सूर्य की महादशा में अन्य ग्रहो की अंतर्दशा का फल

 सूर्य की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा फल -:

जब किसी भी जातक के जीवन में सूर्य की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा आती है तो यदि जातक की जन्म कुंडली में सूर्य शुभ भाव में स्थित होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट होता है तो जातक के लिए राज्य लाभ प्राप्ति कराने के साथ-साथ यस वृद्धि, उर्जा में वृद्धि व मान सम्मान में वृद्धि कराता है। धन आगमन के अवसर प्रदान करता है साथ ही यदि जन्म कुंडली में सूर्य पाप भाव का स्वामी होकर विद्यमान हो तो जातक को जीवन में सूर्य से संबंधित कारकों में अलाभ प्राप्ति के योग बनाता है जैसे पिता के स्वास्थ्य में गिरावट का होना, पिता के वियोग का भय, राज्य से अनिष्ट की आशंका, साथ ही उर्जा में कमी व ज्वरादि रोग उत्पन्न करता है।

सूर्य की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा  फल -:

जब जातक के जीवन में सूर्य की महादशा के अंतर्गत चंद्रमा की अंतर्दशा आती है तो जातक को उन भावों से संबंधित अच्छे फल प्राप्त होते हैं। यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हो और बलवान हो, तब चंद्रमा जिस भाव में विद्यमान हो और जिस भाव को देख रहा हो उन भाव से संबंधित फलों में वृद्धि करता है। और यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा सेन पाप ग्रहों से दृष्ट किया कमजोर तथा पाप भाव का स्वामी हो तब उस स्थिति में चंद्रमा जातक को संबंधित भाव से संबंधित अर्थात जिस भाव में विद्यमान हैं और जिस भाव को देख रहा है उस भाव के फलों में कमी को करता है और उन भावों के सुपरे नामों को बिगड़ता है। इस प्रकार सामान्य रूप से यदि चंद्रमा शुभ हो तो जातक को जीवन में यश, शांति, माता के स्वास्थ्य में शुभता तथा शत्रुओं का नाश कराता है।

सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा -:

जब जातक के जीवन में सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा आती है तो सामान्य रूप से यदि जन्म कुंडली में मंगल शुभ भाव का स्वामी हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट होने के साथ-साथ बलवान हो तो जातक को जिस भाव में विद्यमान हो और जिन भावों को देख रहा हो तथा जिस भाव का स्वामी हो उनके प्रभावों में शुभ परिणाम प्रदान करता है और फल में वृद्धि करता है। यदि जन्म कुंडली में मंगल पाप भाव में विद्यमान हो अथवा नीच राशि में विद्यमान हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो उस स्थिति में मंगल जिस भाव में विद्यमान हो और जिन भावों को देखता हो तथा जिस भाव का स्वामी हो उनसे संबंधित फलों की शुभता में न्यूनता लाता है। और अशुभता को बढ़ाता है अर्थात यदि मंगल जन्म कुंडली में खराब हो तो जातक को शत्रुओं से भय, राज से भय तथा अपने परिवार जनों से भय होने के साथ-साथ जातक रुग्णता से पीड़ित होता है।

सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा फल -:

जातक के जीवन में सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा अधिकतर अशुभ फल प्रदान करने वाली ही होती है। इस समय के दौरान जातक को शत्रुओं से भय होता है अनेकों प्रकार के कष्टों की आने की आशंका होती है। धन हानि की प्रबल संभावनाएं बनती है। बनते कार्य में रुकावटें होती है। मस्तिक संबंधी रोग उत्पन्न होते हैं। नेत्र रोग उत्पन्न होते हैं तथा पराक्रम में क्षीणता आती है। इस प्रकार राहु जन्म कुंडली के जिस भाव में  विद्यमान होता है और जिन भावों पर दृष्टि संबंध बनाता है उन भाव से संबंधित कार्यों को बिगड़ता है परंतु राहु जातक को सांसारिक भोगों के प्रति आकृष्ट करता है।

सूर्य की महादशा में गुरु की अंतर्दशा फल -:

सामान्यतः सूर्य की महादशा में गुरु की अंतर्दशा शुभ फल प्रदान करने वाली होती है। विषम परिस्थिति में ही अर्थात जब जन्म कुंडली में गुरु प्रबल  मारक हो या अनिष्ट भाव का स्वामी हो उस स्थिति में ही जातक को अशुभता प्रदान करता है। अन्यथा शुभ फल प्रदान करने वाला होता है सूर्य की महादशा में गुरु जातक को सम्मान, धार्मिक कार्यों में रुचि को बढ़ाने वाला, धन आगमन व जन्म कुंडली के जिस भाव में विद्यमान होकर जिस भाव का स्वामी हो और जिन भावों से दृष्टि संबंध बनाता  हो उनसे संबंधित भावों के शुभ फलों की वृद्धि करता है। साथ ही विशेष कर बृहस्पति जिन कारक तत्वों का कारक होता है उनसे संबंधित फलों की शुभता में वृद्धि करता है।

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा फल -:

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा जब जातक के जीवन में आती है तो जातक को पुत्र वियोग हो, धन हानि, असाध्य रोगों से पीड़ा, व गुरु तुल्य पिता चाचा गुरु इत्यादि श्रेष्ठ जन्म की मृत्यु का वियोग,, पत्नी के स्वास्थ्य में गिरावट, खर्चों में अधिकता, साथ ही आय स्रोतों में कमी को करता है। इस प्रकार शनी जातक को कफ जनित रोग से पीड़ित करता है।

सूर्य की महादशा में बुध की अंतर्दशा का फल -:

सूर्य की महादशा में बुध की अंतर्दशा के दौरान जातक को सामान्य रूप से वात कफ व रक्त संबंधित रोगों की बहुतायत होती है। साथ ही वाणी में विकार उत्पन्न होता है जातक अपनी वाणी के कारण ही अपना अहित करता है।और यदि बुध जन्म कुंडली में शुभ भाव में विद्यमान होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो संबंधित भाव के फलों में वृद्धि भी करता है।अतः बुध यदि जन्म कुंडली में शुभ हो तो जातक को ऐसो आराम के संसाधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ वाणी में प्रभाविता उत्पन्न करता है और विलासिता के साधनों में वृद्धि करता है।

सूर्य की महादशा में केतु की अंतर्दशा फल -:

जातक के जीवन में जब सूर्य की महादशा में केतु की अंतर्दशा आती है तो जातक को अपने परिवार जनों से विरोध का सामना करना पड़ता है। किसी अपने अभिन्न मित्र का वियोग सहन करना पड़ता है या किसी अपने प्रियजन की मृत्यु होती है। साथी जातक को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है क्योंकि केतु और सूर्य आपस में प्रबल शत्रु होने के कारण केतु मुख्य रूप से अनिष्ट फल ही प्रदान करने वाला होता है। अतः केतु जातक को मानसिक पीड़ा व धन हानि के साथ साथ पराक्रम को क्षीण करता है।

सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का फल -:


सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा जब जातक को आती है तो जातक को सांसारिक सुखों में कमी आती है। सिर में पीड़ा, पेट संबंधित व गुदा संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं। यदि जन्म कुंडली में शुक्र विशेषकर पापभाव में विद्यमान हो तो जातक की स्त्री के स्वास्थ्य में गिरावट, संतान पक्ष के स्वास्थ्य में कमी, व अनावश्यक कार्यों में धन खर्च करवाने के साथ-साथ जातक को सांसारिक भोगों के प्रति आकर्षित करता है।


आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245







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