नंद बाबा का वरुण लोक गमन व वृंदावन वासियों का वैकुंठ दर्शन

वृंदावन वासियों को वैकुंठ लोक का दर्शन कराना


जय श्री राधे राधे

(८)

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं। कि हे राजन! इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने श्री गोवर्धन पर्वत को धारण कर देवराज इंद्र का मान भंग किया और अपना नाम गिरिधर धराया। इसी लीला प्रसंग में आज हम भागवत चर्चा में एक और भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला की चर्चा करते हैं।।

वरुण सेवक द्वारा नंद बाबा को वरुण पास में बांधकर वरुण लोग ले जाना -:

शुकदेव जी कहने लगे, कि हे राजन! एक दिन नंद बाबा ने एकादशी का उपवास किया और दिन भर  ईश्वर का नाम स्मरण किया और रात्रि में जागरण करके रात्रि व्यतीत की। जब रात्रि दो घड़ी शेष रही उसी समय द्वादशी का आगमन जान बाबा नंद यमुना तट पर स्नान करने के लिए आते हैं। और उनके पीछे कुछ गोप सखा भी यमुना स्नान के लिए आते है। जब नंदबाबा यमुना के जल में उतर कर  स्नान करने लगे तो वरुण के सेवक  नंद बाबा को वरुण पास में बांधकर वरुण लोक ले गया। क्योंकि अभी  प्रातः नहीं हुई थी। और अभी यमुना मैया का शयन काल था। जब गोपोलो ने जाकर भगवान श्री कृष्ण से कहा की बाबा नंद को वरुण सेवक बांध कर वरुण को ले गया। उसी समय भगवान तुरंत प्रभाव से वरुण लोग जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण को आया हुआ देख कर  वरुण देव अपने सिंहासन से खड़े होकर  दंडवत प्रणाम करने लगे। और त्राहिमाम त्राहिमाम कहने लगे। प्रभु कहो किस कारण से आपका आगमन हुआ है।
 हमसे कोई अपराध तो नहीं हुआ। भगवान श्री कृष्ण बोले हां निश्चित रूप से तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है। तुम नहीं जानते हो कि तुमने मेरे बाबा नंद को बंदी बनाकर
रखा है। यह सुनते ही वरुण थरथर कांपने लगा। चरणों में गिरकर कहने लगे प्रभु! क्षमा करना मुझे और मेरे सेवक को ज्ञात नहीं रहा। कि नंद बाबा तुम्हारे पिता है। प्रभु! मैं अभी बाबा नंद को मुक्त करता हूं। ऐसा कहकर नंद बाबा को मुक्त किया और क्षमा प्रार्थना की। फिर भगवान श्रीकृष्ण को सिंहासन पर बैठा कर  उनकी पूजा अर्चना की।

सफलजन्महै आज हमारो, पायो यदुपति दरस तुम्हारो। कीजैदोष दूर सब मेरे, नंद पिता इस कारण घेरे।। तुमको सब के पिता बखाने, तुम्हरे पिता नहीं हमजाने।।



 इसके बाद भगवान श्री कृष्ण बाबा नंद के साथ अपने वृंदावन धाम आते हैं।।

वृंदावन वासियों को वैकुंठ दर्शन कराना -:


 इस प्रकार जब नंद बाबा ने सभी वृंदावन वासियों को कहा कि जब वरुण सेवक मुझे वरुण लोक में बांधकर के ले गया। और तब हमारा कन्हैया वहां पहुंचा तो वरुण थरथर कांपता हुआ  अपने सिंहासन से उठकर  कन्हैया के चरणों में गिरकर क्षमा प्रार्थना करने लगा। और मुझे तत्काल बंधन मुक्त किया। और मेरे से भी उसने क्षमा मांगी। और फिर कन्हैया को उसके सिंहासन पर बैठा कर पूजा अर्चना की।इस प्रकार जब बाबा नंद ने वृंदावन वासियों को बताया। वृंदावन वासी विचार कर कहने लगे। नंद बाबा हमने तो पहले ही कहा था। कि हो न हो हमारा कन्हैया निश्चित रूप से नारायण का अवतार है। जिस तरह से इसने 7 कोस के गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर धारण किया। वह कोई साधरन कार्य नहीं था। इस प्रकार कहते हुए। जब वृंदावनवासी भगवान श्रीकृष्ण से कहने लगे। कृष्ण! अब हम तुम्हारे वैभव को जान चुके हैं। निश्चित रूप से तुम भगवान नारायण के अवतार हो। और पृथ्वी का भार दूर करने के लिए बाबा नंद के घर अवतार लिए हो। कन्हैया! क्या तुम हम गवारो को भी तुम्हारा वह दिव्य वैकुंठ लोक के दर्शन कराओगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा अगर तुम्हारी ऐसी इच्छा है। तो मैं तुम्हें दिव्य वैकुंठ लोक के अवश्य दर्शन कर आऊंगा। जाओ सभी यमुना में डुबकी लगाओ। निश्चित रूप से तुम्हें वैकुंठ लोक के दर्शन होंगे। जब सभी वृंदावन वासी यमुना के जल में डुबकी लगाई तो देखा कि उनका कन्हैया वैकुंठ लोक की सरसैया पर विराजमान हैं। और सभी देवी देवता उनकी सेवा में खड़े हैं। नाग गंधर्व किन्नर यक्ष सब हाथ जोड़े प्रभु की सेवा में खड़े हैं।  सारा निखिल ब्रह्मांड प्रभु से प्रकाशित हो रहा है। ऐसा दिव्य वैकुंठ दर्शन जब वृंदावन वासियों ने किया। और अपना जीवन धन्य बनाया। सारे वृंदावन वासी भगवान श्री कृष्ण की  जय-जयकार करने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया का ऐसा प्रभाव बनाया। कि सभी वृंदावन वासियों को यह सब एक स्वप्न लगा और वे  पूर्वकी भांति श्री कृष्ण को अपना लाल मानकर के प्रेम करने लगे।।

।।जय बोलो श्री कृष्ण चंद्र भगवान की।।

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