महारास लीला


श्री राधे राधेराधे

(९)

आज हम भागवत चर्चा में बात करने जा रहे हैं। दिव्य महारास लीला की शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन! जब गोपियों ने तन और मन से भगवान श्री कृष्ण को चाहा, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था। कि आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को में महा रास रचूंगा।  और उसमें तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूंगा। आज कार्तिक पूर्णिमा का दिवस था। अतः भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों का मनुष्य पूर्ण करने का विचार किया। तो आइए हम इस दिव्य महारास लीला में मानसिक भाव से  सम्मिलित होते हैं।।

भगवान श्री कृष्ण का वीणा वादन -:

राजन! जब भगवान श्री कृष्ण ने मन से महारास का संकल्प लिया, तो प्रकृति ने प्रभु के महारास को दिव्य बनाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। आज चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ आकाश मंडल में उदय हुए हैं। और समस्त देवी-देवता अपने परिवारजनों के साथ सज धज कर के भगवान श्री कृष्ण के इस महारास का दिव्यानंद प्राप्त करने के लिए तत्पर हो रहे हैं।

लाग्यो जबते कार्तिक मास, धाम शीत बरसा को नास। निर्मल जल सरवर भर रहे, फूले कमल हीय डहडहे।। कुमुदचकोरकंत कामिनी, फूलहि देखि चंद यामिनी। चकईमलिनकमलकुम्हिलाने,  जेनि जमित्र भानुको मानो।।

 इसी क्रम में आज कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्री कृष्ण वृंदावन के बाहर आकर मधुर बंसी की तान छेड़ते हैं। जिसे सुन सुन कर गोपिया अपने कार्यों को छोड़ कर  दौड़ने लगी है। जो गोपी जिस कार्य को कर रही थी उस कार्य को वहीं छोड़ कर  वह वेणु की तान सुनकर  दौड़ती हुई श्री कृष्ण के पास पहुंचती है।  एक गोपी आंख में काजल लगा रही थी एक आंख में काजल लगा था एक में अभी काजल नहीं लगा था। वह  एक आंख में काजल लगा कर ही  वहां से दौड़ती हुई भगवान श्री कृष्ण के पास आती है। कोई गोपी अपने पति के पैर दबा रही थी तो वह पैर दबाते दबाते ही छोड़कर दौड़ती हुई आती है।  कोई गोपी गाय का दूध दोह रही थी। तो आधा दूध छोड़कर दौड़ती है।  यहां तक कि जब क ई गोपियों को जब उनके पतियों ने रोका तो गोपियां मानसिक भाव से पहले से ही भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंच गई। राजन! इस प्रकार जब वृंदावन की समस्त गोपीयां  भगवान श्री कृष्ण की मधुर बंशी की तान सुनकर  उनके पास पहुंच गई।। जब सभी गोपियां भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंच गई, तब भगवान श्री कृष्ण गोपियों को देख कर  कहने लगे कि देखो गोपियों! तुम्हें इस प्रकार रात्रि के समय अपने परिवार जनों को छोड़ कर  एकांत जंगल में मेरे पास नहीं आना चाहिए था। क्योंकि जो माननीय  स्त्री होती है उनको इस प्रकार रात्रि में अकेली बाहर नहीं निकलना चाहिए। इसलिए लौकिक दृष्टि से तुम्हारा यहां आना सही नहीं है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं। हे गोपियों! अब तुम यहां से चली जाओ। क्योंकि तुम्हारे पति और तुम्हारे परिवार के दूसरे सदस्य तुम्हें  घर पर नहीं देख कर  व्याकुल हो रहे होंगे। इस प्रकार जब भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को जाने के लिए कहा। तो सभी गोपियां  आंखों में अश्रु बहाती हुई कहने लगी। हे माधव! हे वंशीधर! पहले तो तुम अपनी मधुर बंसी की तान छेड़ करके हमारे हृदय को विचलित कर देते हो और फिर निष्ठुर भाव से कहते हो कि तुम अब चली जाओ। तुम कितने निष्ठुर हो, तुम्हारे मन में बिल्कुल भी दया नहीं है। तुम्हें पता नहीं कि हम तुम्हारे बिना कितनी व्याकुल रहती हैं। अब हमें किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं, अब हम तुम्हें छोड़कर  नहीं जाने वाली है। ऐसा कह कर के जब गोपियां जोर जोर से सुबक सुबक कर रोती हुई अश्रु धारा बहाने लगी।

नीचे चितै उसासै लई,  पद नखते भू खोदत्त भई।

 या दृगसो  छूटी जलधारा, मानहु टूटे मोतीहारा।।


लोग कुटुंब घरपति तजे,तजी लोक की लाज।

 है अनाथ कोऊ नहीं, राख शरण ब्रजराज।।


तब भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को मनाने लगे, और कहते हैं। कि हे गोपियों!  देखो मैं तो तुमसे वैसे ही मजाक कर रहा था। 
मेरे प्रति तूम्हारे प्रेम की परीक्षा ले रहा था। इसलिए अब इस प्रकार रोना बंद कर दो। देखो मैं तुम से हाथ जोड़ कर  क्षमा मांगता हूं। ऐसा कह कर भगवान श्री कृष्ण गोपियों को मनाने लगे। किसी गोपी के गालों को हाथ  से सहलाने लगे, तो किसी गोपी की वेणु चोटी पकड़कर के बालों को सहलाने लगे, किसी गोपी के बाहों को पकड़ कर के मनाने लगे, किसी गोपी के पैर दबाने लगे। इस प्रकार से जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी भाव भंगिमा  गोपियों के अनुकूल कर दी। तो गोपियां भी प्रसन्न चित्त होकर के भगवान श्री कृष्ण के चारों और बैठ जाती है।

ठाढे बीचजु श्याम धन,इहिछबिकामिनीकेलि।

मनहुं नीलगिरीके तरे, उलटी कंचन बेलि।।


 इस तरह भगवान श्री कृष्ण नाना प्रकार से अपनी  भाव भंगिमा को गोपियों के अनुकूल कर देते हैं। जब गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का इस प्रकार  एकांत सानिध्य प्राप्त हुआ।तो गोपियां बड़ी प्रसन्न चित्त और आनंदित होने लगी। और गोपियां मन में विचार करने लगी, देखो त्रिलोकी में हम जैसी कोई बड़भागीन नहीं है। इसीलिए तो कन्हैया हमसे इतना प्रेम करता है।जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि गोपियों के मन मे अभिमान आ गया है। अतः गोपियों के अभिमान को दूर करने के लिए  देखते देखते ही भगवान श्री कृष्ण वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं।।

गोपियों का विरह और कुंज मैं भगवान श्री कृष्ण को खोजना -:

जब गोपियों ने देखा कि श्री कृष्ण वास कहीं पर हमको उनको छोड़कर कहीं अंतर्ध्यान हो गए हैं।

कहां सखी मोहन कहां, गए हमें छिटकाय।

 मेरे गरे भुजा धरे, रहे हुते उरलाय।।


कहां जाएं कैसी करै,कैसी कहै पुकारि।

 है कित कछु न जानिये, क्यों कर मिलै मुरारि।।


हमको क्यों छोड़ी ब्रजनाथ, सर्वस्व दिया तुम्हारे साथ।।।

 अब गोपियां विलाप करने लगी कहने लगी कन्हैया देखो कन्हैया हमसे मजाक मत करो जल्दी से हमारे सामने प्रकट हो जाओ क्योंकि हम में से हमको तुम हमसे तुम्हारा भी हो रहा नहीं जा रहा है ऐसा कह कर के सभी गोपिया कुंजन में भगवान श्रीकृष्ण को ढूंढने लगे पेड़ पक्षी तथा लताओं से पूछने लगी हे तुलसी तू तो बता तू तो भगवान को बहुत प्यारी है क्या तुमने कहीं कन्हैया को इधर-उधर देखा है एपीपल तुम ही बताओ कन्हैया को तुमने देखा है तुमने कहीं हमारी आंखों देखा है इस प्रकार से ब्लॉक करती हुई गोपिया में भगवान श्रीकृष्ण को ढूंढने लगे और विलाप करती हुई पश्चाताप करती है कहती है कन्हैया हमें क्षमा करो हमसे सहा नहीं जा रहा है इस प्रकार वन में पशु पक्षी पेड़ पौधे बताएं उनके सामने हाथ जोड़ जोड़ करके गोपिया भगवान श्री कृष्ण का पता पूछती है

हे बड़ पीपल पाकरबीर,लह्यो पुण्यकर  उच्च शरीर।

 पर उपकारी तुम ही भय, वृक्ष रूप पृथ्वी पर लये।।

 धाम शीत वर्षा दुख सहौ,काज पराये ठाढे रहौ।

 बकला फूल मूल फलदार, तिनस़ो करत पराई सार।।

 सबका मन धन हर नंदलाल, गए किधर को कहो दयाल।

 अहो कदंब अम्ब कचनारी, तुम कहुं देखे जात मुरारी।।

 अशोक चंपा करबीर,  जात लखे तुमने बलवीर।

हे तुलसी अति हरि को प्यारी, तनुते कहूं नराखत न्यारी।।

 फूली आज मिले हरि आय, हमहूं कोकिनदेतिबताय।

 जाही जूही मालती माई, इतह्ये निकरे कुंवर कन्हाई ।।मृगिहीपुकारीकहै ब्रज नारी,इततुमजातलखे बनवारी।।।


राजा इस प्रकार से जब गोपिया भगवान श्री कृष्ण के वियोग में व्याकुल होकर विलाप करती हुई उन जीवन में उन को खोज रही थी तो आगे देखा कि एक गोपी बोली देखो सखी इधर हमारे श्याम के चरण कमलों के बने हुए हैं जब गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण के संग पदम सिंह इधर से ही गए हैं आगे जाकर के देखा देखो सखी यहां किसी सुंदरी के विचरण दिखाई पड़ रहे हैं और आगे जाकर के देखा कि एक चंपा की बेल के नीचे भगवान श्री कृष्ण के चरण दबे हुए हैं तो दूसरी गोपी कहीं लगी देखो सकी अब हो न हो यहां से दूसरी कोई बड़भागी गोपी के चरण चेन्नई दिखाई दे रहे हैं ऐसा लगता है कि जब वह गोपी थक गई होगी तो भगवान हमारे प्राण बलम कन्हैया ने उसे अपने कंधे पर बिठा लिया होगा इसीलिए तो यहां कन्हैया करते हैं। उधर कुंज वन में भगवान श्री कृष्ण वृषभान दुलारी राधिका को लेकर बिहार कर रहे थे जब राधिका जी को भी अभिमान हो गया कि सभी गोपियों में सबसे बड़े भाग्य में हूं क्योंकि सभी गोपियों को छोड़ करके मेल कन्हैया मुझको ले करके विहार कर रहे हैं इस कारण जब वह अपने को बड़भागी समझने लगी और कन्हैया से कहते हैं कि देखो देखो माधव मुझे नहीं चला जाता मैं थक गई हूं इसलिए मुझे अपने कंधों पर उठा लो जब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं देखो राधे मैं बैठ नीचे बैठता हूं और तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओ जय भगवान श्री कृष्ण राधिका को अपने कंधों पर बिठाने के लिए नीचे बैठते हैं और राधिका भगवान के कंधों पर भेजने के लिए तैयार होती है जैसे बैठने के लिए तैयार हुई तो भगवान श्रीकृष्ण वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
हे राजन इस प्रकार जब राधिका भी विलाप करती ही भगवान श्री कृष्ण को खोजने लगी।।

हा हा नाथ परम हितकारी, कहां गए स्वच्छंद बिहारी। चरण शरण दासी मैं तेरी, कृपा सिंधु लीजै सुध मेरी।।


 उधर से गोपिया भी भगवान श्रीकृष्ण को खोज रही थी तो राधिका और गोपिया एक जगह जाती है और कहने लगी हे राधिका हमारे माधव कहां गए जब राधिका ने कहा देखो सखी हो मेरे मन में विवाद हो गया था इसलिए वह मेरे को कंधों पर बिठाने की बात कहकर के अंतर्ध्यान हो गए इस प्रकार से सभी गोपी का एक साथ सारे रास कुंज में भगवान श्रीकृष्ण को खोज करके विलाप करती हुई विरह में व्याकुल होती हुई यमुना के तट पर आ जाती है और सारी गोपियां बैठकर के भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति लगी है प्रार्थना करती है करवा दो अब तुम्हारे बिना एक पल भी हमें रहा नहीं जा रहा है अब तुम्हारा भी होगा हमसे नहीं हो रहा है हमसे हमें क्षमा करना हम जानती है कि हमारे अभिमान अभिमान हो गया था लेकिन अब हमें ज्ञान हो गया है हे प्रभु अब हमारे सामने प्रकट हो जाओ अगर इसी प्रकार से कुछ समय तक आप हमारे सामने नहीं प्रकट होंगे तो हम सब गोपिया तुम्हारे बिरहा में जलकर भस्म हो जाएंगे इस प्रकार से नाना प्रकार से व्याकुल होती भी गोपिया अश्रु धारा भारत ने लगी और भगवान श्रीकृष्ण से सुना प्रार्थना करती हुई उनकी स्तुति बंधन करने लगती है जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि गोपियों को का मन का अभिमान समाप्त हो गया है और अब वह मेरे को सहन नहीं कर पा रहे तो उसी समय देखते-देखते भगवान श्री कृष्ण सभी गोपियों के बीच में प्रकट हो जाते हैं श्री कृष्ण चंद्र भगवान की गोपियों ने अपने प्राण बंशीधर के बड़े प्रसन्न हो गई जैसे मानव शरीर में प्राणों का संचार हो गया अब इस प्रकार से गोपिया भगवान श्री कृष्ण को देख कर के और मेरे मन को दूर करने के लिए करने के लिए गंगा के पावन तट पर गोपियों को घेरा बना कर बैठ जाते हैं और सभी गोपिया भगवान श्री कृष्ण के आनंद को प्राप्त कर रही है और भगवान श्रीकृष्ण भी अपने भाव भंगिमा और के द्वारा सभी गोपियों को आनंदित कर रहे हैं किसी गोपी को अपना मुंह से पान खिलाते हैं तो किसी गोपी के चरण दबाते किसी गोपी के हाथ दबाने लगे किसी गोपी के बालों में हाथ चलाने लगी तो किसी गोपी के गालों पर हाथ चलाने लगे किसी गोपी के इस प्रकार से भगवान एक प्रकार से प्रकार के द्वारा सभी गोपियों को आनंदित करने लगे हैं।।

गोपियों के साथ महारास -:

राजन! इस प्रकार से  गोपियों को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने बहु रूप धारण किया अर्थात जितनी गोपियां थी उतने ही भगवान श्री कृष्ण अपने स्वरूप बनाते हैं।और यमुना पुलिन पर घेरा बनाकर एक गोपी एक कृष्ण के क्रम से घेरा बनाते हैं। उनमें भगवान महादेव भी चंद्र सखी का रूप बनाकर के महारास में सम्मिलित होते हैं।।


कृष्णा अंश मायाठई, भये अंग बहू देह।

 सबको सुख चाहत दियो, लीला परम स्नेह।।



द्वै द्वैगोपी जोरे हाथा, तिनके  बीच बीच हरि साथा।अपनी अपनी ढिग सब जाने, नहीं दूसरे की पहचाने ।।

अंगूरिन मे अंगूरीकर दिए, प्रफुल्लित फिरै संग हरी लिए।

बिचगोपी बीच नंदकिशोर, सगन घटा दामिनी चंहुऔर।।

 श्याम कृष्ण गोरी बृजबाला, मानहुं कनकनी नीलमणि माला।।

इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण गोपियों के साथ महारास रचने लगे, उस समय आकाश मंडल में समस्त देवी-देवता अपने-अपने परिवार सदस्यों के साथ विमानों पर आरूढ़ होकर  महारास का दिव्य दर्शन करने लगे ।और गोपियों के भाग्य की सराहना करने लगे, राजन! भगवान श्री कृष्ण भैया यमूना के पुलिनतट पर दो गोपियों के बीच में एक एक रूप बनाकर के घेरा बना लेते हैं। और प्रत्येक गोपी को इस प्रकार से लगने लगा कि श्रीकृष्ण मेरे पास ही है। अर्थात एक गोपी एक कृष्ण के क्रम से भगवान श्री कृष्ण महारास प्रारंभ करते हैं। भगवान श्री कृष्ण गोपियों के बीच में इस प्रकार से लगने लगे जैसे मानो आकाश मंडल पर तारों के बीच में चंदा विराजमान हो।भगवान श्री कृष्ण गोपियों के साथ वंशी बजाते हुए, नृत्य करने लगे और गोपियां भी भगवान श्री कृष्ण की बंसी के सुर में सुर मिला कर के गान करने लगी। इस प्रकार अनेक अनेक प्रकार के हावभाव कटाक्ष कर कर सुख लेते और देते हैं। और परस्पर रिज रिज हंस-हंसकर वस्त्र आभूषण निछावर कर रहे हैं।उसी समय ब्रह्मा रूद्र इंद्र आदि सब देवता और गंधर्व अपने-अपने स्त्रियों समेत विमानों में बैठ रास मंडल पर आनंद से फूल बरसाने लगे, उनकी स्त्रियां  सुख से कहती है कि जो हमारा भी जन्म ब्रज में गोपियों के रूप में होता।  तो हम भी हरि के साथ रास विलास करती और राग रागिनी का ऐसा समां बंधा हुआ होता। इस प्रकार तारामंडल  में चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा हो रही है। इस प्रकार यह रात्रि छ महीनों के बराबर व्यतीत हो गई लेकिन किसी ने नहीं जाना। तब इस रात्रि का न नाम ब्रह्म रात्रि हुआ।।
इस प्रकार रासलीला करते करते भगवान श्री कृष्ण के मन में विचार आया तो गोपियों को ले यमुना के जल मैं उतरकर जलक्रिडा करने लगे।इस प्रकार गोपियों का मनोरथ पूर्ण कर घड़ी रात बाकी रही। तब श्रीकृष्ण गोपियों से कहने लगे कि तुम अपने अपने घर जाओ। इतना सुनते हैं गोपियां उदास हो गई और कहने लगे प्रभु! अब यह मन आप से अलग होने की सोच भी नहीं सकता है।तब भगवान श्रीकृष्ण भोले गोपियों तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुमसे अलग हो रहा हूं मैं सूक्ष्म रूप से तुम्हारी अंतरात्मा में सदैव विद्यमान रहूंगा। तुम आठों पहर मेरे नित्य दर्शन करती रहोगी।  इतनी बात  सुनते ही संतोष कर गोपियां अपने अपने घर चली जाती है। और यह भेद उनके घर वालों में किसी ने नहीं जाना।।

राजा परीक्षित का संशय -:

इस प्रकार शुकदेव मुनि ने जब महारास की कथा राजा परीक्षित को सुनाई। तो राजा परीक्षित ने श्री सुखदेव मुनि से पूछा, कि हे दीन दयालु! आम मुझे समझा कर बताओ कि श्री कृष्ण चंद्र तो असुरों का वध कर पृथ्वी का भार उतारने के लिएअवतार लिए थे। फिर उन्होंने पराई स्त्रियों के साथ रास विलास क्यों किया। यह तो लंपट का कर्म है। तो कृपा करके मुझे बताइए मेरे मन में बडा संसय उत्पन्न हो रहा है।।

सुन राजा यह भेद न जान्यो, मानुष तन परमेश्वर मान्यो।

  जिनके सुमिरे पातक जात, तेजवंत  पावन होगात।।

 जैसे अग्नि सांझ कछु बरै, सोंऊअग्नि होयके जरै।।।

शुकदेव मुनि कहने लगे, देखो राजन! सबसे पहले सामर्थ्य वान व्यक्ति क्या नहीं कर सकते क्योंकि उनको उस कार्य की सामर्थ्य होती है। अर्थात जैसे भगवान श्री कृष्ण अंगुली पर पर्वत धारण कर सकते हैं लेकिन साधारण मनुष्य नहीं। जैसे शिवजी ने विश्व पान किया और कंठ का आभूषण बना लिया, काले सांप को गले का हार बना रखा है। कौन जाने उनका व्यवहार वे तो अपने लिए कुछ भी नहीं करते हैं। वे तो उनका भजन सुमिरन कर कोई वर मांगता है उसे वैसा ही वर देते हैं।दूसरा जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं। कि गोपियों की उत्पत्ति वेद की ऋचाओं  के रूप में, बड़े-बड़े महर्षि  ऋषियों के रूप में ब्रज में हुई है। और इस भांति श्री राधिका भी ब्रह्मा से वर पाकर श्री कृष्ण चंद्र जी की सेवा करने को जन्म लिया है।इसी प्रकार से देखो राजन! भगवान व साधु संत योग माया से कार्य करते हैं। क्योंकि लौकिक दृष्टि से वे हमें लौकीक कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन वस्तुत वे योग में स्थित होते हैं। जिस प्रकार से जल में तेल की बूंद सभी प्रकार से स्वतंत्र रहती है। उसी प्रकार से संत महापुरुष इस अलौकिक संसार में रहते हुए भी वे पूर्ण ब्रह्मानंद में रहते हैं। क्योंकि उनके कार्य यद्यपि लौकिक दिखाई पड़ते हैं लेकिन उन कार्यों में महापुरुषों की आसक्ति नहीं होती है। इसलिए हे राजन। भगवान श्री कृष्ण ने उन दिव्य संत महात्माओं  का मनोरथ पूर्ण किया है। जो ब्रज में दिव्या गोपियों के रूप में जन्म लिए हुए हैं।। 

।। जय बोलो रास रसिया लाल की।।

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

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