Nakshatra vichar नक्षत्र संपूर्ण अध्ययन

 नक्षत्र संपूर्ण अध्ययन -:

नक्षत्र विचार -:

ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र पंचांग का प्रमुख अंग होता है जैसा कि हम जानते हैं कि तिथि वार नक्षत्र योग करण के संयुक्त रूप को पंचांग कहते हैं और आज हम नक्षत्र विषयक संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों की संख्या होती है और 28 वां नक्षत्र अभिजीत के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारी पौराणिक कथा के अनुसार इन 27 नक्षत्रों को चंद्र देव की स्त्रियां माना गया है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। और 9 चरणों की एक राशि अर्थात सवा दो नक्षत्रों की एक राशि बनती है। इस प्रकार 12 राशियां27 नक्षत्रों के कुल 108 चरणों से बनती है। अर्थात 27×4=108 चरण तथा एक राशि में 9 चरण 12×9=108 

नक्षत्रों के नाम -:

अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवन ,घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्र और रेवती।

इस प्रकार ये 27 नक्षत्रों के नाम बताए गए हैं।

विशेष -:
अभिजीत नक्षत्र ::  उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का चतुर्थ चरण और अगला श्रवण नक्षत्र के चार घटी के काल को अभिजित नक्षत्र का नाम दिया गया है। तथा इसे 28 वा नक्षत्र भी माना गया है।

नक्षत्रों का शुभ अशुभ विचार -:


उपरोक्त नक्षत्रों में से भरणी, कृतिका,मघा, अश्लेषा ये 4 नक्षत्र उग्र या दुष्ट कार्य में ग्राही होते हैं।


पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आद्रा, मूल, शतभिषा ये साधारण शुभ होते हैं।


शेष सभी नक्षत्र शुभ कार्य में सिद्धि प्रदान करने वाले होते हैं।



नक्षत्रों का गुण के आधार पर वर्गीकरण -:

इन 27 नक्षत्रों को गुणों के आधार पर 7 भागों में विभक्त किया गया है। १, ध्रुव २, चर ३,उग्र ४,मिश्र ५,लघु ६, मृदु ७, तीक्ष्ण

१, ध्रुव संज्ञक नक्षत्र -:

उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद और वारो में रविवार ध्रुव संज्ञक व स्थर संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें मुख्य रूप से दीर्घ  स्थायित्व वाले कार्य जैसे गृहारंभ  भवन निर्माण शांति कर्म विवाह उपनयन आदि चिर स्थायित्व वाले कार्य किए जाते हैं।


२,चर संज्ञक नक्षत्र -:

स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा और वारो में सोमवार चर संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें अल्पकालीन सुख से संबंधित कार्य किए जाते हैं जैसे  उद्यान लगाना, सवारी करना, यात्रा करना, वाहन आदि क्रय करना आदि अल्पकाल में संपन्न होने वाले कार्य किए जाते हैं।

३,उग्र संज्ञक नक्षत्र -:

पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी मघा, और वारो में मंगलवार उग्र व क्रुर संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें घात, शठता, अग्नि,विष,शस्त्र,मारण आदि कार्य किए जाते हैं।

४,मिश्र संज्ञक नक्षत्र -:

विशाखा, कृतिका और वारो में बुधवार मिश्र व साधारण संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें  सभी साधारण शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

५,लघु संज्ञक नक्षत्र -:

हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत और गुरुवार लघु और क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें बाजार से वस्त्र आभूषण आदि खरीदना, शिक्षा प्रारंभ करना व अन्य सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

६, मृदु संज्ञक नक्षत्र -:
मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा और शुक्रवार ये मृदु व मैत्री संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें सभी प्रकार के भौतिकवाद संबंधी  शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

७, तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र -:


मूल, ज्येष्ठा,आद्रा, अश्लेषा और शनिवार ये तीक्ष्ण और दारुण संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें वेरी नाश, मारण, छल कपट ध्युत सभी प्रकार के क्रूर कर्म किए जाते हैं।


नक्षत्रों की अन्य संज्ञाएं -:

इस प्रकार इन 27 नक्षत्रों को अन्य संज्ञाएं भी दी गई है जो प्रकार है।

अन्धाक्ष नक्षत्र,मध्याक्ष नक्षत्र,मन्दाक्ष नक्षत्र,सुलोचना नक्षत्र, और पंचक नक्षत्र

१,अन्धाक्ष नक्षत्र -:

रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़, घनिष्ठा रेवती ये नक्षत्र अंध संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें खोई  वस्तु पूर्व दिशा की ओर जाती है तथा शीघ्र मिल जाती है।,

२,मध्याक्ष नक्षत्र -:

भरणी, आद्रा,मघा,चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत और पुर्वाभादपद ये नक्षत्र मध्याक्ष संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इनमें हरण हुई वस्तु पश्चिम दिशा की और बहुत दूर चली जाती है पता भी लग जाता है किंतु वापस नहीं मिलती है।

३,मन्दाक्ष नक्षत्र -:

अश्विनी, मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ और शतभिषा ये नक्षत्र मन्दाक्ष संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में खोई हुई वस्तु दक्षिण दिशा की ओर जाती है तथा बहुत अधिक मेहनत व परिश्रम करने पर प्राप्त होती है।

४,सुलोचन नक्षत्र -:


कृतिका, पुनर्वसु,पुर्वाफाल्गुनी, स्वाति,मूल, श्रवण और उत्तराभाद्र पद ये नक्षत्र सुलोचना संज्ञक नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में खोई हुई वस्तु उत्तर दिशा की ओर जाती है किंतु खोज करने पर भी पुनः प्राप्त नहीं होती है।

५,पंचक नक्षत्र -:

धनिष्ठा नक्षत्र का तीसरा व चतुर्थ चरण, श्रवण, पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र को पंचक नक्षत्र भी कहा जाता है। जब चंद्रदव कुंभ व मीन राशि में भ्रमण करते हैं उस समय पंचक नक्षत्र आते हैं क्योंकि इन्हीं नक्षत्रों से कुंभ और मीन राशि का निर्माण होता है। और कई शुभ कार्यों में इन नक्षत्रों को त्याज्य माना गया है क्योंकि माना जाता है कि इन नक्षत्रों में किया गया कार्य की पुनः पांच बार आवृत्ति होती है जैसे किसी के घर में पुत्र हुआ तो 5 पुत्र की प्राप्ति होगी।
नक्षत्रों में मुख्य रूप से अंत्येष्टि कर्म, दक्षिण दिशा की यात्रा, काषटछेदन, काष्ठ संग्रह, दिन व भवन की छत का निर्माण, स्तंभ रोपण आदि प्रमुख होते हैं। जिन का त्याग किया जाता है अति आवश्यक होने पर में इनके कुछ उपाय करके इन कार्य को भी किया जा सकता है।

६, गंड मूल नक्षत्र -:

अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, रेवती  ये  नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र होते हैं क्योंकि ये नक्षत्र राशि व नक्षत्र का संधि काल में आते हैं। जिनमें अश्विनी मघा मूल नक्षत्र के स्वामी केतु देव व अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती के स्वामी बुद्धदेव होते हैं। इन नक्षत्र में जन्मे बालक का 27 दिन बाद उक्त नक्षत्र की पुनरावृत्ति होने पर मूल शांति कराई जाती है।


निष्कर्ष -: इस प्रकार आज के लेख में हमने संक्षेप रूप से नक्षत्र संबंधी मुख्य मुख्य विशेष के बारे में जानने का प्रयास किया है।


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 वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान

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