वक्री ग्रहों का प्रभाव ,-:
नमस्कार मित्रों
आज की चर्चामें हम वक्री ग्रहों के प्रभाव को समझने का प्रयास करेंगे।ग्रहों के वक्री होने का अर्थ है कि वे पृथ्वी से देखने पर उल्टी दिशा में गति करते हुए प्रतीत होते हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, वक्री ग्रहों का प्रभाव विभिन्न प्रकार का हो सकता है और यह कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे ग्रह की स्थिति, राशि, भाव, और उस ग्रह के साथ अन्य ग्रहों के योग।
सामान्यतः वक्री ग्रह निम्नलिखित प्रकार के फल देते हैं :
1. वक्री ग्रह अधिक बलशाली होते हैं: -
वक्री ग्रह अपनी शक्ति को अधिक मात्रा में प्रदर्शित करते हैं और उनके प्रभाव भी सामान्य से अधिक होते हैं।
2. पूर्ववत कर्म: -
वक्री ग्रह पूर्व जीवन के कर्मों को दर्शाते हैं और वे व्यक्ति को उस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।
3. प्रभाव में विलम्ब: -
वक्री ग्रह फल देने में विलम्ब कर सकते हैं, लेकिन जब फल देते हैं तो वह अधिक प्रभावशाली होता है।
4. विश्लेषण और पुनर्विचार:-
वक्री ग्रह व्यक्ति को अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर पुनर्विचार और विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करते हैं।
5. कठिनाइयाँ और संघर्ष: -
वक्री ग्रह कभी-कभी कठिनाइयाँ और संघर्ष लाते हैं, लेकिन ये व्यक्ति के आत्म-विकास के लिए होते हैं।
विशेषकर, किस ग्रह का वक्री होना कौन से फल देगा, यह उस ग्रह की प्राकृतिक और सापेक्षिक स्थिति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए:
शनि वक्री:-
शनि का वक्री होना कठिनाइयाँ और बाधाएँ ला सकता है, लेकिन साथ ही धैर्य और अनुशासन की आवश्यकता को भी बल देता है।
मंगल वक्री: -
मंगल का वक्री होना आक्रामकता, साहस, और ऊर्जा में बदलाव ला सकता है। यह व्यक्ति को अपनी रणनीतियों को पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
बृहस्पति वक्री -:
बृहस्पति का वक्री होना व्यक्ति के ज्ञान, शिक्षा और धार्मिक विश्वासों पर प्रभाव डाल सकता है, और यह व्यक्ति को अपने जीवन के आदर्शों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
कुल मिलाकर, ग्रहों के वक्री होने का फल व्यक्ति की जन्मपत्रिका के अन्य कारकों और ग्रहों की स्थिति के आधार पर निर्धारित होता है।
आचार्य के केशास्त्री
9414657245
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