अस्त ग्रह विचार

 सूर्य के साथ ग्रहों की अस्त अवस्था -:

जन्म कुंडली अध्ययन में ग्रहों का बलाबल देखना सबसे महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि ग्रह बलवान होने की स्थिति में अपने स्वभाव के अनुरूप फल प्रदान में वृद्धी करते हैं और ग्रह यदि बल हीन होता है तो वह अपना प्रभाव नहीं दे पाता है। इसी क्रम में ग्रह यदि सूर्य से अस्त हो तो वह फल नहीं दे पाता है। यदि कोई शुभ ग्रह सूर्य से अस्त हो जाता है तो वह अपना फल नहीं देगा यह जातक के लिए अच्छा नहीं होता है किंतु यदि कोई पाप ग्रह सूर्य से अस्त होता है तो अपना पाप फल जातक को नहीं दे पाता है जो कि जातक के हित में अच्छा सिद्ध होता है। तो आइए जानते हैं कि ग्रह किस प्रकार सूर्य से अस्त होकर निष्क्रिय हो जाते हैं। सबसे पहले इस प्रसंग में हम जानते हैं कि राहु और केतु को छोड़कर अन्य ग्रह चंद्रमा मंगल बुध गुरु शुक्र शनि सूर्य से अस्त हो जाते हैं किंतु राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण सूर्य से अस्त नहीं होते हैं अपितु सूर्य को ग्रहण लगा देते हैं। तो आइए जानते हैं कि कौन सा ग्रह कितनी डिग्री तक सूर्य के निकटस्त होने पर अस्त होता है।

चन्द्र -

चंद्रमा सूर्य से 12 डिग्री तक निकट होने की स्थिति में अस्त होता है और 12 से ऊपर अगर चंद्रमा और सूर्य की डिग्री में अंतर होता है तो चंद्रमा एक साथ सूर्य के साथ विद्यमान होकर अस्त नहीं माना जाता है।


मंगल -

 मंगल सूर्य से 17 डिग्री तक अस्त होता है अर्थात जब सूर्य से मंगल एक भाव पीछे या एक भाव आगे अथवा युक्ति बनाकर विद्यमान हो और उनकी डिग्री में 17 डिग्री तक का अंतर हो तो मंगल अस्त होगा और 17 से ऊपर मंगल अस्त नहीं होगा।


बुध -

बुध सूर्य से निकटस्त होने की स्थिति में 13 डिग्री तक अस्तमाना जाता है 13 डिग्री से ऊपर यदि सूर्य और बुध की डिग्री में अंतर हो तो बुध अस्त नहीं माना जाता है।



गुरु -

गुरु 11 डिग्री तक अस्त होते हैं 11 से ऊपर अस्त् नहीं होते हैं।


शुक्र -

शुक्र 9 डिग्री तक अस्त होते हैं इससे ऊपर अस्त नहीं माने जाते हैं।


शनी -

शनि देव सूर्य से 15 डिग्री तक अस्त होते हैं 15 से ऊपर अस्त नहीं होते हैं।

जैसे -:


जैसे माना कि मेष लग्न की कुंडली है और उसमें के दसवें भाव में सूर्य 5 डिग्री, चंद्रमा 12 डिग्री, बुध 27 डिग्री के साथ विद्यमान है। यहां डिग्री का अर्थ होता है कि प्रत्येक ग्रह एक राशि में 30 डिग्री तक चलता है। यहां दशम भाव की मकर राशि में सूर्य 5 डिग्री तक चल चुके हैं चंद्रमा 12 डिग्री तक चल चुके हैं और बुध 27 डिग्री तक चल चुके हैं। अब हम यहां देखते हैं कि सबसे पहले सूर्य के साथ चंद्रमा एक साथ विद्यमान होने के कारण क्या अस्त हो गया है? इसके लिए हम चंद्रमा और सूर्य की डिग्री का अंतर निकालेगे अर्थात 12-5=7इसका मतलब हुआ कि चंद्रमा और सूर्य के मध्य 7 डिग्री का अंतर हैऔर हम जान चुके हैं कि चंद्रमा सूर्य के निकटस्त होने पर 12 डिग्री तक अस्त होता है और यहां सूर्य और चंद्रमा के मध्य 7 डिग्री का अंतर है तो सूर्य से चंद्रमा अस्त माना जाएगा और चंद्रमा अपना फल नहीं देगा। इसी प्रकार सूर्य और बुध जो कि एक साथ यूति में विद्यमान हैं और उनकी डिग्री में 27-5=22 डिग्री का अंतर है
अतः सूर्य से बुध अस्त नहीं होंगे  क्योंकि बुद्ध 13 डिग्री तक की अस्त होते हैं और यहां सूर्य बुध की डिग्री में 22 डिग्री का अंतर है। इसलिए सूर्य के साथ विद्यमान होकर भी बुध अपना संपूर्ण फल देने। इसी प्रकार माना कि इसी कुंडली के एकादश भाव में मंगल 4 डिग्री के साथ विद्यमान है। अब यहां यह देखना है कि क्या सूर्य देव मंगल को अस्त कर पाएंगे क्योंकि मंगल सूर्य से एक भाव आगे हैं अर्थात निकटस्त भाव में है।इसके लिए हम देखेंगे कि सूर्य को अगले भाव में जाने के लिए कितनी डिग्री और चलना है। तो हम देखते हैं कि सूर्य 5 डिग्री तक दशम भाव में चल चुके हैं और अगले भाव में जाने के लिए 30-5=25 डिग्री और चलना होगा। और मंगल ग्यारहवें भाव में 4 डिग्री पहले से ही चल चुके हैं। यहां सूर्य और मंगल की डिग्री में अंतर हो गया 25+4=29 इसलिए मंगल देव सूर्य से अस्त् नहीं होंगे क्योंकि मंगल 17 डिग्री तक की अस्त होते हैं। इसी प्रकार पिछले भाव में भी सूर्य ग्रह को अस्त किस प्रकार करते हैं। जानते हैं कि माना इसी उदाहरण कुंडली के नवम भाव में शुक्र 28 डिग्री के साथ विद्यमान हैं और अगले भाव अर्थात दशम भाव में सूर्य 5 डिग्री के साथ विद्यमान है। इसका अर्थ हुआ कि शुक्र को दशम भाव में जाने के लिए 2 डिग्री और चलना होगा और सूर्य वहां 5 डिग्री चल चुके हैं। शुक्र और सूर्य के मध्य डिग्री का अंतर हुआ 5+2=7 इस कारण यहां शुक्र देव सूर्य से अस्त माने जाएंगे क्योंकि शुक्र 9 डिग्री तक अस्त होते हैं अतः शुक्र अपना फल नहीं दे पाएंगे।



आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245



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