लंका विजय में हनुमान जी का योगदान


                                                                        जय जय बजरंगबली

पवन तनय बल पवन समाना ,बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना!

 कवन सो काज कठिन जग माही ,जो नहीं होय तात तुम पाई !!

           

सेतु निर्माण-:


लंका पर आक्रमण करने के लिए भगवान श्रीराम ने सागर से मार्ग मांगा पर उसने मार्ग नहीं दिया तब उन्होंने समुद्र को सु खाने के लिए अग्निबाण धनुष पर चढ़ा दिया भयभीत होकर समुद्र ब्राह्मण का वेश धारण करके उनकी शरण में आया और उन से निवेदन करने लगा कि प्रभु नल और नील को वरदान प्राप्त है कि जिस पत्थर को अपने हाथ से समुद्र में उतारेंगे वह तैरता रहेगासमुद्र का सेतु अर्थात पुल बांधने का कार्य प्रारंभ हुआ चारों ओर से वानरों ने पत्थर ढूंढना शुरू कर दिया हनुमान जी का सेना भाव तथा कार्य कुशलता देखने योग्य थी वह पर्वतों के पर्वत उठाकर लाते फिर चल देते इस तरह समुद्र पाट दिया गया और सारी सेना खेल खेल में दूसरे तट पर जा पहुंची

लक्ष्मण जी की मूर्छित होना -:

राम रावण का युद्ध शुरू हुआ एक दिन युद्ध में मेघनाद ने लक्ष्मण पर शक्ति छोडी उस से आहत होकर लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये सारी सेना में त्राहि-त्राहि मच गई अनेक उपाय किए गए पर उनकी मूर्छा भंग ना हुई भगवान राम अत्यंत व्याकुल हो उठे  विभीषण  ने उन्हें बताया कि लंका में सुषेण नाम का एक वैद्य है जो निश्चित ही लक्ष्मण जी का उपचार कर सकेगा वैद्य का शत्रु पक्ष में उपचार को आना अत्यंत कठिन था पर हनुमान जी ने रात में लंका जाकर उसके ठिकाने का पता लगाया और सोए हुए वैद्य को उसके शयन कक्ष से उठा लाए वैद्य ने आकर लक्ष्मण की परीक्षा की और कहा कि यदि प्रातः काल से पहले संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्ष्मण जीवित हो सकते हैं सबका ध्यान हनुमान जी की ओर गया उन्होंने सुसैन से बूटी का पता ठिकाना ज्ञात किया और द्रोणाचल की ओर चल पड़ी द्रोणाचल पर हनुमान जी बूटी की पहचान ना कर पाए अब क्या करें वे सोचने लगे कि अंत में उन्होंने सारे का सारा पर्वत थी पृथ्वी से उखाड़ लिया और लंका की ओर चल दिए रास्ते में अयोध्या नगरी थी भरत जी ने जब देखा कि कोई विशालकाय प्राणी पर्वत को लिए बड़ा आ रहा है तो उन्होंने उसे राक्षस समझ कर एक भयानक  बात चला दिया उसके  लगते ही हनुमान जी राम हे राम कहते हुए मूर्छित होकर गिर पड़ेउनके मुंह से राम नाम का उच्चारण सुन  भरत जी  को बड़ी पीड़ा हुई तथा क्षण ही उन्होंने कहा यदि मैंने सच्चे हृदय से भगवान राम की भक्ति की है तो यह बांदर स्वस्थ हो जाए इस पर राम नाम का उच्चारण करते हैं हनुमानमान जी उठ बैठे उन्होंने भरत जी का परिचय प्राप्त किया और सारी घटना सुनाई तत्पश्चात उनसे अनुमति तथा आशीर्वाद लेकर लंका पहुंच गई सुसैन ने पर्वत से  भूटिया छाठी और लक्ष्मण का यथोचित उपचार किया लक्ष्मण जी स्वस्थ होर उठ बैठे चारों और हनुमान जी की महिमा का गान होने लगा भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने हृदय से लगाया और फिर अपनी कृतज्ञता प्रकट की श्री राम और रावण की सेना के मध्य घमासान युद्ध चलता रहा

हनुमान जी द्वारा अहिरावण का उद्धार -:


युद्ध के एक दूसरे दिन की बात है सारे दिन राम लक्ष्मण के हाथों रावण की सेना का  सहार हाता रहा क,ई योद्धा मारे गए राक्षसों के शिविर में किसी तरह इन भाइयों का हरण किया जाए ऐसी गुप्त मंत्रणा हो रही थी अहिरावण ने राम लक्ष्मण के हरण का बीड़ा उठाया और विभीषण का भेष धारण कर व राम और लक्ष्मण के समीप आया हनुमान जी का यह नियम था कि वह अपनी   पूंछको हजारों गुना बढ़ाकर उससे राम लक्ष्मण के चारों और गहरेबाजी का एक ग्रुप बनाकर स्वयं उसके ऊपर बैठकर पहरा दिया करते थे यह देखकर अहिरावण ने पाताल मार्ग से सोए हुई दोनों भाइयों का हरण कर लिया प्रातः राम लक्ष्मण को न पाकर सारी सेना में कोलाहल मच गया हनुमान जी ने बताया कि उन्होंने गत रात्रि विभीषण को वहां देखा था इस विभीषण बताया कि यह अहिरावण का छल सदम है क्योंकि वही उनका रूप धारण कर सकता है इस पर हनुमान जी ने सभी को विश्वास दिलाया कि वह पापी चाहे जहां कहीं भी उनको ले गया वह शीघ्र ही उन्हें ढूंढ निकालेंगे तथा राक्षसों को उचित दंड देकर उन्हें ले आएंगे  हनुमान जी कोअंतः प्रेरणा से इस बात का बोध हो गया कि अहिरावण दोनों भाइयों को नाग लोक में ले गया शीघ्री हनुमान जी वाह पहुंचे महलों के द्वार पर मकरध्वज पहरा दे रहा था हनुमानजी अंदर जाने लगे तो उसने रास्ता रोक दिया पूछा तुम किस उद्देश्य से अंदर जाना चाहते हो हनुमान जी ने उसकी अवहेलना करते हुए फिर अंदर घुसने की चेष्टा की इस पर मकरध्वज फिर बोला बड़े ढीठ जान पड़ते हो सोच लो तुम्हारा पाला महावीर हनुमान जी के पुत्र से पड़ा है यदि तुम्हें जीना है तो जैसे आए हो वैसे लौट जाओ महावीर हनुमान का पुत्र इस संबोधन को सुनकर हनुमानजी बड़ी चकित हुऐ बोले अरे तो क्या तुम मेरे ही पुत्र हो पुत्र ने पिता को नमस्कार किया हनुमान जी ने मकरध्वज से श्री राम लक्ष्मण का पता पूछा उसने उत्तर दिया राम लक्ष्मण को मैं नहीं जानता पर मेरे स्वामी आज दो पुरुषों को बलि दे रहे हैं वहां जाने की आज्ञा मै आपको भी नहीं दे सकता तब हनुमानजी ने युद्ध किया और फिर उसकी पूछ से उसको बांधकर महल के अंदर आ गये वहां एक मंदिर में राक्षस आनंद उत्सव मना रहे थे तथा देवी की पूजा कर रहे थे हनुमान जी ने देवी की मूर्ति को एक और सरका दिया और स्वयं उसी रूप में मुंह खोलकर बड़े खड़े हो गए राक्षसों ने समझा कि देवी साक्षात प्रकट हो गई वह उसकी पूजा-अर्चना करने लगे इसके पश्चात राम और लक्ष्मण को बांधकर  लाया गया उनकी पूजा देखकर अहिरावण खड़क से उनकी बलि देने को प्रस्तुत हो गया उनको छोड़ते हुए उसने कहा तुम दोनों भाई बड़े शूरवीर और पराक्रमी बने फिरते थे आज तुम्हारी यह व्यथा देखकर मुझे बड़ी हंसी आ रही है अपना अंत समय निकट जानो और अपने रक्षकों का स्मरण कर लो इस पर लक्ष्मण बड़े जोर से हंसे और बोले यदि तुम्हारी यही देवी आज हमारी रक्षा करें और हम तुम्हारी बली इसे दे दे तो कैसा रहेगा यह सुनकर रावण बहुत क्रुद्ध हो उठा और मारने के लिए उसने खड़क ऊपर उठाया हनुमान जी ने तत्काल आगे आकर अहीरावण को  पकड़ लिया और जोर से उनकी छाती में दे मारी खून की उल्टी करता हुआ है दूर जा गिरा कुछ ही समय में वहां के सारे राक्षस मारे गए इसके पश्चात हनुमान जी श्री राम लक्ष्मण को लंका मेअपने शिविर में ले आए राम और लक्ष्मण को शिविर में सुकुशल देखकर वानर सेना में उनकी जय जयकार होने लगा तथा हनुमान जी की प्रशंसा की जाने लगी महाबली रावण को भी अनेकों वर प्राप्त है एक दिन युद्ध में उसने भयंकर बाढ से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राक्षसों ने चारों तरफ से उन्हें घेर लिया रावण ने लक्ष्मण की हत्या करने की इच्छा से उसे पृथ्वी से उठाने का भरसक प्रयत्न किया उठा न सका उसी समय  हनुमान जी ने आकर एक जोर का गुस्सा रावण की छाती में मारा जिससे वह अ र्मूर्छित हो गया इसके पश्चात हनुमान जी लक्ष्मण को फूलों की तरह उठाकर शिविर में ले आए तब लक्ष्मण स्वस्थ होकर फिर से युद्ध में जुट गए महाबली हनुमान जी की वीरता का लोहा रावण को भी मानना पड़ा ऐसे वीर से पाला आज तक नहीं पड़ा था यह कहकर उसे भी उनकी धाक माननी पड़ी


राम रावण युद्ध की समाप्ति--:

इस प्रकार से राम और रावण की सेना के बीच भयंकर युद्ध होता रहा रावण पक्ष के बडे बडे  राक्षस मारे गए कुंभकरण मेघनाथ जैसे वीर योद्धाओं ने वीरगति पाई अंत में महाबली रावण भी मारा गया और युद्ध समाप्त हुआ धर्म की अधर्म पर विजय हुई रावण के संघार तथा राम की विजय का सुखद समाचार जानकी को देने का श्रेय श्री हनुमान जी को मिला अशोक वन में सीता जी को साष्टांग प्रणाम करने के पश्चात जब हनुमानजी ने युद्ध में विजय का संदेश दिया तो उनके हर्ष की सीमा न रही प्रसंता की अधिकता के कारण कुछ भी नहीं बोल सके फिर उन्होंने कहा कि पुत्र हनुमान इस सुख समाचार को पाकर मेरा हदय आनंदित हो उठा है किंतु तुम्हें देने के लिए मेरे पास कोई वस्तु नहीं है इसके पश्चात उन्होंने अनेक आशीर्वाद दिए फिर कहा मैं श्री भगवान राम के दर्शन करना चाहती हूं हनुमान जी ने सीता जी का संदेश श्री राम जी को दिया और श्री रामचंद्र जी तत्काल आदर सहित सीता को लिवा लाने का आदेश विभीसण को दिया

इस प्रकार जब सीता राम मिलन हुआ उस दृश्य के हनुमानजी साक्षी बने सभी के मन हर्ष उल्लास से भरे हुए थे क्या राम लक्ष्मण जानकी क्या सुग्रीव विभीषण अंगद और क्या वानर सेना सभी के हदय हनुमान जी के प्रति अत्यंत आदर से भरे हुए थे और भक्तराज हनुमान थे कि वे धन्य हो रहे थे सुर असुर गंधर्व किन्नर मानव वानर सभी आनंदित पुलकित होकर प्रेम अश्रु भरे नैनों से यह दृश्य देखकर जीवन को सार्थक बना रहे थे 

भगवान श्री राम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटना  --:


वनवास के 14 वर्ष पूरे होने में एक दिन शेष रह गया था राक्षस राज विभीषण ने पुष्पक विमान ला खड़ा किया श्री रामचंद्र जी को जाने के लिए तैयार देख वानरों ने हाथ जोड़कर उनसे कहा महाराज हम भी आपकी जन्मभूमि देखना चाहते हैं आप का राजतिलक देखने की मन में बड़ी लालसा है हमें भी साथ ले चलीये श्री रामचंद्र जी उनका प्रेम देखकर बड़े प्रसन्न हुए श्री रामचंद्र जी सीता जी लक्ष्मण विभीषन सुग्रीव अंगद एवं भक्तराज हनुमान जी तथा अन्य सभी वानर सेना पतियों को साथ ले पुष्पक विमान पर चढ़कर अपने देश को चल पड़े यह विमान भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर पहुंचा तो सभी लोग उतर पड़े श्री रामचंद्र जी ने जी के चरण छू कर प्रणाम किया फिर श्री राम ने हनुमान जी से कहा कि तुम शीघ्र अयोध्या में जाकर भरत से मिलो और उसे हमारे लौटने का समाचार सुनाओ 
हनुमान जी शीर्घ नंदीग्राम पहुंचे और भरत जी से मिली इसके बाद हनुमान जी ने श्री रामचंद्र जी के वन से लौटने का समाचार का सुनाया इस पर भरत जी प्रसन्नता से भर उठे वे बोले आज मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ फिर उन्होंने राजपुरूषो से कहा सारे नगर को  पुष्पों से सजाओ और नगर वासियों से कहो कि श्री रामचंद्र जी के स्वागत के लिए नगर से बाहर चले हनुमान जी भरत से विदा होकर भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर लौट आए
किस प्रकार अब सभी पुष्पक विमान प्रचंड कर आए थे नगरी के बाहर ावतरे यहां सभी नगरवासी बालक वृद्ध नर नारी उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े थे भरत जी ने आगे बढ़कर पादुकाई भाई श्री रामचंद्र जी के पैरों में पहना दी और उनके चरणों में गिर पड़े श्री रामचंद्र जी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया दूसरे दिन गुरु वशिष्ट की आज्ञा से श्री रामचंद्र जी का राजतिलक कर दिया गया श्री रामचंद्र जी ने निरीक्षण सुग्रीव अंगद तथा भक्तराज हनुमान और सभी बांदर वीरों को रहने के लिए बड़े-बड़े महल दी यह सब लोग कहीं दिनों तक अयोध्या नगरी में रहे श्री रामचंद्र जी ने अपने हाथों से उन सबको बहुमूल्य उपहार दिए हनुमान जी को सीता जी ने रत्नों से जड़ी माला अपने हाथों से भेंट की इसके पश्चात हनुमान जी श्री रामचंद्र जी की सेवा में रहने लगे


    -----:         जय जय श्री राम       ------:

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