सूर्य गोचर फल -:
ज्योतिष शास्त्र में चंद्र लग्न को विशेष महत्व दिया गया है। अर्थात जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा जिस राशि में है उस राशि को लग्न मान करके विचार करना चंद्र कुंडली कहलाती है। गोचर विचार में चंद्र लग्न को प्रधान माना गया है। क्योंकि चंद्रमा को शास्त्रों ने मन कहा है और मन ही दुख सुख का कारण होता है। अतः गोचर फलादेश में चंद्र लग्न को अति विशिष्ट महत्व दिया गया है। इसी क्रम में आज हम गोचर कुंडली में द्वादश भावो में सूर्य सक्रांति अर्थात सूर्य परिभ्रमण का फल क्या होता है? जैसा कि हम जानते हैं कि सूर्य सक्रांति 30 दिन की होती है अर्थात सूर्य एक राशि में 30 दिन रहता है। इस दौरान अलग-अलग भाव में उसके अलग-अलग फल होते हैं। तो आइए जानते हैं द्वादश भाव में सूर्य के फल।
हम किसी भी जातक के गोचर की चर्चा करें तो उस समय हमें देखना होगा कि जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा किस राशि में है फिर उस राशि को लग्न मानकर फलादेश करेंगे। जैसे माना कि जातक की जन्मकुंडली में चंद्रमा मकर राशि में है और लगन कर्क राशि का है। अतः हम यहां पर लग्न का विचार नहीं करके मकर राशि को लग्न मानकर के विचार करेंगे।
१, सूर्य जब गोचर कुंडली में प्रथम भाव अर्थात लग्न भाव में होता है। जातक को परिश्रम करवाता है मन के अनुकूल फल प्राप्त होने पर क्रोधित बनाता है। साथी जातक को स्वाभिमानी बनाता है। इस प्रकार सूर्य के गुणधर्म के प्रभाव इस समय के दौरान जातक के मन और शरीर पर देखे जाते हैं।
२, गोचर कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य धन का नाश करने वाला व सुख में कमी, जिद्दी व अपने लोग ही जातक को धोखा दे करके अपना काम निकलवाते हैं।
३, गोचर में सूर्य तीसरे भाव में परिभ्रमण के समय जातक को पराक्रमी तथा शत्रु पर विजय प्राप्त करवाता है रुका हुआ कार्य पूर्ण होता है। अदालती कार्य में विजय प्राप्त होती है। सुख की प्राप्ति कराता है।
४, गोचर कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य सुख का नाश करने वाला और रुग्णता प्रदान करने वाला होता है।
५, पंचम भाव में सूर्य जातक को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्रदान करवाता है। साथ ही मोह उत्पन्न करता है जिस कारण से जातक का मन अशान्त रहता है। इस प्रकार पंचम भाव में सूर्य मानसिक विफलता प्रदान करता है।
६, छठे भाव में सूर्य रोगों का नाश करने वाला, शत्रुओं को परास्त करके उन पर विजय प्राप्त करवाने वाला, मानसिक विफलताओं को दूर करने वाला व मन को प्रसन्न करने वाला होता है।
७, सप्तम भाव में सूर्य जातक को लंबी यात्रा करवाता है पेट संबंधी व गुदा संबंधी रुग्णता प्रदान करता है। साथ ही जातक के मान सम्मान में कमी लाता है। मानसिक शांति प्रदान करता है अर्थात दांपत्य जीवन में विषमताऐ उत्पन्न करता है।
८, गोचर कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य रोग उत्पन्न करने वाला राजकीय कार्यों में बाधा उत्पन्न करने वाला भय,व मानसिक अशांति प्रदान करने वाला होता है। अनावश्यक लड़ाई झगड़े करवाता है।
९, नवम भाव में सूर्य जातक के कार्यों में रुकावटे उत्पन्न करता है। अपने लोगों का विरह करवाता है। साथ ही कार्य क्षेत्र में असफलता दिलवाता है।
१०, दशम भाव में सूर्य जातक को कार्यक्षेत्र में असफलता प्रदान करवाता है साथ ही विशेष बड़े कार्य में सफलता भी दिलवाता है। कार्य क्षेत्र में जातक को प्रभाव शील बनाता है।
११, एकादश भाव में सूर्य लाभ प्राप्ति, स्थान प्राप्ति, मान सम्मान व यश में वृद्धि करता है। इस प्रकार आर्थिक लाभ प्राप्ति के साथ-साथ शारीरिक पूष्टता भी देता है।
१२, द्वादश भाव में सूर्य धन हानि, क्लेश व अनावश्यक खर्चों में वृद्धि कराता है।
सूर्य का राशियों में प्रवेश अंग्रेजी तारीख-:
मेष = 13/14 अप्रेल
वृष = 14/15 मई
मिथुन = 15 जुन
कर्क= 16/17जुलाई
सिंह =16/17अगस्त
कन्या = 17 सितम्बर
तुला =17 अक्टुम्बर
वृश्चिक = 15/16 नवम्बर
धनु = 16 दिसम्बर
मकर = 13/14 जनवरी
कुम्भ = 12 फरवरी
मीन = 14 मार्च
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245
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