मिथुन लग्न जन्म पत्रिका के द्वादश भावों में मंगल देव का शुभाशुभ फल विचार -:
मिथुन लग्न पत्रिका में मंगल देव को छठा व एकादश भाव का आधिपत्य प्राप्त होता हैं। एक भाव त्रिक व दूसरा भाव लक्ष्मी भाव प्राप्त हुआ है। अतः त्रिक भाव प्राप्त होने के कारण मंगल देव मारक बनते हैं। अतः उनका मिथुन लग्न पत्रिका में अच्छा फल प्राप्त नहीं होता है। तो आइए जानते हैं क्रम से मिथुन लग्न पत्रिका के अलग-अलग भावों में मंगल देव का फल?
१, मिथुन लग्न पत्रिका के लग्न भाव में मंगल देव के स्थित होने से जातक बहुत अधिक क्रोधी तथा अति शीघ्रता से काम करने वाला होता है। मंगल देव जातक के व्यक्तित्व को बिगाड़ने वाले साथ ही ऋण रोग शत्रुता को बढ़ाने वाले होते हैं। यहां से उनकी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ने कारण जातक के दांपत्य जीवन में कठिनाइयां व वैमनस्यता आती है। उनकी चतुर्थ दृष्टि चतुर्थ भाव पर होने के कारण जातक के घर परिवार में अशांति का वातावरण होता है। साथ ही अष्टम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने कारण जातक के जीवन असाध्य बीमारियां व मानसिक टेंशन बनी रहती है।
२, मिथुन लग्न पत्रिका के दूसरे भाव में मंगल देव स्थित होने पर जातक को धन संग्रह में कठिनाइयां कुटुंब परिवार में कलह व वाणी विकार जैसी स्थितियां उत्पन्न करते हैं। यहां से उनकी चतुर्थ दृष्टि पंचम भाव पर पढ़ने का जातक को विद्या संतान शेयर मार्केटिंग के क्षेत्र में असफलताएं प्राप्त होती है। सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने के कारण जातक को अष्टम भाव संबंधी समस्या उत्पन्न करते हैं। राजकार्यों में व्यवधान व जातक को पथभ्रष्ट करते हैं। अष्टम दृष्टि से नवम भाव को देखने कारण जातक के राज कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने वाले होते हैं।
३, मंगल देव षष्टमेशव एकादशेश होकर मिथुन लग्न पत्रिका के तीसरे भाव में विद्यमान होते हैं तो यद्यपि इनका कारक भाव होता है। फिर भी मारक होने कारण जातक के छोटे भाई बहनों में वैमनस्यता उत्पन्न करते हैं। जातक की मेहनत बढ़ाते हैं ।जातक को छोटी मोटी बीमारी और रक्त संबंधी विकार उत्पन्न करते हैं। यहां से इनकी चतुर्थ दृष्टि अपने ही छठे भाव पर होने कारण जातक के शत्रुओं पर विजय प्राप्त कराते है। किंतु ऋण रोग बढ़ाने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टी नवम भाव पर पड़ती हैं तो जातक को भाग्य संबंधी समस्या उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से दशम भाव को देखने के कारण दशम भाव संबंधी सभी समस्याएं उत्पन्न करने वाले होते हैं।
४, मंगल देव मिथुन लग्न पत्रिका के चतुर्थ भाव में विद्यमान होने कारण जातक को चतुर्थ भाव संबंधी सभी नकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले होते हैं। यहां से उनकी चतुर्थी दृष्टि सप्तम भाव पर होती है। अतः जातक को दांपत्य संबंधी व सप्तम भाव संबंधी सारी कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखने के कारण दशम भाव संबंधित समस्याएं व अष्टम दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण अष्टम भाव संबंधी सभी नकारात्मक परिणाम प्राय जातक को प्रदान करते हैं।
५, मंगल देव के पंचम भाव में स्थित होने से जातक को संतान संबंधी विद्या संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां से उनकी चतुर्थ दृष्टि अष्टम भाव पर होने कारण जातक को बीमारियां व अष्टम भाव संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। सप्तम दृष्टि से एकादश भाव को देखते हैं तो जातक की आमदनी के स्रोतों में कमी लाते हैं। अष्टम दृष्टि से द्वादश भाव को देखने कारण व्यर्थ का धन खर्च कराने वाले होते हैं।
६, मंगल देव छठे भाव में अपने ही राशि में होने कारण जातक को छठे भाव संबंधी प्रभाव को बढ़ाने वाले होते हैं। चतुर्थ दृष्टि नवम भाव पर पड़ने के कारण जातक को नवम भाव संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। सप्तम दृष्टि से बाहरवें को देखने का बाहरवें भाव संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। तथा अष्टम दृष्टि से लग्न भाव को देखकर ने कारण जातक को लग्न भाव संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।
७, मिथुन लग्न पत्रिका के सप्तम भाव में मंगल देव जातक के दांपत्य जीवन को खराब करने वाले होते हैं यहां से उनकी चतुर्थ दृष्टि दशम भाव पर होती है तो जातक को राजकार्य में व्यवधान तथा पिता से संबंध खराब करते हैं। सप्तम दृष्टि लग्न पर होने कारण जातक के व्यक्तित्व में उग्रता व लग्न संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। अष्टम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण घर परिवार में कलह की स्थिति व धन संग्रह में कठिनाई उत्पन्न करते हैं।
८, अष्टम भाव में मंगल देव अति मारक हो जाते हैं तो यहां अष्टम भाव संबंधी सारे बुरे प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं। चतुर्थ दृष्टि से एकादश भाव को देखने कारण जातक की आमदनी के स्रोतों में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखते हैं तो जातक के घर परिवार में कलह धन संग्रह में समस्याएं उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण जातक के छोटे भाई बहनों में कलह व पराक्रम में कमी लाते हैं।
९, नवम भाव में मंगल देव वृषभ लग्न पत्रिका में जातक को भाग्यहीन व धर्म कर्म से पथभ्रष्ट करने वाले तथा राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले होते हैं। चतुर्थ दृष्टि से द्वादश भाव को देखने के कारण जातक के जीवन व्यर्थ के खर्चे बढ़ाते हैं। सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण जातक को तीसरे भाव संबंधित सभी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। अष्टम दृष्टि चतुर्थ भाव पर होने कारण जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।
१०, दशम भाव में मंगल देव जातक को पिता से वैर राजकार्य प्रोफेशनल जॉब संबंधी सभी नकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं। चतुर्थ दृष्टि लग्न पर होने के कारण जातक के लग्न संबंधी बुरे प्रभाव प्राप्त होते हैं। सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने का जातक धनवान प्रॉपर्टी जायदाद संबंधी सभी प्रकार से नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। अष्टम दृष्टि पंचम भाव पर होने कारण संतान विद्या संबंधी नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।
११, ग्यारहवें भाव में मंगल देव स्वग्रही होने के कारण जातक को आमदनी के स्रोतों में वृद्धि करने वाले होते हैं किंतु जातक की भागदौड़ को भी बढ़ाते हैं। चतुर्थ दृष्टि से दूसरे भाव को देखने के कारण धन संग्रह में सफलता दिलाते हैं। सप्तम दृष्टि पंचम भाव पर होने कारण जातक को संतान सुख में विलंब उत्पन्न करते हैं। अष्टम दृष्टि से छठे भाव को देखते हैं तो जातक को शत्रु पर विजय दिलाते हैं।
१२, मिथुन लग्न पत्रिका के बारहवें भाव में मंगल देव अति मारक होते हैं तो यहां जातक को अधिक खर्चा करने वाले व अपव्यय बढ़ाने वाले होते हैं। चतुर्थ दृष्टि से तीसरे भाव को देखते हैं तो जातक को बहुत अधिक मेहनत करवाने वाले व छोटे भाइयों के प्रेम में कमी लाने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि छठे भाव पर होने कारण जातक को रोग शत्रुता में वृद्धि करने वाले होते हैं। अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हैं तो जातक के दांपत्य जीवन को खराब करते हैं।
आचार्य कौशल कुमार शास्त्री
वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान
चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
राजस्थान 9414 65 72 45
एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री |
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