अष्टक वर्ग का महत्व

 अष्टक वर्ग -:

ज्योतिष शास्त्र में अष्टक वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान होता है। साधारण रूप से  गोचर कुंडली का अध्ययन करते समय अष्टक वर्ग की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। या यूं कहा जा सकता है कि गोचर कुंडली का अध्ययन ही अष्टक वर्ग कहलाता  हैं। इसके अंतर्गत सात ग्रह और लग्न को मिलाकर आठ वर्ग का अध्ययन क्या जाता है जिसे अष्टक वर्ग कहा जाता है। जब ग्रह गोचर वश राशियों में भ्रमण करते हैं उस समय ग्रहों का क्या शुभ अशुभ फल होता है। इसी का विचार करने के लिए अष्टक वर्ग को महत्वपूर्ण माना जाता है। तोआइए जानते हैं कि अष्टक वर्ग का निर्माण किस प्रकार से किया जाता है। जब कोई ग्रह गोचर वश राशियों में भ्रमण करता है तो अष्टक वर्ग में जहां शुभ होता है उसे बिंदु कहा जाता है। और जहां अशुभ होता है उसे रेखा से प्रदर्शित किया जाता हैं।

इसी क्रम में हम सूर्यादि सप्त ग्रहों के अष्टक वर्ग का निर्माण करना जानते हैं। राहु और केतु को स्थान नहीं दिया गया है क्योंकि दोनों ही ग्रह  छाया ग्रह है। उनका कोई पिंड शरीर नहीं होता है। इसलिए उनको यहां जगह नहीं दी जाती है।


सूर्य अष्टक वर्ग निर्माण-:

सूर्य जन्म कुंडली में अपने स्थान से 1,2,4,7,9,10,11
स्थानों में शुभ होता है। इस कारण जन्म कुंडली में जन्म कालीन समय सूर्य जिस राशि में है। उस राशि से 1,2,4,7,9,10,11, स्थान में जीरो(0) लगाते हैं। जिसका अर्थ शुभ होता है । इसी प्रकार जन्म कुंडली में चंद्रमा से सूर्य3,6,10,11 स्थान में शुभ होता है। अतः यहां भी बिंदु मिलेगा। इसी प्रकार मंगल और शनि से सूर्य 1,2,4,7,9,10,11 स्थान पर शुभ होता है। गुरु से सूर्य 5,6,9, 11 स्थान पर शुभ होता है। और इन स्थानों पर गोचर बस जब सूर्य भ्रमण करता है तो उत्तम फल देता है। शुक्र से सूर्य गोचर वश 6,7,12 स्थानों पर शुभ होता है। बुध से 3,5,6,9,10,11,12 स्थानों पर शुभ फलदायक होता है। इसी प्रकार लग्न से सूर्य3,4,6,10,11,12 स्थानों में शुभ फलदाई होता है।
इस प्रकार सूर्य का अष्टक वर्ग बनाने में हमने देखा की सूर्य 8 स्थानों पर बिंदु दे रहा है। चंद्रमा 4 स्थानों पर बिंदु देरा है। मंगल और शनि दोनों ही 8 स्थानों पर बिंदु दे रहे हैं। गुरु 4 स्थानों पर बिंदु दे रहे हैं। शुक्र भी 3 स्थानों में बिंदु दे रहा है। बुध से 7 बिंदु प्राप्त हो रहे हैं। और लगन से 6 बिंदु प्राप्त होते हैं। इस प्रकार सूर्य के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर 48 शुभ बिन्दु प्राप्त होते हैं।

चन्द्र अष्टक वर्ग निर्माण -:

जन्म कुंडली में जब सूर्य से चंद्रमा3,6,7,8,10,11 स्थानों पर शुभ फलदायक होता है। चंद्रमा स्वयं से 1,3,6,7,10,11 स्थानों में शुभ विंदु दायक होता है। मंगल से चंद्रमा गोचर बस जब2,3,5,6,9,10,11 स्थानों में अगर मन करता है तो शुभ होता है। इसी प्रकार बुध से चन्द्रमा 1,3,4,5,7,8,10,11 में शुभ होता है। गुरु से चंद्रमा निम्न स्थानों में गोचर वश
 शुभ फलदायक होता है।1,2,4,7,8,10,11, इसी प्रकार से शुक्र से चंद्रमा 3,4,5,7,9,10,11 में बिंदु दायक होता है। शनी से चंद्रमा 3,5,6,11 स्थानों में शुभ होता है। लग्न से चंद्रमा 3,6,10,11 स्थानों में शुभ फलदायक होता है।

इस प्रकार चंद्रमा के अष्टक वर्ग में सूर्य से 6 चंद्रमा से 6 मंगल से 7 बुध से 8 गुरु से 7 शुक्र से 7 शनी से 4 और लग्न से भी 4 शुभ बिन्दु प्राप्त होते हैं। इस प्रकार चंद्रमा के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर49 शुभ बिंदु प्राप्त होते हैं।

मंगल का अष्टक वर्ग निर्माण -:

सूर्य से मंगल3,5,6,10,11 शुभ होता है। चंद्रमा से मंगल3,6,11 स्थानों में सुख बिंदु दायक होता है। मंगल से स्वयं मंगल1,2,4,7,8 ,10,11 स्थानों में शुभ होता है। बुध से मंगल गोचर में3,5,6,11 में शुभ होता है। गुरु से मंगल 6, 10,11,12 में शुभ होता है। शुक्र से मंगल 6,8,11,12 में शुभफलदायक बनता है। सनी से मंगल 3,4,7,8,9,10,11 में शुभ होता है। इसी प्रकार लग्न से मंगल 1,3,6,10,11 में शुभ बिंदु देने वाला होता है।

इस प्रकार जन्म कालीन ग्रह उपरोक्त स्थानों पर बिंदु प्रदान करने से मंगल का अष्टक वर्ग तैयार होता है। मंगल के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर 39 बिंदु बनते हैं। जिसमें सूर्य के 5 चन्द्रमा के 3 मंगल के 7  बुध के 4 गुरु के 4 शुक्र के 4शनी के 7 लग्न के 5 बिन्दु होते हैं।


बुध का अष्टक वर्ग -:

अब बुध का अष्टक वर्ग बनाना देखते हैं। कि किन किन ग्रहों से किन किन स्थानों पर शुभ बिंदु प्राप्त होते हैं।
सूर्य से बुध 5,6,9,11,12
चन्द्र से बुध 1,4,6,8,10,11
मंगल से बुध 1,2,4,7,8,9,10,11
बुध से बुध 1,3,5,6,9,10,11,12
गुरु से बुध 6,8,11,12
शुक्र से बुध 1,2,3,4,5,8,9,11
शनी से बुध 1,2,4,7,8,9,10,11
लग्न से बुध 1,2,4,6,8,10,11 स्थानों में शुभ फल देने वाला होता है।

इस प्रकार बुद्ध के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर के 56 बिंदु बनते हैं। जिसमें सूर्य के 5, चन्द्रमा के 6, मंगल के 8,बुधके 8, गुरु के 4, शुक्र के 8, शनि के 8, लग्न के 7 बिंदु प्राप्त होते हैं जिससे बुध का स्तर पर तैयार होता है।

गुरु काअष्टक वर्ग निर्माण -:

सूर्य 1,2,3,4,7,8,9,10,11
चन्द्र 2,5,7,9,11
मंगल 1,2,4,7,8,10,11
बुध 1,2,4,5,6,9,10,11
गुरु 1,2,3,4,7,8,10,11
शुक्र 2,5,6,9,10,11
शनि 3,5,6,12
लग्न से 1,2,4,5,6,7,9,10,11 स्थानों में गुरु शुभ फलदायक होता है।

इस प्रकार गुरु के अष्टक वर्ग में कुल 56 बिंदु बनते हैं। इसमें
सूर्य के 9, चन्द्र के 5, मंगल के 7, बुध के 8, गुरु के 8, शुक्र के 6, शनि के 4,लग्न के 9 बिंदु प्राप्त होते हैं।

शुक्र का अष्टक वर्ग निर्माण -:



सूर्य 8,11,12
चन्द्र 1,2,3,4,5,,8,911,12
मंगल 3,5,6,9,11,12
बुध 3,5,69,11
गुरु 5,8,9,10,11
शुक्र 1,2,3,4,5,8,9,10,11
शनि 3,4,5,8,9,10,11
लग्न से शुक्र 1,2,3,4,5,8,9,11 स्थानों में सुख बिंदु दायक होता है।

इस प्रकार शुक्र के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर 52 बिंदु प्राप्त होते हैं। जिसमें सूर्य के 3, चन्द्र के 9, मंगल के 6, बुध के 5, गुरु के 5,शुक्र के 9, शनि के 7,लग्न के 8 के बिंदु होते हैं।

शनी का अष्टक वर्ग निर्माण -:

सूर्य 1,2,4,7,8,10,11
चन्द्र 3,6,11
मंगल 3,5,6,10,11,12
बुध 6,8,9,10,11,12
गुरु 5,6,11,12,
शुक्र 6,11,12
शनि 3,5,6,11
लग्न से शनि 1,3,4,6,10,11 स्थानों में शुभ होता है।

इस प्रकार सनी के अष्टक वर्ग में कुल मिलाकर 39 शुभबिन्दु प्राप्त होते हैं। जिसमें सूर्य के 7, चंद्रमा के 3, मंगल के 6, बुध के 6, गुरु के 4, शुक्र के 3, शनि के 4,लग्न के 6 बिंदु होते हैं।




इस प्रकार ऊपर वर्णित अष्टक वर्गों मे जब गोचर वश कोई गृह भ्रमण करता है। तो वह है जिन जिन स्थानों पर बिंदु देता है ।वहां वहां सदैव गोचर काल में शुभ फल देने वाला होता है। जैसे उदाहरण से समझते हैं। कि सूर्य की महादशा में जब शनी1,2,4,7,8,10,11 भाव में गोचर करेगा वहां वहां सदैव शुभ फल देगा। शेष स्थानों पर सदैव अशुभ फल देने वाला होगा। किसी जाति की जन्म कुंडली में सूर्य वृश्चिक राशि में विद्यमान है तो वृश्चिक राशि से विचार करेंगे तो 1 अर्थात वृश्चिक, 2 धनु,4कुम्भ,7वृष,8मिथुन,10सिंह,11कन्या शनि गोचर करेगा वहां शुभ फल देगा शेष राशियों में अशुभ फल देगा। इसी प्रकार शेष ग्रहों के अष्टक वर्ग से विचार करना चाहिए। उसमें भी यह देखना होता है कि कौन से स्थान पर कितने  बिंदु मिले हैं यदि किसी स्थान पर 6 से 8 बिंदु मिले हैं तो वहां व ग्रह सदैव सम्पूर्णशुभफल देगा।

इस प्रकार हम प्रत्येक ग्रह की महादशा में महादशेश  ग्रह का अष्टक वर्ग बनाकर अन्य ग्रहों के बिंदुओं के आधार पर शुभाशुभ फल कहते हैं।

जब हम अष्टक वर्ग का निर्माण कर लेते हैं। तो उसमें अब हम यह देखते हैं कि किस राशि में कितने बिंदु आए हैं। यदि किसी राशि में एक भी बिंदु नहीं आ रहा होता है तो वहां जब कोई भी ग्रह गोचर में भ्रमण करेगा तो वह उस समय अत्यधिक कष्ट देने वाला होगा। इसी क्रम में 4 बिंदु से नीचे की राशि में सामान्य फलदायक और 4 बिंदु से ऊपर वांछित फल दायक होता है।

तो आज की परिचर्चा में इतना ही आगे की पोस्ट में हम पर जानेंगे कि अष्टक वर्ग से फल किस प्रकार से जानते हैं।

जय श्री राधे राधे!

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री
9414657245


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