Rahu Dev ka mesh lagn me fal(राहु देव का मेष लग्न कुंडली में शुभ अशुभ फल)

 राहु का मेष लग्न में शुभाशुभ फल -:

राहु को एक छाया ग्रह माना गया है क्योंकि राहु और केतु के पिंड नहीं होता है। इसलिए इनको छाया ग्रह की श्रेणी प्रदान की गई है। सूर्य सभी ग्रहों को अस्त करने की क्षमता रखता है। परंतु राहु और केतु सूर्य से अस्त नहीं होते हैं अपितु दोनों ही ग्रह सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगा देते हैं। इस प्रकार राहु और केतु दोनों ही ग्रह अपने मित्र राशियों में शुभ और शत्रु राशियों में अशुभ फलदायक होते हैं। तो  आज की पोस्ट में हम मेष लग्न कुंडली की श्रंखला में राहु देव के अलग-अलग भावों में शुभ अशभ फल के बारे में जानेंगे।

मेष लग्न में राहु -:

१,मेष लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में राहु अपने शत्रु राशि में होते हैं क्योंकि मंगल और राहु दोनों ही आपस में शत्रुता की विचारधारा रखते हैं। अतः मेष लग्न में राहु स्थित होने पर जातक सौंदर्य हीन, मानसिक चिंताओं से घिरे रहने वाला, अलसी तथा संकालु प्रकृति का होता है। राहुल को गुरुवत 5,7,9 दृष्टियां प्राप्त है। अतः अपनी पंचम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण विद्या संतान प्रेम लॉटरी के क्षेत्र में व्यवधान उत्पन्न करता है। सप्तम दृष्टि से भार्या भाव को देखता है जो दांपत्य जीवन में कुछ समस्या उत्पन्न करता है किंतु यहां अपनी मत्र राशि के कारण स्थिति में ज्यादा विकटता नहीं आती है। नवम दृष्टि नवम भाव को देखता है जिससे जातक को भाग्यहीन पिता से मनमुटाव व उच्च शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करता है।

२, मेष लग्न की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में राहु अपने मित्र शुक्र देव की राशि में स्थित होते हैं तो जातक के कुटुंब परिवार में सौम्यता व  आकस्मिक धन संग्रह में सहायक होता है। यहां से उनकी पंचम दृष्टि षष्टम भाव पर पड़ती है। अतः कंपटीशन ऋण रोग से जातक को छुटकारा दिलाता है। सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ने के कारण जातक को गुप्त विधाओं में पारंगत, विशेष प्रकार की खोज में सहायक होता है। नवम दृष्टि से मित्र शनी के घर को देखने कारण राजकार्य में मान सम्मान व जातक को राजकीय सम्मान दिलाता है।

३, मेष लग्न की पत्रिका के तीसरे भाव में राहु विशेष बली हो जाते हैं क्योंकि मिथुन लग्न में राहु उच्च के होते हैं तथा वैसे भी तीसरा भाव राहु का कारक भाव होता है। अतः तीसरे भाव में राहु देव जातक को विशेष पराक्रमी साहसी निडर सभी प्रकार की जटिल समस्याओं को उत्तरण होने की क्षमता प्रदान करते हैं छोटे भाई बहनों के प्रेम में वृद्धि करते हैं। यहां से उनकी पंचम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जो कि शुक्र का घर होता है। अतः दांपत्य जीवन में सौम्यता व दैनिक आमदनी वृद्धि करते हैं। सप्तम दृष्टि से नवम भाव को देखते हैं तो जातक को भाग्यवान बनाते हैं। नवम दृष्टि से एकादश भाव लक्ष्मी के भाव को देखता है। जिस कारण से जातक को आकस्मिक धन प्राप्ति का योग बनाते हैं।

४, मेष लग्न के चतुर्थ भाव में राहु देव अपने शत्रु राशि कर्क में होते हैं। जिस कारण जातक को भवन भूमि वाहन प्रॉपर्टी जायदाद के क्षेत्र में बहुत अधिक कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। साथ ही सुख के संसाधनों में भी कमी लाते हैं तो माता के सुख में न्यूनता लाते हैं। यहां से उनकी पंचम दृष्टि अष्टम भाव पर पडने कारण जातक को असाध्य रोग व मानसिक अवसाद उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं जिससे जातक को राज कार्यों में रुकावटें प्रोफेशनल कार्यों में कठिनाइया उत्पन्न करते हैं। नवम दृष्टि से 12वे भाव को देखने कारण जातक को अस्पताल के खर्चों में वृद्धि करते हैं तो जातक का अपव्यय बहुत अधिक बढ़ा देते हैं।


५, पंचम भाव में अपने शत्रु सूर्य की राशि में राहु देव विद्यमान होने पर जातक को विद्याधययन संतान पक्ष लॉटरी प्रेम संबंध में बहुत अधिक रुकावटें उत्पन्न करते हैं। यहां से उनकी पंचम दृष्टि नवम भाव को देखने कारण जातक को उच्च शिक्षा में व्यवधान पिता से मनमुटाव धर्म-कर्म में विरक्ति व भाग्य हिन बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से 11वे भाव को देखने कारण जातक को आकस्मिक धन प्राप्ति कराते हैं क्योंकि वहां उनकी मित्र राशि होती है। नवम दृष्टि से लग्न को देखने कारण जातक को मानसिक अवसाद धैर्य में कमी आलसी प्रकृति का बनाते हैं।

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६, मेष लग्न की कुंडली के छठे भाव में राहु देव अपने मित्र बुध की राशि में होने कारण जातक को शत्रु पर विजय दिलाने वाले ब्याज बट्टा दलाली के क्षेत्र में सफलता प्रदान करने वाले कंपटीशन के क्षेत्र में जुझारू प्रकृति के बनाते हैं। यहां से पंचम दृष्टि से शनी के दशम भाव को देखते हैं। अतः राजकार्य में आकस्मिक लाभ प्रदान करते हैं। सप्तम दृष्टि से 12वे भाव को देखते हैं। जिस कारण जातक को खर्चीला बनाते हैं। नवम दृष्टि से दूसरे भाव को देखते हैं। जिस कारण से जातक को धन संग्रह में कठिनाइयों के साथ धन संग्रह करना पड़ता है।

७, सप्तम भाव में अपने मित्र शुक्र की राशि में राहु के स्थित होने से जातक की दैनिक आमदनी में वृद्धि होती है तो दांपत्य जीवन में सौम्यता दिलाने वाले होते हैं। पंचम दृष्टि से 11वे भाव को देखते हैं। जिससे आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनाते हैं। गुप्त धन की प्राप्ति में सहायक होते हैं। सप्तम दृष्टि से लग्न को देखते हैं तो जातक को आलसी व सौंदर्य हीन बनाने के साथ-साथ मानसिक अवसाद व चरित्र भ्रष्ट करते हैं। नवम दृष्टि से अपने कारक भाव  को देखने के कारण जातक को मेहनती पराक्रमी व साहसी बनाते हैं।

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८, मेष लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में मंगल देव की वृश्चिक राशि आती है। और वृश्चिक राशि में स्वाभाविक रूप से  राहु देव नीच के हो जाते हैं। अतः जातक को असाध्य बीमारियां मानसिक अवसाद आगे से आगे चिंताऐ, परेशानियां प्रदान करते हैं। गुप्त विद्या व पुरातत्व के क्षेत्र में भी कठिनाइयां प्रदान करते हैं। यहां से पंचम दृष्टि 12वे भाव पर होती है। अतः जातक के जीवन में अनावश्यक फिजूलखर्ची बढती है। अस्पताल के खर्चे बने रहते हैं। जातक धन संग्रह नहीं कर पाता है। सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण धन संग्रह में कठिनाइयां कुटुम परिवार में कलह बने करते है नवम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण जातक को भवन वाहन सुख में कमी के साथ-साथ माता से मनमुटाव बनाते हैं।


९, नवम भाव में राहु देव धनु राशि होने के कारण नीच के होते हैं अतः जातक को भाग्यहीन बनाते हैं। उच्च शिक्षा पूर्ण कराने में समस्याएं उत्पन्न करते हैं। पिता से संबंध ठीक नहीं रखते हैं। जातक को पथभ्रष्ट, धर्म हीन व पतन के मार्ग पर बढ़ाने वाले होते हैं। यहां से उनकी पंचम दृष्टि लग्न पर होने कारण जातक को आलसी कुरूप व धोखेबाज बनाते हैं। किंतु सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को देखते हैं। जिससे जातक साहसी निडर व मेहनत करने वाला होता है। नवम दृष्टि से पंचम भाव को देखने का विद्या अध्ययन प्रेम संबंध लॉटरी संतान पक्ष में समस्याएं उत्पन्न करते हैं।

१०, मेष लग्न की पत्रिका के दशम भाव में राहु देव अपने मित्र शनि की राशि में होते हैं। अतः जातक को राजकीय सम्मान राजकीय उन्नति व प्रोफेशनल कार्य में मान सम्मान दिलाने वाले होते हैं। पंचम दृष्टि से दूसरे भाव को देखते हैं जो जातक के लिए धन संग्रह में  में सहायक होते हैं तो कुटुंब परिवार में सुख शांति प्रदान करते हैं। सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखते हैं जो कि जातक को भवन वाहन की प्राप्ति कराने वाले सिद्ध होते हैं। नवम दृष्टि से छठे भाव को देखते हैं जिससे जातक कंपटीशन में उत्तीर्ण होता है तो शत्रु पर विजय दिलाने वाले होते हैं।


११, मेष लग्न के एकादश भाव में राहु देव स्थित होने से जातक को धन प्राप्ति के योग प्रदान करते हैं। राजकीय मान सम्मान में वृद्धि करते हैं। पंचम दृष्टि से तीसरे भाव को देखने कारण जातक को पराक्रमी मेहनती साहसी बनाने के साथ-साथ छोटे भाई बहनों का सुख प्रदान करते हैं। सप्तम दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं। जिस कारण से जातक को संतान पक्ष में कुछ कठिनाई उत्पन्न करते हैं तो विद्याधन में भी समस्याएं आती है। नवम दृष्टि से सप्तम भाव को देखने कारण जातक के दांपत्य जीवन सौम्यता व दैनिक आमदनी बढ़ती रहती है।


१२, बारहवे भाव में राहु देव विद्यमान होने से जातक के जीवन में धन संग्रह में कठिनाइयां फिजूल के खर्चों में वृद्धि व बाहरी संबंधों में गिरावट लाते हैं। पंचम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण माता के सुख में कमी भवन वाहन प्रॉपर्टी में हनी दिलाते हैं। नवम दृष्टि से षष्टम भाव को देखने कारण रोग ऋण दुर्घटना का योग बनाते हैं।



एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री 

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