क्या होते हैं उत्पात मृत्यु आदि योग ?
योग विचार -:
जैसा कि हम जानते हैं कि तिथि वार नक्षत्र योग और करण के संयोग से पंचांग बनता है। अर्थात तिथि वार नक्षत्र योग करण पंचांग के पांच तत्व होते हैं इनका संयुक्तरूप ही पंचांग कहलाता है। तथा किसी भी शुभ अशुभ समय या मुहूर्त का विचार करते समय मुख्य रूप से इन्हीं पांच तत्वों का विचार किया जाता है। आज हम विशेषकर पंचांग के चतुर्थ प्रमुख अंग योग के विषय में विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। सूर्य चंद्र राश्यादि के जोड़ को ही योग कहते है। इनकी संख्या 27 होती है-:
विष्कुंभ ,प्रीति, आयुष्मान , सौभाग्य,शौभन,अतिगंड,सुकर्मा,धृति,शूल,गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात,हर्षण, व्रज, सिद्धि, व्यतिपात, वरियान,परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य,शुभ,शुक्ल,ब्रहम,ऐन्द्र, वैधृति ये 27 योग होते हैं।
उपरोक्त योग अपने नाम के अनुसार शुभ अशुभ फल देते हैं। इनमें मुख्य रूप से विष्कुंभ, वज्र ,गंड, अतिगंड, व्याघात, शूल, वैधृति, व्यतिपात, परीघ, ये नौ योग अशुभ होते हैं। और शेष योग शुभ होते हैं।
योग के भेद -;
मुहूर्त के दृष्टिकोण से योगों को दो भागों में विभक्त किया गया है।
१, नैसर्गिक योग
नैसर्गिक योग सदैव एक ही क्रम में आते हैं। अर्थात एक के बाद एक आता है। विष्कुम्भ, आदि उपर लिखित योग नैसर्गिक योग की श्रेणी में आते हैं।
२, तात्कालिक योग -:
तात्कालिक योग तिथि वार नक्षत्र के योग से बनते हैं। निम्नलिखित आनंद आदि योग तत्कालिक योग की श्रेणी में आते हैं।
(वार नक्षत्र के सहयोग से निर्मित तात्कालिक योग)
आनंद, कालदण्ड, धूम्र ,धाता,सौम्य,ध्वांश ,केतु, श्रीवत्स, व्रज,मुद्गर, छत्र,मित्र, मानस,पद्म,लुम्ब, उत्पात, मृत्यु,काण, सिद्ध,शुभ, अमृत,मुसल,गद,मातंग,राक्षस, चर,सुस्थिर, और प्रब्धर्मान ये 28 योग होते हैं।
ऊपर लिखित इन 28 योगों का निर्माण मात्र वार,व नक्षत्र के सहयोग से होता है। इन योगो के निर्माण में तिथि को नहीं गिना जाता है। और ये तात्कालिक योग की श्रेणी में आते हैं।
इन योगों में से सभी योग शुभ फलदायक हो जाते हैं किंतु मुख्य रूप से ये चार योग -: कालदण्ड,, उत्पात, मृत्यु और राक्षस, किसी भी शुभ कार्य में पूर्ण रुप से त्याज्य होते हैं।
१,(कालदण्ड योग का निर्माण )
रविवार = भरणि
, सोमवार = आद्रा,
मंगलवार = मघा
बुधवार = चित्रा
गरुवार = ज्येष्ठा
शुक्रवार = अभिजीत
शनिवार को = पूर्वाभाद्रपद
नक्षत्र हो उस दिन काल दंड नामक योग होता है। इस योग में मृत्यु का भय होता है। अतः शुभ कार्यों में यह पूर्ण रूप से निषेध होता है।
२(उत्पात योग का निर्माण)
रविवार = विशाखा
सोमवार = पूर्वाषाढ़ा
मंगलवार = घनिष्ठा
बुधवार = रेवती
गुरुवार = रोहिणी
शुक्रवार = पुष्य
शनिवार को= उत्तराफाल्गुनी
नक्षत्र पड़ता हो उस दिन उत्पात नाम का योग बनता है। इस योग में प्राणों का भय बना रहता है। इसलिए इस योग को भी शुभ कार्य में सर्वथा वर्जित माना गया है।
३,(मृत्यु योग का निर्माण)
रविवार = अनुराधा
सोमवार = उत्तराषाढ़ा
मंगलवार = शतभिषा
बुधवार = अश्विनी
गुरुवार = मृगशिरा
शुक्रवार = अश्लेषा
शनिवार को= हस्त
नक्षत्र पड़ता है तो उस दिन मृत्यु नामक कु योग का निर्माण होता है। इस योग में मरण भय बना रहता है। अतः सभी शुभ कार्य इस योग में त्याज्य होते हैं।
४,(राक्षस योग का निर्माण)
रविवार = सतभिषा
सोमवार = अश्विनी
मंगलवार= अश्लेषा
बुधवार = मृगशिरा
गुरुवार = हस्त
शुक्रवार = अनुराधा
शनिवार को= उत्तराषाढ़ा
नक्षत्र हो तो राक्षस नामक कु योग का निर्माण होता है और इस योग के निर्माण में बहुत अधिक पीड़ा का भय बना होता है। इस कारण इस को भी सभी शुभ कार्य में निषेध माना गया है।
विशेष -: इस प्रकार यदि इन कु योगों के साथ कोई विशेष स्वार्थ सिद्धि, रवियोग, अमृत सिद्धि, इत्यादि योग का निर्माण भी हो रहा हो तो सुयोग इन कु योगों के प्रभाव को समाप्त कर देते हैं।
(वार तिथि के योग से निर्मित कुछ विशिष्ट तात्कालिक योग)-:
मुहूर्त प्रकरण में कुछ ऐसे विशिष्ट लोग भी होते हैं जिनका शुभ मुहूर्त में आवश्यक रूप से किया जाता है और जिनका निर्माण तिथि वार के सहयोग से होता है। जिनको हम यहां निम्न तालिका के माध्यम से समझ सकते हैं।
तिथि वार जनित विशिष्ट योग |
आचार्य कौशल कुमार शास्त्री
वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान
चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
राजस्थान 9414 6572 45
एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री |
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