वास्तु शास्त्र में दिशा का महत्व


वास्तु शास्त्र में दिशाऔ का महत्व -:

वास्तु शास्त्र में दिशाओं का सर्वाधिक महत्व होता है अत: हम कह सकते हैं कि दिशाओं का विवेचन ही वास्तु शास्त्र है क्योंकि वास्तु शास्त्र में दिशाओं का सही-सही विवेचन करके दिशाओं के महत्व के अनुरूप भवन निर्माण कार्य का विवेचन किया जाता है अत: भवन निर्माण में दिशाओं का सर्वाधिक महत्व होता है प्रत्येक दिशा का अपना एक अलग महत्व है इस प्रकार   प्रत्येक दिशा के महत्व के अनुसार भवन निर्माण कार्य का वर्णन वास्तु शास्त्र में हमें मुख्य रूप से मिलता है यदि दिशा के अनुरूप हम भवन निर्माण कार्य करते हैं तो वह भवन गृह स्वामी के लिए श्रेष्ठ फल प्रदान करने वाला होता है और यदि  भवन निर्माण कार्य दिशा के अनुरूप नहीं होता है तो ऐसा भवन ग्रह स्वामी के लिए अनिष्ट फल प्रदान करने वाला सिद्ध होता है इस प्रकार वास्तु शास्त्र में मुख्य रूप से 8 दिशाओं को महत्व दिया गया है जिसमें चार दिशाएं व चार कौण होते हैं और प्रत्येक का अपना एक अलग महत्व है जिसके अनुरूप ही हमें हमारे भवन का निर्माण कार्य करना चाहिए ऐसा वास्तुशास्त्र हमें निर्देशित करता है तो आइए हम ज्ञात करते हैं कि किस दिशा में किस प्रकार का भवन निर्माण कार्य किया जाता है!


उत्तर -पूर्व दिशा मध्य (ईशान कोण) --:

 वास्तु शास्त्र में ईशान कोण को सर्वाधिक महत्व दिया गया है क्योंकि भवन का ईशान कोण सबसे अधिक महत्त्व रखता है क्योंकि इस केस मे  देवी शक्तियों का निवास होता है भगवान वास्तु और हमारी इष्ट शक्तियों का वास हमारे भवन के अंदर ईशान कोण में ही होता है  अतः भवन निर्माण में ईशान कोण को विशेष ध्यान में रखकर के निर्माण कार्य करना चाहिए हमारे भवन के ईशान कोण में  टॉयलेट व बाथरूम नहीं होना चाहिए अगर हम ऐसा करते हैं तो हमारे भवन में अनिष्टता के सिवाय हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है  यथासंभव भवन के ईशान कोण को हमारा पूजा कक्ष या अतिथि कक्ष बनाना चाहिए और भूलकर भी  कुंवारी कन्या को ईशान कोण में निर्मित कक्ष में शयन नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा करते हैं तो उस कन्या का विवाह में विलंबता होती है  इस प्रकार भवन निर्माण में ईशान कोण को सुंदर साफ व स्वच्छ रखें  जिससे हमारे भवन में सुख समृद्धि व धन धान्य यश की प्राप्ति हमें होती है

पूर्व -दक्षिण मध्य (अग्नि कोण) -:


 भवन में ईशान कोण के बाद अग्नि कोण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है और यह कौन पूर्व दक्षिण दिशा के मध्य का कौण होता है इस दिशा का स्वामी दैत्य गुरु शुक्राचार्य हैं परंतु अग्नि तत्व की प्रधानता होने के कारण मंगल भी इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं इस दिशा में मुख्य रूप से रसोई घर का निर्माण करना चाहिए खाना बनाते वक्त खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए इस दिशा में हम रसोईघर के साथ-साथ विद्युत के उपकरण भी रख सकते हैं तथा रसोई घर ईशान व वायव्य कौण से हैं थोड़ा ऊंचा होना चाहिए और  नैतृय कौण से नीचा होना चाहिए ! अग्नि कोण में निर्मित रसोईघर वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए जो कि हमें सुख समृद्धि व शांति की अनुभूति कराने वाली होती है भूल कर भी अग्नि कोण में कभी भी जल का टैंक नहीं बनवाना चाहिए अगर हम ऐसा करते हैं तो वह ग्रह स्वामी के लिए अनिष्ट फल प्रदान करने वाला सिद्ध होता है


पश्चिम -उत्तर मध्य (वायव्य कोण) -:


पश्चिम उत्तर मध्य की जो जगह होती है उसे वायव्य कोण नाम दिया जाता है और वायव्य कोण का प्रतिनिधित्व भगवान वायु देव करते हैं भवन निर्माण में वायव्य कोण का भी बहुत अधिक महत्व होता है यह स्थान मुख्य रूप से हैं वायु के प्रवेश का स्थान होता है इस स्थान को यथासंभव खुला रखे या खिड़कियां जालिया रोशनदान अवश्य रूप से लगाने चाहिए जिससे हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है हम चाहे तो इस कोने में सीढ़ियां जीना का निर्माण भी कर सकते हैं और इसी से थोड़ा अटैच में हम टॉयलेट का निर्माण भी कर सकते हैं



दक्षिण- पश्चिम मध्य( नैतृयकोण) -:



दक्षिण पश्चिम के बीच का जो कौन होता है उससे नैतृयकोण की संज्ञा दी जाती है और इस कोण  का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है नैतृय कोण  का स्वामी भूदेवीहै इस स्थान पर मुख्य रूप से हम बैडरूम स्टोर रूम व पौधों का प्लांट का विशेष करके निर्माण कर सकते क्योंकि यह कौन पृथ्वी देवी का प्रतिनिधित्व करता हैअगर हम इस कोण में बेडरूम स्टोर रूम का निर्माण करते हैं तो हमारे घर में सुख समृद्धि बरकत बनी रहती है और ग्रह स्वामी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है




 पूर्व दिशा -

भवन निर्माण में पूर्व दिशा सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है क्योंकि पूर्व दिशा से हमें सकारात्मक उर्जा सकारात्मक दृष्टिकोण आरोग्यता व सकारात्मक विचारों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है  पूर्व दिशा में हमे मुख्य रूप से मुख्य दरवाजा बालकोनी  व  बच्चों के लिए स्टैडी रूम बना सकते हैं अगर पूर्व दिशा में अग्नि कोण में हमारी रसोई है तो खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए भूल कर भी खाना बनाने वाले का मुंह दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए तथा  बालक अध्ययन करते समय उनका मुंह पूर्व दिशा की और रखे
इस प्रकार पूर्व दिशा में हमें अधिक से अधिक रोशनदान खिड़कियां और दरवाजे रखना चाहिए जिससे हमारे घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो सके और हमारा जीवन सुखमय आनंदमय बन सके

 पश्चिम दिशा -- 

 पूर्व दिशा की विपरीत दिशा पश्चिम दिशा होती है जहां पूर्व दिशा से सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता है वही प्रकाश पश्चिम दिशा में अंधकार के रूप में परिवर्तित हो जाता है इस प्रकार पश्चिम दिशा का स्वामी वरुण देव है जो नदी तालाब व अंधकार का प्रतिनिधित्व करते हैं पश्चिम दिशा में मुख्य रूप से हैं हम बेसमेंट  ड्राइंग रूम   सिढीया  बना सकते हैं और साथ ही बच्चों के लिए स्टडी रूम भी बना सकते हैं तथा हमारे घर में फ्रीज व पानी का आरो पश्चिम दिशा मे ही रखें इसके विपरीत अगर हम कोई दूसरा निर्माण कार्य करवाते हैं तो हमारे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है जो गृह स्वामी को अनेक प्रकार की चिंता है वअनिष्ट फल प्रदान करती है चाहे तो हम पश्चिम दिशा में बाथरूम व पानी का टैंक भी बनवा सकते हैं



 उत्तर दिशा -:

 वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा का महत्व बहुत अधिक होता है अत:भवन निर्माण में उत्तर दिशा को विशेष विचार करके अपना भवन निर्माण करना चाहिए उत्तर दिशा का स्वामी भगवान कुबेर है अतः उत्तर दिशा में हम मुख्य रूप से  घर का स्टोर रूम पूजा स्थल व अतिथि कक्ष का निर्माण कर सकते हैं इसके अलावा उत्तर दिशा में हम हमारा मुख्य दरवाजा भी बना सकते हैं लेकिन भूल कर भी उत्तर दिशा में रसोई व बेडरूम नहीं बनाना चाहिए जिससे हमारे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है और गृह स्वामी को अनेकों अनेक प्रकार की चिंताएं व रोग व्याधि की संभावनाएं अधिक बनती है  उत्तर दिशा में हम हमारी तिजोरी या घर के महत्वपूर्ण कागजात रखने का कक्ष बनाते हैं तो सबसे उपयुक्त होता है

 दक्षिण दिशा-:

वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा माना गया है अत:वास्तु शास्त्र में दक्षिण मुखी भवन को अधिक महत्व नहीं दिया गया है क्योंकि वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा से हैं नेगेटिव ऊर्जा का संचय होता है जो कि गृहस्वामी के लिए अनिष्ट फल प्रदान करने वाली होती है अतः हमें दक्षिण दिशा में कभी भी पैर करके नही सोना चाहिए और यथासंभव दक्षिण दिशा की ओर हमें कोई खिड़की या दरवाजा नहीं रखना चाहिए अगर दक्षिण दिशा में हम दरवाजा रखते हैं तो दरवाजे के ऊपर  ध्यान मुद्रा में बैठे हुए हनुमान जी का चित्र लगाना चाहिए जिससे दक्षिण दिशा का जो वास्तु दोष है वह दूर होता है

 चौक -

भवन निर्माण में चौक का भी बहुत अधिक महत्व होता है अतः चौक में हम भारी सामान रख सकते हैं स्टोर रूम का निर्माण कर सकते हैं चौक से सीढ़ियां जीना चढ़ा सकते हैं लेकिन चौक में कभी भी भूल कर भी बच्चों के लिए स्टडी रूम नहीं बनवाना चाहिए तथा चौक में प्रकाश की किरणें आने के लिए पर्याप्त मात्रा में रोशनदान की व्यवस्था होनी चाहिए और हमारे चौक में एक तुलसी का पौधा अवश्य रुप में होना चाहिए जिससे हमारे घर की जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा है वह दूर चली जाती है और सकारात्मक उर्जा हमारे घर के अंदर प्रवेश करती है!






वास्तु संबंधी किसी भी प्रकार की जानकारी व वास्तु दोष निवारण के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं



आचार्य श्री कौशल कुमार जी शास्त्री 

              (भागवत कथा प्रवक्ता व ज्योतिषी)

वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान 

चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर 


राजस्थान 9414 6572 45

























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