Danveer Karan ki love story (दानवीर कर्ण की प्रेम कहानी)

जय श्री राधे राधे

कर्ण का विवाह
महादानी सूर्यपुत्र कर्ण -:

जैसा कि हम सब जानते हैं कि सूर्यपुत्र महादानी कर्ण महाभारत का ऐसा पात्र था। जिस का संपूर्ण जीवन सूर्यपुत्र व कुंती पुत्र होने के बावजूद भी कुंठाओ से भरा रहा है। और जीवन के हर मोड़ पर अपमान का विष पीता रहा है। क्योंकि महारानी कुंती ने विवाह से पूर्व ही कर्ण को भगवान सूर्यदेव से प्राप्त करके लोक भय के कारण नदी में बहा दिया था। तब उसे महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ  की पत्नी ने राधा  नदी से बाहर निकाला  और  प्रेम व ममता के आंचल में पालन पोषित किया। अतः सूर्यपुत्र कर्ण राधेय कहलाया।। जब कर्ण बडा हुआ और शस्त्र विद्या प्राप्त करना चाहता था। तो उसके पिता अधिरथ जब कर्ण को गुरु द्रोणाचार्य के पास शिक्षा दिलवाने के लिए ले जाते हैं। तो द्रोणाचार्य ने यह कहकर शिक्षा देने से मना कर दिया कि वह क्षत्रिय राजवंश का नहीं है। और वे केवल क्षत्रिय राजकुमारों को ही शस्त्र विद्या प्रदान करते हैं। तब कर्ण निराश होकर  अपने पिता के साथ लौट आता है। तत्पश्चात गुरु परशुराम से शिक्षा प्राप्त करता है। लेकिन अंत में गुरु परशुराम ने भी कर्ण को श्राप दिया कि उसने ब्राह्मण बनकर  उन से शिक्षा प्राप्त कि है। अतः जब उसे जीवन में उनकी शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, वह शिक्षा उस समय उसके काम नहीं आएगी। इस प्रकार जब कुरु वंश के राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हुई। तब गुरु द्रोणाचार्य से अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित करते हैं। उसी समय महारथी अर्जुन वहां पहुंचकर अर्जुन को धनुर्विद्या में  ललकार हैं। लेकिन गुरु द्रोण व अन्य उपस्थित सभासदों ने कहा कि कर्ण और अर्जुन की प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती क्योंकि कर्ण क्षत्रिय नहीं है। वह तो एक सारथी का पुत्र  पुत्र है। जब इस प्रकार भरी सभा में महारथी कर्ण का सूत पुत्र कहकर उपवास किया जा रहा था। उसी समय युवराज दुर्योधन  ने कर्ण की वीरता का सम्मान करते हुए, उसे उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाला देश अंग का राजा बना देता है। यहां से ही कर्ण और दुर्योधन की मित्रता प्रारंभ होती है।। कर्ण को जब युवराज दुर्योधन ने अंग देश का राजा बनाया तो कर्ण ने शपथ ली कि मैं तुम्हारे इस उपकार को कभी भी नहीं भूलूंगा और जीवन में कभी तुमसे अलग नहीं होऊंगा।

कर्ण व पद्मावती का प्रथम मिलन -:

बात उस समय की है। जब पांचाल नरेश अपनी दिव्य जन्मा द्रोपदी का स्वयंवर कर रहे थे। और उस स्वयंवर में शर्त रखी गई थी। कि जो भी शूरवीर नीचे रखे हुए जल में घूमते हुए मत्स्य  की आंख का भेदन करेगा उससे ही द्रौपदी का स्वयंवर होगा। अतः इस स्वयंवर में भारतवर्ष के सभी राजा महाराजाओं ने भाग लिया। लेकिन किसी ने भी  महाराज द्रुपद के प्रण को पूर्ण नहीं किया। तब अंगराज कर्ण ने रखे हुए धनुष को उठाकर उसपर प्रत्यंचा चढ़ाई तो सभी उपस्थित राजा अचंभित रह गए। लेकिन उसी समय द्रुपद नंदनी दिव्य जन्मा द्रोपदी ने यूं कह कर  अंगराज कर्ण को लक्ष्य भेदन से मना कर दिया ।कि वह किसी सूत पुत्र के साथ विवाह नहीं करना चाहती है। तब द्रोपदी के इन कटु वचनों से अपमानित होकर  अंगराज कर्ण अपने राज्य को प्रस्थान करते हैं।। इस प्रकार जब अंगराज कर्ण एकाग्र मनसा होकर दुखी हृदय से अपने राज्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे ।उसी समय एकांत जंगल में एक अद्भुत घटना घटित होती है ।कि उन्होंने देखा कि कुछ उपद्रवी आतंकवादी दो युवतियों को घेरकर उनकी इज्जत से खेलना चाह रहे थे। दरअसल उन में जो दो युवतियां थी। उनमें से एक राजा चित्रवत की पुत्री अंसावरी व  दूसरी उसकी दासी धूम सेन की पुत्री पद्मावती थी। जब दुराचारीयो ने राजकुमारी अंसावरी को घेर कर उसकी इज्जत से खेलना चाहा। तो पद्मावती ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना अपनी राजकुमारी अंसावरी के सामने आकर खड़ी हो जाती है। और दुराचारीयो से लोहा लेती है। उसी समय महाराज दानवीर कर्ण का आगमन होता है। इस घटना को देखकर कर्ण ने अपने बाणो के द्वारा सभी दूराचारीयो को मार गिराया परंतु उसी समय पीछे से किसी एक दुराचारी ने अंगराज कर्ण के मस्तिक पर वार किया। जिससे अंगराज कर्ण मूर्छित हो जाते हैं।  उस समय राजकुमारी अंसावरी भी कुछ मूर्छित हो जाती है। तब राजकुमारी की दासी पद्मावती अंगराज कर्ण व राजकुमारी अंसावरी को रथ में बिठाकर राजभवन लाती है। और राजकुमारी अंसावरी को राजभवन पहुंचाती है। तत्पश्चात अंगराज कर्ण को अपने पिता के घर ले आती है। घर ला कर पद्मावती के पिता ने वैद्य को बुलवाया और वैद्य के उपचार से  अंगराज कर्ण की मूर्छा दूर हो आती है। जब अंगराज कर्ण की मूर्छा भंग हुई। तो देखा उनके पास बैठी हुई पद्मावती उनकी सेवा कर रही है ।कर्ण ने पद्मावती को अपनी सेवा करते हुए देखा तो प्रेम भरी नजरों से पद्मावती को देखने लगे। और कहने लगे हैं देवी! मैं यहां कैसे पहुंचा? तब पद्मावती ने सारा वृत्तांत कह सुनाया। यहां से अंगराज कर्ण और पद्मावती के मन में आपसी प्रेम के अंकुर प्रस्फुटित हो जाते हैं। उसी समय महाराज चित्रवत का सैनिक संदेश लेकर के अंगराज के पास आता है। और निवेदन करता है कि  अंगराज कर्ण को महाराज ने अपने राज्य भवन आने को निमंत्रण भेजा है। तब अंगराज कर्ण सैनिक के साथ महाराज चित्रवत के राजभवन आते हैं। और राजभवन में राजकुमारी अंसावरी महाराज अंगराज कर्ण का स्वागत सत्कार अभिनंदन करती है।

कर्ण व राजकुमारी अंसावरी का प्रेम -:


इस प्रकार जब कर्ण महाराज चित्रवत के राजभवन पहुंचे। वहां पर राजकुमारी अंसावरी ने उनका स्वागत किया। और राजकुमारी के पिता महाराज चित्रवत  हाथ जोड़कर  कर्ण का स्वागत सत्कार अभिनंदन करने के साथ-साथ उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। और कहा कि आपने आज मेरे ऊपर मेरी पुत्री राजकुमारी अंसावरी के प्राण बचाकर बहुत बड़ी कृपा की है। मेरी इच्छा है कि आप कुछ दिन रुक कर मेरा आतिथ्य स्वीकार करें। तब कर्ण ने राजा चित्रवत का आतिथ्य स्वीकार करने की स्वीकृति प्रदान की। और अंगराज कर्ण कुछ समय राजा चित्रवत के राज भवन में निवास करने लगे। उसी दौरान राजकुमारी अंसावरी व कर्ण के बीच में प्रेम का रिश्ता मजबूत होता चला गया। राजकुमारी अंसावरी ने अपने मन की बात  अपनी सखी व दासी पद्मावती को बताती है। तब पद्मावती कर्ण के प्रति अपने प्रेम को मन में छिपा लेती है। इस प्रकार पद्मावती मन ही मन बहुत उदास रहने लगी। जब कुछ समय व्यतीत हुआ तब अंगराज कर्ण ने राजकुमारी अंसावरी से कहा कि अब हमें तुम्हारे हाथ मांगने के लिए तुम्हारे पिताजी से बात करनी चाहिए। तब राजकुमारी अंसारी ने भी स्वीकृति प्रदान की। तब अंगराज कर्ण राजकुमारी अंसारी के पिता श्री महाराज चित्रवत  से हाथ जोड़कर  प्रार्थना करने लगे कि महाराज! मैं आपसे कुछ मांगना चाहता हूं। तब राजा चित्रवत ने कहा कि हे अंगराज कर्ण! आपने हमारे ऊपर इतना उपकार किया है। कि हम अपने प्राण भी तुम्हें सहर्ष दे सकते हैं। मांगो क्या मांगना चाहते हो। तब अंगराज कर्ण ने कहा कि हे राजन! मैं आपके प्राण नहीं मनाता हूं मैं आपसे आप की पुत्री राजकुमारी अंसावरी का हाथ मांगना चाहता हूं। क्योंकि मैं और अंसावरी एक दूसरे को प्रेम करते हैं। और इस प्रेम को परण्य सूत्र में बांधना चाहते हैं। यह सुनते ही राजा चित्रपट क्रोधित हो गए और कहने लगे।हे अंगराज कर्ण! मैं तुम्हारे पराक्रम और वीरता का कायल हूं ।उसका सम्मान करता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम हमारे बराबर के हो गए हो। क्योंकि हम क्षत्रिय हैं और मेरी कन्या का विवाह किसी क्षत्रिय के साथ ही होगा। और तुम क्षत्रिय नहीं हो तुम सूत पुत्र हो ।इसलिए मेरी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ कदापि संभव नहीं है ।अंगराज कर्ण ने कहा कि भगवन तुम्हारी पुत्री अंसारी भी तो मुझसे प्रेम करती है और मेरे साथ विवाह करना चाहती है। तब चित्रवत ने कहा कि शायद मेरी पुत्री को तुम्हारे सूत पुत्र होने का ज्ञान नहीं होगा। जब कर्ण ने अंसावरी से जाकर पूछा तो अंसावरी ने भी अपनी अस्वीकृति प्रदान की। और कहा कि मैं अपने पिता की इच्छा के विपरीत नहीं जा सकती हूं। अतः  अंगराज! तुम्हारा और मेरा यह विवाह कदापि संभव नहीं है। तब अंगराज कर्ण ने कहा कि हे अंसावरी अगर ऐसा ही था तो तुमने मेरे साथ प्रेम क्यों किया। काफी तर्क वितरक हुए। अंत में अंगराज कर्ण दुखी होकर वहां से विदा होकर अपने राज्य को लौट आते हैं। यह दूसरा अवसर था। जब अंगराज कर्ण का सूत पुत्र होने के कारण किसी राजकुमारी के साथ विवाह नहीं हुआ।

सुत पुत्री पद्मावती व कर्ण का विवाह -:

इस प्रकार जब कुछ समय व्यतीत हुआ। कर्ण मन ही मन अपने इस अपमान की ग्लानि में जलता रहा। कुछ समय बाद राजा चित्रवत ने अपनी पुत्री राजकुमारी अंसावरी का स्वयंवर किया। उससे स्बवयंर में दूर-दूर के राजाओं को आमंत्रित किया गया। जब  राजकुमारी अंसावरी का स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। खंड खंड के राजा स्वयंवर में आए हुए थे। उसी समय भगवान सूर्य देव के कहने से अंगराज कर्ण भी धनुष और बाण लेकर  राजकुमारी अंसावरी के स्वयंवर में पहुंचते हैं। कर्ण को स्वयंवर में आया हुआ देखकर राजकुमारी अंसावरी के पिता महाराज चित्रवत क्रोधित हुए। और कर्ण का अपमान करते हुए कहने लगे कि हे कर्ण!  तुम्हारा इतना दुस्साहस कि तुम बिन बुलाए मेरी पुत्री के स्वयंवर में आए हो। तुम्हें किसने बुलाया था। जो तुम यहां चले आए हो। तुम्हें शायद पता नहीं तुम सुतपुत्र हो। इस प्रकार जब चित्रवत ने कहा। तो अंगराज कर्ण ने कहा कि हे चित्रवत! हां मैं सुतपुत्र हूं। फिर भी मैं तुम सभी को एक साथ युद्ध के लिए ललकारता हूं। ऐसा कह कर  अंगराज कर्ण ने अपने बाणो द्वारा सभी आए हुए राजाओं सहित महाराज चित्रवत को बाणो से अपने-अपने सिंघासनो पर ही बांध दिया। सभी राजा और महाराजा  नतमस्तक हो गए। सभी ने अंगराज कर्ण की दासता स्वीकार की।तब अंगराज कर्ण ने कहा कि हे महाराज चित्रवत! क्या अब मैं तुम्हारी पुत्री राजकुमारी अंसावरी से विवाह कर सकता हूं। अगर हां तो अपनी पुत्री को आज्ञा दें कि वह अपनी जयमाला मुझे पहना कर  पति रूप में वरण करें।
तब राजा चित्रवत ने अपनी पुत्री राजकुमारी अंसावरी को कर्ण के गले में वरमाला पहनने का आदेश दिया। तो राजकुमारी अंसावरी वरमाला लेकर कर्ण के गले में वरमाला पहनाने लगी।उसी समय अंगराज कर्ण दो कदम पीछे हट जाते हैं। और कहने लगे हे सुंदरी! राजकुमारी! मैं तुम जैसी स्वार्थ प्रस्थ और मौकापरस्त कुमारी  से विवाह नहीं करना चाहता। मैं तो उससे विवाह करना चाहता हूं। जिसके हृदय में मेरे प्रति सच्चा प्रेम हो ऐसा कह कर के अंगराज कर्ण पास में खड़ी पद्मावती के समीप जाते हैं। और कहने लगे हे सूत कुमारी! क्या तुम्हारे हरदे में मेरे प्रति प्रेम है। तब पद्मावती ने अपनी स्वीकृति दी। तो अंगराज कर्ण ने उसे स्वीकार किया। पद्मावती ने अपने हाथों से अंगराज कर्ण के गले में वरमाला पहनाकर अंगराज कर्ण को पति रूप में वरन किया। इस प्रकार अंगराज कर्ण ने राजकुमारी अंसावरी का मान मर्दन करके, उसकी सखी व दासी धूमवत सेन की पुत्री पद्मावती से विवाह किया। और उसे आनंद के साथ अपने राजभवन लाते हैं। इस प्रकार अंगराज कर्ण ने पद्मावती के साथ विवाह किया और उनके पुत्र का नाम था वृष केतु वही एकमात्र राजकुमार था जो महाभारत के युद्ध में जीवित बचा था। इस प्रकार महाभारत के युद्ध के बाद पद्मावती व उसके पुत्र बृष केतु को पांडव हस्तिनापुर ले आते हैं। और उस के सहयोग से भगवान श्री कृष्ण जी की छत्रछाया में अश्वमेघ यज्ञ संपादित करते हैं।।



।।  जय श्री राधे राधे।।

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

 9414657245


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