Ketu grah ka mesh lagn mein fal(मेष लग्न के द्वादश भावों में केतु का फल)

 केतु देव का मेष लग्न की जन्म पत्रिका के द्वादश भावों में शुभ अशुभ फल विचार -:

जैसा कि ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है कि राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह हैं। और दोनों ही ग्रहों को पाप ग्रह की संज्ञा प्रदान की गई है। ये दोनों ग्रह शत्रु और मित्र राशि के हिसाब से जातक को शुभाशुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में केतु वृश्चिक और धनु राशि में उच्च के होते हैं तथा वृक्ष व मिथुन में नीच के होते हैं। केतु को गहरी खोज व आध्यात्मिक सोच की और अग्रसित करने वाला माना गया है। तो आइए जानते हैं मेष लग्न की जन्म कुंडली के द्वादश भावों में केतु किस प्रकार जातक को शुभ अशुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं?

१, मेष लग्न की जन्म कुंडली के लग्न भाव में केतु देव अपनी शत्रु राशि में होने के कारण जातक को मानसिक परेशानियां दुर्घटना चरित्र भ्रष्ट व शारीरिक कुरूपता प्रदान करने वाला होता है। केतुदेव को भी गुरु वत 5,7,9 दृष्टियां प्राप्त है। अतः यहां से पंचम भाव को शत्रु दृष्टि से देखने कारण जातक को विद्या संतान लॉटरी प्रेम संबंध में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से शुक्र के भाव अर्थात सप्तम भाव को देखते हैं। अतः दांपत्य जीवन में कुछ मनमुटाव के साथ-साथ दांपत्य जीवन को सुखी बनाने का कार्य व दैनिक आमदनी का स्रोत में वृद्धि करते हैं। नवम दृष्टि से नवम भाव को देखने कारण जातक को भाग्यहीन धर्म के मार्ग से पथभ्रष्ट पिता से मनमुटाव बनाते हैं।

२, मेष लग्न की कुंडली के दूसरे भाव में केतु देव नीच के होते हैं अतः जातक के कुटुंब परिवार में मनमुटाव वाणी में विकार व धन संग्रह में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। यहां से पंचम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण शत्रु रोग ऋण को बढ़ाने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखते हैं। जिससे जातक को असाध्य बीमारियां मानसिक परेशानियां नित्य विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। नवम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं तो जातक को राजकार्य के मामले में नुकसान पहुंचाने का कार्य करते हैं।

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३, तीसरे भाव में भी केतु देव नीच के होते हैं। अतः जातक के पराक्रम साहस मेहनत के साथ-साथ छोटे भाई बहनों के सुख में कमी लाते हैं। पंचम दृष्टि से  सप्तम भाव को देखते हैं जो जातक के दांपत्य जीवन में विकार उत्पन्न करती हैं। दैनिक आमदनी में भी कठिनाइयां उत्पन्न करने वाले सिद्ध होते हैं। सप्तम दृष्टि से नवम भाव को देखने कारण जातक के पिता से मनमुटाव धार्मिक कार्यों में उन्माद व भाग्यहीन बनाते हैं। नवम दृष्टि से 11वे भाव को देखते हैं जो जातक को लक्ष्मी प्राप्ति कराती हैं। किंतु बहुत अधिक मेहनत जातक को करना पड़ता है।


४, मेष लग्न पत्रिका के चतुर्थ भाव में चंद्रमा की कर्क राशि में केतु देव स्थित होने से जातक को सुख हीन माता से विमुख भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। जातक के मन को अशांत रखते हैं।जातक डिप्रेशन का शिकार रहता है। पंचम दृष्टि से अष्टम भाव को देखते हैं। जिससे जातक को नित नई नई समस्याएं आती रहती है। असाध्य बीमारियां घिरे रहती है। जातक को विरक्त भी बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं जिस कारण से जातक को राज कार्य में रुकावटें प्रोफेशनल कार्य में दिक्कतें उत्पन्न करते हैं। नवम दृष्टि से बाहरवें भाव को देखने कारण जातक के अपव्यय बढ़ा देते हैं। अस्पतालों के खर्चे रखते हैं। जातक बहुत अधिक खर्च करने वाला होता है।


५, पंचम भाव में सूर्य की सिंह राशि में केतु देव स्थित होने से जातक को संतान पक्ष विद्याधन में रुकावटें उत्पन्न करते हैं जातक की स्मरण शक्ति को कमजोर बनाने के साथ साथ प्रेम संबंध लॉटरी के क्षेत्र में जातक को बहुत अधिक समस्याएं उत्पन्न करते हैं। पंचम दृष्टि से नवम भाव को देखने के कारण जातक उच्च शिक्षा  नहीं पाता है पिता से मनमुटाव रहता है। और पथभ्रष्ट भी केतु देव जातक को यहां बनाते हैं। धार्मिक कार्य से विरत करते हैं। सप्तम दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण लक्ष्मी प्राप्ति के स्रोतों में कमी करते हैं। नवम दृष्टि से लग्न को देखने कारण जातक सुंदरता हीन मानसिक अवसाद से पीड़ित तथा झूठ बोलने वाला होता है।


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६, केतु देव छठे भाव में स्थित होने पर जातक को शत्रु पर विजय दिलाने वाले, ब्याज भट्टे के क्षेत्र में आगे बढ़ाने वाले, चतुर व गलत कार्यों से धन अर्जित करने वाला बनाते हैं। यहां से पंचम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं। अतः जातक दलाली के द्वारा राजकीय कार्य में सफलता प्राप्त करता है।  सप्तम दृष्टि से 12वे भाव को देखने कारण जातक को विदेश से धन प्राप्ति कराते हैं। विदेश यात्रा में सहयोग प्रदान करते हैं किंतु जातक को बहुत अधिक खर्चीला बनाते हैं। नवम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण जातक के घर परिवार में मनमुटाव उत्पन्न करने के साथ-साथ जातक को धन संग्रह में कठिनाई उत्पन्न करते हैं।

७, मेष लग्न पत्रिका के सप्तम भाव में केतु देव के स्थित होने से जातक के दांपत्य जीवन में सौम्यता आती है। दैनिक आमदनी भी ठीक रहती है क्योंकि यहां अपनी मित्र शुक्र की राशि में स्थित होने पर जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं। यहां से अपनी पंचम दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखते हैं। वहां पर भी शनि की राशि होने कारण लक्ष्मी प्राप्ति में अपना सहयोग प्रदान करते हैं। किंतु मानसिक अवसाद भी उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से लग्न को देखते हैं जिस कारण जातक को मानसिक चिंताएं व दुर्घटनाओं का योग बनाते हैं। नवम दृष्टि से पराक्रम भाव अर्थात तीसरे भाव को देखते हैं,  उनकी यह नीच दृष्टि होती है। जिससे जातक के छोटे भाई बहनों के सुख में कमी व मेहनत बढ़ाने वाले होते हैं।

८, मेष लग्न पत्रिका के अष्टम भाव में केतु यद्यपि उच्च होते हैं। लेकिन त्रिक भाव  होने के कारण जातक को आकस्मिक गुप्त धन की प्राप्ति कराता है परंतु अनेक बार मरण तुल्य कष्ट भी जातक को झेलने पड़ते हैं। यहां से केतु की पंचम दृष्टि 12वे भाव पर होने के कारण जातक के जीवन में खर्चों की अधिकता रहती है। बाहरी संबंध जातक के अच्छे नहीं होते हैं। सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखते हैं। जिस कारण जातक के जीवन में धन संग्रह की समस्याएं होती है तो कुटुम परिवार में कलह बना रहता है। नवम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण भवन वाहन के सुख में कमी लाता है तो माता का सुख जातक का छीन लेता है।

९, नवम भाव में केतु उच्च के होते हैं। अतः जातक को भाग्यवान राज कीय मान सम्मान पद प्रतिष्ठा व पिता से पूर्ण सपोर्ट करता है और जातक को तकनीकी शिक्षा में निपुणता प्रदान करने वाला होता है। पंचम दृष्टि से  लग्न भाव को देखने के कारण जातक को दृढ़ शक्ति वाला व बुद्धि  से अपने काम निकालने में निपुण बनाता है। सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को देखता है जिस कारण जातक को मेहनत अधिक करनी पड़ती है किंतु पूर्ण सफलता प्रदान करता है। नवम दृष्टि  पंचम भाव पर होती है। जिससे जातक को  संतान विद्या में कठिनाइयां आती है परंतु सफलता अवश्य प्राप्त हो जाती है।


१०, मेष लग्न की जन्म कुंडली के नवम दशम भाव में शनि की राशि होने से केतु जातक को राजकीय कार्य में सफलता दिलाता है। प्रोफेशनल कार्यों में उन्नति प्रदान करता है। पिता से धन प्राप्ति में सहायक होता है। यहां से पंचम दृष्टि दूसरे भाव पर पड़ती है। अतः जातक को धन संग्रह में सहायक होता है। सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण भवन वाहन सुख प्रदान करता है किंतु माता के सुख से जातक वंचित करता है। नवम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण जातक कंपटीशन में सफलता प्राप्त करता है और शत्रु को अपनी नीतियों के द्वारा परास्त करता है।

११, ग्यारहवें भाव में शनिदेव की मित्र राशि होने के कारण जातक को अच्छी धन प्राप्ति कराता है किंतु धन प्राप्ति के संसाधनों में अनेक बार परिवर्तन करना पड़ता है। पंचम दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण जातक की भागदौड़ बढ़ाता है। छोटे भाई बहनों के प्रेम में कमी लाता है। सप्तम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण जातक को संतान पक्ष प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में व्यवधान करता है। नवम दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है जिस कारण से जातक के दांपत्य जीवन में वैमनस्यता उत्पन्न रहती है।


१२, मेष लग्न पत्रिका के बारहवें भाव में केतु देव जातक के जीवन में खर्चों की अधिकता बढ़ाते हैं। जातक के बाहरी   संबंध में गिरावट लाते हैं। यहां से उनके पंचम दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती है। जिस कारण जातक को पारिवारिक सुख में कमी बनी रहती है। सप्तम दृष्टि षष्टम भाव पर होने कारण ऋण रोग शत्रु की अधिकता होती है। नवम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने का असाध्य बीमारियां व मानसिक परेशानियां जातक के जीवन में बनी रहती है।



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