठ भाव का स्वामित्व प्रदान किया है।
अतः ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तीसरा भाव पराक्रम मेहनत छोटे भाई बहन व अधिक मेहनत का भाव होता है। तो छठा भाव त्रिक भाव के अंतर्गत ऋण रोग शत्रु का भाव होता है। अतः दोनों ही भाव को ज्योतिषशास्त्र में अच्छा नहीं कहा गया है। अतः बुद्धदेव को मेष लग्न की जन्म कुंडली में मारक ग्रह की श्रेणी में माना जाता है। इस प्रकार मेष लग्न की जन्म कुंडली में जातक को बुध देव का अधिकतर नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। तो आइए जानते हैं क्रम से द्वादश भावों में बुध देव का किस प्रकार का फल जातक को प्राप्त होता है।
१, मेष लग्न की जन्म कुंडली के प्रथम भाव में बुध देव के स्थित होने पर जातक में बुद्धि बल की कमी होती है व निर्णय लेने की शक्ति कम होती है। जातक बिलासी प्रवृत्ति का होता है। साथ ही जातक के भाई बहन के सुख में कमी रहती है। छोटी मोटी बीमारियां बनी रहती है। जीवन में बहुत अधिक मेहनत करने पर बहुत कम सफलता प्राप्त होती है। साथ ही जीवन में ऋण रोग शत्रु की अधिकता अधिक रहती है। कंपटीशन के क्षेत्र में असफलता हाथ लगती है। लग्न से सप्तम दृष्टि लाइफ पार्टनर भाव को देखती है। अतः जातक के रोजमर्रे की आमदनी में कमी होती है। तथा दांपत्य जीवन के सुख में भी कमी होती है। पार्टनरशिप के बिजनेस में हानि उठानी पड़ती है।
२, मेष लग्न की कुंडली में बुध देव दूसरे भाव में स्थित होने पर जातक अपने जीवन में धन संग्रह नहीं कर पाता है। वाणी विकार की समस्याएं बनी रहती है। कुटुम परिवार में सामंजस्य का अभावव होता है। छोटे भाई बहनों के सुख में कमी व जीवन में बहुत अधिक मेहनत व भागदौड़ करनी पड़ती है। दूसरे भाव से बुध देव की सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है। अतः जातक को बीमारियों से ग्रस्त रहना पड़ता है। किसी विशेष प्रकार की खोज या पुरातत्व संबंधी क्षेत्र में नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।
३, इसी प्रकार मेष लग्न की जन्म कुंडली के तीसरे भाव में बुध देव अपनी स्वराशि में होते हैं। अतः जातक पराक्रमी साहसी व मेहनत करने वाला होता है। जातक के भाई बहनों के प्रेम में वृद्धि करता है। साथ ही जीवन में ऋण रोग शत्रुता में भी वृद्धि करता है। यहां से बुध की सप्तम दृष्टि नवम भाव को देखती है। जो कि गुरु की राशि पड़ती है। अतः जातक को पथभ्रष्ट व भाग्य में रुकावट उत्पन्न करता है। पिता के संबंधों में माधुरी भाव का अभाव बनाता है।
४, बुद्धदेव का चतुर्थ भाव में स्थित होने पर बुद्धदेव यहां चंद्रमा के शत्रु होते हैं। जिस कारण से माता के सुख में कमी, भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद संबंधी क्षेत्र में नुकसान पहुंचाते हैं। यहां से बुद्धदेव की सप्तम दृष्टि दशम भाव को देखने कारण पिता से संबंध खराब कराते हैं। राजकार्य में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। राज सम्मान में कमी को दर्शाते हैं।
५, मेष लग्न की पत्रिका के पंचम भाव में बुध देव के स्थित होने पर जातक को विद्या अध्ययन, प्रेम व संतान संबंधी समस्याएं बनती है। यहां से उनकी सप्तम दृष्टि एकादश भाव को देखने कारण धन प्राप्ति के स्रोतों में कठिनाइयां आती है। और जातक को बहुत अधिक मेहनत करने पर ही सफलता प्राप्त होने की संभावना बनती है।
६, मेष लग्न की कुंडली के छठे भाव में बुध देव विद्यमान होने पर जातक के शत्रु परास्त होते हैं। जातक बहुत अधिक स्ट्रगल करने के साथ ही कंपटीशन क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। साथ ही यहां से उनकी सप्तम दृष्टि बारहवें भाव को देखती है। जिस कारण जातक के जीवन में खर्च अधिक रहते हैं। व्यर्थ की कार्य मे धन का अपव्यय होता है।
Ad.
Agali post mein jaane brihaspati Dev ka mesh lagan ki janm kundli ke dwadash bhav mein shubh ashubh fal.
७, बुद्धदेव के सप्तम भाव में स्थित होने पर जातक के दांपत्य जीवन में कटुता बनी रहती है। व्यवसाय के क्षेत्र में बहुत अधिक स्ट्रगल करना पड़ता है। पार्टनरशिप के क्षेत्र में सदैव हानि उठानी पड़ती है। यहां से सप्तम दृष्टि लगून पर पड़ने के कारण जातक में विवेक व बुद्धि की कमी होती है। जातक में कॉन्फिडेंस की कमी होती है व उचित समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता कम होती है।
८, बुद्धदेव का अष्टम भाव में स्थित होने पर बुद्धदेव यहां मारक होने पर भी विपरीत राजयोग की स्थिति में आ जाते हैं।
यदि लग्नेश बलवान हो तो, परंतु लग्नेश मंगल बलवान नहीं हो तो जातक को ऋण रोग शत्रु भाई बहनों के सुख में कमी, बहुत अधिक मेहनत व रोगी शरीर तथा लंबी बीमारी से ग्रस्त रहना पड़ता है। अष्टम भाव से बुधदेव सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण वाणी विकार कुटुम परिवार में सामंजस्य की कमी व धन संग्रह में कठिनाइयां बनी रहती है। परंतु यदि लग्नेश बलवान हो तो बुद्धदेव यहां विपरीत राजयोग में आकर के इन नकारात्मक परिणामों के स्थान पर बहुत अधिक सकारात्मक परिणाम भी प्रदान करने वाले हो जाते हैं।
Ad,
jyotish paraamarsh ke liye sampark Karen. astrologer KK shastri. 9414657245
९, बुद्धदेव के नवम भाव में स्थित होने पर जातक भाग्यहीन होता है। जातक को भाग्य का सहारा बहुत कम प्राप्त होता है। साथ ही जीवन में बहुत अधिक स्ट्रगलर मेहनत करना पड़ता है। जीवन में ऋण रोग शत्रु की अधिकता रहती है। बुद्धि की कमी होती है। साथ ही सप्तम दृष्टि अपने ही भाव तीसरे भाव को देखने कारण जातक को भाइयों से सुख प्राप्त होता है किंतु बहुत अधिक मेहनत जातक करनी पड़ती है।
१०, इस प्रकार मेष लग्न की पत्रिका के दशम भाव में बुध देव स्थित होने पर जातक को राजकीय क्षेत्र में असफलता प्राप्त होती है। पिता से संबंध ठीक नहीं होते हैं। प्रोफेशनल कार्य में अस्थिरता बनाता है। जीवन में बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है। यहां से सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव को देखती है। अतः जातक के जीवन में बुधदेव भवन वाहन प्रॉपर्टी माता के सुख में कमी दर्शाते हैं।
११, ग्यारह वे भाव में स्थित बुधदेव जातक को आय प्राप्ति के स्रोतों में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। जातक के व्यवहार में कटुता लाते हैं। साथी जातक के संतान पक्ष व विद्या अध्ययन पक्ष को भी कमजोर बनाते हैं।
१२, बारहवें भाव में बुध देव के स्थित होने से जातक के खर्चे बहुत अधिक होते हैं ।जातक गलत कार्य में खर्च करता है। जातक के बाहरी संबंध किसी से अच्छे नहीं होते हैं। तथा व्यर्थ के खर्चे के कारण जातक ऋण होता है। सप्तम दृष्टि से अपने ही भाव षष्टम भाव को देखते हैं। जिस कारण से जातक के जीवन में शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त करने की क्षमता होती है।
0 Comments