जय श्री राधे राधे
(७)
श्री गोवर्धन धारण लीला-:
आज हम भागवत चर्चा प्रसंग में भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन धारण लीला की चर्चा करते हैं। शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को अमृत मयी, मोक्ष प्रदायिनी, भवसागर तारिणी, देव दुर्लभ यह श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा श्री गंगा तट पर सुना रहे हैं।। शुकदेव जी कहते हैं कि हे राजन! जैसा कि मैंने तुम्हें बताया कि भगवान श्री कृष्ण बलराम जी के साथ वृंदावन में अनेकों प्रकार की दिव्य लीलाएं कर रहे हैं और सभी वृंदावन वासियों को प्रेमानंद में गोते लगवा रहे हैं।। इसी क्रम में एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देखा, सभी वृंदावन वासी अपने अपने घरों को सजा रहे हैं। तथा अपनी गाय बछड़ों को निहला धचला कर, घर घर में अनेकों प्रकार के पकवान बनाने की तैयारी की जा रही है। जैसे मानो कि आज वृंदावन में बहुत बड़ा उत्सव मनाने की तैयारी हो रही हो।इस प्रकार की तैयारियों को देखकर के भगवान श्रीकृष्ण मैया यशोदा के पास गए और कहने लगे, अरी मैया! बताओ तो सही आज वृंदावन में कौनसा उत्सव मनाने की तैयारी हो रही है। क्योंकि सारे वृंदावन वासी सहित आप सब सज धज कर के नए नए पकवान क्यों बना रहे हो। तब मैया
बोली लल्ला! मैं कार्य में व्यस्त हूं तुम तुम्हारे बाबा के पास जाओ, वही तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देंगे। ऐसा कहने पर भगवान श्री कृष्ण मैया के पास से बाबा नंद के पास आते हैं। और बोले बाबा मेरे मन में बहुत बड़ी जिज्ञासा है कि आज ऐसा कौनसा उत्सव है। जिसके कारण सभी वृंदावन वासी धूमधाम से
तैयारी कर रहा है।। तब नंदबाबा कन्हैया से कहने लगे, कि
देखो लल्ला! वर्ष के इस दिन अर्थात् कार्तिक चौदस बुद्धि के दिन हम हमारे आराध्य देव देवराज इंद्र की पूजा करते हैं। और यह रीति हमारे पूर्वजों ने कई हजारों वर्षों से चला रखी है। क्योंकि बेटा देवराज इंद्र हमारी रक्षा करते हैं। और वही हमारे ईश्वर है। क्योंकि वह जल वर्षा करके हमें अन्न और जल की पूर्ति करते हैं। इसलिए बेटा आज भी वही दिन आ गया है। इसलिए हम सब अपने भगवान देवराज इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं।तब भगवान श्रीकृष्ण बोले बाबा! अगर हम देवराज इंद्र की पूजा नहीं करे, तो क्या होगा? तब बाबा
नंद बोले, देखो बेटा! अगर हम भगवान देवराज की पूजा नहीं करेंगे। तो वे कुपित होकर हमें कठोर दंड देंगे। और जल बरसाना बंद कर देंगे। इसलिए हम सब भगवान देवराज इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं।। तब भगवान श्री कृष्ण बाबा नंद से बोले बाबा! देवराज इंद्र कोई भगवान नहीं है। वह तो वही स्वयं असुरों के डर से कई बार कंदराओ में छिपकर बैठजाता है। क्या ऐसा भी कायर भगवान हो सकता है। और बाबा वैसे भी हमतो वनवासी हैं। हमारे लिए तो यह वन ही हमारा भगवान है। क्योंकि हमारी गाये यहां चरती है। और उन गायों से हमें दूध दही प्राप्त होता है। जिससे हमारी आजीविका संचालित होती है। इसलिए बाबा मेरा दृष्टि से देवराज इंद्र की पूजा करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हां अगर हमें पूजा करनी है तो मैं बताता हूं हमें गोवर्धन पर्वत भगवान की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि यहीं पर हमारी गाये चरती है। और गाये हमें दूध देती है। जिससे में हमारी आजीविका चल रही है। और देखो बाबा! मैं आपसे पूछता हूं कि आपका देवराज इंद्र कभी आपसे भोजन ग्रहण करने आता है। तब बाबा बोले बेटा! भगवान थोड़ी भोजन ग्रहण करने आते हैं। भगवान बोले नहीं बाबा जरूर आते हैं अब की बार मेरे साथ चलो और भगवान गोवर्धन की पूजा करिए। देखना तुम्हारे सामने साक्षात भगवान प्रकट होकर हाथों से भोजन ग्रहण करेंगे।।
जब इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने बाबा नंद को कहा तो बाबा नंद वहां से उस स्थान पर आते हैं जहां हताई पर वृंदावन के श्रेष्ठगोप बैठे थे।और कन्हैया को भी साथ लाते हैं। बाबा नंद सभी श्रेष्ठ गोपो से बोले की हमारा कन्हैया इस प्रकार गोवर्धन भगवान की पूजा करने की बात कर रहा है। भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोपों को भी समझाया तब सभी वृंदावन वासी कहने लगे हमारा कन्हैया ठीक कह रहा है। हम कन्हैया कहेगा जैसा ही करेंगे।
हमें कहा सुरपतिसो काजू, पूजै वन सरिता गिरीराजू।
भलो मतों कान्हर दियो,तजिये सिगरे देव।
गोवर्धन पर्वत बडो, ताकि कीजै सेव।।
ऐसा कह कर सभी वृंदावन वासी भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अपने घरों में अनेकों प्रकार के नवीन नवीन पकवान बनाने लगे। इस प्रकार सभी वृंदावन वासी सज धज कर सभी नगरवासी बड़े गाजे-बाजे के साथ भगवान श्री गोवर्धन को भोग लगाने के लिए जा रहे हैं। जैसे ही सारे वृंदावन वासी भगवान गोवर्धन पर पहुंचते हैं। भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, देखो आइए हमारे भगवान आ गए हैं। सबसे पहले सभी को मेरे साथ भगवान गोवर्धन को प्रणाम करना चाहिए। भगवान के साथ-साथ सभी वृंदावन वासियों ने गोवर्धन भगवान को प्रणाम किया। और कहने लगे अब हमें भगवान गोवर्धन को स्नान कराना चाहिए। तब सभी वृंदावन वासी अपने घर से लाए हुए जल के लोटे से भगवान को स्नान कराने लगे।गोपो, ने कहा कि भैया अरे गोवर्धन तो बहुत बड़े हैं इनका शरीर तो इतना विशाल है कि हम दिन रात पानी ला लाकर थक जाएंगे। तब भगवान श्री कृष्ण बोले कि सब मेरे साथ आंखें बंंद करके गंगा मैया का ध्यान करो। जब सभीी ने गंगा मैया का ध्यान किया तो माानसी गंगा प्रकट हो जाती है। मानसी गंगा मैया की धार से गोवर्धन पर्वत को स्नान कराया जाता है। तब बड़े प्रेम से हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जब उन्होंने धूप दीप नैवेद्य गोवर्धन पर्वत को चढ़ाया और फिर हाथ जोड़कर के सभी आंख मूंदकर प्रणाम करने लगे। उसी समय भगवान श्री कृष्ण अपना दूसरा रूप गोवर्धन के रूप में बनाया और एक रूप से सभी गोोप ग्वालों से भोग लगवा रहे हैं। तब आंखें खोली तो देखा सामने साक्षात गोवर्धन भगवान प्रकट हो रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण बोले बाबा! बाबा! देखो सभी वृंदावन वासियों! देखो हमारे भगवान गोवर्धन प्रकट हो गए हैं। और उधर तब भगवान गोवर्धन कहने लगे, मुझभोग लगाओ मैं तुम्हारे हाथों से भोग प्राप्त करने को बड़ा व्याकुल हो रहा हूं। तब सारे वृंदावन वासी अपने अपने हाथों से आज गोवर्धन भगवान को भोग लगाने लगे। सारे के सारे वृंदावन वासी भगवान गोवर्धन का साक्षात दर्शन करके बड़े आनंदित हुए। और जब इस प्रकार से भगवान गोवर्धन ने वृंदावन वासियों का दिया भोग लगाया। अब भगवान श्री कृष्ण ने अपना गोवर्धन रुुप छीपा लिया। तब भगवान श्री कृष्ण के कहने पर सभी वृंदावन वासी नाचते गाते आनंदित होते हुए अपने वृंदावन को आ जाते हैं।।देवराज इंद्र का कोप व भगवान श्री कृष्ण का गोवर्घन पर्वत उठाना -:
इस प्रकार हे राजन! जब वृंदावन वासियों ने देवराज इंद्र की पूजा बंद करके भगवान गोवर्धन की पूजा की। तब देवराज को पता लगा कि सभी वृंदावन वासियों ने मेरी पूजा बंद कर दी हैसुरपति की पूजा तजी, करी पर्वत की सेव।
तबहिं इंद्र मन कोपिके,सबै बुलाये देव।।
तब देवराज बहुत क्रोधित होकर कहने लगे, कि आज श्री कृष्ण गवाले के कहने पर सभी वृंदावन वासियों ने मेरी पूजा बंद कर दी है। अब मैं देखता हूं कि उन सभी गांव बालों को मेरे कोप से कौन बचाता है। ऐसा कह कर देवराज इंद्र ने अपने सभी प्रमुख सेनापतियों को बुलाया और आज्ञा दी कि तुम सभी वृंदावन में जाकर निरंतर घनघोर मूसलाधार वर्षा करो। जिससे सारे वृंदावन में चाहे त्राहि मच जाए। ऐसा आदेश जब देवराज इंद्र ने दिया। तो बड़े-बड़े मेघ वृंदावन के ऊपर आकर घनघोर गर्जना करते हुए मूसलाधार रूप में बसने लगे।जप तपयज्ञ तज्योब्रजमेरौ, काल दरिद्र बुलायो नेरो।
मानुष कृष्णदेव करमाने, ताकि बातें सांची जाने।।
वह बालक मूर्ख अज्ञाना, बहूवादी राखे अभिमाना।
उनका अबहिं गर्व परिहरौ, पशु खोई लक्ष्मी बिन करौ।।
जब इस प्रकार से सारा वृंदावन जलमग्न होने लगा। तो सारे वृंदावन वासी बड़े व्याकुल होकर के त्राहिमाम त्राहिमाम कह कर पुकार करने लगे। और दौड़े-दौड़े नंद बाबा के पास आए, और कहने लगे हे बाबा नंद! अब देवराज इंद्र के कोप से हमें कौन बचाएगा। अब सारे वृंदावनवासी भगवान श्रीकृष्ण से हाथ जोड़कर के कहने लगे हे कन्हैया! अब तुम ही हमारी रक्षा का कोई उपाय बताओ,नहीं तो सारा वृंदावन जलमग्न होकर समाप्त हो जाएगा। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे, हे मेरे प्यारे वृंदावन वासियों! तुम्हें इस प्रकार चिंता नहीं करनी चाहिए। हम सबकी रक्षा भगवान गोवर्धन महाराज करेंगे। अतः सभी अपने-अपने गौवबछड़ों और परिवार के सदस्यों सहित सारे के सारे हम सब वृंदावन वासी गोवर्धन भगवान की शरण में जाते हैं। ऐसा कहने पर सारे वृंदावन वासी अपने गौवबछडों सहित वृंदावन से गोवर्धन धाम पहुंचते हैं। और वहां जाकर सभी भगवान गोवर्धन को प्रणाम करते हैं। भगवान श्री कृष्ण बोले कि देखो भाइयों! गोवर्धन महाराज ने मेरे कान में आकर के मुझे बताया है कि हे कन्हैया! तुम सभी वृंदावन वासियों के सहयोग से मुझे उठा लो और मेरे अंदर सब छीप जाओ। इसलिए अब मैं तुम्हारे सहयोग से गोवर्धन पर्वत को उठाऊंगा। ऐसा कहकर भगवान श्री कृष्ण ने श्री गोवर्धन पर्वत को अपनी बाएं हाथ की चट्टी अंगुली पर उठाकर धारण कर लेते हैं। और कहने लगे आओ आओ मेरे प्यारे वृंदावन वासियों भगवान गोवर्धन की शरण में आ जाओ। सारे के सारे वृंदावन वासी जब गोवर्धन पर्वत के नीचे आ जाते हैं। और सारे गोपाल अपने अपने हाथ गोवर्धन पर्वत के लगाकर खड़े रहते हैं। इस प्रकार हे राजन! जब देवराज निरंतर सात दिनों तक इतनी भयंकर मूसलाधार वर्षा की लेकिन जब सभी मेघो का जल समाप्त हो गया। तब वे देवराज इंद्र के पास पहुंचे। और बोले हमने अपना सारा जल वृंदावन मैं बरसा दिया। लेकिन सभी वृंदावन वासी कृष्ण के कहने पर गोवर्धन पर्वत की शरण में गए और वहां जाकर कृष्ण ने अपनी चट्टी अंगुली पर श्री गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया है। जिससे हम वृंदावन वासियों का कुछ नहीं बिगाड़ पा सके हैं। हे राजन! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने 7 वर्ष की अवस्था में 7 कोस के पर्वत को 7 दिनों तक अपनी चट्टी अंगुली पर धारण किया और परमात्मा ने अपना एक और नाम धराया।
।। जय बोलो गिरिधर भगवान की जय।।
इस प्रकार जब देवराज इंद्र मेघों का पूरा जल बरसा करके थक गए। वर्षा रुकी और सूर्य नारायण का उदय हुआ।तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे देखो मेरे प्यारे वृंदावन वासियों! अब भगवान सूर्यदेव का उदय हो गया है। वर्षा रुक गई है। अतः अब आप सब बाहर निकल जाओ, क्योंकि मैं अब भगवान श्री गोवर्धन को उनके को नीचे उतार रहा हूं। ऐसा कहने पर सभी वृंदावन वासी श्री गोवर्धन पर्वत के नीचे से बाहर आ जाते हैं। तब भगवान श्री कृष्ण श्री गोवर्धन पर्वत को यथा स्थान रख देते हैं।।तब सभी वृंदावन वासी एक साथ भगवान श्री कृष्ण की जय-जयकार करने लगे और श्रेष्ठ गोपो ने मन में विचार किया और नंद बाबा से जाकर कहने लगे।कि
हे बाबा नंद! हमारा कन्हैया कोई साधारण बालक नहीं है। निश्चित रूप से यह भगवान है। क्योंकि जब से इसका जन्म हुआ है। तब से इसने एक से बढ़कर एक अद्भुत चमत्कार कीये है। और आज तो उसने इतना बड़ा काम कर दिया जो इस भूमंडल पर कोई भी मनुष्य नहीं कर सकता है। 7 वर्ष की अवस्था में 7 कोस के पर्वत को 7 दिनों तक अपनी चट्टी अंगुली पर धारण कर रखा। अतः निश्चित रूप से कन्हैया साक्षात भगवान का अवतार है।
है कोउ आदि पुरुष औतारी, देखत है कोउ देव मुरारी। मोहन मानुष कैसोभाई, अंगुरी पर क्यों गिरीठहराई।।
तब नंद बाबा बोले कि हां मुझे भी ऐसा लगता है। भाइयों क्योंकि जब इसका नामकरण संस्कार श्री गर्गाचार्य जी ने किया था। तब मुझे उन्होंने बताया था कि यह तुम्हारा कृष्ण हर युग में जन्म लेता है। तथा इसके अनंत जन्म हो चुके हैं। इससे पहले इसने वसुदेव जी के घर जन्म लिया इसलिए इसका एक नाम वासुदेव भी है। और उन्होंने यह भी बताया था कि बहुत बार यह तुम्हें और सारे वृंदावन वासियों को बहुत बड़ी बड़ी विपदाओं से बचाएगा।
यह जो बालक पूत तिहारो, चिर जीवो ब्रज को रखवारो।
दानव दैत्य असुर संहारे, कहां कहां ब्रज जनन उबारे।।
जैसी कही गर्ग ऋषि आई, सोई सोई बात होत है माई।।।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने सुना कि सभी मेरे बाबा नंद यशोदा व सभी वृंदावन वासी मुझे भगवान मानने लगे हैं। तब जाकर कहने लगे देखो बाबा! देखो मेरे प्यारे वृंदावन वासियों! अरे मैं कोई भगवान नहीं हूं मैं तो तुम्हारा कन्हैया हूं तुम्हारा कनवा हूं और जो गोवर्धन पर्वत को उठाने की बात करते हो तो इसमें मेरा कुछ भी नहीं है। क्योंकि भगवान गोवर्धन ने तुम सभी का बल मेरे में भर दिया था। इस कारण मैं
गोवर्धन पर्वत को उठा सका हूं। यह सब तो भगवान गोवर्धन भगवान की कृपा है। उन्होंने मुझे पहले ही मेरे कान में आकर बता दिया था। कि मैं बहुत हल्का हो रहा हूं। और तुझे सभी वृंदावन वासियों का बल मै दे रहा हूं जिसके प्रभाव से तु मुझे उठा लेना इसलिए मेरे प्यारे वृंदावनवासियों तुम्हारे मन में यह जो मेरे प्रति भगवान की भावना है। यह सही नहीं है। क्योंकि मैं तो एक साधारण ग्वाल बाल और नंद बाबा यशोदा का पुत्र और तुम्हारा सखा हूं।
जब इस प्रकार सभी वृंदावन वासियों का भ्रम श्रीकृष्ण ने दूर किया।तब सभी अपने अपने घरों को आ जाते हैं। और अब तो सभी वृंदावन वासी भगवान श्रीकृष्ण को अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करने लगे हैं।।
इंद्र का पश्चाताप व इंद्र द्वारा भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक व स्तुति -:
मैं अभिमान गर्बअती किया, राजसतामस में मन दीया।
धनमद संम्पति सुखमाना, भेदन कछु तुम्हारो जाना।।
तुम परमेश्वर सब के ईश, और दूसरो को जगदीश।
ब्रह्मा रूद्र आदि बर दाई, तुम्हारी दई संपदा पाई।
जगत पिता तुम निगम निवासी, सेवतनितकमलाभई दासी।।
जग के हेत लेत औतारा, तब तब हरत भूमि को भरा।
दूर करो सब चुक हमारी, अभिमानी मूर्ख हो भारी।।
तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि देखो देवराज इंद्र तुम कामधेनु को आगे कर लेकर आए हो। इसलिए तुम्हारा अपराध क्षमा करता हूं। लेकिन ध्यान रहे आगे से कभी भी अभिमान मत करना। क्योंकि अभिमान से मद उत्पन्न होता है और मद से क्रोध और क्रोध से बुद्धि नष्ट हो जाती है। ध्यान रहे अभिमान ही जीव कम का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए हे देवराज! आज के बाद कभी भी इस प्रकार का मद अपने मन में मत लाना। जो कि पतन का कारण है। जब भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र को ऐसा कह करके क्षमा किया। तब देवराज इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया। जब देवराज इंद्र श्री कृष्ण का अभिषेक करने लगा तो आकाश से देवदुंदुभीयां बजने लगी और समस्त देवताओं ने अपने अपने विमानों से पुष्प वर्षा करके भगवान श्री कृष्ण की जय-जयकार करने लगे। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने देवराज से कहा कि देवराज! अब तुम यहां से जाओ। मैंने तुम्हारे अभिमान को दूर करने के लिए ऐसा किया था। क्योंकि जो मुझे प्रिय होता है मैं उसके हित के लिए ही सारे कार्य करता हूं। अब तुम यहां से जाओ, तुम्हारा कल्याण हो। ऐसा कहने पर देवराज इंद्र कामधेनु के साथ एरावत पर बैठ कर अपने सभी अनुयायियों के साथ स्वर्गलोक आता है। और भगवान श्री कृष्ण की जय जयकार करता है।।
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