विदेश सेटेलमेंट योग

 विदेश सेटेलमेंट योग -:

आज के समय में विदेश गमन विदेश में काम करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाने लगी। विदेश में जाकर काम करना विदेश में घूमने जाना यह आज एक बहुत बड़ी वीआईपी कल्चर बनता जा रहा है। आज प्रत्येक व्यक्ति विदेश जाना विदेश में काम करना अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति विदेश जाना चाहता है। किंतु व्यक्ति का जबतक विदेश जाना पॉसिबल नहीं होता तब तक उसके कुंडली में विदेश यात्रा योग नहीं बन रहा हो। इससे पहले के समय में विदेश का गमन को अच्छा नहीं माना जाता था। घर से दूर रहकर कमाना भी एक प्रकार का दुख ही माना जाता था। किंतु आज का समय बदल गया है विदेशी गमन  सामान्य लगने लगा है। आज हम इसी को लेकर चर्चा करने जा रहे हैं कि विदेश  गमन योग पत्रिका में कैसे बनता है।


१, जन्मपत्रिका में द्वादश भाव से विदेश गमन का विचार किया जाता है। यद्यपि द्वादश भाव अच्छा नहीं माना जाता था आज विदेश गमन के दृष्टिकोण से द्वादश भाव का भी महत्व बढ़ता जा रहा है। द्वादश भाव व्यक्ति का विदेश सेटलमेंट योग बनाता है। इसलिए द्वादश भाव इंपोटेंसी आज अधिक होती जा रही है।

२, इस प्रकार जब भी हम पत्रिका में विदेश गमन विदेश सेटलमेंट का विचार करते हैं उस में मुख्य रूप से तीन बातों को देखते हैं। प्रथम चंद्रमा को देखते हैं क्योंकि चंद्रमा विदेश गमन का नैसर्गिक कारक ग्रह माना जाता है दूसरा शनी जो कि हमारे कर्म को रिप्रेजेंट करता है और तीसरा टेंन हाउस जो कि हमारे कार्य को दर्शाता है।

३, इस प्रकार विदेश गमन विदेश सेटेलमेंट योग के लिए मुख्य रूप से हम द्वादश भाव. चंद्रमा. शनी और दशम भाव की स्टैडी करते हैं।

४, इस प्रकार यदि चंद्रमा द्वादश भाव में विद्यमान हो अथवा छठे भाव में विद्यमान हो क्योंकि छठे भाव से सप्तम दृष्टि द्वादश भाव पर होगी तो जातक विदेश गमन करता है।


५, चंद्रमा दशम भाव में हो और उस पर शनि की दृष्टि हो विदेश गमन योग  बनता है।

६, चंद्रमा यदि लग्न में अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तब भी जातक विदेश में व्यापार योग बनाता है।

७, शनि देव आजीविका का कारक माना जाता है अतः चंद्रमा और शनि की युति होती है तो विदेश योग का निर्माण करते हैं।


८, यदि दशम भाव का स्वामी द्वादश भाव में और द्वादश भाव का स्वामी दशम भाव में हो तो ऐसा जातक विदेश में रहकर अपनी आजीविका चलाता है।

९, इसी प्रकार यदि नवम भाव का स्वामी द्वादश भाव में और द्वादश भाव का स्वामी नवम भाव में हो तब भी विदेश गमन योग का निर्माण होता है।

१०, सप्तम भाव का स्वामी द्वादश भाव में द्वादश भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो तो जातक विदेश में रहकर  रहकर व्यापार करता है।


११, इसी प्रकार यदि लग्न भाव का स्वामी सप्तम भाव का स्वामी द्वादश भाव में स्थित हो तो ऐसी पत्नी या पति अपने पार्टनर के साथ विदेश में निवास करते हैं।

१२, यदि लग्नेश का संबंध नवम भाव और द्वादश भाव से बनता है तो जातक परमानेंट विदेश में निवास करने लगता है।


१३, यदि जन्म कुंडली में पंचम और द्वादश भाव का स्वामी बनता है तो जातक एजुकेशन के लिए विदेश में जाता है वहां उसका प्रेम संबंध भी बनता है।

१४, यदि नवम भाव का संबंध द्वादश भाव से बनता है तो जातक  विदेश गमनमन करता है किंतु अपने धर्म प्रसार के लिए जाता है।
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