भवन निर्माण में वास्तु का महत्व एवं सामान्य नियमों के अनुसार महत्वपूर्ण जानकारी:
वास्तु का महत्व -:
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है, जो भवन निर्माण, भूखण्ड चयन, दिशा ज्ञान, ऊर्जा संतुलन और सुख-समृद्धि हेतु स्थान नियोजन पर आधारित है। भवन निर्माण में वास्तु के सिद्धांतों को अपनाने से व्यक्ति के जीवन में मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संतुलन बना रहता है। यह पंचमहाभूतों (भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और दिशाओं के संतुलन पर आधारित होता है।
वास्तु के सामान्य नियम:
भूमि चयन -:भूखंड वर्गाकार या आयताकार होना उत्तम होता है।भूमि समतल और पूर्व/उत्तर की ओर ढलान वाली होनी चाहिए।दक्षिण-पश्चिम ऊँचा होना शुभ माना जाता है।
-
मुख्य द्वार -:घर का मुख्य द्वार शुभ दिशा में हो, जैसे – उत्तर-पूर्व (ईशान), पूर्व या उत्तर दिशा श्रेष्ठ मानी जाती है।मुख्य द्वार के सामने कोई बाधा (जैसे पेड़, खंभा) नहीं होनी चाहिए।
-
कक्षों की स्थिति -: रसोईघर अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) में होना चाहिए।शयनकक्ष (Bedroom): दक्षिण-पश्चिम दिशा सर्वोत्तम होती है।पूजा घर (Pooja Room): ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होना चाहिए।बाथरूम/शौचालय: उत्तर-पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए।दफ्तर/पढ़ाई का कमरा: उत्तर या पूर्व दिशा में हो, जिससे पढ़ते समय मुंह पूर्व की ओर रहे।
-
सीढ़ियाँ -: दक्षिण-पश्चिम में घड़ी की सुई की दिशा में चढ़ने वाली सीढ़ियाँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं।
-
जल स्त्रोत -:कुआँ, बोरिंग, टंकी आदि उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए।
-
खिड़कियाँ और वेंटिलेशन-:उत्तर और पूर्व दिशा में अधिक खिड़कियाँ हों, ताकि सूर्य का प्रकाश भरपूर मिल सके।
-
भंडारण -:दक्षिण या पश्चिम दिशा में हो।
-
ऊर्जा संतुलन:घर में ब्रह्मस्थान (केंद्र भाग) को खुला और हल्का रखना चाहिए। यह स्थान ऊर्जा का केंद्र होता है।
निष्कर्ष:
वास्तु शास्त्र न केवल भवन की स्थूल रचना को दिशा देता है, बल्कि उसमें निवास करने वालों के जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। यदि भवन निर्माण के समय वास्तु नियमों का पालन किया जाए तो उसमें रहने वाले लोगों को मानसिक शांति, आर्थिक समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
अगर आप चाहें तो मैं एक भवन योजना भी वास्तु के अनुसार तैयार कर सकता हूँ।
Aacharya k k Shastri
,9414657245
0 Comments