जन्म कुंडली में आत्म कारक ग्रह विचार -:
आज हम जन्म कुंडली में आत्म कारक ग्रह का विश्लेषण की चर्चा करते हैं क्योंकि जन्म कुंडली में आत्मकारक ग्रह सभी ग्रहों का राजा होता है और सभी ग्रह उसके प्रभाव में रहते है।
१, महर्षि पाराशर कहते हैं कि सूर्य से राहु पर्यन्त आठ ग्रहों में से एक ग्रह आत्म कारक ग्रह होता है।
२ जन्म कुंडली में सूर्य से राहु पर्यन्त ग्रहों में से जिस ग्रह के अंश सर्वाधिक होते हैं वह ग्रह जातक का आत्म कारक ग्रह माना जाता है।
३, यदि जन्म कुंडली में एक से अधिक ग्रहों के सर्वाधिक अंश समान हो उस दशा में समान सर्वाधिक अंक प्राप्त ग्रहों के कला का विचार करेंगे, जिस ग्रह कि कला अधिक होगी वह आत्म कारक माना जाएगा और यदि कला भी समान हो तब हम विकला का विचार करेंगे और जिस ग्रह की विकला अधिक होगी उसी ग्रह को आत्म कारक माना जाएगा।
४, जिस प्रकार संसार में राजा धर्म कर्म बंधन व मोक्ष का अधिकारी होता है और पुत्र, प्रजा उसके धर्म-कर्म का सम्मान करते हैं। उसी प्रकार कुंडली में आत्म कारक ग्रह के अधीन रहकर सभी ग्रह अपना फल देते हैं।
५, जिस प्रकार लौकिक संसार में भी राजा के अप्रसन्न होने पर पुत्र, मंत्री आदि अपने मन के अनुसार प्रसन्न होकर कार्य नहीं करते हैं और राजा के प्रसन्न होने पर मंत्री आदि अपने शत्रु का भी किसी प्रकार का अहित नहीं करते हैं उसी प्रकार कुंडली में आत्म कारक ग्रह के स्वभाव के अनुरूप अन्य भाव के कारक ग्रह कार्य करते हैं।
६ ,आत्मकारक ग्रह से कम अंश वाला ग्रह अमात्य कारक होता है और अमात्य कारक ग्रह से कम अंश वाला ग्रह भ्राता कारक ग्रह होता है तथा भ्राता कारक ग्रह से कम अंश वाला ग्रह माता कारक ग्रह होता है माता कारक ग्रह से न्यून अंश वाला ग्रह पुत्र कारक होता है पुत्र कारक ग्रह से कम अंश वाला ग्रह प्रजा कारक(जाती कारक) होता है इससे भी कम अंश वाला ग्रह स्त्री कारक ग्रह माना गया है इस प्रकार सात कारक ग्रह बताए गए हैं और इन सबका राजा आत्म कारक ग्रह होता है।
इस प्रकार जन्म कुंडली फलादेश के समय हमें कुंडली में आत्मक ग्रह और अन्य कारक ग्रह को अच्छी तरह समझ कर के फलादेश करना चाहिए।
आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245
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