Karva chauth vrat 2024

 करवाचौथ व्रत 2024 -:

करवा चौथ 2024:

करवा चौथ  व्रत 20अक्टूबर 2024, रविवार को मनाया जाएगा। यह दिन विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, और मध्य प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर सरगी ग्रहण करती हैं। सरगी एक विशेष आहार होता है जिसे सास अपनी बहू को व्रत शुरू होने से पहले देती है। इसके बाद पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है, यानी बिना भोजन और पानी के व्रत किया जाता है। महिलाएं शाम को चंद्रमा को देखकर और अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं। पूजा के समय करवा (मिट्टी का बर्तन) और दीया का विशेष महत्व होता है।

करवा चौथ की कथा:

करवा चौथ की कई प्रमुख कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा इस प्रकार है:

प्राचीन समय में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी, जिसका नाम वीरावती था। वीरावती बहुत ही सुंदर और प्यारी थी। विवाह के बाद जब वह अपने मायके आई, तो उसने करवा चौथ का व्रत रखा। पूरे दिन उसने बिना अन्न और जल के व्रत किया, लेकिन शाम होते-होते वह अत्यधिक कमजोर और भूखी-प्यासी हो गई। वीरावती के भाइयों से अपनी बहन की यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने मिलकर चाँद निकलने से पहले ही छल से एक पेड़ पर दीप जलाकर, छल से चंद्रमा का आभास कराया और अपनी बहन से कहा कि चाँद निकल आया है। भाइयों की बात पर विश्वास करके वीरावती ने अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ लिया।

जैसे ही उसने अन्न-जल ग्रहण किया, कुछ ही समय में उसे अपने पति के मृत्यु की सूचना मिली। यह सुनकर वह बहुत दुखी हो गई और उसने अपने पति के मृत शरीर के पास जाकर तपस्या की। उसकी भक्ति और व्रत की शक्ति से यमराज प्रसन्न हुए और उसके पति को पुनः जीवनदान दिया। तब से इस दिन को करवा चौथ के रूप में मनाया जाने लगा।

एक अन्य कथा में, करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करते समय एक मगरमच्छ की पकड़ में आ गया। करवा ने अपनी तपस्या और सच्ची श्रद्धा से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांधकर यमराज के पास गई और उससे अपने पति की रक्षा करने की प्रार्थना की। यमराज ने करवा की तपस्या और भक्ति से प्रभावित होकर मगरमच्छ को मृत्यु का दंड दिया और उसके पति को लंबी आयु का आशीर्वाद दिया। तब से करवा चौथ का पर्व स्त्रियों के लिए अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखने का प्रतीक बन गया।

इस प्रकार, करवा चौथ का व्रत एक अद्वितीय परंपरा है, जिसमें पतिव्रता स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, सुख, और समृद्धि की कामना करती हैं।


चौथ माता मंदिर -:

चौथ माता का मंदिर, जो सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है, राजस्थान के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर हिंदू धर्म के चौथ माता को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का एक रूप मानी जाती हैं। इस मंदिर की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. इतिहास: माना जाता है कि चौथ माता का मंदिर लगभग 1451 ईस्वी में चौहान वंश के राजा भीम सिंह ने बनवाया था। राजा ने चौथ माता की मूर्ति को चौथ का बरवाड़ा में स्थापित किया, जिसे लोग अब धार्मिक आस्था के केंद्र के रूप में मानते हैं।


2. भव्य वास्तुकला: यह मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ से पूरे क्षेत्र का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर की स्थापत्य कला राजपूत शैली में बनी हुई है, जो राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर का उदाहरण है।


3. धार्मिक महत्व: चौथ माता को समर्पित इस मंदिर में भक्तों की मान्यता है कि माता उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। विशेष रूप से चौथ के चौथ (मासिक चौथ) के दिन यहाँ बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं। चौथ माता का आशीर्वाद पाने के लिए महिलाएँ उपवास भी रखती हैं।


4. मेले और उत्सव: चौथ का बरवाड़ा में हर साल चौथ माता के मंदिर में बड़े मेलों का आयोजन होता है। खासकर माघ महीने की चौथ (तिलक चौथ) को यहाँ विशेष पूजा और आयोजन होते हैं, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं।


5. सांस्कृतिक धरोहर: इस मंदिर का धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक महत्व भी है। मंदिर और उसके आसपास की गतिविधियों में राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का दर्शन होता है, जहाँ स्थानीय रीति-रिवाज, लोक संगीत और नृत्य का आयोजन होता है।



यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।




आचार्य केके शास्त्री 
,9414657245

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