स्त्री कुंडली विवेचन

 स्त्री कुंडली विवेचन 

दांपत्य जीवन में सुख व खुशहाल जीवन के लिए वर्तमान परिवेश में वर कुंडली के साथ-साथ वधू कुंडली का भी संपूर्ण विश्लेषण करना अति आवश्यक है ताकि आने वाले कष्टों से सचेत रहा जा सके। क्योंकि ऐसा कोई दुर्योग नहीं है जिसका शास्त्र में उपाय नहीं हो यदि ईश्वर ने जन्म कुंडली में दुर्योग का निर्माण किया है तो उनके उपाय भी बनाए हैं। अतः जीवन में किसी भी प्रकार की दूर्योग से निराश नहीं होना चाहिए अपितु समय पर उनका उचित उपाय करके उनका निवारण करना चाहिए। जिससे हमारा जीवन खुशहाल बन सके। तो आइए आज के विषय में हम स्त्री कुंडली विवेचन की परिचर्चा करते हैं।

१,जिस स्त्री की जन्म कुंडली में लग्न ने वह चंद्रमा सम राशि में विद्यमान हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसी स्त्री सौम्य स्वभाव वाली पुत्र वान, सुशीला, व गृह लक्ष्मी स्वरूपा होती है। इसके विपरीत यदि स्त्री जन्म कुंडली में लग्नेश व चंद्रमा विषम राशि में हो और ऊपर से पाप ग्रह से दृष्ट हो उस स्थिति में व स्त्री कठोर स्वभाव वाली  व मंद भागा होती है। साथही ऐसी स्त्री अपनी मनमर्जी से कार्य करने वाली होती है।
२, यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली के सप्तम भाव में शुभ राशि में शुभ ग्रह वा शुभ ग्रहों की युति तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि हो इसी प्रकार नवमांश कुंडली में भी सप्तम भाव में शुभ राशि व शुभ ग्रहों की स्थिति तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि संबंध हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को सुयोग्य सुंदर सुशील व चरित्रवान पति की प्राप्ति होती है और उसका दांपत्य जीवन बहुत ही सुंदर व मंगलमय होता है। इसके विपरीत यदि जन्मकुंडली के सप्तम भाव में अशोक राशि व अशुभ ग्रहों की युति या पाप ग्रहों की दृष्टि हो और ऐसी स्थिति नवमांश कुंडली में हो उस स्थिति में जातिका को दुष्चरित्रवान, कुरूप, निर्धन पति की प्राप्ति होती है। यदि सप्तम भाव में मंगल विद्यमान हो और ऊपर से पाप ग्रह से दृष्ट हो तो उसी स्थिति में जातिका को विधवा होना पड़ता है। अथवा यदि सप्तम भाव में पाप व शुभ ग्रह विद्यमान हो और नवमांश में भी स्थिति कमजोर हो उस स्थिति में स्त्री को पति सुख प्राप्त नहीं होता है दोनों में अलगाववाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।।

३, स्त्री जन्म कुंडली में यदि अष्टम भाव में क्रूर पाप ग्रह हो तो पति को अल्पायु करता है और यदि द्वितीय भाव में पाप क्रूर ग्रह विद्यमान हो तो उस स्थिति में स्त्री स्वयं अल्पायु होती हैं।

४, किंतु यदि वर-वधू की कुंडली में सूर्य मंगल शनि राहु और केतु की स्थिति  समान हो तो उस स्थिति में एक दूसरे के दोषों का  निवारण हो जाता है। जैसे यदि वधु की कुंडली में मंगल सप्तम भाव में है और वर की जन्म कुंडली में मंगल सप्तम भाव में है तो दोनों के मांगलिक योग होने के कारण मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है।

५, यदि वधू की जन्म कुंडली में लग्नेश सप्तमेश नवमेश और चंद्रमा जिस राशि में है उस राशि का स्वामी शुभ भाव में और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो उस स्थिति में वह जातिका मधुर स्वभाव वाली सुंदर सुशीला व सतचरित्र वाली गृह लक्ष्मी स्वरूपा होती है।

६, स्त्री की जन्म कुंडली के अष्टम भाव को जितने अधिक शुभ ग्रह देखते हैं उतना ही जातिका के लिए अति श्रेष्ठ होता है। क्योंकि शुभ ग्रहों की दृष्टि अष्टम भाव पर जातिका के पति को दीर्घायु प्रदान करते हैं।

आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245






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