ग्रहों की महादशा/अंतर्दशा में शुभ फल

 ग्रहों की महादशा/ अंतर्दशा में शुभफल -:

जन्म कुंडली में हम ग्रहों की अंतर्दशा का फल किस प्रकार ज्ञात करते हैं? कि कौन सा ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फलदायक है या अनिष्ट फल दायक?

१, यदि हमारी जन्म कुंडली में लग्नेश अर्थात लग्न भाव का स्वामी योग कारक बन रहा हो तो उस स्थिति में जब हमारे जीवन में लग्नेश ग्रह की अंतर्दशा आती है तो वह जातक के लिए सौम्य में फल प्रदान करने वाला होता है जातक सर्व सुख संपन्न होता है जातक का यस बढ़ता है जातक शरीर से स्वस्थ रहता है। इस प्रकार लग्नेश की अंतर्दशा में जातक मन व शरीर से प्रसन्न रहता है यदि जन्म कुंडली में लग्नेश योगकारक व बलवान की स्थिति में होता हो।और यदि जन्म कुंडली में लग्नेश बल हीन या योगकारक स्थिति में नहीं होता है उस स्थिति में इसके विपरीत परिणाम जातक को प्राप्त होते हैं।

२, यदि जातक की जन्मकुंडली में दूसरे भाव का स्वामी योगकरक व बलवान हो तो जातक को दूसरे भाव के स्वामी की अंतर्दशा में कुटुंब वाणी व धन की प्राप्ति होती है। अर्थात जन्म कुंडली में दूसरा भाव कुटुंब धन व वाणी का भाव होता है अतः जातक को दूसरे भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा में जातक के परिवार में वृद्धि होती है जातक को धन प्राप्ति के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं और जातक अपनी वाणी के द्वारा धनार्जन करता है तथा जातक वाणी के द्वारा अपने जीवन में यश प्राप्ति करता है। और यदि दूसरे भाव का स्वामी अयोगकारक  तथा बल हीन हो उस स्थिति में इसके विपरीत परिणाम जातक को प्राप्त होते हैं।

३, जब जन्म कुंडली में तीसरे भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा आती है और यदि जन्म कुंडली में तीसरे भाव का स्वामी योगकारक व बलवान हो उस स्थिति में जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है भाई बहनों के बीच प्रेम बढ़ता है।  अच्छे समाचार प्राप्त होते रहते हैं। जातक को सेना में अपना कैरियर बनाने का अवसर प्राप्त होता है। क्योंकि तीसरा भाव पराक्रम,व भाई बहन का होता है। अतः इनसे संबंधित अच्छे परिणाम जातक को प्राप्त होते हैं। और यदि तीसरे भाव का स्वामी अयोगकारक हो उस स्थिति में जातक को इसके विपरीत परिणाम प्राप्त होते हैं।

४, यदि जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी बलवान व योग कारक होता है और जब चतुर्थ भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा आती है तो जातक को भवन वाहन का सुख प्राप्त होने के साथ-साथ घर परिवार में आनंदमय वातावरण बना रहता है घर परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम बढ़ता है। साथ ही जातक के पद में वृद्धि होती है क्योंकि जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव सुख का भाव होता है अतः जातक को इससे संबंधित अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

५, जातक के जीवन में जब पंचम भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा आती है और यदि जातक की जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी योगकारक व बलवान होता है उस स्थिति में जातक को सद पुत्र की प्राप्ति होती है जातक के मान सम्मान में वृद्धि होती है साथ ही जातक श्रेष्ठ कार्य से यश प्राप्त करता है अच्छे कार्यों में मन लगता है। और यदि पंचमेश अयोग कारक स्थिति में हो उस स्थिति में जातक को सारे फल इनके विपरीत प्राप्त होते हैं।

६, यदि जन्म कुंडली में छठे भाव का स्वामी बलवान हो अर्थात लग्नेश का मित्र हो तो उस स्थिति में छठे भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा में जातक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला रोगों से मुक्त व साहसी कार्य करने वाला होता है।

७, यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी योगकारक हो अर्थात लग्नेश का मित्र हो और अच्छे भाव में विद्यमान हो तथा बलवान हो उस स्थिति में सप्तम भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा में जातक को स्त्री सुख की प्राप्ति होती है पति पत्नि के बीच प्रेम में वृद्धि होती है घर परिवार में शादी विवाह होते हैं सुखद यात्रा का योग बनता है और रोजमर्रा की आमदनी में वृद्धि होती है। क्योंकि सप्तम भाव स्त्री रोजमर्रा की आमदनी यात्रा शादी विवाह का भाव होता है अतः इनसे संबंधित अच्छे परिणाम जातक को सप्तम भाव की दशा अंतर्दशा में प्राप्त होते हैं यदि सप्तमेश बलवान हो और यदि सप्तमेश बल हीन या मारक हो उस स्थिति में जातक को नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।

८, यदि जन्म कुंडली में अष्टम भाव का स्वामी बलवान हो अर्थात लग्नेश का मित्र हो और अष्टमेश अच्छे भाव में विद्यमान हो उस स्थिति में जब जातक के जीवन में अष्टम भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा आती है तो जातक ऋण से मुक्त हो लंबी बीमारी से मुक्ति प्राप्त होती है कोर्ट कचहरी में चल रहे विवाद समाप्त होते हैं अचानक धन की प्राप्ति के योग बनते हैं। यद्यपि ज्योतिष में अष्टम भाव को अशुभ भाव बताया गया है किंतु यदि इसका स्वामी शुभ स्थिति में होता है उस स्थिति में अच्छे फल देता है।

९, जन्म कुंडली में यदि भाग्य भाव का स्वामी बलवान व योग कारक होता है तो जब नवम भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा आती है उस समय जातक अपने परिवार जनों के साथ आनंद के साथ रहता हुआ सुख प्राप्त करता है धन प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है  भाग्य वृद्धि होती है साथ ही धर्म-कर्म में मन लगता है श्रेष्ठ जनों से मुलाकात होती है।

१०, यदि जन्म कुंडली में दशम भाव का स्वामी योगकारक होता है तो जब उसकी दशा अंतर्दशा आती है तो जातक को मान सम्मान व यश की प्राप्ति होती है उस समय के दौरान यदि जातक जिस किसी भी कार्य को प्रारंभ करता है उसमें पर्याप्त सफलता प्राप्त होती है। इस प्रकार जातक को अपने कर्म क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्ति के योग बनते हैं राजा से सम्मान प्राप्त होता है और यदि दशम भाव का स्वामी अयोग कारक होता है उस स्थिति में इसके विपरीत परिणाम जातक को प्राप्त होते हैं।

११, जब 11वे भाव के स्वामी की दशा आती है और यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी योगकारक व बलवान हो उस स्थिति में जातक को लाभ प्राप्ति के अनेक प्रकार के मार्ग प्रशस्त होते हैं जातक को सर्वत्र लाभ प्राप्ति के योग बनते हैं जातक के मान सम्मान में वृद्धि होती है बंधु बंधुओं का आगमन होता है। नौकरी में वृद्धि होती है।

१२, यदि जन्म कुंडली में द्वादश भाव का स्वामी योगकारक होकर शुभ भाव में विद्यमान हो तो उसकी दशा अंतर्दशा में जातक का धन अपने घर परिवार अर्थात अच्छे कार्यों में होता है और यदि द्वादशेश बलहीन, अयोगकारक हो उस स्थिति में जातक का धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च होता है।


निष्कर्ष -

इस प्रकार प्रत्येक ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल उस स्थिति में देता है
 १,जब वह अच्छे भाव में विद्यमान हो 
२,उच्च राशि , स्वराशि या मित्र राशि में स्थित हो 
३,ग्रह की अच्छी डिग्री हो
४, सूर्य से अस्त नहीं हो
५, पाप कर्तरी दोष में नहीं हो


इसी प्रकार ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में अशुभ फल उस स्थिति में देता है।

१, जब वह अपनी नीच राशि या शत्रु राशि पर स्थित हो

२, जब वह 6, 8 ,12 भाव में स्थित हो

३, सूर्य से अस्त हो





आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
941465724





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