अष्ट यक्षिणी साधना विधि




जय श्री राधे राधे


आज हम साधना के क्रम में अष्ट यक्षिणी साधना के विषय में चर्चा करते हैं कि किस प्रकार हम अष्ट यक्षिणी साधना करके हम हमारे समस्त मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं क्योंकि इन अष्ट यक्षिणीयो  में से एक की भी सिद्धि हो जाने पर साधक के सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं लेकिन साधक को चाहिए कि वह अत्यंत शांतिपूर्वक यक्षिणी को मां बहन कन्या मानकर उसकी साधना तथा ध्यान करें और ध्यान रहे की थोड़ी सी भी असावधानी से हमारी सिद्धि में बाधा पड़ सकती है अतः साधक को यक्षिणी साधना में भोजन सात्विक करना चाहिए पान तंबाकू तथा विलासी वस्तुओं का पूर्ण त्याग कर देना चाहिए साधना, काल में किसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए प्रातःकाल शश्या त्याग नित्यकर्म से निवृत होकर स्नान करके आसन लगाकर एकाग्रता पूर्वक जाप प्रारंभ कर देना चाहिए और तब तक जाप करते रहना चाहिए तब तक यक्षिणी मां प्रसन्न नहीं हो जाती है

१, कर्ण पिशाचिनी साधना -:

मंत्र- ऊं क्री समान शक्ति भगवती कर्ण पिशाचिनी चंद्र रोपनी वद् वद् स्वाहा 

किसी नदी या सरोवर के किनारे या किसी एकांत स्थान में पवित्रता पूर्वक एकाग्र चित्त होकर इस मंत्र का 10,000 बार जाप कर लें इसके बाद ग्वारपाठे के गुच्छे को दोनों हथेलियों पर मल कर रात्रि में शयन करें ने से यह देवी स्वपन में समय का शुभाशुभ फल साधक को बतला जाती है 

२, चिचि पिशाचिनी साधना -:

मंत्र - ऊं क्रीं ह्रीं चिचि पिशाचिनी स्वाहा 

केसर गोरोचन तथा दूध इन सबको मिलाकर भोजपत्र पर अष्टगंध कमल बनाकर प्रत्येक कमल पर  माया बीज लिखकर शीश पर धारण करें और सात दिन तक नित्य 10,000 बार मंत्र जाप करने से देवी प्रसन्न हो जाती है और साधक को भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल का शुभाशुभ हाल स्वपन में बता जाती है

३, काल कर्णिका साधना -:

मंत्र - ऊं ह्रीं क्लीं काल कर्णिके कुरु कुरु ठ: ठ: स्वाहा 


इस मंत्र को एकांत स्थान में एक लाख बार जप करके ढाक (मंदार) की लकड़ी घी शहद से हवन करें तो काल कर्णिका देवी प्रसन्न होकर साधक को अनेक प्रकार से धन रतन आदि ऐश्वर्य प्रदान करती है

४,नटी यक्षिणी साधना -:

मंत्र - ऊं ह्रीं की नटी महा नटी रुपवती स्वाहा

अशोक वृक्ष के नीचे गाय के गोबर का चौका लगाकर ललाट पर चंदन का तिलक लगावे और फिर विधिवत देवी का पूजन करके धूप दीप से पूजा करें एक मास तक नित्य एक हजार बार मंत्र का जाप करें जिससे देवी प्रसन्न होकर साधक को अनेक प्रकार की दिव्य वस्तुएं प्रदान करती है तथा साधना के समय साधक को एक समय ही भोजन करना चाहिए और साधना अर्धरात्रि के बाद प्रारंभ करें


५,चण्डिका साधना -:

मंत्र - ऊं चण्डके हस: क्रीं क्रीं क्लीं स्वाहा


 इस मंत्र को शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णमासी तक नित्य चन्द्रोदय से चन्द्रास्त तक संपूर्ण पक्ष में नो लाख बार जप करने से देवी प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक को अमृत प्रदान करती है जिससे साधक सांसारिक भय से मुक्त हो जाता है

६, सुर सुंदरी साधना -:

मंत्र - ऊं ह्रीं ह्रीं आगच्छ आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा 


किसी एकांत स्थान में पवित्रता पूर्वक शिवलिंग की स्थापना कर प्रातः मध्यान्ह संध्या तीनों समय विधिवत पूजन करके 3000 बार मंत्र का जाप करें इस प्रकार 12 वे दिन सुर सुंदरी देवी प्रकट होकर साधक से पूछती है कि तुमने मेरा स्मरण क्यो किया है तब साधक देवी की अनेक प्रकार पूजा कर विनय पूर्वक कहे की हे कल्याणी ! भक्तों की प्रतिपाल करने वाली माता मैंने जीवन कल्याण की भावना से प्रेरित होकर आपका स्मरण किया है हे जगत जननी! कृपा करके मेरा कल्याण करो इस प्रकार विनय करने से देवी धन आदि समस्त सांसारिक ऐश्वर्य प्रदान करती है

७, विप चांडालिनी साधना -:

मंत्र - ओम नमश्चामुंडे प्रचण्डे इन्द्राय ओम नमो विप्र चाण्डालिनी शाभिनी प्रकर्षिणी आकर्षय द्रव्य मान्य प्रबल मानय हूं फट स्वाहा 


पहले एक  दिन शीतल पूर्वक उपवास रहकर रात्रि में श्यया त्याग भूमि पर शयन करें तथा मधुर भोजन खाते हुए अधूरा त्याग करके ऐसे स्थान पर जाकर मंत्र जाप करें जो किसी भी प्रकार पवित्र ना हो इस प्रकार अपवित्र दशा में नित्य २१०० बार मंत्र का जाप करें तो मंत्र सिद्धि हो जाती है और ७ दिन बाद रात्रि में विस्मय  जनक दृश्य दिखाई पड़ता है दूसरे तीसरे दिवस स्वपन में रूद्र स्वरूप दृष्टिगोचर होता है यदि उक्त दृश्य साधक  को ना दिखाए पड़े तो पुनः २१ दिवस तक मंत्र जाप करना चाहिए तब किसी स्त्री स्वरूप का दर्शन होगा और वह  छल युक्त अभक्ष्य पदार्थ प्रस्तुत करेगा और अनाचार करता हुआ साधक को भयभित करने का प्रयास करेगा यदि साधक इन सब दृश्यो कार्यों से बिना भयभीत होकर साधना में लीन रहेगा तो देवी प्रकट होकर साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करेगी

८, सकल यक्षिणी साधना -:



मंत्र - ऊं हों क्रूं क्रूं कटु कटु अमुकी देवी वरदा सिद्धदाच भव ऊं अं:


इस मंत्र का रात्रि के समय एकांत में चंपा नामक वृक्ष के नीचे बैठकर नित्य 8000 बार जाप करें इस प्रकार 7 दिवस तक कर ने पर सातवें दिवस भगवती साधक के सम्मुख प्रकट होकर दर्शन देती है


आचार्य कौशल कुमार शास्त्री





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