Mangal ka vrishabh lagn mein fal(मंगल देव का वृषभ लग्न में फल)

 Mangal Dev ka vrishabh lagn ke dwadash bhav mein fal(वृषभ लग्न में मंगल देव का द्वादश भावों में शुभ अशुभ फल)-:

वृषभ लग्न कुंडली में मंगल देव को शुक्रदेव ने जो कि वृषभ लग्न के लग्नेश बनते हैं उन्होंने मंगल देव को सप्तम भाव व द्वादश भाव का स्वामित्व प्रदान किया है। सप्तम भाव अष्टम द्वादश  थ्योरी के अनुसार लग्नेश शुक्र के शत्रु होने कारण अति मारक होते हैं। दूसरा द्वादश भाव त्रिक होने के कारण भी मंगल देव मारक होते हैं। अतः निष्कर्ष रूप में मंगल देव ज्यादातर जातक को अशुभ फल प्रदान करते हैं। तो आज हम विस्तार से मंगल देव का वृषभ लग्न पत्रिका के अलग-अलग भावों में फल का विचार करेंगे। तो आइए जानते हैं किस भाव में मंगल देव किस प्रकार का प्रधान जातक को प्रदान करते हैं।

वृषभ लग्न में मंगल देव -:

१, वृषभ लग्न पत्रिका के प्रथम भाव में मंगल देव विद्यमान होते हैं तो जातक को रक्त विकार जैसी बीमारियां क्रोधी उग्र स्वभाव वाला व घमंडी बनाते हैं। यहां तक कि जातक को एकांकी  भी बनाते हैं। जैसा कि हम जानते हैं मंगल देव को 4,7 ,8 दृष्टियां प्राप्त है। अतः लग्न से अपनी चतुर्थ दृष्टि से  सुख भाव को देखने के कारण जातक के माता से संबंध खराब करते हैं। जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से अपने ही भाव को देखते हैं। इस कारण जातक के दांपत्य जीवन में बहुत अधिक कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। दैनिक आमदनी क्षीण करते हैं। आठवीं दृष्टि से आठवें भाव को देखने कारण असाध्य बीमारियां मानसिक परेशानियां अनेक प्रकार की चिंताएं जातक को देते हैं। साथ ही जातक के जीवन में फिजूलखर्ची बढ़ाते हैं। धन संग्रह में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। कुल मिलाकर  वृषभ लग्न के प्रथम भाव में मंगल देव जातक को नेगेटिव परिणाम प्रदान करने वाले होते हैं।

२, वृषभ लग्न पत्रिका के दूसरे भाव में मंगल देव जातक के कुटुंब परिवार में वृद्धि को रोकने वाले होते हैं। धन संग्रह में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। वाणी में क्रोध उत्पन्न करते हैं। चतुर्थ दृष्टि से पंचम भाव को देखने के कारण विद्या संतान प्रेम लॉटरी के क्षेत्र में प्रॉब्लम उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखते हैं तो असाध्य बीमारियां चिंताएं दुर्घटना प्रदान करते हैं। आठवीं दृष्टि से नवम भाव को देखने का पिता से संबंध खराब करते हैं। जातक को भाग्यहीन बनाते हैं। उच्च शिक्षा में समस्याएं उत्पन्न करते हैं। राज कार्य में व्यवधान बनाते हैं। साथ ही जातक के जीवन में बहुत अधिक खर्च बढ़ाते हैं।

Ad. Astrology darshan ki agali post mein padenge  budhdev ka vrishabh lagn mein fal.

३, मंगल देव वृषभ लग्न पत्रिका के तीसरे भाव में जो कि पराक्रम का भाव है। स्थित हो तो जातक के पराक्रम में कमी करते हैं। छोटे भाई बहनों के सुख से वंचित करते हैं। जातक के जीवन में बहुत अधिक भागदौड़ बढ़ाते हैं। किसी भी कार्य को करने के लिए जातक को जी जान मेहनत करवाते हैं। जातक के दांपत्य जीवन व दैनिक आमदनी में भी कठिनाई उत्पन्न करते हैं। जातक को बहुत अधिक खर्चीला बनाते हैं।
 चतुर्थ दृष्टि से छठे भाव को देखने के कारण रोग ऋण शत्रु ता में वृद्धि करते हैं। एक्सीडेंट की स्थितियां कैरिट करते हैं। सप्तम दृष्टि से नवे भाव को देखते हैं तो जातक को भाग्यहीन व उच्च शिक्षा में व्यवधान पिता से मनमुटाव की स्थिति बनाते हैं। अष्टम दृष्टि से दसवें भाव को देखने कारण राजकार्य में बाधा उत्पन्न  हैं।

४, चतुर्थ भाव में मंगल देव जातक की माता के संबंधों में मनमुटाव उत्पन्न करते हैं। जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद के साथ अन्य सुखों से वंचित करने वाले होते हैं। चतुर दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हैं जो कि अपना भाव है। इसलिए जातक के दांपत्य जीवन में खुशहाली व दैनिक आमदनी में वृद्धि करते हैं। परन्तु व्ययेश होने कारण बहुत अधिक खर्चीला भी बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं। अतः राज कीय क्षेत्र में व्यवधान मुकदमे जैसे कार्यों में जातक को बहुत अधिक स्टिकल करवाते हैं। अष्टम दृष्टि से 11वे भाव को देखते हैं तो जातक को आय के स्रोतों में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। जातक को क्रोधी बनाते हैं।व अपनी गलतियों के कारण क ई बार हानि भी प्रदान करते हैं।

Ad. Apni samasya ke samadhan ke liye abhi call Karen.9414657245

५, मंगल देव पंचम भाव में स्थित होने से जातक को विद्या संतान लॉटरी प्रेम के क्षेत्र में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही दांपत्य जीवन में भी समस्याएं बनी रहती है। पार्टनरशिप के व्यवसाय में असफलताएं हाथ लगती है। चतुर्थ दृष्टि से अष्टम भाव को देखने कारण असाध्य बीमारियां रोग पुरातत्व के क्षेत्र में हानी प्रदान करते हैं। सप्तम दृष्टि से 11वे भाव को देखने कारण आमदनी के क्षेत्र को कमजोर बनाते हैं। तो आठवीं दृष्टि से बाहरवें भाव को देखते हैं इसलिए जातक के जीवन में फिजूलखर्ची बढ़ाने के साथ-साथ धन कमाने के लिए बहुत अधिक स्ट्रगल करवाते हैं।

६, वृषभ लग्न पत्रिका के छठे भाव में मंगल देव जातक को शत्रु पर विजय दिलाने वाले होते हैं किंतु जातक को कर्जवान बनाते हैं। जातक को भाग्यवान बनाते हैं क्योंकि उनकी चतुर्थ दृष्टि उच्च की होने के कारण जातक को उच्च शिक्षा में अच्छी स्थिति प्रदान करते हैं। सप्तम दृष्टि से 12वे भाव को देखने कारण जातक के जीवन में बहुत अधिक खर्चे उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से लग्न को देखता है तो जातक को रक्त विकार शरीर में कमजोरी व रक्त वीर्य जैसी अनेक बीमारियां प्रदान करते हैं।

७, सप्तम भाव में मंगल देव स्वराशि गत होने के कारण जातक के दांपत्य जीवन में खुशहाली दैनिक आमदनी को बढ़ाते हैं। किंतु साथ ही मारक होने के कारण कुछ कुछ समस्याएं भी करते हैं। चतुर्थ दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं तो राज कार्य में व्यवधान पिता से मनमुटाव प्रोफेशनल जॉब में प्रॉब्लम उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से लग्न को देखने कारण रक्त विकार जैसी बीमारी स्वभाव से चिड़चिड़ापन क्रोधी बनाते हैं। अष्टम दृष्टि से कुटुंब भाव अर्थात दूसरे भाव को देखते हैं। जिस कारण जातक के कुटुम परिवार धन संग्रह में बहुत अधिक कठिनाई उत्पन्न करते हैं। द्वादश भाव का स्वामित्व प्राप्त होने के कारण ख़र्चीले स्वभाव का बनाने हैं किंतु बाहरी अर्थात विदेशी कार्य से जुड़कर जातक धन अर्जन कर लेता है।

Ad. Kundli vivran ke liye call Karen.9414657245

८, वृषभ लग्न के अष्टम भाव में स्थित मंगल देव जातक के दांपत्य जीवन में उथल-पुथल व दैनिक आमदनी में कमी बनाते हैं। जातक को मानसिक परेशानियां गुप्त रोग व टेंशन प्रदान करते हैं। चतुर्थ दृष्टि से 11वे भाव को देखने कारण आमदनी
 के मार्ग में बहुत अधिक कठिनाई उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण कुटुम परिवार में कलह परिवार वृद्धि में हानि धन संग्रह में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। अष्टम नीच दृष्टि से तीसरे भाव को देखने के कारण पराक्रम में कमी छोटे भाई बहनों के सुख से वंचित व बहुत अधिक भागदौड़ के साथ जीवन यापन करने की स्थिति उत्पन्न करते हैं।


९, नवम भाव में मंगल देव जातक को स्त्री सुख प्रदान करते हैं ।किंतु पिता के साथ मनमुटाव धार्मिक कार्यों में अनासक्ति व मान सम्मान में कमी को दर्शाते हैं। चतुर्थ दृष्टि से 12वे भाव को देखने के कारण जातक को बाहरी क्षेत्र से लाभ प्राप्त करवाते हैं साथ ही खर्चे की अधिकता बनाए रखते हैं। सातवीं नीच दृष्टि  तीसरे भाव पर डालने कारण जातक के पराक्रम
 में कमी बहुत अधिक परिश्रम कराने के बावजूद फल में कमी तथा छोटे भाई बहनों के सुख से वंचित करते हैं। अष्टम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने के कारण जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद के मामलों में बहुत अधिक स्ट्रगल करवाते हैं।

१०, वृषभ लग्न पत्रिका के दशम भाव में मंगल देव के स्थित होने से जातक के पिता के साथ मनमुटाव राजकीय क्षेत्र में कठिनाइयां मुकदमे बाजी की समस्याएं उत्पन्न करते रहते हैं। चतुर्थ दृष्टि से लग्न भाव को देखने के कारण रक्त विकार रक्त वीर्य क्रोधी व एकांकी स्वभाव का जातक को बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखते हैं जिस कारण से जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी के मामले में समस्याएं उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण संतान के साथ अनबन संतान के सुख में कमी विद्या के क्षेत्र में कठिनाई व प्रेम संबंध में अस्थिरता उत्पन्न करने वाले होते हैं। पत्नी के साथ अपना एकाधिकार रखने की चाह में जातक का दांपत्य जीवन में खींचतान बनी रहती है।

११, एकादश भाव में मंगल देव जातक के आय के स्रोतों में कमी करते हैं।
साथ ही जीवन भागदौड़ बनाए रखते हैं। छोटी मोटी बीमारियां सदैव बनी रहती है। चतुर्थ दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण कुटुम परिवार में कलह धन संग्रह में कठिनाइयां वाणी में विकार जैसी स्थितियां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण संतान सुख में विलंबता व मित्रों के साथ सदैव अनबन बनाए रखते हैं। अष्टम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण कर्ज रोग शत्रु पक्ष को प्रबल बनाते हैं।



१२, वृषभ लग्न के द्वादश भाव में मंगल देव जातक के जीवन में अनावश्यक खर्चों में वृद्धि करते हैं किंतु बाहरी क्षेत्र से अर्थात अपने घर से दूर रख कर जातक को धन अर्जुन कराते हैं। अपनी चतुर्थ दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण पराक्रम में कमी के साथ-साथ छोटे भाई बहनों के प्रेम में कमी व अनावश्यक स्ट्रगल करवाते हैं। सप्तम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण जीवन में शत्रु की अधिकता रोग दुर्घटना की स्थितियां अधिक उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हैं। जिस कारण से जातक के दांपत्य जीवन में कुछ कड़वाहट व दैनिक आमदनी में अस्थिरता उत्पन्न करते हैं।


एस्ट्रोलॉजर आचार्य कोशल कुमार शास्त्री 9414657245

Astrologer KK shastri.




Post a Comment

0 Comments