राजा जनक ने सीता स्वयंवर में राजा दशरथ को निमंत्रण क्यों नहीं भेजा?
जैसा कि हम सब जानते हैं।कि राजा जनक एक प्रतापी महाराजा थे। और साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा सीता महाराज जनक को हल जोतते समय घट से प्राप्त हुई थी। राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का बड़ा ही दुलार के साथ लालन पोषण किया। राजा जनक के भवन में भगवान परशुराम जी के गुरु भगवान शिव का का दिव्य धनुष रखा हुआ था। यह धनुष भगवान परशुराम ने राजा जनक के पूर्वजों के समय ही रखा था। भगवान परशुराम का यह शिव धनुष इतना भारी था। कि इस को जनकपुर में देवी सीता के अतिरिक्त कोई भी हिला नहीं सकता था। इसलिए जब सीता विवाह योग्य हुई, तो राजा जनक ने सीता के योग्य महान पराक्रमी वर का चयन करने के लिए यह प्रतिज्ञा की, कि जो भी शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा। उसी के साथ सीता का विवाह किया जाएगा।
अतः राजा जनक ने सीता स्वयंवर के लिए आर्यावर्त के सभी राजा ,महाराजाओं व कुमारों को स्वंयवर का निमंत्रण भेजा । लेकिन अपने ही समीप के राज्य अयोध्या के महाराज दशरथ को सीता स्वयंवर के लिए निमंत्रण नहीं दिया गया।
अतः प्रश्न उठता है कि क्या कारण रहा होगा कि राजा जनक ने महाराज दशरथ को सीता स्वयंवर के लिए निमंत्रण नहीं दिया?
इसका मुख्य कारण शास्त्रों में इस प्रकार प्राप्त होता है। कि एक बार एक युवक जिसका विवाह हुआ ही था। वह प्रथम बार अपने ससुराल अपनी पत्नी को लेने के लिए जा रहा था। जब वह मार्ग से जा रहा था। तो उसने देखा कि मार्ग में एक जगह दलदल में एक गौ माता फंसी हुई थी। गौमाता दलदल में बुरी तरह से छटपटा रही थी। युवक को देखकर गौ माता ने उससे प्रार्थना की, कि हे पथिक! मुझे इस दलदल से निकालने का प्रयास करो। लेकिन वह युवक गौ माता की सहायता किये बगैर ही गौ माता की प्रार्थना को अनसुनी कर अपने ससुराल के रास्ते आगे बढ़ गया। जब उसने गौ माता की प्रार्थना स्वीकार नहीं की तो गौमात दुखी हो कर उसे श्राप देती है कि तुम
जिसके लिए यहां से प्रस्थान कर रहे हो, जब उसे तुम देखोगे तो आंखों से अंधे हो जाओगे।
, इस प्रकार जब वह युवक अपने ससुराल के मुख्य द्वार पर पहुंचा लेकिन वह द्वार के बाहर ही मुंह ढक करके बैठ गया। ससुराल के लोगों द्वारा बार-बार प्रार्थना करने पर भी उसने अपना चेहरा किसी को नहीं दिखाया और ना ही वह भवन के अंदर गया। अंत में जब उसकी पत्नी उसके पास आई और कहने लगी कि है स्वामी! क्या कारण है कि तुम भवन के अंदर नहीं आ रहे हो? ना ही अपना चेहरा किसी को दिखा रहे हो?। तब उसने कहा कि मैं अगर तुम्हारा चेहरा देख लूंगा तो मैं आंखों से अंधा हो जाऊंगा। इसलिए मैं तुम्हें नहीं देख सकता।
इतना कहने पर उसकी पत्नी बोली कि स्वामी! आप निश्चिंत रहिए मैं पतिव्रता स्त्री हूं । अपने तपबल के द्वारा तुम्हें न्याय अवश्य दिलाऊंगी। ऐसा विश्वास दिलाने पर जब उस युवक ने अपनी पत्नी का चेहरा देखा। देखते ही वह अपनी आंखों से अंधा हो गया। जब वह आंखों से अंधा हो गया तो उसकी पत्नी उसे अपने राजा राजा जनक के दरबार में लेकर पहुंची। उसने राजा जनक को सारा वृत्तांत कह सुनाया। वह राजा जनक से प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभु! ऐसा यतन कीजिए जिससे मेरे पति की आंखों की ज्योति लौट आई।
जब राजा जनक ने उन दंपति की यह बात सुनी तो राजा जनक ने विचार-विमर्श के लिए अपने राज्य के सभी विद्वान पंडितों की सभा बुलाई । सभी ने निष्कर्ष रूप में कहा कि यदि कोई सति पतिव्रता स्त्री चलनी में जल गंगा का जल लाकर इस युवक की आंखों के ऊपर जल डालें, तो इसकी नेत्र ज्योति पुनः प्राप्त हो सकती है।
तत्पश्चात राजा जनक ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया कि हमारे राज्य में कोई भी सति स्त्री यदि चलनी में गंगाजल लाकर इस युवक के नेत्र पर जल डालेगी तो उसे हम पुरस्कृत करेंगे। लेकिन पूरी जनकपुरी में कोई स्त्री इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हुई। तब राजा जनक ने आसपास के राज्यों में सती स्त्री की खोज कार्य प्रारंभ किया। लेकिन कोई भी स्त्री इस कार्य के लिए तैयार नहीं हुई।
अंत में राजा जनक ने सती स्त्री की खोज करने के लिए अयोध्या में अपना दूत भेजा। दूत ने अयोध्या पहुंचकर सारा वृत्तांत महाराज दशरथ को कह सुनाया। तब राजा दशरथ ने अपने राज महल में इस कार्य करने के लिए रानीयो से विचार विमर्श किया ।रानीयो ने कहा कि महाराज! राज महल की स्त्री तो क्या यह कार्य तो हमारी राज्य की हर कोई स्त्री कर सकती है ।यहां तक कि हमारे राजमहल में झाड़ू का काम करने वाली मेहतरानी भी इस कार्य को सरलता से कर सकती है।
तब राजा दशरथ ने अपने नगर की सफाई करने वाली मेहतरानी को बुलाया, और उससे कहा कि तुम राजा जनक के दरबार में जाकर चलनी में गंगा का जल भरकर अपनी पतिव्रता का प्रमाण दे सकती हो। तब नगर की सफाई करने वाली मेहतरानी ने इस कार्य के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की। तत्पश्चात राजा दशरथ के कहने पर वह मेहतरानी दूत के साथ राजा जनक के दरबार में पहुंचती है। और राजा जनक के कहने पर चलनी लेकर के गंगा किनारे जाकर अपने पति व्रता तप से चलनी में गंगा का जल भर लाती है। दरबार में यह दृश्य देखकर सभी दरबारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब उस मेहतरानी ने गंगाजल से उस युवक के आंखों पर छिड़काव किया। तत्काल उस युवक की आंखों में ज्योति प्रकट हो गई।
राजा जनक ने मेहतरानी के सति धर्म की जय जयकार की, तत्पश्चात जब मेहतरानी राजा जनक के दरबार से विदा होने लगी। राजा जनक ने उससे अपना परिचय पूछा। उस सती ने कहा कि महाराज! मैं अयोध्या नरेश दशरथ के महल की सफाई करने वाली निम्न जाति में उत्पन्न मेहतरानी हूं। इस प्रकार राजा जनक को बड़ा आश्चर्य हुआ। और उस सती मेहतरानी की भूरी भूरी प्रशंसा करके उपहार आदि से उसका सम्मान करते हुए वहां से विदा किया।
उसके जाने के बाद राजा जनक ने मन में विचार किया कि अयोध्या नगरी में एक निम्न जाति में उत्पन्न स्त्री भी पतिव्रता धर्म का पालन करके सती है।
इसी क्रम में जब राजा जनक सीता स्वयंवर के लिए आर्यावर्त के सभी राजा महाराजाओं को स्वयंवर का निमंत्रण भेज रहे थे। किंतु राजा दशरथ को सीता स्वयंवर का निमंत्रण इसलिए नहीं भेजा, क्योंकि उनको यह घटना याद थी। अतः राजा जनक को संदेह था कि कहीं राजा दशरथ स्वयं नहीं आ कर किसी निम्न जाति के व्यक्ति को सीता स्वयंवर में नहीं भेज दे, और मेरी पुत्री सीता का विवाह किसी निम्न कुल में हो जाए। कहीं ऐसा ना हो कि महाराज दशरथ उस सती मेहतर रानी के पति को ही स्वयंवर में भेज दे क्योंकि जब वह देवी इतनी शक्ति सम्पना थी।तो उसका पति तो और अधिक शक्ति संपन्न होगा।
किंतु विधि का विधान तो पहले ही लिखा जा चुका था। कि जनक दुलारी सीता का विवाह महाराज दशरथ के पुत्र श्री राम के साथ संपन्न होगा। सो विश्वामित्र के साथ भगवान श्री राम और लक्ष्मण जनकपुरी में जाकर श्री राम शिव धनुष को भंग करके सीता को वरण करते हैं।
जय श्री राम
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245
0 Comments