भवन की चारदीवारी निर्माण

 वास्तु शास्त्र पार्ट = 2


भवन की चार दिवारी ( बाउंड्री)-:

वास्तु शास्त्र के दो प्रकार होते है गृह वास्तु व परिसर वास्तु । इन दोनों में से परिसर वास्तु का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि परिसर वास्तु में भवन की चारदीवारी के परिसर का निर्माण संबंधी सूत्रों होते है। और भवन में भवन की चार दिवारी का सर्वाधिक महत्व होता है क्योंकि चारदीवारी हमारी भवन की रक्षा का कार्य करती है अतः एक तरह से चारदीवारी हमारे भवन की रक्षा कवच होती है। अतः वास्तु शास्त्र में भवन की चारदीवारी के निर्माण में विशेष सावधानी बरतनी का उल्लेख हुआ है। अत:  भवन निर्माण से पहले भवन की चारदीवारी का निर्माण करना चाहिए, । तथा वास्तु शास्त्र के अनुसार चारदीवारी का निर्माण  निम्न प्रकार से करना चाहिए।

१, सबसे पहले प्लौट का कार्य प्रारंभ करने से पहले शुद्ध गंगाजल का छिड़काव अपने प्लॉट के चारों ओर करें ।

२, फिर शुभ मुहूर्त निकलवा कर  पुरोहित द्वारा नींव का पूजन करवाएं।

३, ईशान कोण से अपने भवन की चार दिवारी निर्माण का प्रारंभ करें।

४, भवन के चारों ओर दीवार का होना प्रहरी कहलाती है अतः एक भी दीवार कम होने की स्थिति मे भवन की प्रहरी नहीं बनती है।

५, भवन की चारदीवारी की दीवारों में से दक्षिण पश्चिम की दीवारें ऊंची व पूर्व उतर की दीवारें कुछ कम ऊची हो सकती है।

६, इसी प्रकार जमीन का भाग  दक्षिण पश्चिम का भाग उच्चा व पूर्व उत्तर का भाग नीचा होना चाहिए।


७, पूर्व उत्तर व ईशान कोण में बड़े विशाल वृक्ष नही होने चाहिए


८, दक्षिण पश्चिम का कोणा 90 डिग्री का होना चाहिए।

९, उत्तर पूर्व का कोना बढ़ा हुआ हो सकता है।

१०, खाली जगह पश्चिम से पूरब में व दक्षिण से उत्तर में अधिक होनी चाहिए।


११, यदि भवन की चारदीवारी  का निर्माण पिल्लरो से कर  रहे हैं।
पिल्लरो का निर्माण निम्न चित्र के अनुसार करना चाहिए




चित्र में दी हुए अंक के अनुसार पिल्लरो का निर्माण करें।



इस प्रकार भवन की प्रहरी का निर्माण उपरोक्त विधि से करने पर भवन पूर्ण रूप से सुरक्षित होता है।




आचार्य श्रीकोशल कुमार शास्त्री
9414657245


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