कालिया नाग मर्दन लीला


कालिया नाग मर्दन लीला

(४)

जय श्री राधे राधे
जैसा कि हमने भागवत चर्चा के क्रम में पूर्व की पोस्ट में जाना कि किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण और बलराम  वृंदावन में गाये चराते हुए। विविध प्रकार की लीला कर रहे हैं। जिसमें अघासुर, धेनूकासूर का वध , ब्रह्मा जी का मोह भंग आदि लीला प्रमुख रूप से की। साथ ही कालिया दह पर मूर्छित
 सभी गोप ग्वाल व गायो को भगवान श्री कृष्ण द्वारा अमृतमय दृष्टि से पुर्ण स्वस्थ करना। इत्यादि लेला हमने पूर्व की पोस्ट में जाना तो आइए आज की भागवत चर्चा में हम पुर्व की कथा से आगे की चर्चा करते हैं। जिसमें शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को गंगा के तट पर यह पापमोचनी भवतारिणी अमृत मयी देवदुर्लभ कथा का रसपान करा रहे हैं।।

श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग का मर्दन -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपने बाल सखाओ के साथ गाय चराते हुए यमुना के कालियादेह कुंड पर जाते हैं। वहां एक ऐसा विशालकाय कुंड था जिसे कालिया कुंड के नाम से जाना जाता था जिसमें कालिया नाम का नागराज रहता था! और उसके भयंकर विष के प्रभाव से सारा कुंड का जल विषैला रहता था। यहां तक इस कुंड के ऊपर से गुजरने वाले पक्षी भी उसके विष की गंध से मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इतना भयंकर विषैला क्षेत्र बना हुआ था! और इस विष की दुर्गंध के कारण ही आसपास एक कदम के वृक्ष के अलावा कोई वृक्ष भी था। और हे राजन! वह कदम का वृक्ष भी इसलिए खड़ा था! क्योंकि एक बार भगवान गरुड़ अमृत पान करते हुए अमृत  लेकर के आ रहे थे! और उस पर कदम के वृक्ष पर बैठकर  अमृत पान कर रहे थे। तो उसमें से एक बूंद वहां गिर गई। इस कारण व कदम का पेड़ एकमात्र वहां खड़ा था।
और जैसा कि मैंने तुम्हें कल की कथा में बताया था। कि जब भगवान श्री कृष्ण कल अपनी गायों को जल पान कराने के लिए इस कुंड पर आए थे। तो सब के सब गोप ग्वाल और गाये मूर्छित हो गए थे। और भगवान ने उस समय उनको दिव्य दृष्टि से से पुनः सजीव कर दिया था। अतः अब भगवान श्री कृष्ण कालिया कुंड को कालिया नाग से खाली कराने की लीला के लिए आज यहां आए हैं।।

इस प्रकार हेपरीक्षित! भगवान श्री कृष्ण बालसखाओं के साथ कालिया दह के ऊपर आकर  भगवान श्री कृष्ण के कहने से गेंद बल्ला का खेल खेलने लगते हैं। आज के दिन भगवान बलदेव जी गाय चराने नहीं आए थे।इस प्रकार गेंद खेलते हुए भगवान श्री कृष्ण के हाथ से गेंद  कालिया कुंड में चली जाती है। तब ग्वाल बाल कहने लगे कन्हैया हमारी गेंद इस कुंड में चली गई है। भैया अब इसे कौन निकालेगा।तब कन्हैया कहने लगे, सखाओ! तुम्हें मेरे रहते हुए चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मैं अभी गेंद इस कुंडली में से निकाल कर  लाऊंगा। और फिर हम पुनः यथावत अपना खेल खेलेंगे। ऐसा कह कर के भगवान श्री कृष्ण उस कदम के पेड़ पर चढ़ जाते हैं। और अपनी कमर में अपने दुपट्टे का पेठा बांध लिया और दोनों हाथों से ताली मार कर  कन्हैया देखते-देखते  कुंड में छलांग लगा जाते हैं। जैसे ही कन्हैया ने कालिया कुंड में छलांग लगाई और उसकी जैसी भयंकर आवाज होती है और जल ऊपर  उठता है।इसे देखकर  कालिया नाग जाग जाता है जो इससे पहले निद्रा में सो रहा था। उसने देखा कि कोई श्याम सलोना बालक मेरे इस कुंड में आया है। तो कालिया अपने फनो को फैला कर  भगवान श्री कृष्ण के ऊपर प्रहार करने के लिए टूट पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण भी पैंतरा बदल बदल कर
 उस सो फनो वाले कालिया नाग से लड़ने लगे हैं। भगवान श्री कृष्ण को इस प्रकार कालिया कुंड में कूंदा हुआ देखकर सारे के सारे गोप गृवाल जोर-जोर से विलाप करने लगे। कन्हैया कन्हैया कह  पुकारने लगे। कुछ ग्वाल बाल बेसुध होकर  मूर्छित हो जाते हैं। इसी क्रम में किसी ने जाकर  वृंदावन में बाबा नंद यशोदा से कहा कि कन्हैया कालिया कुंड में कूद गया है। सुनते ही बाबा नंद यशोदा रोहिणी व अन्य वृंदावन के गोप गोपियां विलाप करते हुए। हाय! कन्हैया हाय! कन्हैया करते हुए यमुना के तट पर आते हैं।।
वहां आकर के देखो तो कालिया नाग जिसके सो फन हैं। वह भगवान श्री कृष्ण को कसकर के पकड़ा हुआ है। और अपने फनो से वार कर रहा था। ऐसा दृश्य देखकर के सभी गोप

ग्वाल जोर-जोर से हाय कान्हा , कान्हा कह कर  विलाप करने लगे। माता यशोदा कालिया कुंड मे कूदने  लगी। लेकिन अन्य गोप ग्वालों ने भगवान श्री कृष्ण के पूर्व काल की अलौकिक वीरता को देख कर  श्री कृष्ण में विश्वास करके माता यशोदा को कूदने से रोक लिया। और सभी गांव वालों को माता यशोदा रोहिणी व बाबा नंद को भगवान बलदेव जी श्री कृष्ण के वैभव को बताकर विश्वास दिलाते हैं। कि हमारा कन्हैया कालिया नाग का अंत करके सकुशल लौट आएंगा।

छांड़ महावन यावन आते,तौहु दैत्यन अधिक बताते।

बहुत कुशल असुरनतेकरी,अब क्यों दहते निकसतहरी।।

 उधर जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि मेरे वियोग में सभी गोप ग्वाल सहित  मेरी मैया बाबा नंद व मेरे बाल सखा व्याकुल हो रहे हैं तब उन्होंने अपने शरीर को फुलाया जिससकालिया नाग का शरीर टूटने लगा और भगवान श्रीकृष्ण उसके फाश से मुक्त होकर,  उसके फनो के ऊपर आ जाते हैं। और कालिया नाग के सिर के ऊपर नृतू करने लगे।जिस फन को भी कालिया नाग  नीचे  झुकाता है।  उसी पर जोर से अपनी चरण कमलों से वार करने लगे। 

तीनलोकको बोझ ले,भारी भये मुरारी।

फणफण पर नाचतफिरे,बाजे पगपटतारि।।

 इस दृश्य को देखकर  आकाश मंडल में देवताओं के विमानों की झड़ी लग गई और कन्हैया की नाग नथैया लीला देखने लगे। और आज मेरे कन्हैया का एक और नाम हो जाता है।
 ।। जय बोलो नाग नथैया लाल की।।

  इस प्रकार हे राजन! कालिया नाग के फनो से रक्त बहने लगा वह पूरी तरह से मूर्छित होने लगा। तब नाग  पत्नियां हाथ जोड़कर   भगवान श्री कृष्ण के सामने नतमस्तक होकर  स्तुति करने लगी। भगवन आप हमारे स्वामी को क्षमा करें, द प्रभु! हम आपके शरणागत हैं। कृपा करके हमारे स्वामी नागराज को क्षमा का अभयदान दीजिए। इसमें हमारे स्वामी का दोष नहीं है क्योंकि प्रभु यह जो विष है हम नाग जाति में आपने हीं तो उत्पन्न किया है। यह हमारी स्वभाविक प्रकृति है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे ना पत्नियों आप मेरी शरण में हो इसलिए मैं तुम्हें अभयदान प्रदान करता हूं। लेकिन अब तुम इस कुंड में नहीं रहोगे। इसलिए अपने स्वामी को लेकर  अभी यहां से  रमणक दीप को चले जाओ। कालिया नाग भी हाथ जोड़कर कहने लगा भगवन! अगर मैं यहां से रमनदीप को जाऊंगा तो वहां मुझे भगवान गरुड़ अपना काल का ग्रास  तब बना जाऐगे। भगवान बोले  हे नागराज! अब तुम्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तुम्हारे फनो पर मेरे चरण कमलों के चिन्ह बन गए हैं। उन्हें देखकर  महात्मा गरुड़ तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। और फिर भगवान गरुड़ को बुलाकर  नागराज को विश्वास दिला कर अभय दान दिया। तब नागराज अपने परिवार सहित भगवान कन्हैया के श्री चरणों में प्रणाम करके स्तुति करता हुआ सपरिवार कालियादेह को छोड़ कर  अपने मूल स्थान रमनदीप को चलू जाता है।

चारघरीनाचे मोमाथ,यहमनप्रीतीराखियोनाथ।

 और गेंद लेकर कालिया दह से कन्हैया बाहर निकल आते हैं ,जैसे ही कन्हैया  बाहर आए तो सारे वृंदावन वासियों  में जैसे मानो नये प्राणों का संचार हुआ हो। सब ने कन्हैया की जय जय कार की।  और मां यशोदा, नंद बाबा, रोहिणी भगवान श्रीकृष्ण को अपने गले से लगा कर  प्रेमानंद में डूबने लगे। और सभी वृंदावन वासी भगवान श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे ।।
इस प्रकार संध्या का समय हो गया बृजवासी कहने लगी हे नंदबाबा! भूखे प्यासे घर चल कर क्या करेंगे। अब हमें यही विश्राम करना चाहिए। फिर प्रातकाल अपने अपने घर को चलेंगे।  इस प्रकार सभी वृंदावन वासी उस रात को वहीं पर विश्राम करते हैं। जब आंधी रात का समय बीत गया, उस समय वहां पर दावानल लग जाती है। अब सारे वृंदावन वासी घबराने लगे चारों ओर देख हाथ पसार पसार पुकारने लगे। हे कन्हैया! रे कन्हैया! इस आग से हमें बचाओ, नहीं तो यह क्षण भर में सब को जला कर के भस्म कर देगी। जब नंद यशोदा सहित सब बृज वासियों ने ऐसा पुकारा। तब भगवान श्रीकृष्ण उठते ही सारी आग को पलभर में भी गए। और सबकी मंन की चिंता को दूर किया। और प्रातकाल होते ही सब वृंदावन वासी ही अपने-अपने घर आनंद मंगल से आते हैं। और भगवान श्री कृष्ण की जय जयकार करते हुए उनकी मंगल गाथा का वर्णन करते हैं।।

आंधी रात बीत जब गई,भारीकारी आंधी भई।

दांवा अग्नि लगी चहुंओर,अतिझरबरै वृक्षवन ठौर।।



कालिया नाग का कालियादह में आने का वृत्तांत-:

इस प्रकार की कथा जब शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित  को सुनाई तब परीक्षित हाथ जोड़कर के प्रश्न करने लगा। भगवन! अब आप कृपा करके मुझे बताइए कि कालिया नाग ने अपना निवास स्थान रमणकदीप को किस कारण से छोड़ कर कालिया देह कुंड में निवास करने लगा था। इस प्रकार का प्रशन जब राजा परीक्षित ने शुकदेव मुनि से किया तब महामुनि शुकदेव परीक्षत से कहने लगे हैं। कि हे राजन! सुनो अब मैं तुम्हें बताता हूं कि किस कारण कालिया नाग रमणीक दीप को छोड़कर कालियादह कुंड में चला गया था।
रमण के दीप में भगवान गरुड़ का भी निवास था। और सभी नागों ने निश्चित माह की अमावस्या को  बारी बारी से उनको भोजन के लिए एक नाग देना निश्चय कर रखा था। इसी क्रम में जब अपने परिवार के नाग की बलि देने का समय आया तो कालिया अपने बल के घमंड में चूर होकर के गुरुड़ को अपने परिवार के किसी भी सदस्य की बलि नहीं देता है। जब गुरुड़ को बलि नहीं दी गई। तब गरुड़ स्वयं  कालिया के पास आते। तो कालिया उनको युद्ध करने के लिए ललकार ता है। तब कालिया और गुरुजी के बीच भयंकर युद्ध होता है। जब गरुड
 जी ने कालिया को बुरी तरह से मूर्छित कर दिया। तब वह अपने परिवार के साथ इस यमुना के कालियादेह नामक कुंड में आकर के निवास करने लगा। क्योंकि वह जानता था कि यमुना के इस कुंड पर महात्मा गरुड़ श्राप के कारण नहीं आ सकते थे। क्योंकि हे राजन! एक समय इसी स्थान पर सौभरी नामक ऋषि तपस्या कर रहे थे। उस समय गरुड़ इस कुंड में से रति क्रीड़ा में भी लिप्त एक मत्स्य को भक्षण कर गए। उनकी इस पीड़ा को देख कर सौभरी ऋषि को दया आ गई। और उन्होंने यहां के जलचर जीवों की करुणा के कारण गुरुड को श्राप दिया। कि आज के बाद अगर तुम यहां आओगे तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। इस श्राप के कारण गरुड़ इस कुंड पर नहीं आते थे। और यह बात कालिया नाग जानता था। इसलिए कालिया गरुड़ से बचने के लिए अपने परिवार के सदस्यों के साथ इस जमुना के कुंड में निवास करने लगा था।।


:::जयश्री नाग नथैया लाल की""

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

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