पाप कर्तरी दोष -:
आज हम चर्चा करने जा रहे हैं जन्म कुंडली में बनने वाले एक विशेष दोस्त के विषय में, जिसका नाम है पाप कर्तरी दोष जैसा कि नाम से ही विदित होता है। कि पापी ग्रह द्वारा शुभ ग्रह के फल को काटने वाला योग पाप कर्तरी होता है।अतः आइए जानते हैं कि यह दोष जन्म कुंडली में किस प्रकार बनता है ? और इसका क्या फल होता है?
१, जब जन्म कुंडली में किसी शुभ ग्रह अर्थात जन्म कुंडली का योगकारक ग्रह के आगे और पीछे दोनों तरफ पापी ग्रह अर्थात मारक ग्रह के रूप में राहु/ केतु और शनि विद्यमान हो तो उस जन्म कुंडली में पाप कर्तरी दोष का निर्माण होता है। यहां पापी गृह का अर्थ केवल राहु केतु व शनी से है। क्योंकि सूर्य मंगल को भी पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है किंतु यह पूर्णतया सत्य नहीं है क्योंकि मंगल व सूर्य क्रूर ग्रह की श्रेणी में आते हैं वह भी इसलिए क्योंकि दोनों अनुशासन प्रिय होते हैं और दूसरों को अनुशासन में रखते हैं। इसलिए उनको क्रुर कह दिया गया है। क्योंकि एक राजा है और एक मंत्री है और दोनो हीं ग्रहों को शासन चलाने के लिए डिसीप्लेन में रहना होता है। किंतु उनका कार्य सदैव धर्मानुकूल होता है। अतः यहां पापी ग्रह का अर्थ राहु केतु व शनि से है।
२, पाप कर्तरी दोष की दूसरी शर्त यह होती है एक तो जो ग्रह पाप ग्रहों के मध्य आ रहा हो वह जन्म कुंडली में योगकारक हो शुभ भाव में स्थित हो और उसके आगे और पीछे स्थित होने वाले राहु/ केतु और शनी दोनों ही ग्रह जन्म कुंडली में अयोग कारक हो अर्थात मारक हो उस स्थिति में पाप कर्तरी दोष का निर्माण होता है। यदि दोनों पापी ग्रहों में से एक भी ग्रह जन्म कुंडली में योगकारक होता है तो पाप कर्तरी दोष भंग हो जाता है।
३, पाप कर्तरी दोष बनने की तीसरी शर्त यह होती है कि दोनों ही पापी ग्रहों की डिग्री ठीक हो यदि दोनों पापी ग्रहो में से एक भी ग्रह की डिग्री ०, 1,2, 28, 29 की स्थिति में हो तो वह ग्रह पहले से ही अपना प्रभाव देने में असमर्थ होता है इस स्थिति में भी यह दोष भंग हो जाता है।
३, पाककृत्री दोष की चौथी शर्त होती है कि यदि पापी ग्रहो में से एक भी ग्रह यदि अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह अपना नेगेटिव फल नहीं दे पाता है। अतः इस स्थिति में यह दोष काम नहीं करता है।
जैसे -
मान लीजिए कि सिंह लग्न की जन्म कुंडली है। और उस जन्म कुंडली के तृतीय भाव में तुला राशि में राहु विद्यमान है चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में सूर्य देव है और पंचम भाव में धनु राशि में शनि विद्यमान है। जब हम सामान्य रूप से इस स्थिति को देखते हैं तो हमें लगता है कि यहां पाप कर्तरी दोष का निर्माण हो रहा है क्योंकि प्रथम तो जन्म कुंडली में स्वयं सूर्य लग्नेश होकर चतुर्थ भाव में विद्यमान हैं। अतः अति प्रबल योग कारक शुभ ग्रह है।और उनके आगे और पीछे अर्थात तीसरे भाव में राहु और पंचम भाव में शनि विद्यमान है। अतः साधारणतया देखने पर हमें यहां पाप कर्तरी दोष दिखाई देता है। किंतु जब हम दोनों पापी ग्रह राहु व शनि की स्थिति को देखते हैंतो पता चलता है कि राहु तीसरे भाव में तुला राशि में स्थित है जो कि शुक्र की राशि है और शुक्र राहु का अति मित्र है। अतः यहां राहु योगकारक माने जाएंगे और सनी पंचम भाव में गुरु की राशि में अर्थात शत्रु की राशि में होने से मारक होंगे किंतु राहु शुभ होने के कारण यहां पाप कर्तरी दोष नहीं माना जाएगा।
पाप कर्तरी दोष के परिणाम -:
जिस जातक की जन्म कुंडली में पाप कर्तरी दोष का निर्माण होता है उस स्थिति में उस जातक को जीवनकाल में उस शुभ ग्रह संबंधित शुभ फल प्राप्त नहीं होते हैं जो ग्रह पापी ग्रहों के मध्य आकर के पाप कर्तरी दोष में फंस जाता है।अतः जब भी उस शुभ ग्रह की दशा अंतर्दशा आती है तो उसके जो सुफल हमें प्राप्त होने चाहिए थे। वे शुभफल जातक को प्राप्त नहीं होंगे क्योंकि उसकी शुभ फलों को दोनों पापी ग्रहों ने नष्ट कर दिया है।
पाप कर्तरी दोष के उपाय -:
जिस भी जातक की जन्म कुंडली में पाप कर्तरी दोष का निर्माण होता है उसी स्थिति में पाप कर्तरी दोष निवारण के लिए हम निम्न उपाय कर सकते है।
१, जब भी उस शुभ ग्रह कि जीवन में दशा अंतर्दशा आवे उस समय उन पापी ग्रहों की वस्तुओ का दान किया जाए।
२, कभी भी दोनों ही पापी ग्रहों के रत्न को धारण नहीं करें।
३, शुभ ग्रह जो पापी ग्रहों के मध्य स्थित है उसके बीज मंत्र का जाप करें साथ ही दोनों ही पापी ग्रहो के बीज मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं। क्योंकि बीज मंत्र मारक व योगकारक दोनों ही प्रकार के ग्रहो को शुभ फल देने के लिए बाध्य करते हैं।
४, उस योगकारक ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान कदापि ना करें।
५, यदि योगकारक ग्रह जो पाप कर्तरी दोष में फंसा है उसकी डिग्री कम हो तो उनको बढ़ाने के लिए उस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करें।
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245
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