ज्योतिष द्वारा मूक प्रश्न विचार करना

जय श्री राधे राधे
     

आज हम बात करने जा रहे हैं कि किस प्रकार से हम प्रश्न कुंडली के द्वारा प्रसन्न करता के मूक प्रश्नों को जानकर के उनका समाधान कर सकते हैं की प्रसन्न करता का क्या प्रश्न है और वह हमसे किस प्रकार के प्रश्न का समाधान चाहता है तो आइए आज हम प्रश्न कुंडली का विस्तार से सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं और जानते हैं कि किस प्रकार हम प्रश्न करता के प्रश्नों को उसके द्वारा नहीं बताए जाने से पहले ही ज्ञात कर सकते हैं
प्राचीन काल के समस्त ज्योतिष आचार्यों ने ज्योतिष शास्त्र को सर्व शास्त्र शिरोमणि कहकर संबोधित किया है और निसंदेह यह शास्त्र योग्य है भी क्योंकि जिस मनुष्य को इस शास्त्र का पूर्ण ज्ञान होता है वह देश विदेश जाति विजाति धर्म तथा विधर्म सर्वत्र समान रूप से आदर सत्कार सम्मान प्राप्त करता है इस शास्त्र को पूर्ण रूप से जाने वाली की जितनी भी मुक्त कंठ से प्रशंसा की जाए उतनी थोड़ी है क्योंकि इस शास्त्र का पूर्ण पूर्ण ज्ञाता ब्रह्मा विष्णु महेश के समान भूत भविष्य तथा वर्तमान की जानकारी रखकर त्रिकाल दर्शी  कहलाता हैऔर सत्यता भी इसी में है यह मेरा निजी अनुभव है कि मैं क ई अच्छे ज्योतिषियों से मिलकर अनेक बार आश्चर्य में पड़ जाने वाले प्रश्न उत्तर में ऐसा उलझ गया कि मुझे स्वयं उनकी शिष्यता प्राप्त करने के लिए विवश होना पड़ा और कितनों ही के लिए नाम बड़े दर्शन के छोटे ऊंची दुकान फीके पकवान वाली कहावत चरितार्थ करके ही रह जाना पड़ता है कितने ही वृक्षों के नीचे सड़कों के किनारे बेचने वाले या भिक्षा अन भक्षण करने वाले ज्योतिषी भी अनेक बार ऐसे तत्वों की बात कह जाते हैं कि उस समय पूर्ण रुप से ध्यान न देने कारण स्मृति गत आयु भर पछताना रह जाता है कि  एक बार फिर मिल जाता उसने उस दिन जो कुछ भी कहा था आज तक बिल्कुल ठीक मिल रहा है इत्यादि इत्यादि
जिस प्रकार व्यापार अपार है उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान भी अपार है जिस प्रकार समुद्र के मध्य में तेरने वाला व्यक्ति जिस और भी अपनी आंख उठा कर देखता है उसे उधर पानी के अतिरिक्त कुछ और दिखाएं नहीं देता उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र प्रवीण मनुष्य को किसी भी व्यक्ति के तीनों जनों के शुभाशुभ कर्मों के शुभाशुभ परिणाम के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता है  भौतिक तथा आध्यात्मिक सभी प्रकार के शुभाशुभ का ज्ञान उसे में रहता है उसकी दृष्टि में सृष्टि नहीं होती वह तो समस्त संसार का ब्रह्ममय पाकर नीरानंद में गोते लगाता रहता है और प्रत्यक्ष रूप से 
सकल ब्रह्मांड का वर्णन आंखों से जैसा देखा  करते वैसा ही वर्णन करते  है जो कि मानव जीवन की एक मात्र सार्थकता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ज्योतिष शास्त्र अघात सिंधु के समान है जिसमें गोता लगाकर अमूल्य रतन रूप में प्रश्न को जो पूर्ण रूप से जान जाता है वही मनुष्य वास्तव में ज्योतिष सी बनने का पूर्ण अधिकारी है ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत मूक प्रसन्न का एक विशेष स्थान है कहने का अभिप्राय यह है कि जिसको मूक प्रश्नोत्तर का पूर्ण ज्ञान है वास्तव में वही व्यक्ति ज्योतिषी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी होता है किंतु वह प्रश्न बिना ईस्ट सिद्धि के सफल होते बहुत ही कम स्थानों पर देखा गया है इसका संबंध योग से है योग मन एकाग्रता की स्थिरता पर है योगी का मन स्थर होता है इसलिए पूर्ण योगी व पूर्ण ज्योतिषी संसार के व्यवहार में एक ही स्थान को प्राप्त होते हैं कहने का तात्पर्य यह कि पूर्ण ज्योतिषी भी योगी के समान ही समझने योग्य है  जिस प्रकार एक योगी त्रिगुणात्मक सृष्टि का वर्णन त्रिकाल में आंखों देखा जैसा करने में समर्थ है उसी प्रकार एक ज्योतिषी का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी समर्थ है इसमें देश जाति रूप  धर्म आदि की अड़चन अपना कार्य नहीं कर पाती कहने का अर्थ यह है कि मन को वश में कर लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति मूक प्रश्न उत्तर देने में समर्थ हो सकता है चाहे वह किसी भी देश जाति धर्म में उत्पन्न हुआ हो उसकी आकृति तथा वेश भाषा चाहे जो भी हो  इस समय भारत वर्ष में ज्योतिष का फलादेश कहने वालों की तो कोई कमी दिखाई नहीं देती किंतु अपने द्वारा कहे गए फलादेश की सत्यता को चरितार्थ करने की शक्ति हजारों में से किसी एक में ही पाई जाती है विशेष अध्ययन द्वारा ज्ञात होता है कि ज्योतिष कार्य पूर्व काल में वंश परंपरागत तपस्वी ब्राह्मणों के ही हाथ में रही है जो कि अपने इष्ट साधन के लिए अपने प्राणों की बाज़ी तक लगा कर सफलता के लिए निरंतर प्रयास करते रहते थे आज के ज्योतिषी ज्योतिष का कार्य बिना शास्त्र अध्ययन के ही करने लग गए है कि कोई भी परीक्षा बिना कष्ट उठाए उत्तरीन नहीं की जा सकती फिर ज्योतिष शास्त्र ही बिना कष्ट उठाए बिना गुरु प्रसाद पाए कैसे आ सकता है केवल पुस्तक अवलोकन ही इस तथ्य को पूर्ण रूप से नहीं समझा सकता इसलिए किसी भी विद्या शंका निवारण किसी न किसी विद्वान पंडित का आश्रय लेना ही पड़ता है फिर भी पुस्तके कभी-कभी विद्यार्थी के पथ प्रदर्शन का कार्य सुलभ करती ही रहती है सुयोग्य व्यक्ति द्वारा लिखित पुस्तकें अपनी भाषा और शैली के आधार पर मानव का परोपकार करती ही रहती है जिस प्रकार ज्योतिष शास्त्र सर्व शास्त्र शिरोमणि माना जाता है उसी प्रकार फलादेश के अनुसार मूक प्रश्न ज्योतिष शास्त्र में प्रथम स्थान प्राप्त करता है जिस मनुष्य को बिना कुछ कहे सुने ज्योतिष प्रसन्न को निकालकर उसका उत्तर ठीक-ठीक देना आता है वास्तव में वही मनुष्य ज्योतिष तत्वों को समझता है यो तो जन्म कुंडली और हाथ को देखकर सभी मनुष्य कुछ कह सकते हैं जिसमें कुछ कुछ सत्यता भी मिल जाती है फिर भी मनोविज्ञान का प्रेमी उससे तृप्त नहीं होता वह तो प्रत्येक बात की सत्यता प्रत्यक्ष रूप से देखना चाहता है यह तो निर्विवाद ही ही है कि जीवन में भी सत्यता का अभाव ही है फिर भी मनुष्य निराशा के प्रति आशा लगा  सकते को प्रत्यक्ष देखना चाहता है यही सत्य का प्रत्यक्ष होना मुक प्रसन्न का आधार है जो कि अप्रत्यक्ष को प्रत्यक्षअंतर स्थल के मनोनीत भाव को जातक की आकृति चेष्टा उसके द्वारा की गई हाव-भाव उठना बैठना चलना फिरना स्पर्श के परी ज्ञान से शीघ्र ही प्रकृति चल चित्रपट पर नर्तन करता हुआ देख लेता है ज्योतिष कार्य करने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए यह अत्यंत ही आवश्यक बात है कि प्रसन्न करता के आते हैं उसे विवेक बुद्धि द्वारा अवलोकन करें फिर तुरंत ही रेडियो स्टैंडर्ड समय अनुकूल प्रश्न कुंडली तैयार करें कुंडली चक्र को समय अनुसार द्वादश राशि तथा एकादश ग्रह से सुशोभित करें संधि गत प्रश्न कुंडली के बनाने में प्रश्न और उसके उत्तर देने में सदा ही धोखा रहता है इसलिए संधि गत प्रश्न को टाल कर ही प्रश्न उत्तर देना चाहिए प्रथम प्रश्न कर्ता के प्रश्न को बड़ी सी सावधानी से मनोविज्ञान द्वारा जानकर आत्मविश्वास के साथ कहना चाहिए प्रश्न कहते समय हो सकता है कि वह मुंह से कुछ गलत निकल जाए तो ज्योतिषी को इधर-उधर की बातों द्वारा ठीक करने का सफल प्रयास बिल्कुल नहीं करना चाहिए बल्कि प्रश्ननकर्ता को किसी और समय आने को कह दे इसमें कोई बुराई नहीं है बुराई टालमटोल की बातें कर प्रसनकर्ता को मार्ग से विचलित करने पर होती है 


प्रसन्न कर्ता की चेष्टाओ  द्वारा प्रश्न ज्ञात करना -:

प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक ज्योतिष प्रश्न कर्ता तथा ज्योतिषियों में धातु मूल और जीव तीन प्रकार के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने और सुनने की परंपरा चली आ रही है जिनकी व्याख्या प्रत्येक ज्योतिषी प्रश्न कर्ता का आशय जानकर उनके अनुसार प्रश्न के अनुरूप पृष्टा को समझा कर अपने को धन्य मानता है तो आइए हम भी आज जानते हैं कि किस प्रकार की चेष्टा द्वारा प्रश्न करता के प्रशन का ज्ञात ज्योतिषी करते हैं

धातु संबंधी प्रश्न।  -:

जिन प्रश्नों का संबंध सोना चांदी लोहा तांबा कांसा जस्ता पीतल पत्थर हीरा पन्ना लाल मोती पुखराज गोमेद नीलम मूंगा मणि आदि से होता है वह धातु संबंधी कहलाते हैं

मूल संबंधी प्रश्न --:

जिन प्रश्नों का संबंध परीक्षा कला दस्तकारी कढ़ाई बुनाई तथा किसी प्रकार की शिक्षा प्राप्ति से संबंधित आदान-प्रदान इनका संबंध मूल संबंधी प्रश्न कहलाते हैं

जीव संबंधी प्रश्न --:

जिन प्रश्नों का संबंध मनुष्य पशु पक्षी अंडज सर्पादि प्राणी मात्र से संबंधित होता है वे जीव संबंधी प्रश्न कहलाते हैं जैसे कोई कहे कि मेरा विवाह कब होगा मेरा अमुक संबंधी बीमार है मेरी गाय के बच्चा कब होगा इत्यादि इत्यादि इस प्रकार के प्रश्न जीव संबंधी प्रश्नों की श्रेणी में आते हैं


           इस प्रकार जब प्रसन्न कर्ता किसी ज्योतिषी के सामने आकर निर्धारित स्थान पर बैठ जाता है तो विद्वान ज्योतिषी को उसकी चेस्टाऔ पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए यदि प्रसन्न कर्ता आकाश की ओर देखता हो तो जीव संबंधी प्रश्न ज्योतिष से करना चाहता है और अगर प्रश्न करता पृथ्वी की ओर निरंतर ध्यान दे रहा हो तो मूल संबंधी चिंता लेकर आया है और यदि सम दृष्टि हो तो धातु संबंधित चिंता समझनी चाहिए और ज्योतिष  को उनके बताने से पहले ही प्रसन्न कर्ता को बता देना चाहिए कि तुम्हारी इस प्रकार की चिंता है

यदि प्रश्न कर्ता पूर्व की ओर मुंह करके ज्योतिषी के पास बैठे तो धातु चिंता दक्षिण की ओर मुंह हो तो जीव चिंता उत्तर मे मुंह हो तो मूल चिंता और पश्चिम दिशा की ओर मुंह बैठा हो तो धातु मूल ,जीवमूल, जीव धातु या अधातु मूल जीव तीनों से मिश्रित फल वाला प्रश्न करना चाहता है यदि प्रश्न करता अपनी दाहिने अंग का स्पर्श करें तो धातु चिंता, बाय अंगों का स्पर्श करें तो जिव की चिंता और सम्मुख कोई भी अंग स्पर्श करने से मूल संबंधित चिंता समझनी चाहिए यदि प्रश्न समय प्रसन्न करता अपने सिर का स्पर्श करें तो जीव चिंता का प्रश्न करें,  और कटी का स्पर्श करने से धातु चिंता समझनी चाहिए यदि बाई भुजा से सिर को स्पर्श करता हो तो संतान उत्पत्ति संबंधी चिंता ,  और गुदा नितंब अंडकोष जा्ंघ  के स्पर्श से मूल संबंधी चिंता समझनी चाहिए



प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की दशा के अनुसार मूक प्रसन्न ज्ञात करना --:

सूर्य -:

यदि प्रश्न कुंडली में सूर्य स्व क्षेत्री हो तो मनुष्य को अपनी हैसियत के अनुसार अपनी जायदाद मकान नौकरी तथा हर प्रकार से अपनी दशा सुधारने की चिंता होती है और यदि सूर्य लग्न गत हो तो किसी पाखंडी मनुष्य के झूठ कपट के जाल से बचने तथा तांत्रिक मंत्र सीखने या किसी दुष्ट के मारण मोहन उच्चाटन करने जादू टोने करके पथभ्रष्ट होने की चिंता से बचने की चिंता होती है इसी प्रकार यदि सूर्य दूसरे भाव में हो तो मनुष्य को अपने कार्य के पूर्ण करने की तथा उससे आर्थिक लाभ होने की चिंता रहती है तीसरे भाव में स्थित सूर्य हो तो प्रसन्न करता मुकदमे में जीतने संबंधी प्रसन्न करता है यद्यपि तीसरे चौथे और पांचवें सूर्य के आने तक अत्यधिक रात हो जाती है रात्रि में प्रश्न निषेध है यदि ऐसा समय आ ही जाए तो विवाह संबंधी प्रश्न की चिंता करनी चाहिए प्रसन्न समय यदि सूर्य पांचवी हो तो संतान संबंधी चिंता होती है छठे सूर्य से यात्रा में मार्ग संबंधी चिंता समझनी चाहिए सातवां स्त्री संबंधी और अष्टम सूर्य जल यात्रा नाव इत्यादि की चिंता करता है नौवें घर का सूर्य पर देसी विदेशी और दशम सूर्य राज्य संबंधी अपनी या ऑफिसर की की उन्नति की चिंता कराता है एकादश भाव का सूर्य से धन लाभ की और बारहवां सूर्य से यात्रा में मार्ग बाधा या शत्रु विवाद की चिंता होती है

चंद्रमा --:

यदि प्रश्न कुंडली में चंद्रमा स्व गृही हो तो मनुष्य को खेत संबंधी अर्थात भूमि को समतल कराने दीवार गिराने आदि की चिंता होती है यदि चंद्रमा लग्न में हो तो धन मकान आदि के साथ-साथ भोज्य  वस्तुओं की चिंता होती है दूसरे भाव का चंद्रमा प्रदेश गमन तथा वहां से धन प्राप्ति कर सुखमय जीवन व्यतीत करने की चिंता करता है इसी प्रकार यदि चंद्रमा तीसरे घर में हो तो किसान को वर्षा की सिपाही को जय पा ने की तथा पराक्रम पूर्ण कार्य के लिए परितोषिक पाने की विद्यार्थी को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की चिंता होती है चौथे घर का चंद्रमा माता मकान तथा खेती के लिए भूमि प्राप्त करने की चिंता कराता है पंचम भाव का चंद्रमा विद्या परीक्षा संतान सुयोग्य गुरु तथा व्यापार लाभ की चिंता कराता है छठे स्थान का चंद्रमा रोग मुक्ति शत्रु भय तथा चोरी की चिंता कराता है सप्तम चंद्रमा विवाह की या किसी युवती के प्रेम की चिंता करता है अष्टम घर का चंद्रमा मृत्यु रोग आदि की चिंता कर आता है नौवें घर का चंद्रमा तीर्थ यात्रा पुण्य कार्य अतिथि सेवा तथा पथिक चिंता कर आता है दशम पदोन्नति राज्यसेवा भूमि लेने तथा धूर्त से बचने की चिंता कराता है एकादश चंद्रमा वस्त्र पवित्र वस्तु भाई तथा व्यापार की चिन्ता कराता है 12वां चंद्रमा रोग मुक्ति तथा चोरी गई वस्तु की प्राप्ति की चिंता कर आता है

मंगल --: 

मंगल यदि प्रश्न कुंडली में स्व गृही हो तो मनुष्य को शत्रु सरकारी नौकरी छूटने शस्त्र आदि क्रय विक्रय करने या उनसे चोट लगने की चिंता होती है लग्न में स्थित मंगल शत्रु प्रहार वाद विवाद किसी रोग के उत्पन्न होने की चिंता कराता है दूसरे घर का मंगल गत वस्तू की चिंता कराता है तो तीसरे भाव का मंगल भाई मित्र लड़ाई तथा पराक्रम प्रदर्शन की चिंता कराता है चतुर्थ भाव में स्थित मंगल मित्र शत्रु पशु खेती  माता आदि की चिंता कराता है  प्रथम स्थान का मंगल पुत्र की क्रोध पूर्ण समझाने तथा व्यर्थ धन व्यय कि चिन्ता कराता है तो   षष्टम मंगल अग्नि लोहे की सोने चांदी के जेवर आदि की चिंता कराता है सप्तम भाव में स्थित मंगल चोरी गए धन की पशु घोड़े की सवारी तथा नौकर आदि की चिंता कराता है अष्टम भाव का मंगल मकान पशुशाला रोग मुक्ति भाई के अनिष्ट ना होने तथा पराक्रम पुत्र  नाहोने की चिंता कराता है इसी क्रम में नवम भाव का मंगल यात्रा की और दशम घर का मंगल मुकदमा वादी प्रतिवादी तथा राज्य  पद प्राप्ति की चिंता करता है एकादश स्थान का मंगल शत्रु को पराजित करने व्यापार में धन लाभ की तथा बड़े भाई से धन प्राप्ति की चिंता कराता है अथवा बाहरवें भाव का मंगल द्वंद युद्ध द्वारा शत्रु पराजय भाई के रोग मुक्त होने स्त्री के गर्भपात न होने तथा किसी चोरी गई वस्तु की चिंता करता है

बुध --:

यदि प्रश्न कुंडली में बुध स्वगृही हो तो मनुष्य को कृषि क्षेत्र खेत खलियान शस्त्र मशीनीकरण आदि के आदान-प्रदान की चिंता रहती है और यदि बुध लग्न में हो तो शरीर सुख पढ़ाई लिखाई परीक्षा में पास होना सुंदर स्त्री की प्राप्ति की चिंता रहती है दूसरी भवन में बुध  पुत्र प्राप्ति रोग मुक्ति की चिंता रहती है तीसरे घर का बुध भाई बहनों धर्म-कर्म शुभ यात्रा उत्सव मनाने की चिंता कराता है चतुर्थ भाव का बुध बुद्ध खेत में बोरिंग कुआं संबंधी प्रश्न की चिंता कराता है पंचम बुद्ध अध्यापन कार्य शिक्षा दीक्षा गुरु शिष्य आदि के व्यवहार की चिंता कराता है तथा इसी क्रम में अष्टम भाव का बुध स्त्रियों के गुप्त कार्य करने तथा शत्रु भय से बचने की चिंता कराता है सप्तम घर में स्थित बुध सुंदर स्त्री प्राप्ति की तथा शरीर सुख की चिंता कराता है आठवे घर का बुध राज कार्य संबंधी चिंता कराता है नौवें भाव में स्थित बुद्ध अतिथि दान पुण्य उत्सव समारोह या विशेष उत्सव की चिंता कराता है दशम भाव में स्थित बुद्ध पारिवारिक सुख शांति व व्यापार संबंधी चिंता करता है एकादश भाव में स्थित बुध व्यापार तथा अर्थ लाभ पुत्र लाभ विद्या प्राप्ति की चिंता कराता है द्वादश भाव में स्थित बुद्ध पाखंडी साधु तथा विद्रोही मनुष्य से बच कर अपनी चिंता करता है तथा शत्रु प्रभाव में आकर मात्रपक्ष से धन की चिंता भी कराता है

गुरु --:

गुरु यदि प्रश्न कुंडली में अपने घर में स्थित हो तो मनुष्य को धार्मिक कार्य करने नए मित्र बनाने व  मित्रों से सदव्यवहार पाने पिता और गुरु तथा राजा से या राजकीय नौकरी में पदोन्नति करने तथा धन प्राप्त की चिंता कराता है लग्न में गुरु अपने सुख स्वास्थ्य तथा उनकी व्याकुलता के विनाश का प्रश्न लेकर आता है दूसरे भवन में स्थित गुरु कुटुंब की कुशल ता तथा अर्थ लाभ की चिंता कराता है तीसरे भाव का गुरु भाई बहनों की कुशलता तथा उनके संबंधियों की उन्नति की चिंता कराता है चतुर्थ भाव में स्थित कुल जनों के विवाह माता का सुख कृषि कार्य मशीनरी करण भवन निर्माण की चिंता कराता है पंचम भाव में स्थित गुरु पुत्र जन्म की तथा उसके जीवन की पुत्र प्रेम तथा उसके  विद्या अभ्यास की मंत्र दीक्षा की चिंता कराता है छठे भाव में स्थित गुरु स्त्री या पशु या मोटर वाहन से संबंधित प्रश्न की चिंता कराता है सप्तम भाव में स्थित गुरु पुत्री विवाह के लिए अर्थ लाभ की चिंता कराता है तो अष्टम भाव में गुरु स्वास्थ्य तथा किसी विशेष बीमारी के बारे में चिंता कराता है नौवें स्थान का गुरु प्रदेश गमन तीर्थ यात्रा अर्थ लाभ स्वास्थ्य तथा पुत्र की चिंता कराता है दशम मस्थ गुरु मित्र की लड़ाई की अपने सुख धन पितरों की चिंता कराता है एकादश भाव का गुरु व्यापार से धन लाभ की भाई के रोग की स्त्री सुख की चिंता कराता है और द्वादश भाव का गुरु धर्म कार्य में खर्च करने के लिए धन की तथा पशु पीड़ा की चिंता कर आता है


शुक्र --:

यदि प्रश्न कुंडली में शुक्र अपने घर में ही स्थित हो तो मनुष्य जो प्रसन्न करने ज्योतिषी के पास आता है उसका प्रश्न स्त्री प्रेम सुंदर वाहनादि की चिंता लेकर आता है तथा यदि शुक्र प्रश्न कुंडली में लग्न में हो तो प्रश्न कर्ता की चिंता प्रेम नृत्य गान स्थिति तथा स्त्री सुख विवाह संबंधी होती है तथा इसी प्रकार यदि शुक्र दूसरे घर में हो तो दुधारू पशु व नवीन भवन निर्माण की चिंता कराता है तृतीय स्थान का शुक्र अपनी स्त्री के गर्भ की तथा अपने सुयश की चिंता कराता है चतुर्थ भाव में स्थित शुक्र विभाग की जमीन जायदाद की वाहन आदि की तथा राज्य सरकार में पदोन्नति की चिंता कराता है पंचम भाव का शुक्र विद्याभ्सयास वाहन मित्र पुत्र तथा व्यापार में लाभ की चिंता कराता है छठे स्थान का शुक्र शत्रु भय से बचने की चिंता कराता है सप्तम भाव का शुक्र प्रेम पाने की सुख से जीवन व्यतीत करने की चिंता के साथ-साथ पारिवारिक पति-पत्नी के मनमुटाव की चिंता कराता है अष्टम भाव का शुक्र गए धन की चिंता कराता हैनवम स्थान का शुक्र धर्म कार्य तीर्थ यात्रा समुद्री यात्रा तथा विदेश गमन की चिंता कराता है दशम भाव का शुक्र पदोन्नति नौकरी वाहन जायदाद मकान व्यापार दुकान संपत्ति प्राप्त की चिंता कराता है एकादश भाव का शुक्र पुत्री उत्पन्न होने की व्यापार लाभ की वाहन प्राप्ति की चिंता कराता है द्वादश भाव का शुक्र धन कि शत्रु भाई पारिवारिक जनों से भय तथा अपनी स्थिति को स्तर रखने की चिंता कराता है

शनि --:

यदि प्रश्न कुंडली में शनि अपने घर में स्थित हो तो मनुष्य को मुकदमे में ऑफिस में तथा अन्यत्र विवाद बढ़ने तथा लोहे का कार्य करने की चिंता होती है तथा यदि शनि लग्न में हो तो निजी स्वास्थ्य तथा स्त्री प्राप्ति या स्त्री रोग की या पिता से अनबन की चिंता कराता है दूसरे घर का शनि धन नष्ट होने की तथा कर्ज होने की जायदाद हानि व्यापार में हानि की चिंता कराता है तीसरे घर का शनि पुत्र सुख तथा रोग मुक्ति की चिंता कराता है चौथे भाव का शनि शत्रु दमन की तथा अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की चिंता कराता है इसी प्रकार पंचम भाव का शनि स्त्री रोग की व्यापार हानि धन खर्च परीक्षा में अनुत्तीर्ण तथा पुत्र रोग शोक चिंता कारक होता है छठे घर का शनि मुकदमे में विजय तथा शत्रु स्त्री की चिंता कराता है सातवें घर का शनि भाग्योदय की पाप कर्मों से बचने की चिंता कराता है तो अष्टम भाव का शनि चोरी में गए धन प्राप्ति की नौकर नौकरानी की तथा किसी मृतक की राजभय पुत्र रोग शोक की चिंता कराता है नवम भाव का शनि मनुष्य को व्यापार में हानि की चिंता कराता है दशम भाव का शनि रोग में धन खर्च की चिंता कराता है एकादश भाव में स्थित शनि निजी स्वास्थ्य की चिंता कराता है द्वादश भाव में स्थित सनी धन तथा मानहानि की भाग्य विनाश की चिंता कराता है





जय श्री राधे राधे

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
           " भागवत प्रवक्ता "
 वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान 
चौथ का बरवाड़ा जिला सवाई माधोपुर
 राजस्थान।    9414 6572 45

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